RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
लडकी सहमी सी आवाज में घरघराते गले से बोली, "माला कुमारी.”
सावित्री देवी खुश होते हुए बोली, "नाम तो बहुत सुंदर है लेकिन मैं तुम से सिर्फ माला कहा करूंगी."
माला नाम की ये लडकी चुपचाप खड़ी रही. सावित्री देवी वहां से चलीं गयी. राणाजी जी ने अपने कमरे का दरवाजा बंद किया और अपनी दुल्हन से बोले,"तुम लेट जाओ. इस बेड पर ही लेट लो.”
माला धीरे से आगे बढ़ी और पलंग पर एक तरफ लेट गयी. कमरे में जल रही लेंप को राणाजी ने बहुत मद्दम कर दिया और खुद भी बिस्तर लेट गये. पेरों के पास पड़ी हुई चादर उठाई और माला के ऊपर डाल दी.
दूसरी चादर ओढ़ खुद ओढ़ लेट गये. राणाजी बहुत थक गये थे. उन्हें माला की थकावट का भी अंदाज़ा था लेकिन ये उनकी सुहागरात थी. कम से कम दुल्हन से दो बातें तो कर ही सकते थे. उन्होंने अपनी दुल्हन को नाम ले आवाज दी, "माला. तुम्हें नींद आ रही है क्या?"
माला ने कोई भी आवाज न दी. राणाजी ने फिर से आवाज दी लेकिन कोई उत्तर नही आया. राणाजी ने उठकर माला के मुंह की तरफ देखा. वो मासूम नादान लडकी गहरी नींद में सो चुकी थी. सोते में वो लडकी बहुत खूबसूरत लग रही थी. लेकिन आज के दिन मासूमियत भरी नींद का क्या उपयोग था. आज तो रतजगा बनता था.
राणाजी उसे देख थोड़े मुस्कुराये और लेट गये. आखिर उस लडकी की उम्र ही कितनी थी. खेलने कूदने की उम्र में व्याह होना और फिर किलोमीटरों पैदल चलना. माला क्या जानती थी कि आज उसकी शादी हो जाएगी?
वो तो सुबह से काम करती रही थी और दोपहर के बाद उसकी शादी हो गयी फिर रात तक ससुराल आ पहुंची. मासूम लडकी और ये सांसारिक बोझ. आखिर कैसे इतनी जल्दी सम्हल जाती. ये तो वैसे ही था जैसे विना बताये किसी पर वार किया जाय?
राणाजी की आँखें भी नींद से भर चुकी थी. वो मन में सौ तरह के ख्याली पुलाव ले सो चुके थे. मन के अच्छे राणाजी ने माला को जगा अपना मन भरने की न सोची. सोचते थे अगर मेरी समय से शादी हो गयी होती तो आज इतनी बड़ी मेरी लडकी होती और वो भी इसी तरह किसी से व्याह दी जाती तो उसका भी यही हाल होता. कम से कम आज की रात तो चैन से सो लेगी ये लडकी और इस सुहागरात का क्या वो तो कल भी हो जाएगी.
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