RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
अजीब सी दीवार थी माला के दिल में, जिसने प्यार और सम्मान के मायने ही बदल कर रख दिए थे. राणाजी को अपना सर्वस्व अपनी ख़ुशी से सौंप चुकी लडकी अभी तक उनसे मोहब्बत नही कर सकी थी. शायद ये एक गुरवत की मारी लडकी का अभाग्य था या भगवान का कोई नया खेल लेकिन माला के दिल को इसमें सुकून बहुत मिल रहा था. जो इस उम्र में होना चाहिए था वो हो रहा था लेकिन इस सब के लिए समय गलत पड़ गया था. किस्मत का पाशा गलत पड़ गया था.
माला अभी आधे कपड़ों में ही बैठी थी कि दरवाजे पर आहट हुई. दरवाजा हल्का बंद था लेकिन कुण्डी बंद नही थी. माला अभी उठकर देखती उससे पहले ही गुल्लन ने कमरे में प्रवेश किया. माला ने गुल्लन को देखते ही हड्वड़ा कर पलंग पर पड़ी हुई चादर अपने ऊपर डाल ली.
गुल्लन ने देख लिया था कि माला आधे कपड़ों में खड़ी है लेकिन फिर भी वापस लौट कर न गये. मुस्कुराते हुए आगे बढे और पलंग पर बैठते हुए बोले, "और माला रानी क्या हाल चाल हैं? हमारे दोस्त कहाँ भेज दिए?"
माला का दिल धुकुर धुकुर कर रहा था. उसका शरीर तो गुल्लन को देखते ही जम गया था. ब्लाउज और पेटीकोट में पलंग की चादर ओढ़े खड़ी लडकी का सारा शरीर काँप रहा था लेकिन गुल्लन की बात का जबाब न देना गुस्ताखी भी तो हो सकती थी.
आखिर ये वही गुल्लन थे जो उसको अपने दोस्त से व्याह कर यहाँ लाये थे. साथ ही उसकी बड़ी बहन की शादी भी इन्ही गुल्लन ने करवाई थी. माला हकलाती सी बोली, "वो..बाहर..गये हैं किसी काम से."
गुल्लन को पहले से पता था कि राणाजी घर पर नही हैं लेकिन फिर भी इस तरह पूंछ कर माला को ये जता रहे थे कि उन्हें पता ही नही था कि राणाजी घर पर नही हैं. इतनी देर से खड़ी सिमटी हुई माला को एकटक देखे जा रहे गुल्लन की आँखों में कुछ अजीब सा मंजर था. __
और माला एक स्त्री होने के कारण उस मंजर को ठीक से पढ़े जा रही थी. यही कारण था कि उसका शरीर पीपल के पत्ते की भांति कांप रहा था. इस वक्त मजबूर लडकी की असली कहानी देखने को मिल रही थी.
गुल्लन अपनी वहशी नजरों से माला के खिले हुए मुखड़े को देखे जा रहे थे. जो आगे पीछे काले रेशमी बालों से ढका हुआ था. गुल्लन मुस्कुरा कर बोले, “माला तुम पहले से बहुत खूबसूरत हो गयी हो. रंगत भी पहले से बहुत निखर गयी है. शरीर भी बहुत कोमल हो गया है." __
माला की नजरें शर्म से झुक गयीं. उस लडकी को गुल्लन से इस तरह की तारीफ़ की उम्मीद ही नही थी. वो तो गुल्लन की बहुत इज्जत करती थी. अपने पति का दोस्त मान बड़ा भाई मानती थी.
माला कमरे से निकल कर जाने को हुई लेकिन गुल्लन ने पलंग से उठ उसका हाथ पकड़ लिया. माला की तो जान ही निकल गयी. आँखें आंसुओं से छलछला उठी. डरी हुई नजरों से गुल्लन की तरफ देखा लेकिन गुल्लन की नजरों में वहशीपना था.
गुल्लन ने उस लडकी की मजबूरी और लज्जा को तनिक भी तवज्जो न दी. माला अपनी बांह को छुड़ाने के लिए हल्का प्रयत्न भी कर रही थी लेकिन उसका प्रयत्न देख लगता था कि वो मन में यह भी सोच रही थी कि कही गुल्लन इसे अपना अपमान न सोचने लगे..
गुल्लन ने माला के शरीर को अपनी बाहों में भर पलंग पर धकेल दिया. उसके शरीर पर पड़ी पलंग की चादर खींच एक तरफ कर दी. माला जिस अवस्था में इस वक्त हो गयी थी वो बहुत भयावह थी. उसकी सिसकियों का सैलाव छूट गया.
गुल्लन का दिल भी उसकी सिसकियों से थोडा डर गया लेकिन सिकुड़ी सी पलंग पर लेटी माला के बगल में बैठते हुए बोले, "माला रोती क्यों है? मैं क्या तुझे जान से मार रहा हूँ. अरे पगली मैं ही तो तेरी शादी अपने दोस्त के साथ कराकर लाया हूँ. तो उस एहसान को समझ कर ही एक बार मुझे अपने मन की कर लेने दे?"
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