RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
राजगढ़ी गाँव से दो किलोमीटर दूर एक गाँव था बलरामपुर. इस गाँव में एक संतराम नाम का एक आदमी रहता था. उम्र भी खूब हो चुकी थी. इसके बड़े भाई की शादी हो तो चुकी थी लेकिन संतराम की शादी होने का नाम नही लेती थी. कारण था उसका बहरापन. उसकी जाति कहार थी और उस जाति में कोई भी ऐसी लडकी नही मिली जो संतराम से शादी करने को तैयार हो जाती. संतराम का बड़ा भाई बाहर शहर में रहता था. उसके एक लड़का भी था. बड़े भाई वाली बात. उसने ठान ली कि अपने छोटे भाई की शादी कराकर छोड़ेगा.
लेकिन कोई शादी करे तो संतराम की शादी हो. परन्तु संतराम के बड़े भाई ने एक जगह जुगाड़ लगा ही ली. कोई ऐसा व्यक्ति उसे मिला जिसने संतराम को बिना देखे ही उसकी शादी के लिए हामी भर दी. संतराम को शादी की ज्यादा ख़ुशी तो न थी लेकिन अपने खाने पीने का प्रबंध करने वाली औरत का उसे सच में इन्तजार था. संतराम और उसका बड़ा भाई उस शादी कराने वाले आदमी के साथ गये और दूसरे ही दिन बलरामपुर में संतराम की दुल्हन आ खड़ी हुई.
पूरे गाँव की मजदूरी संतराम करता था. लोग उसकी मदद भी बहुत करते थे और जब संतराम की दुल्हन आई तो पूरे गाँव ने उसको हाथों हाथ लिया. संतराम की बीबी का नाम सुन्दरी था. नाम वेशक सुन्दरी था लेकिन ज्यादा सुंदर न थी. कद काठी भी औसत ही था. पतली कमजोर सी दिखती थी. आँखें देखकर लगता था कि किसी डरावनी फिल्म में चुडैल का रोल करती होगी. चेहरा भी बुझा हुआ सा दिखता था. बातें भी करती तब भी डरावनी सी ही लगती थी. आवाज में हल्का भारीपन था.
पूरे गाँव ने संतराम की बीबी को देखा और मुंह दिखाई में काफी सामान भी दिया. संतराम ज्यादा गरीब भी नही था. क्योंकि अकेले आदमी ने मजदूरी कर कर के भी थोडा पैसा जोड लिया था. लेकिन आर्थिक स्थिति भी ज्यादा बढिया न थी. उसे बीडी पीने का शौक था. जो मजदूरी करने की वजह से पड़ गया था, मजदूरी करने वाले लोग अक्सर बीडी पीना शुरू कर देते हैं. इसके पीछे कारण है उनकी थकावट. कहते हैं कि बीडी के बहाने वो थोडा आराम कर लेते हैं और मालिक बीडी पीते देख कुछ कहता भी नहीं है लेकिन उन बेचारों को बीडी से होने वाले नुकसान की तनिक भी खबर नही रहती. खाने पीने में सूखी रोटी और करने में मजदूरी जैसा भारीभरकम काम. साथ में फेफड़ों में भरता बीडी का जहरीला धुंआ..
सुन्दरी बिहार के किसी बहुत गरीब घर से आई थी लेकिन सुन्दरी की कुछ हरकतें उसे पागल करार देती थीं. शुरू शुरू में जब लोग सुन्दरी से मजाक किया करते थे तो सुन्दरी चिढ जाती थी. लोगों को गालियाँ देने लगती थी.
लेकिन बाद में इस हरकत ने विकराल रूप धारण कर लिया. अब सुन्दरी किसी के चिढाने पर कुछ भी कह देती थी.बुरी बुरीगालियाँ देती थी.यहाँ तक की जो सामान हाथ में लग रहा होता था उसे फेंक कर भी मार देती थी.
लोग संतराम के घर के सामने पैर पिटपिटा कर निकल जाते तो सुन्दरी बिना बात उन लोगों को गालियाँ देने लगती थी. अगर घर से बाहर कोई जोर से हँस देता तो अंदर से चिमटा फूंकनी या करछली कुछ भी फेंक कर मार देती थी.
जब संतराम से कोई शिकायत करता तो वो सुन्दरी को बुरी तरह से मारता था. तब मोहल्ले की कुछ औरतें उसे आकर सन्तराम से बचाती थीं और कुछ दिनों बाद सुन्दरी फिर से वही हरकतें करने लग जाती. भूल जाती कि दो दिन पहले उसे संतराम ने इसी बात के कारण मारा पीटा था.
काफी सालों तक संतराम और सुन्दरी के कोई बच्चा न हुआ. कोई सुन्दरी को बाँझ बताता था तो कोई संतराम को नपुंसकलेकिन किसी को हकीकत बात का अंदाज़ा ही नही था. ये राज़ या तो सुन्दरी जानती थी या संतराम का मन. इसके पीछे कारण था सुन्दरी का पुरुषों के प्रति घृणा होना. जब वह छोटी थी तब एक बड़ी उम्र के पुरुष ने उसके साथ दरिंदगी कर दी थी. तालाब के किनारे नहाने गयी गयी सुन्दरी को हवस का शिकार बनाने वाला एक समाज का रक्षक पुलिस वाला था. जिससे हर स्त्री को अपनी रक्षा की उम्मीद होती है.
वो दिन था और आज का दिन. सुन्दरी किसी भी मर्द को अपना शरीर न छूने देती थी. संतराम ने शुरुआत में कई बार सुन्दरी के नजदीक आने की कोशिश की लेकिन सुन्दरी या तो रोने लगती या चीखने लग जाती. संतराम के पैरों में गिर खुद को न छूने की अपील करती. एक दिन उसने रो रो कर संतराम को अपनी कहानी सुना दी. संतराम ने विवश हो सुन्दरी को छूना ही बंद कर दिया. इस कारण आज तक सुन्दरी माँ नही बन सकी.
संतराम ने कभी भी चाय के लिए दूधिया से दूध नही लिया था लेकिन सुन्दरी चाय की बहुत शौकीन थी. संतराम के काम पर जाने के बाद सुन्दरी पडोस के एक घर में चली जाती थी. उस घर की मालकिन कौशल्या देवी को पता था सुन्दरी चाय की शौक़ीन है. वो सुन्दरी के पहुंचते ही उसे चाय का कप थमा देतीं और सुन्दरी छोटे बच्चों की तरह 'सुडर सुडर' कर चाय को पी जाती थी.
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