RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
माला उसे देखते ही ख़ुशी के मारे झूम उठी. मन किया भागकर मानिक के पास पहुंच जाए और उसके छाती से लिपट मन को तृप्त कर ले लेकिन कोई देख ले तो बैठे बिठाये मुसीबत आ जाये. माला ने मुस्कुराकर मानिक को अपने पास आने का इशारा कर दिया. मानिक भी शायद उसके इशारे के इन्तजार में खड़ा था. वो इधर उधर देखता हुआ तेज कदमों से माला की तरफ बढ़ गया. माला का मन बागों में मोर हो मानिक को आते हुए देखने लगा.
मानिक जैसे ही माला के पास पहुंचा तैसे ही वो किसी छोटी बच्ची की तरह उससे लिपट पड़ी. मानिक को कसकर अपने कलेजे से लगा लिया. मानिक हतप्रभ हो इधर उधर देखने लगा. आसपास कोई नहीं था. माला अब भी उससे लिपटी खड़ी थी. उसके बदन से उठने वाली झीनी सी सुगंध मानिक को मदहोश किये जा रही थी.
मानिक भी तो चाहता था कि वो माला को अपने गले से लगाये लेकिन माला किसी और की बीबी थी. यह सोच मानिक ने अपने दिल से ये खयाल निकाल दिया था लेकिन आज माला को अपने शरीर से लिपटे देख उसे ये बात ही ध्यान न रही. उसने भी अपने हाथों को माला के शरीर से लपेट लिया. दोनों को मोहनभोग से अच्छा स्वाद और गुलाब के फूलों से अच्छी खुसबू का एह्साह हो रहा था. आनंद का अतिरेक सिर्फ शारीरिक वासना से ही नहीं मिलता. ये आपकों आपके मीत से लिपटने से भी मिल सकता है. उसको देखने से भी मिल सकता है. उसकी याद से भी मिल सकता है.
थोड़ी देर में माला को जब ध्यान आया कि वो कुछ गलती कर गयी है तो उसने झट से मानिक से अपने आप को अलग कर लिया. नजरें जमीन की तरफ से उठ नही पा रहीं थी. मानिक भी अपने आप में शर्मिंदा था लेकिन उतना नही जितना कि माला थी. माला सोचती थी कि सबसे ज्यादा उसकी खुद की गलती है जो मानिक के आते ही ख़ुशी से उससे लिपट पड़ी लेकिन करती क्या?
मानिक को आया देख रुका ही न गया. मन मानिक का मुरीद था और तन तोरण की ताल. न मन ने उसकी मानी और न ही तन ने उसका खयाल रखा. लेकिन जो तृप्ति और संतुष्टि मानिक के स्पर्श से मिली वो अलौकिक आनंद की अनभूति थी. जिसका शर्मोहया से कोई वास्ता नही था.
फिर उसे ये भी ध्यान आया कि मानिक उसके पास खड़ा है. शर्माती सी उससे बोली, “मानिक बैठ जाओ. तुम इस तरह क्यों खड़े हो?” यह कह उसने कुर्सी मानिक की तरफ खिसका दी. मानिक उसकी बात पर हंस पड़ा. मानो वो विना बात इतनी देर से खड़ा था.
मानिक कुर्सी पर बैठ गया और माला उसके सामने खड़े पेड़ के तने से टिककर बैठ गयी. गाँव में स्त्रियाँ किसी भी मर्द के सामने कुर्सी या चारपाई पर नही बैठती. ये बात अलग है कि अकेले कमरे में होने पर पति प्यार से अपनी पत्नी के पैर तक दबा देता है लेकिन लोगों के सामने उसे अपने बराबर तक बिठाने को तैयार नही होता.
माला की शर्म धीरे धीरे कम हो रही थी और मानिक भी अभी थोड़ी देर पहले माला के द्वारा की गयी हरकत को भूलता जा रहा था लेकिन दोनों के शरीर में उस बात की सिरहन अभी तक हो रही थी. तभी अचानक माला बोल पड़ी, "मानिक तुम्हें बुरा तो नही लगा. हम तो ख़ुशी के मारे तुमसे लिपट बैठे. कसम से हमारे मन में कोई बुरी भावना नही थी.”
मानिक जानता था कि माला इतनी गिरी हुई लडकी नही है. बोला, “अरे नही नही कभी कभी ऐसा हो जाता है. मुझे वैसे भी इन बातों से बुरा नही लगता. भला तुम भी कोई बाहर की हो जो बुरा मान जाऊं?"
माला से आज मानिक तुम कहकर बोल रहा था. क्योकि खुद माला ने उसे तुम कहकर और उसका नाम लेकर बोलने के लिए कहा था. माला को ये बात अच्छी लग रही थी. उसे ये बात भी अच्छी लगी जो मानिक ने उसे अपने घर की समझा. बोली, "स्कूल गये थे आज. पढने में मन लगता है तुम्हारा?"
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