RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
भाग -3
दिन ऐसे ही गुजरते जा रहे थे. फिर से एक दिन गुल्लन अपनी बीबी सहित राणाजी के पास आये. उनकी बीबी जमुना ने माला से बात की तो पता चला कि वो गर्भवती हो गयी है. सावित्री देवी को पता चला तो उनकी ख़ुशी का ठिकाना ही न रहा.
राणाजी तो ख़ुशी से पागल हुए जा रहे थे. वहीं बैठे बैठे गुल्लन को तीन चार बार अपने गले से लगा लिया. जी भर के गुल्लन का शुक्रिया अदा किया. सावित्री देवी ने महरी से कह पूरे गाँव में लड्डू बंटवा दिए. गुल्लन और जमुना के चले जाने के बाद राणाजी अपने कमरे में पहुंचे. जहाँ सावित्री देवी माला के पास बैठी बैठी उसके मन की चीजों की लिस्ट तैयार कर रहीं थीं.
राणाजी को यह सब देख बहुत अच्छा भी लगा क्योंकि पहले उनकी माँ ने माला से थोड़ी दूरी बना ली थी और खाना पीना तो अबतक माला के हाथ का नही खाती थीं. थोड़ी देर में सावित्री देवी माला के पास से उठ अपने कमरे में चली गयीं. राणाजी को बहुत देर से माला से बात करने का मन हो रहा था.
एकांत पाते ही राणाजी ने माला के पास बैठ उसका हाथ अपने हाथों में ले लिया और बोले, “माला तुम्हें पता है तुमने मुझे और माँ को कितनी बड़ी खुशी दी है? तुम आज इनाम की हकदार हो. बोलो क्या चाहिए तुम्हें? तुम जो कहोगी वही मैं तुमको दे दूंगा.”
माला को माँ बनने का ज्यादा उत्साह तो नही था लेकिन डर सा जरुर लगा रहा था. सोचती थी पता नही किस तरह ये बच्चा उसके पेट से बाहर निकलेगा. पता नही कितना दर्द होगा. राणाजी के पूंछने पर माला बोली, “नही मुझे आपसे कुछ नही चाहिए लेकिन मुझे बच्चा होने से डर बहुत लगता है."
राणाजी धीरे से मुस्कुराये और अपने मुंह को माला के मुंह के पास ले गये. माला का दिल जोर जोर से धडक उठा. राणाजी के होंठमाला के कोमल गालों से जा टकराए. माला सर से पैर तक सिहर गयी. राणाजी के होंठ तृप्त हो उठे लेकिन माला को तनिक भी दिल में प्यार का एहसास न हुआ.
वेशक माला राणाजी के बच्चे की माँ बन गयी थी लेकिन आज भी दिल में राणाजी के प्रति मोहब्बत नही थी. वो तो राणाजी का सम्मान करती थी. उसे नहीं पता था कि ये जो वो राणाजी के साथ कर रही है ये क्या है? क्या इसी को मोहब्बत कहते हैं?
राणाजी की छुअन से उसे गुदगुदी सी तो होती लेकिन वो एहसास न होता जो एक प्रेमिका को अपने प्रेमी से होता है. माला राणाजी के घर में बहुत खुश थी. अच्छा खाना अच्छा पहनने को मिल रहा था. जिन्दगी बड़े मजे से कट रही थी लेकिन आज भी उसे किसी ऐसे शख्स की तलाश थी जो उसके दिल की प्यास बुझा सके. जिससे उसे मोहब्बत हो जाय.
राणाजी लाख कोशिश करते लेकिन माला का दिल उनका सम्मान तो करता था किन्तु उनका अपना न हो सका. ये बात न तो राणाजी जानते थे और न ही माला. माला तो इस कहानी को समझ ही नही पा रही थी. उसे नही पता था कि राणाजी से उसे मोहब्बत नही है तो ऐसा क्या है जिससे वो उनके साथ वैसे ही रहे जा रही है जैसा कि वो कहते जा रहे हैं. नादान लडकी और उसका दिल. इन दोनों का आपस में तालमेल नही था लेकिन राणाजी के साथ दिल से मोहब्बत न होते हुए भी साथ रहना उसकी मजबूरी थी.
दिन बीतते जा रहे थे. एक दिन अचानक सावित्री देवी को दिल का दौरा पड़ गया. वो तो अच्छा था कि राणाजी घर पर ही थे लेकिन जब तक उनको डॉक्टर के पास ले जाया गया तब तक उनकी जान जा चुकी थी.
