RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
मानिक ने इस सब की कमी को पूरा कर दिया था. वो तो टूटकर प्यार करेगी उसे. अब जो बुरा माने सो मानता रहे. __मानिक ने समय का तकाजा महसूस कर माला को अपने से अलग किया. माला की आँखें भीगी हुई थी. मानिक ने उसके आंसुओं को अपनी हथेली से साफ़ किया और बोला, "रोती क्यों हो पगली? अब तो सब कुछ ठीक है. फिर ये आंसू क्यों?" ___
माला भर्राए हुए गले से बोली, “ये तुमसे अलग होने के कारण हो रहा है. अच्छा कल फिर से आओगे न? अगर न आये तो मेरा तो मन ही नही लगेगा. तुम कल भी आना और रोज आना, देख लेना एक भी दिन न आये तो मैं खुद तुम्हारे घर चली आउंगी.” ___
मानिक माला की बात सुन मुस्कुरा पड़ा और बोला, "ठीक है बाबा. कल भी आऊंगा और रोज आया करूँगा. और तुम क्या समझती हो कि मैं तुम्हारे पास न आया तो में खुश रहूँगा. अरे मुझे भी तुम्हारी उतनी ही याद आएगी। जितनी कि तुम्हें मेरी. में कल जरुर आऊंगा. अच्छा अब मैं चलता हूँ. कोई आ गया तो ठीक नही रहेगा."
इतना कह मानिक वहां से चल दिया. पैर तो आगे को न पड़ते थे लेकिन जाना जरूरी था. मुड मुड कर माला की तरफ देखा. माला भी भीगी आँखों से अपने मन को जाते हुए देख रही थी. थोड़ी ही देर में मानिक उसकी आँखों से ओझल हो गया. माला अभी भी उसी तरफ देख एक ही जगह जमी हुई थी. लगता था जैसे उसे मानिक के फिर से लौट आने का इन्तजार था.
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