RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
माला की नजरें झुकी हुईं थी. सच में उसे भी ऐसा ही लगता था कि वो मानिक से प्रेम कर बैठी है. वेशक मुंह से नही कहा था लेकिन दिल जानता था कि मानिक उसका है. बोली, "मैं क्या कहूँ मानिक. मैं तो इस रिश्ते को कोई नाम ही नहीं दे पा रही हूँ. दिल को तुम अच्छे लगे बस इससे ज्यादा मैं कुछ नही जानती लेकिन किसी की वजह से मैं तुमसे मिलना भी तो नही छोड़ सकती हूँ. अब इसका जो भी मतलब होता हो वो होता रहे. मुझे इससे कोई फर्क नही पड़ता."
मानिकको आज यकीन हो गया कि माला उससे सचमुच में प्यार करती है. बोला, "तो इसका मतलब तुम राणाजी चाचा से...मेरा मतलब उनको प्यार नही करतीं. तो उनके साथ ये सब...ऐसे साथ रहना और बच्चा भी...?"
मानिक ने माला की दुखती रग पर हाथ रख दिया था. वो सच में राणाजी से प्यार नही करती थी लेकिन राणाजी को वो अच्छा आदमी मान इज्जत जरुर करती थी. बोली, "ये बात सच है मानिक, मैं आज तक उनसे प्यार नही कर पायी. मेरे दिल ने उन्हें शुरू से आज तक उन्हें बहुत अच्छा इन्सान माना है. वेशक मैं उन्हें अपना सर्वस्व सौप चुकी हूँ. उनके बच्चे की माँ भी बनने वाली हूँ लेकिन आज तक मेरा दिल उनसे मोहब्बत नहीं कर पाया है. उन्हें देखकर मेरे दिल में इज्जत का भाव तो आता है लेकिन वैसा नही लगता जैसा.."
मानिक जानता था माला उसका नाम लेने वाली थी. माला भी जानती थी कि मानिक को पता है कि मैं उसका ही नाम लेने वाली थी. प्यार की वयार वह निकली निकली थी. जिसको दोनों ही महसूस कर रहे थे. माला चोरी चोरी मानिक को देख लेती थी और मानिक माला को. लेकिन दोनों को ही अपने दिलों की बात कबूलने में बहुत मुश्किल हो रही थी.
अभी दो ही दिन तो हुए थे दोनों को मिले हुए और दो दिन की मुलाकात में कोई कितना कह सकता है. लेकिन प्यार की बात अलग होती है. उसे कितने दिन और कितने समय से कोई मतलब नही होता. वो तो बस मौका देखता है किसी से होने का. जैसे ही कोई अपने मेल का मिलता है बस वो उससे प्यार कर बैठता है. यही तो हुआ था इन दोनों मानिक बात को ज्यादा टालना नही चाहता था. वो ये भी नहीं चाहता था कि माला को बिना बात किसी संकट में डाले.बोला, "माला मैं ये चाहता हूँ कि तुम जो भी करो सोच समझ कर करना. मैं नहीं चाहता कि मेरी वजह से तुम्हें कोई भी परेशानी हो. जो मेरे दिल में है या जो तुम्हारे दिल में उससे बहुत बड़ा फर्क पड़ता है लेकिन हमें अपने बुरे भले का भी सोचना चाहिए. मैं तो लड़का हूँ मुझे कोई कुछ नहीं कहेगा लेकिन तुम लडकी हो और एक घर की बहू भी तुम्हें इस बात से बहुत फर्क पड़ेगा. इसलिए इस बात को बढ़ाने से पहले ठीक से सोच लेना."
माला बास्तव में अपने प्यार पर भरोसा करती थी. उसका दिल भी मोहब्बत करने का दृढ निश्चय कर चुका था. बोली, "मानिक तुम अगर चाहो तो पीछे हट सकते हो लेकिन मैं अपनी तरफ से एक कदम भी पीछे नही हटूंगी. मैंने जो भी किया है वो बहुत सोच समझ कर तो नही किया लेकिन मेरे मन से यह सब करना इतना गलत भी नही होता. अगर गलत होता तो इसे कोई भी नहीं करता. मेरे पति मुझे खरीद लाये हैं लेकिन मेरे मन पर उनका नियत्रण नही हो सकता है. वो आज भी मेरा है और पहले भी मेरा ही था. मैं अपने मन से तुम्हें अपना मानती हूँ. बाकी तुम्हारा तुम जानो."
मानिक इस बात को सुन कब पीछे रहता. बोला,
"माला पीछे तो मैं भी हटना नही चाहता लेकिन तुम्हारे बारे में सोच पीछे हटने का मन करता है. पता नहीं गाँव में ये बात फैलने पर क्या होगा? वैसे ही लोग राणाजी चाचा का बुरा देखने को हर वक्त लालयित रहते हैं. मुझे तुम्हारा डर न होता तो मैं पीछे हटने की बात को सोचता तक नहीं लेकिन आज तुम कहती हो कि तुम पीछे नही हटोगी तो मैं भी तुमसे वादा करता हूँ कि मैं भी मरते दम तक तुम्हारा साथ नही छोडूंगा. ये बात मैं तुम्हारे सामने खड़ा हो पूरे होशोहवास से कहता हूँ.”
दोनों अपने अपने प्यार का दृढ निश्चय कर चुके थे. दोनों की शर्म कम होती जा रही थी. बातों बातों में शाम का वक्त होने जा रहा था. जिसकी खबर माला को भी थी और मानिक को भी थी. मानिक उठ खड़ा हुआ और बोला, "अच्छा माला मैं चलता हूँ. पता नही किस वक्त राणाजी चाचा आ जाय. साथ ही मेरे पिता भी मेरा रास्ता देखते होंगे." ___
माला के दिल में धुकधुकी चल पड़ी. मानिक को खुद से दूर करने का तो मन करता ही नहीं था. बूंद बूंद इश्क को तरसी माला अपने मानिक को दिल से दूर नही करना चाहती थी. बोली, “मानिक तुम जाने को होते हो तो हमे बैचेनी होने लगती है. लगता है तुम हमे छोड़कर जाओगे और फिर कभी हमसे मिलने न आओगे. कही तुम हमें छोड़ तो नही जाओगे?"
मानिक को माला की आवाज में बड़ी तड़पन महसूस हुई. बोला, “तुम्हारी कसम खाकर कहता हूँ माला. जब तक तुम मुझे धक्का मार कर न भगाओगी तब तक मैं तुम्हें छोड़कर नही जाऊँगा. या जिस दिन तुम खुद ये कह दोगी कि तुम्हें मेरे साथ नही रहना. उस दिन ही मैं तुम्हारे पास नही आऊंगा. नही तो मेरा मन कभी तुमसे अलग न होगा."
माला को मानिक की बात पर पूरा भरोसा था. वो जानती थी मानिक कभी उसे धोखा नहीं देगा. माला उठ खड़ी हुई और मानिक को एक बार फिर से सीने से लगा लिया. दोनों बेहया हो एक दूसरे से लिपट गये. माला की कोख में राणाजी का दिया गर्भ था लेकिन मन में मानिक बसा जा रहा था. क्या करे अभागन लडकी? अपने दिल की न सुने तो किसकी सुने. न कोई समझाने वाला और न कोई सहारा देने वाला घर में मौजूद था. बेतरतीब अकेलापन और मन में किसी के न होने का खालीपन.
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