माँ की मौत से राणाजी बुरी तरह से टूट गये. दिनभर उदास रहते या काम करते थे. वो तो अच्छा था कि घर में उनकी पत्नी माला थी नही तो राणाजी का पता नही क्या होता? शायद वो घर वार छोड़ कही चले भी जा सकते थे.
लेकिन अब उनके पीछे उनकी पत्नी और एक बच्चा भी था जो अभी पैदा भी नही हुआ था.
गर्मियों के दिन थे. गाँव के लोग गर्मियों में छत पर सोते थे. राणाजी और माला भी छत पर ही सोते थे. माला का पेट अब पहले से थोडा बढ़ गया था. वो सीढियों पर बहुत धीरे धीरे चढती थी. राणाजी माला से पहले की अपेक्षा कम बातें किया करते थे. बस जरूरत की बातें की और थोडा बहुत मुस्कुराये और हो गया काम.
आज सुबह राणाजी छत से उतर नीचे आ गये. माला पहले ही उतर कर आ गयी थी. अब घर में उसका ओहदा सावित्री देवी के बराबर का था. महरी हर काम अब उससे पंछ कर करती थी. राणाजी भी अब माला को बहुत कुछ बताने लगे थे.
माला छत से ओढने बिछाने के कपड़े लेने गयी और खड़े हो इधर उधर देखने लगी. दिन में छत पर खड़े हो उसे बहुत कम ही देखने का मौका मिलता था. चारो तरफ मकान ही मकान बने हुए थे. पक्के और बढिया मकान. लोग उठ उठ कर छतों से नीचे जा रहे थे.
क्योंकि सूरज की धूप ने सबको उठकर काम करने का इशारा कर दिया था. एक लड़का अभी तक चारपाई पर पड़ा सो रहा था. माला कई दिन से उसे ऐसे ही देख रही थी. रात को सोने आती तब भी रात की चादनी में उसे इसी तरह देखती थी. इस लडके का नाम मानिक था.
मानिक रोज की ही तरह छत पर पड़ी चारपाई सो रहा था. आँखों में सूरज की रौशनी लगी तो उठ कर बैठ गया. अभी आँखें मलने वाला ही था कि थोड़ी दूर की छत पर एक स्त्री नजर आ गयी. ये स्त्री उसने पहले कभी भी न देखी थी. मानिक के हाथ आँखें मलने के लिए चेहरे के सामने आकर ही रुक गये थे.
एकटक हो स्त्री को देखे जा रहा था. सामान्य सी कद काठी की स्त्री नीली सी साड़ी में लिपटी बड़ी खुबसूरत लग रही थी. उसके सर का पल्लू बार बार गिर जाता था और बार बार वो उसे अपने सर पर डाल लेती थी. वो छत की चारपाई पर पड़ी दरी और चादरों को तह कर कर के रख रही थी.
अचानक माला की नजर मानिक की तरफ घूम गयी. मन में फूल खिल उठे. दिल फूलों की खुसबू से महक उठा, मानिक एक टक उसकी तरफ देखे जा रहा था. माला के दिल को मानिक अपने आप भा गया था.
अभी तो ठीक से दोनों का परिचय भी नही हुआ था लेकिन मोहब्बत करने के लिए दिल किसी परिचय का मोहताज नही होता न. वो तो जिसे भी देख ले और वो उसको भा जाये. बस फिर मोहब्बत ही मोहब्बत लुटाता है. नाम और पहचान तो इसके बाद भी होती रहती है.
माला अभी मानिक को खड़ी देख ही रही थी कि नीचे से महरी की आवाज ने उसे पुकारा. माला ने मानिक को बड़ी गहरी मुस्कान से देख निहारा और नीचे की तरफ जाने लगी. सीढियों पर पहुंच एक बार फिर से मानिक की तरफ मुड़कर देखा और फिर से मुस्कुरा दी. ऐसा लगता था मानो मानिक की उससे कोई पुरानी जान पहचान है. और वो मानिक तो समझ ही नहीं पा रहा था कि ये हो क्या रहा है?
किसी अनजान स्त्री को अपनी तरफ इस तरह मुस्कुराते देख मानिक के होश उड़ गये थे. आज से पहले कोई स्त्री या लडकी उस की तरफ देख इस तरह न हंसी थी. वेशक मानिक छैल छबीला था लेकिन किसी से उसका इस तरह का वास्ता न पड़ा था.
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