RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
राणाजी उसकी तरफ देख मुस्कुरा दिए. वो वावली भी उनकी तरफ देख मुस्कुरा दी. उसे पता ही नहीं था कि वो उनकी पत्नी बनकर आई है. लगता था वो कोई मेहमान या नौकर के रूप में इस घर में आई है जिसे समझ ही नही आ रहा था कि वो करे तो क्या करे?
राणाजी ने उसकी तरफ देख कहा, “चाय पी ली माला? अच्छी लगी?"
माला ने हां में सर हिला दिया. राणाजी बाहर की तरफ इशारा करते हुए बोले, "देखो माला अगर तुम शौच करने जाओ तो बाहर पखाना बना हुआ है उसमें चली जाना. यहाँ औरतें खेत में ये सब करने नही जातीं."
माला ने तो हमेशा खुले में ही शौच की थी. उसने राणाजी की बात को समझ हाँ में सर हिला दिया और बाहर शौचालय की तरफ बढ़ गयी.
माला जब शौचालय से निकली तो उसने अपनी ससुराल के घर को निहारा, माला को ये घर किसी राजमहल से कम नही लग रहा था. उसके पिता का घर तो एक झोपडी मात्र था. जिसमें दरवाजे का नाम निशान ही नही था और यहाँ तो हर कमरे में दरवाजा था. पक्की छत थी. पक्की दीवारें, फर्श भी पक्का. घर में रंग बिरंगे पर्दे भी लगे हुए थे. माला घर को देख देख वावली हुई जा रही थी. उसे अपनी किस्मत पर नाज़ हो रहा था. सोचती थी अगर शादी का मतलब ये होता है तो वो हर रोज़ शादी करना चाहेगी.
माला राणाजी के कमरे में जा घुसी. राणाजी बैठे शायद उसी का इन्तजार कर रहे थे. उसके आते ही बोले, "माला तुम घर का काम करना जानती हो न?"
माला को समझ न आया ये घर का काम होता क्या है लेकिन वो इतना समझ गयी कि काम करने के लिए पूंछा जा रहा है. बोली, “मतलब झाडू बर्तन..?”
राणाजी थोडा मुस्कुराये और बोले, “और साथ ही खाना और सब्जी बनाना भी."
माला फटाक से बोली, “हाँ आता है. मैं बहुत बढिया मछली चावल पकाती हूँ. मेरे हाथ का मछली चावल..."
राणाजी ने माला को चुप रहने का इशारा किया और धीरे से बोले, “अरे हमारे यहाँ ये सब नही बनता है. माताजी के सामने इन सब चीजों का नाम भी मत लेना. वो शाकाहारी हैं. शाकाहारी समझती हो न? जो मॉस मछली नहीं खाते. क्या तुम्हें इस सब के अलावा कुछ और बनाना आता है?"
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