RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
माला द्वार पर झाडू लगा रही थी. तभी एक लड़का उसके पास आ पहुंचा. माला ने नजर उठाकर देखा तो दिल धडक उठा. ये तो वही लड़का था जिसे माला ने छत पर सुबह के समय एकटक देखा था. माला का मन ख़ुशी से झूम उठा. मानो वो कोई छोटी बच्ची हो और वो लड़का उसके साथ खेलने वाला उसका साथी. नादान लडकी भूल गयी कि वो राणाजी की पत्नी है. उस लडके को देख मन में प्यार के जाम टकराने लगे. माला उसकी हिम्मत की भी दाद दे रही थी जो उसके लिए दिन दहाड़े घर तक आ पहुंचा. और वो सामने खड़ा लड़का मानिक, उसे तो पता तक नही था कि वो राणाजी के घर जायेगा तो उस स्त्री से उसकी भेंट हो जाएगी जो एक नजर में ही उसका दिल लूट चुकी है. जिसका उसे न तो नाम मालूम है और न ही उसके बारे में ही कुछ जानता है.
पागल मानिक भूल गया कि वो उसकी हमउम्न लडकी किसी की अर्धांगिनी है. उसके पेट में किसी का बच्चा पल रहा है. दोनों बाबलों की तरह विना कुछ बोले एक दूसरे को देखे जा रहे थे लेकिन मानिक को माला की नजर थोड़ी असहनीय लगी. वो हडबडा कर बोला, “वों.. मैं...राणाजी चाचा से मिलने आया हूँ."
माला का ध्यान उचट गया. मानिक की बात सुन उसके मन ने किया कि को अपना सर पीट ले. वो तो सोच रही थी कि मानिक उसके लिए आया है और वो खुद अपने मुंह से बोल रहा है कि वो राणाजी से मिलने आया है. किन्तु फिर माला ने सोचा कि ये भी तो हो सकता है कि वो शर्म से झूट बोल रहा हो. बोली, “वो तो घर पर नहीं है. मुझे बता दो कोई काम हो तो?"
मानिक थोडा शरमाकर बोला, "लेकिन आपको बताने की बात नही है इसलिए उनसे ही बात करनी थी." __
माला उस लडके से बात करना चाहती थी. जल्दी से बोली, “तो तुम ऐसा करो थोड़ी देर यहीं बैठ जाओ. वो आये तो बात कर लेना.” इतना कह माला ने द्वार पर पड़ी कुर्सी आगे की तरफ बढ़ा दी.
मानिक वैसे जल्दी के काम से आया था लेकिन माला का मनमोहक रूप उसे रोक रहा था. वो न चाहते हुए भी कुर्सी पर बैठ गया.
माला बगल में खड़े पेड़ से टिक कर खड़ी हो गयी और मानिक को देखते हुए बोली, “तुम्हारा नाम क्या है? तुम तो वही हो जो सामने की छत पर सोते हो?"
मानिक ने झेंपते हुए कहा, "मेरा नाम मानिक है. मैं उसी छत वाले घर में रहता हूँ.” इतना कह मानिक माला की तरफ देखने लगा. मानो वो माला का नाम पूछना चाहता हो.
माला वेशक नादान लडकी थी लेकिन इस वक्त वो इश्क से भरे मन की चाशनी में लिपटी जलेबी हुई जा रही थी बोली, “तुम्हें मेरा नाम पता है? माला ने मानिक के मुंह की बात छीन ली थी. बोला, "नही. मैंने तो आपको इस घर में छत पर पहली बार देखा था."
माला छत पर देखने के नाम से थोडा झेंपी फिर बोली, "मेरा नाम माला है. ये घर वाले हैं न जिन्हें तुम चाचा कह रहे हो. ये मेरे पति हैं."
मानिक को ये बात सुन बड़ा अचरज हुआ. उसने राणाजी की शादी की खबर तो सुनी थी लेकिन इतनी सुंदर और कम उम्र की लडकी उनकी दुल्हन होगी ये बात उसको पहले से पता न थी. उसे माला को देख लगता ही नही था कि माला राणाजी की बीबी हो भी सकती है. दिमाग में सवाल तो बहुत थे लेकिन पहली मुलाकात और मन का ववंडर ये सब पूंछने की इजाजत नहीं देता था. माला सामने कुर्सी पर बैठे शर्मीले मानिक से मन भर कर बात करना चाहती थी. बोली, “मानिक तुम अभी क्या करते हो?”
मानिक ने माला को नजर भर देखा और बोला, “मैं अभी पढता हूँ."
माला हैरत से बोली, "अभी तक पढ़ते हो? भला इतनी उम्र तक भी कोई पढ़ता है? क्या शादी नही हुई तुम्हारी?"
मानिक को माला की बात पर हंसी आ गयी. बोला, “अभी मेरी उम्र ही क्या है? ये तो पढाई की उम्र ही होती है और शादी तो अभी एकाध दो साल नहीं होगी. जब में उन्नीस बीस साल का हो जाऊंगा तब शादी होगी."
माला ने बड़ी हैरत से मानिक को देखा. वो बेचारी क्या जानती कि पढाई क्या होती है. वो तो स्कूल का मुंह भी कभी नहीं देख पायी थी. पढाई के मायने क्या होते हैं या पढाई की जरूरत क्या है इसका मतलब तो उससे कोसों दूर था. और स्कूल तो उसके आसपास के गाँव तक नही था. लडकियों की तो बात दूर थी उसके गाँव बस्ती में तो लडके भी स्कूल नही जाते थे. जितना बड़ा मानिक था उससे कम उम्र में तो लोग फक्ट्रियों और मीलों में जा मजदूरी का काम करने लगते हैं. पढने की तो कोई सोचता ही नही था.उसकी बस्ती में निन्यानवे फीसदी लोग ऐसे थे जिनपर खुद का नाम लिखना ही नही आता था.
माला मानिक से बात करने के लिए बात को और आगे बढ़ाना चाहती थी. मन करता था उससे पूंछ ले कि वो उसे कैसी लगती है लेकिन मन ऐसे पूंछने में शर्माता भी था. बोली, "तुम कौन सा खेल खेलते हो?"
मानिक को माला की बात बड़ी अजीब लगी. भला शादी के बाद लडकी को खेल की बात से क्या मतलब लेकिन वो उसके मन को भा गयी थी. उसकी हर बात का जबाब देना उसे अच्छा लग रहा था. बोला, "मैं तो क्रिकेट बगैरह खेलता हूँ. क्यों तुम भी खेलती हो क्या?"
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