RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
मानिक के चेहरे पर बहुत हैरत भरी हुई थी. बोला, "क्या आपके लिए भी आपके माँ बाप ने पैसा लिया था?"
माला की आँखें थोड़ी नम थी और गला रुंधा हुआ. बोली, "हाँ. विना पैसे के मेरी बस्ती का कोई भी आदमी अपनी लडकी की शादी नही करता और कर भी कैसे दे? यही तो पेट भरने का एक जरिया है उनके पास. बेटी की शादी के लिए लोग इन्तजार करते हैं और उससे जो पैसा मिलता है उससे एकाध दो साल का खाना पीना हो जाता है. नही तो फिर वही सूखे चावल और तलाबों से मछली बीनना. कुछ लोग तो पैसों की जरूरत पड़ने पर दस बारह साल की लडकी की भी शादी कर देते हैं."
मानिक फिर बड़ी हैरत से बोला, “तो आपके लिए राणाजी चाचा ने कितने रूपये दिए थे?"
माला मानिक की आँखों में देखती हुई बोली, “इन्होंने तो पन्द्रह हजार दिए थे लेकिन मेरे बापू को सिर्फ़ दस हजार मिले."
मानिक ताज्जुब करता हुआ बोला, “तो बाकी के पांच हजार किसने ले लिए?"
माला बताना तो नही चाहती थी लेकिन इस वक्त उसके दिल का दर्द फूट फूट कर निकल रहा था. बोली, "जो भी आदमी किसी को लेकर वहां लडकी लेने जाता है वो भी रुपया लेता है. इनको लेकर इनके दोस्त गुल्लन गये थे. तो उनके पांच हजार रूपये तय हुए लेकिन गुल्लन ने मेरे बापू से इस बात को किसी को भी बताने के लिए मना कर दिया था. तुम भी किसी से कहना मत. मैं सिर्फ तुम्हें बता रही हूँ. ये बात अभी तक मैने अपने पति को भी नही बताई. मुझसे बड़ी बहन की शादी के वक्त भी गुल्लन ने इतने ही रूपये लिए थे. जिसकी शादी मुझसे छह महीने पहले हुई थी. सब ऐसा ही करते हैं. अगर ऐसे लोगों को वहां के लोग पैसे न दे तो ये लोग इधर के लोगों को लेकर ही क्यों जांय?"
मानिक को गुल्लन से थोड़ी घृणा लग रही थी. सोचता था दोस्ती का भी लिहाज न रखा. लालच में गरीब आदमी के हक का पैसा भी खुद डकार गया. मानिक माला से बोला, "तो अब आप अपने घर जाती हो तो आपके माँ बाप ऐसे ही प्यार करते है जैसे पहले करते थे. या कुछ कम करते हैं. क्या उन्हें आपकी याद नही आती? और याद तो आपको भी आती होगी?"
माला की आँखों से आंसू टपक पड़े. बोली, "माँ बाप के पास जाता कौन है लौटकर? वो लोग तो लडकी को यही कहकर विदा करते हैं कि अब लौटकर मत आना. याद तो सबको आती है. कौन माँ बाप अपनी बेटी को देखना नही चाहता? ___मैं भी दिन रात अपनी माँ को याद करती हूँ. अपने बाप को याद करती हूँ. मेरे दो छोटे छोटे भाई हैं उनको याद करती हूँ. बड़ी बहिन जिनकी शादी हो गयी वो भी मुझे अब तक याद आती हैं लेकिन याद करने से कुछ बदल थोड़े ही न जाता है. याद करने से मैं उनके पास तो नही जा सकती न?"
मानिक का दिल माला की दुःख भरी कहानी से कुम्हला गया था लेकिन मन में बार बार हर बात पर प्रश्न उठ रहे थे. बोला, “तो आपके माँ बाप ने आपको दोबारा आने के लिए मना क्यों कर दिया?"
