RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
मानिक मुस्कुराता हुआ बोला, “मन तो अपने आप लग जाता है. पढाई आदमी के लिए बहुत जरूरी होती है. वैसे मैं एक भी दिन पढाई नही छोड़ता इसलिए आज भी गया था."
माला को मानिक से बात करने के लिए कोई बात नही सूझ रही थी. मन वावला सा हुआ जा रहा था. डर था कि उससे कुछ का कुछ और न बोल जाए. ख़ुशी के मारे जीभ भी तो सीधी नही पड रही थी लेकिन कुछ बोलना तो था ही. बोली, “अच्छा. स्कूल से सीधे यहीं आये या खाना खा कर आये?" ____
मानिक सच में स्कूल से घर पहुंचा था और घर में स्कूल का बस्ता रख सीधा इधर आ गया था. बोला, “स्कूल से सीधा ही समझो. क्योंकि घर पर स्कूल का बस्ता रखने के अलावा कोई काम नहीं किया. सीधा इधर भागा चला आया."
माला को आश्चर्य हुआ कि मानिक को यहाँ आने की इतनी जल्दी थी जो कि घर पर विना रुके सीधा इधर भागा चला आया. बोली, "तो घर पर तुम खाना भी खाकर नहीं आये. सुबह के भूखे होगे तुम तो. कहो तो तुम्हारे लिए थोडा खानाले आऊँ?"
मानिक हड्वड़ाते हुए बोला, “अरे नही नही. मुझे कतई भूख नही है. मैं तो तुमसे बात करने आया था. सोचा देर हुई या न जा पाया तो तुम बुरा मान जाओगी. और तुम तो ये भी कह रही थी कि अगर में न आया तो बोलना ही बंद कर दोगी. इसलिए जल्दी से भगा चला आया."
माला को मानिक की यह बात सुन बहुत खुशी हुई कि उसने इस बात को गम्भीरता से लिया था कि अगर वोन आया तो मैं उससे बात करना बंद कर दूंगी. बोली, “अच्छा तुम्हें इतनी चिंता थी मेरी बात की. अगर सचमुच में मैं तुमसे बात करना बंद कर देती तो तुम दुखी होते क्या?"
मानिक ने तडप कर माला की तरफ देखा. उसकी आँखों में माला के प्रति अगाध प्रेम था. बोला, "मैं इस बात को सोच भी नही सकता. लगता है जैसे ये सब करना मेरे लिए कम से कम अब सम्भव नही है.या तो ये सब तब होता जब मैं तुमसे मिला ही नही था या फिर अब ऐसा होता ही नही. क्योंकि किसी से मिलकर बिछड़ना बहुत मुश्किल होता है. हाँ किसी से आप मिले ही नही तो बिछड़ने का दर्द आपको होगा ही नही.” ___ माला को भी ऐसा ही लगता था. वो खुद अब मानिक से अलग होने की सोच भी नही सकती थी. जिस दिन से छत पर मानिक को देखा था उस दिन से आज तक मानिक के प्रति प्रेम बढ़ ही रहा था न कि रत्तीभर भी कम हुआ हो.
वो मानिक की तरफ उदास नजरों से देख बोली, "सच कहते हो मानिक. मुझे भी ऐसा ही लगता है. जिस दिन तुम मुझे छत पर दिखाई दिए थे उस दिन से मैं सिर्फ तुम्हें ही याद करती रहती थी. लगता था कि तुम बहुत पहले से मुझे जानते हो और मैं तुम्हें बहुत पहले से जानती हूँ.” ___
मानिक उसकी बातों को चुपचाप बैठा सुन रहा था. वो जानता था कि माला कितने दुखी जीवन से निकल कर आई है. जिस उम्र में उसे अपने जीवन में उडान भरनी थी उस उम्र में वो पिता की उम्र के व्यक्ति के साथ व्याह दी गयी. और व्याह होते ही कोख भी बच्चे से भर दी गयी. जिम्मेदारी पर जिम्मेदारी आदमी को बोझ तले दबाती चली जाती है और ऐसे ही बोझ को ढोता वो आदमी अपने जीवन की सारी सीढियाँ पूरी कर चुका होता है. फिर एक दिन वो इस दुःख भरी दुनिया को छोड़ चला जाता है.
मानिक के दिल में थोडा डर भी था. बोला, "माला कहीं राणाजी चाचा को इस बात का पता चला तो कुछ बुरा न सोचने लग जाएँ? मुझे थोडा सा डर भी लगता है." माला को भी ये डर था लेकिन उसे राणाजी का शांत व्यवहार भी पता था. पता नही उसे ऐसा क्यों लगता था कि राणाजी को इस बात का बुरा नही लगेगा. बोली, "नही मानिक. वो इस बात का बुरा नही मानेंगे. अरे हम कोई बुरा काम थोड़े ही न कर रहे हैं. साथ बैठकर बातें करना कोई गुनाह तो है नही जो वो नाराज़ होने लगें?"
मानिक को पता था कि ऐसा नहीं है. किसी की बीबी के पास अकेले में बैठना. बातें करना किसी को भी अच्छा नही लगेगा. बोला, "लेकिन हम अकेले में बैठ बातें करेंगे तो कोई भी बुरा तो सोचेगा न और तुम खुद सोचो कि अगर एक लड़का और एक लडकी इस तरह मिल रहे हैं तो क्या बात होगी?
फ़ालतू में तो नही मिल रहे होंगे. कुछ न कुछ तो होगा दोनों के बीच. क्या तुम नही ऐसा सोचतीं. खुद मैं अगर किसी को ऐसे मिलते देखता तो मैं भी उसके बारे में यही सोचता कि जरुर दोनों के बीच कुछ होगा."
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