RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
अभी गुल्लन कुछ कहते उससे पहले ही अंदर की झोपडी से बदलू निकल आये और गुल्लन से बोले, “बाबू कहें तो लडकी के गहने उतरवा कर पिटारे में रखवाई दे? यहाँ चोर लुटेरे का डर थोडा ज्यादा है. अपने गाँव से पहले जा पहना लेना?"
गुल्लन ने विना राणाजी के पूंछे ही कह दिया, "ठीक है रखवा दीजिये. ये तो ठीक सोचा आपने.”
बदलू झट से अंदर चले गये. यहाँ के लोग किसी भी मेहमान को अपना दुश्मन मानते थे. क्योंकि जब खुद खाने को नहीं था तो उन्हें कहाँ से खिलाते?"
थोड़ी ही देर में अंदर की झोपडी से रोने की आवाज आने लगी. राणाजी और गुल्लन समझ गये थे कि ये लडकी की विदाई का रोना है. यहाँ की लडकियों की किस्मत भी बड़ी बदकिस्मत थी. इनकी शादी भी ऐसे होती जैसे ये शादी शादी न हो कोई पूजा पाठ हो जो घंटा भर में निपट जाय.
बदलू ने गहनों का पिटारा ला गुल्लन को सौप दिया. गुल्लन गहने को देखना चाहते थे लेकिन राणाजी ने इशारे से मना कर दिया. गुल्लन ने उस पिटारे को अपने बैग में रख लिया. बदलू की पत्नी सिसकती हुई लडकी को कुछ समझाती बाहर की झोपड़ी में ले आई.
बदलू के दो छोटे छोटे लडके भी अपनी बहन के बिछड़ने की सोच रोये जा रहे थे. बदलू की पत्नी ने राणाजी के पैर छुए और हाथ जोड़ कहने लगीं, "कुंवर जी मैं आपको अपनी लडकी सौप रही हूँ. जहाँ तक हो सके इसे कोई दुःख न होने देना लेकिन ये कोई गलत काम करे तो वेझिझक इसे डांटना या मारना."
राणाजी का कलेजा पत्थर का नही था. बोले, "माता जी आप चिंता मत करो. ये जैसे इस घर में रही थी उससे कही अधिक सुखी वहां पर रहेगी. आप इस बात की कोई चिंता मत करो." इतना कह गुल्लन और राणाजी बाहर की तरफ निकल आये.
साथ में बदलू की पत्नी और बदलू भी अपनी नई व्याही लडकी को साथ ले बाहर तक आ गये. राणाजी ने बदलू के दोनों छोटे लडकों की तरफ देखा और अपनी जेब से दौ सौ सौ के नोट निकाल दोनों को एक एक नोट दे दिया.
बच्चों ने लपक कर नोट ले लिए और उन नोटो को ले उल्ट पलट कर देखने लगे. उन्होंने आज तक किसी से ऐसा नोट नही पाया था. दस के नोट से ऊपर तो किसी घरवाले ने भी उन्हें नही दिया था.
उन्होंने आपस में बातें की. एक ने दुसरे से कहा, "भैया ये नकली नोट है. ये वही नोट है जो पर्ची खींचने वाले चूरन में निकलता है.”
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