RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
मानिक मुस्करा पड़ा और बोला, “नही मैं रोज ही आ जाया करूँगा. आप चिंता न करो.”
माला खीझते हुए बोली, "और ये आप आप क्या बोलते हो? हमारा नाम ले लिया करो न. माला बोल कर हमको पुकारा करो. हम भी तुम्हारे बराबर के ही हैं. जब हम तुम्हारा नाम लेते हैं तो तुम भी हमारा नाम लिया करो. नाम लेने से लगता है जैसे कोई अपना बुला रहा है. अभी तुम बात करते हो तो लगता है जैसे किसी बाहर के आदमी से बातें कर रहे हैं. समझ गये न?"
मानिक ने हँसते हुए हाँ में सर हिला दिया. माला भी उसको हँसते देख हँसने लगी. एक बार छत पर नजरें मिलीं और एक बार इस समय दोनों की बातें हुई थीं. लेकिन दोनों के प्रेम को देख लगता था जैसे दोनों एक दूसरे को बर्षों से जानते हैं. माला तो मानिक को अपना खुद का समझने लगी थी. वावली को क्या पता कि इस वक्त उसके पति के अलावा कोई अन्य बाहरी पुरुष उसका नही हो सकता है.
लेकिन मन था. जिस तरफ प्यार से मुडा तो मुडता ही चला गया. मानिक माला का हमउम्र था. उसके साथ वो खुल कर मन की बातें कर सकती थी. राणाजी से तो वो किसी भी तरह की बातें करने में शादी के इतने महीनों बाद भी झिझकती रहती थी और खुद राणाजी अब माला से बातें ही कितनी करते थे? सारा दिन तो इधर इधर रहते और रात को आ गम्भीर हो सो जाते थे.
अभी इन दोनों में कुछ और बातें होती उससे पहले ही सामने से राणाजी आते दिखाई दिए. माला ने साड़ी का पल्लू सर पर रखा और द्वार पर फिर से झाडू लगाने लग गयी. मानिक उन्हें आता देख कुर्सी से उठ खड़ा हो गया.
राणाजी से दुआ सलाम हुई. माला इतनी देर में राणाजी के लिए पानी ले आई.मानिक अपनी बात राणाजी को बता चुका था. पानी पीने के बाद राणाजी माला से बोले, “अच्छा माला मैं अभी थोड़ी देर में आता हूँ. कुछ काम है मुझे.” ___
माला ने हाँ में सर हिला दिया. राणाजी मानिक की तरफ देख बोले, "चलो भाई चलते है.” मानिक राणाजी के साथ चल पड़ा. माला हाथ में पानी का खाली गिलास लिए खड़ी इन दोनों को जाते हुए देख रही थी. राणाजी अपनी जानते हैं. माला तो मानिक को अपना खुद का समझने लगी थी. वावली को क्या पता कि इस वक्त उसके पति के अलावा कोई अन्य बाहरी पुरुष उसका नही हो सकता है.
माला हाथ में पानी का खाली गिलास लिए खड़ी इन दोनों को जाते हुए देख रही थी. राणाजी अपनी नजर झुका कर सोचते हुए चल रहे थे. मानिक का मन हुआ कि एक बार माला को मुड़कर देख ले और जैसे ही उसने मुड़कर देखा तो माला उसकी तरफ देख कर मुस्कुरा पड़ी. मानिक को भी बहुत आनंद आया.
दिल मिलने में देर नही लगती. कभी भी कही भी दिल मिल जाते हैं. और जब दो एक जैसे दिल मिलते हैं तो उनमें मोहब्बत हो जाती है. फिर उनपर कोई नियम लागू नही होता कि उनकी शादी किससे हुई है या वो किस धर्म या किस जाति से ताल्लुक रखते हैं? वो तो होती है तो हो ही जाती है. माला और मानिक के दिलों में मोहब्बत का अंकुर पनप गया था. पता नही दोनों ये बात जानते थे या नही लेकिन आज दोनों को एकदूसरे से जो लगाव हुआ था वो प्रत्यक्ष था.
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