RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
राणाजी ने माँ की बात बीच में काट दी और बोले, "माँ अपनी जाति बिरादरी में तो आप पहले ही कह कह कर थक गयी थीं. आपको हर जगह से दो टूक जबाब मिला था. अब शादी हो गयी तो आप...और माँ क्या फर्क पड़ता है कि वो कौन जाति की है? बस इन्सान अच्छा होना चाहिए और कुछ नही. हमारी बिरादरी की कौन सी हम पर इतनी मोहब्बत रही है? हर कोई तो काट खाने को दौड़ता है. हर आदमी चाहता है कि हम बर्बाद हो जाय और आप फिर भी...?"
सावित्री देवी दृढ़ता से बोली, "बेटा तुम कुछ भी कहो लेकिन हम इस चौका चूल्हें में इस लडकी को न घुसने देंगे, न ही इसके हाथ का खायेंगे. अगर तुम चाहते हो कि हम काम न करें तो एक महरी रख लो. वो चौका चूल्हा करती रहेगी बस."
राणाजी माँ से बहस नही करना चाहते थे. आखिर वो उनकी माँ थीं. वो नही चाहते थे कि बुढापे में उन्हें कोई भी तकलीफ पहुंचे. बोले, "ठीक है माँ में आज ही एक महरी को इस काम के लिए कहे देता हूँ." इतना कह राणाजी अपने कमरे की तरफ चले गये.
माला अभी तक खड़ी खड़ी वावलों की तरह कमरे के हर सामान को बारीकी से देखे जा रही थी. राणाजी के कमरे में पहुंचते ही सहम कर खड़ी हो गयी. राणाजी उसके पास पहुंच मुस्कुराये और बोले, "देखो माला माताजी बोल रहीं हैं कि अभी कुछ दिन तुम ऐसे ही रहो फिर तुमको सिखा देंगी. तब तक के लिए एक महरी खाना बनाने के लिए रख लेंगे. अगर तुम्हारा मन काम करने के लिए किया करे तो तुम इस कमरे में सफाई और झाडू लगाने का काम कर लिया करो. ठीक है?"
माला ने बिना कुछ कहे हाँ में सर हिला दिया. थोड़ी देर राणाजी माला की तरफ देखते रहे. माला थोड़ी शरमा जाती थी लेकिन उसके अंदर नई दुल्हन जैसा कोई भाव ही नही था. उसकी साड़ी बड़े सलीके से बंधी हुई थी. कल का लगाया गया काजल अभी तक आँखों में से ठीक से छूटा नही था. चेहरे पर सच्ची मासूमियत थी और आँखों में हर चीज को छू कर देखने की ललक. मानो यहाँ की हर चीज उसके लिए नई हो या उसने ये सब चीजें कभी देखी हो न हों.
राणाजी इसके बाद उठकर बाहर चले गये.उन्हें अपने खेतों पर शायद कुछ काम था. साथ ही महरी को भी खाना बनाने के लिए कहकर आना था. माला पलंग के पास धरती पर बैठ गयी. उसे पलंग पर बैठने से डर लगता था और धरती पर बैठने की उसकी रोज़ की आदत भी थी. रात जब पलंग पर सोयी थी तो ठीक से उसे नींद भी नही आई थी. पत्थरों पर सोने वाला आदमी अचानक से फूलों पर सोने लगे तो उसे सच में नींद नही आती.
राणाजी अपने कमरे में आये तो उन्होंने देखा कि माला पलंग से टिके बैठी ही सो गयी है. राणाजी मुस्कुरा कर उसे देखने लगे. कितनी मासूम लग रही थी ये नादान लडकी. राणाजी का चाहकर भी मन नही करता था कि उसे छू भी लें. पता नहीं उनका मन उसे छूने का क्यों नही करता था? अंदर से वो भाव ही नही आता था कि उसे छू लें. शायद ये सब इसलिए था क्योंकि उन्हें वो लडकी जब मिली तो वे उस उम्र से बहुत आगे निकल गये थे.
लेकिन राणाजी ने जमीन पर बैठी सो रही माला को पलंग पर लिटा देना उचित समझा. राणाजी ने डरते डरते माला को अपनी बाहों में भरा और पलंग पर लिटाने लगे.
अपने शरीर को हिलते देख माला की आँख खुल गयी. राणाजी जैसे उसे बेड पर लिटा कर हटे तो वो एकदम से हडबडाई और पलंग से उतर कर खड़ी हो गयी. आँखों में थोडा सा डर था. राणाजी उसकी तरफ देख थोडा मुस्कुराये और बोले, "अरे नींद आ रही है तो सो जाओ. ऐसे क्यों डर गयीं? क्या मुझ से डर लगता है तुमको?"
माला ने झिझक कर कहा, “नही मैं तो ऐसे ही उठ गयी थी. माँ बोली आपके सामने पलंग पर न बैलूं.”
राणाजी ने चेहरा सिकोडा और थोड़े मुस्कुराते से बोले, “अच्छा और क्या क्या बोला तुम्हारी माँ ने?"
माला बच्चो की तरह बताने लगी, "माँ बोली कि अपने ससुराल वालों को कभी कुछ नही कहना. वो लोग अमीर हैं कभी उनके घर पर कोई काम मत बिगाड़ना. और कभी अपने घर जाने की जिद न करना और वो लोग कहें भी तो भी घर न आना. अगर जरूरत होगी तो हम खुद तेरे पास आ जायेंगे."
राणाजी अभी कुछ कहते उससे पहले ही उन्हें बाहर से एक औरत की आवाज सुनाई दी. राणाजी कमरे से बाहर निकल कर चले गये. ये महरी ही थी. राणाजी से उसकी बातें हुईं. तीन सौ रूपये महीने में महरी खाना बनाने के लिए राजी हो गयी. जिसमें वो खाना बनाने के साथ चौका बर्तन भी करने वाली थी. महरी आज से ही काम पर लग गयी. सावित्री देवी को अब से आराम मिलने जा रहा था. महरी रसोई में घुसी और खाना बनाना शुरू कर दिया. इतने में गुल्लन अपनी बीबी बच्चो के साथ राणाजी के घर आ पहुंचे. राणाजी गुल्लन के साथ द्वार पर बैठ गये और गुल्लन की बीबी माला के साथ कमरे में.
सावित्री देवी वैसे तो माला के पास जाने में सकुचा रहीं थी लेकिन गुल्लन की बीबी की वजह से आकर बैठ गयीं. गल्लन की बीबी जमना बातों में बडी मीठी थी और स्वभाव की भी बहुत अच्छी. माला को बहुत सारी बातें उसने समझा दी थीं. रहने का तौर तरीका. सास के साथ व्यवहार करने का लहजा. पति के साथ कैसे रहना चाहिए. वगैरह वगैरह.
सावित्री देवी ने माला से नहाने के लिए कह दिया. माला को समझ न आया की किधर नहाने जाए. अपने घर तो वो तालाब में नहा कर आती थी. जहाँ बस्ती की सारी औरतें नहा कर आतीं थी. माला की सकुच देख गुल्लन की बीबी जमुना समझ गयी. बोली, “माला चलो हम तुम्हें गुशलखाने तक छोड़ देते हैं. अच्छा कौन से कपड़े पहनोगी वो ही ले चलो.”
माला को तो पता ही न था कि उसे कौन से कपड़े पहनने हैं. जमुना ने वो भी समझ लिया और कमरे में रखी साड़ियों में से एक बढिया सी साड़ी पसंद कर माला को दे दी.
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