RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
भाग-2
सुबह हो चुकी थी. गुल्लन उठकर अपने घर जा चुके थे. सावित्रीदेवी ने राणाजी का दरवाजा खटखटाया. राणाजी की नींद खुली तो उन्होंने दरवाजा खोल दिया. माँ ने अपने बेटे से कहा, “बेटा चाय लायी थी तुम लोगों के लिए. और वो माला जगी अभी या नही?"
राणाजी ने मुड़कर देखा. माला अभी तक सो रही थी. माँ से बोले, “माँ तुम उसे जगाना चाहो तो जगा लो. वो अभी तक सो रही है. जागकर चाय भी पी लेगी. मैं तो शौचालय जा रहा हूँ." इतना कह राणाजी वहां से चले गये,
सावित्रीदेवी उनके कमरे में आ गयीं और माला के सिराहने बैठ उसे आवाज देने लगीं, "माला ओ माला. अरे उठो बहू सुबह हो गयी."
माला किसी की आवाज सुन उठकर बैठ गयी. जैसे ही सामने सावित्री देवी को देखा तो पलंग से उतर खड़ी हो गयी और घुघट कर लिया. ये घुघट करने की बात उसकी माँ ने उसे बता दी थी.
सावित्री देवी थोडा मुस्कुरायी और बोलीं, "बहू पहले चाय पीओगी या शौच को जाओगी?"
माला नही जानती थी कि वो क्या बोले. बस हाँ में सर हिला दिया. सावित्री देवी उसको इस तरह झिझकते देख हंस पड़ी और बोली, “अरे. चलो छोडो तुम पहले चाय पी लो फिर कमरे के बाहर बने शौचालय में शौच कर आना. ठीक है?"
माला ने उनकी इस बात पर हाँ में सर हिला दिया. सावित्री देवी एक कप चाय दे बाहर चली गयीं. माला ने इतने सुंदर कप में इतनी खूशबूदार चाय कभी नही पी थी. अपने घर तो उसे महीनों में एकाध बार ही चाय मिलती थी. वो भी उलटी सीधी. ___
माला ने देखा कि कमरे में कोई नहीं है. उसने झट से चाय का कप उठाया और मुंह से लगा लिया. चाय काफी गर्म थी. मुंह तो जला लेकिन स्वाद भी खूब आया. माला ने इतनी बढिया चाय अपने जीवन में कभी नही पी थी.
गर्म चाय से मुह जलता रहा और वो उस चाय को पीती रही. क्या करे गरीब लडकी. जो चीज कभी उसे ठीक से मिली ही नही उसके लिए इस तरह क्यों न तरसे? कप खाली हो चुका था लेकिन माला का मन करता था कि एकाध कप और चाय होती तो ज्यादा मजा आता. खाली कप को भी एक बार उलट कर बूंद बूंद चाय पी डाली. फिर जीभ से कप को चाट डाला. कप के आसपास चिपकी चाय भी बहुत स्वादिष्ट लग रही थी. इतनी स्वादिष्ट तो कप में भरी चाय भी नही लगी थी. इतने में राणाजी ने कमरे में प्रवेश किया. माला ने झट से कप को प्लेट में रख दिया और सहमी सी खड़ी हो गयी.
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