माला दुःख भरी हँसी हँस बोली, “जब लडकी को अच्छा घर मिल जाए तो वो लोग मना कर देते हैं कि दोबारा यहाँ मत आना या यहाँ आने की जिद मत करना. क्योंकि कई बार ऐसा हुआ कि लडकी अपनी ससुराल से लौटकर आई तो दोबारा उसे कोई लेकर ही नही गया और माँ बाप को फिर से उस लड़की को किसी के हाथों... लेकिन अगर कोई लडकी उनके कहने के बावजूद भी घर पहुंच जाए या उसे ठीक ठाक घर न मिले तो माँ बाप फिर से उसे पैसा ले किसी और के साथ भेज देते हैं. अच्छे या अमीर आदमी के साथ गयी लडकी को फिर से घर न लौटने की सख्त हिदायत होती है. अब देखो मेरी सबसे बड़ी बहन की शादी तब हुई जब मैं बहुत छोटी थी लेकिन आज तक वो न तो लौटकर आई और न ही उसकी कोई खोज खबर ही आई.और बाकी की दो बहिनों की भी यही हालत हुई. वो भी कभी लौटकर नही आयीं."
मानिक की आँखें माला की व्यथा से भीग गयी थी. माला तो पहले से ही अपनी आखों का झरना बहाए जा रही थी. माला ने मानिक को रोते हुए देखा तो पूंछ उठी, “अरे तुम क्यों रोने लगे? इसमें रोने वाली क्या बात है?"
मानिक रुंधे हुए गले से बोला, “बड़ी दुःख भरी कहानी है आपकी. समझ नही आता कि इसमें किसकी गलती है. लेकिन जिस लडकी के साथ ये सब होता है वो किस स्थिति से गुजरती होगी. मैं अगर लडकी होता तो ये सब झेल ही नही पता. पता नही आप कैसे ये सब सह गयीं?" ___
माला इस वक्त इस तरह बातें कर रही थी मानो वो बहुत बड़ी विद्वान् हो. बोली, “ये सब सहना तो लडकी का धर्म होता है. और फिर कब तक माँ बाप पर बोझ बने रह सकते हैं. माँ बाप अगर हमारी शादी करना भी चाहें तो भी किसी अच्छे घर में शादी नहीं कर सकते. अच्छे रिश्ते के लिए दहेज चाहिए और जिस जगह खाने के लाले पड़े हों वहां दहेज तो संजीवनी बूटी की तरह होता है. जो न तो हमारे लोगों के पास होता है और न ही हमारे यहाँ की लडकियों की शादी उनके मन के घर में हो पाती है. ये हमारे लिए एक सपना बनकर रह जाता है. जिस घर में जाएँ उसमें पैसा तो होता है लेकिन या तो अपने हक का सम्मान नही मिल पाता या दिल को भाने वाला साथी नही मिलता.”
मानिक को माला की बातें मन में और ज्यादा जानने की जिज्ञासा बढाती जा रही थीं. बोला, “क्या तुम्हारी बस्ती की लडकियों के मन नही करता कि अब सब कुछ ठीक हुआ तो एकाध दिन के लिए अपने घर घूम आयें? ठीक ठाक घर में आने के बाद तो आराम से तुम लोग घूमने जा ही सकती हो न?"
माला को फिर से हल्की हंसी आई. मन में थोडा सोचने लगी फिर बोली, "मैं जब घर से यहाँ आई थी तो यहाँ का खाना मुझे अमृत के समान लगता था. जबकि यहाँ के लोगों को ये सब आम खाना लगता था. यहाँ की चाय का तो प्याला भी चाट जाती थी लेकिन यहाँ के लोग तो उस चाय को दिन में दस बार पीते हैं. हमारी बस्ती में शायद ही कोई लडकी ऐसी हो जिसे महीने में दो चार बार चाय मिल जाती खाने में रोटी तो कभी कभार ही मिलती है नही तो सालों साल वही चावल और अक्सर मिलने वाली मछलियाँ. अब तुम खुद सोचो जिस लडकी को इतना बढिया खाना मिले. बढिया रहना मिले तो वो क्योंकर फिर से उस जगह जाए जहाँ न तो ठीक से तन ढकने को कपड़ा है और न खाने को ठीक से भोजन.
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