RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
राणाजी थोड़ी देर जमीन की तरफ देखते रहे फिर धीरे से बोले, “माला एक समय था जब इस गाँव में लोग हमारे घर को सम्मान देते थे. लोग हमारे घर के लोगों को बहुत इज्जत की नजर से देखते थे. हमारे पास बहुत सारा धन हुआ करता था. रुतवा भी बहुत हुआ करता था लेकिन आज उसमे से बहुत सी चीजें हमारे पास नहीं हैं. तुम्हें तो पता है अभी थोड़े दिन पहले ही मैने जमीन का कुछ हिस्सा बेच दिया है. इस जमीन को बेचने से मेरे बारे में लोगों की सोच और ज्यादा घटिया हो गयी है. लोग सोचते हैं कि मैं बर्वाद होने की कगार पर खड़ा हूँ लेकिन सच कहूँ माला तो मुझे लोगों की इन बातों से कोई फर्क नही पड़ता. मैं लोगों की बातों पर ध्यान देना ही नही चाहता.
लेकिन आजकल गाँव एक और तरह की चर्चा जोरों पर है कि तुम्हारे साथ इस लडके मानिक का कोई चक्कर है. लोग तो यहाँ तक भी कहते हैं कि तुम्हारे पेट में जो बच्चा है वो भी...लेकिन मुझे उनकी इस बात से भी कोई असर नही हुआ. क्योंकि में जब तक अपनी आँखों से नही देख लेता तब तक गाँव के लोगों की बात पर भरोसा नहीं करता
आज मैं जब जल्दी घर आया तो वो लड़का मैने तुम्हारे पास देखा लेकिन अब भी मुझे इस बात पर यकीन नही होता. में फिर भी तुम्हारे मुंह से जानना चाहता हूँ कि ये बात सही है या नही. क्या तुम उस लडके से अपने मन से मिलती हो?"
माला की नजरें नीचे झुकी हुई थी. वो राणाजी की बात को बड़े गौर से सुन रही थी लेकिन वो जो बात पूंछ रहे थे वो बात आधी सच्ची थी और आधी झूठी. ये बात सच थी कि वो मानिक से प्यार करती थी लेकिन उसके पेट में जो बच्चा था वो राणाजी का ही था. क्योंकि मानिक ने तो ठीक से उसे छुआ भी न था. साथ ही जब वो गर्भवती हुई थी तब वो मानिक को जानती तक थी.
राणाजी से माला बोली, “आप को मैं कुछ भी झूठ नही बताऊँगी. ये बात सच है कि में मानिक से मिलकर बहुत अच्छा महसूस करती हूँ लेकिन मानिक ने आज तक मुझे कोई गलत शब्द तक नही बोला तो उसका बच्चा मेरी कोख में होने का सवाल ही नही उठता. ये बात आप भी जानते हैं. मैं इससे ज्यादा और कुछ नहीं कह सकती."
राणाजी जानते थे माला की कोख में जो बच्चा है वो उन्ही का है लेकिन माला के मुंह से भी इस बात को जानना चाहते थे. बोले, "मुझे पता था कि ये बच्चा मेरा ही है लेकिन एक माँ ही सबसे ज्यादा जानती है कि उसकी कोख में आया बच्चा किसका है. तुम्हारे कहने के बाद अब मुझे किसी से यह नही जानना कि ये बच्चा किसका है. लेकिन अब मैं यह भी जानना चाहता हूँ कि तुम मुझसे क्या चाहती हो? तुम्हारा मन क्या चाहता है. तुम मेरे साथ रहना चाहती हो या नही. ये मत समझना कि मैं तुमसे कुछ कहूँगा. मैं तुम्हे तुम्हारे घर से वेशक लाया हूँ लेकिन तुम्हें बाँध कर अपने घर में रखना नही चाहता. आज से बीस साल पहले तुम मेरी पत्नी होती और तुमने ये हरकत कर दी होती तो शायद मैं तुम्हें अपने सामने खड़े कर गोली मार देता लेकिन आज मैं परिपक्व हो गया हूँ. मैं आज शांति और समझदारी से हर बात का हल निकलना चाहता हूँ. तुम्हें पता है कि मेरे मरने के बाद इस घर का नाम चलाने वाला कोई और नही है. मुझे तुम्हारी कोख में आये बच्चे में अपने घर का चिराग दिखाई देता है आज मैं तुमसे तुम्हारे मन की बात जानना चाहता हूँ. तुम चाहती क्या हो?"
माला सोच में थी कि राणाजी से क्या कहे? देवता समान आदमी से उसे कुछ गलत कहना भी अच्छा नहीं लग रहा था लेकिन उसका मन अपना अलग मत रखता था. वो मानिक के लिए मरता था. राणाजी का तो मन में सिर्फ सम्मान था. बोली, “मैं आपसे कोई भी धोखेबाजी नही करना चाहती हूँ. ये बात सच है कि मैं मानिक को दिल में बहुत चाहती हूँ लेकिन मैं आपका भी बहुत सम्मान करती __आप मुझे उस भुखमरी से निकाल कर अपने घर में लाये और मुझे अपने घर के सदस्य की तरह रखा. मेरा मन आपको देवता की तरह पूजता है. मैं आपको छोड़ कर भी नही जाना चाहती और मानिक को भी नही छोड़ सकती. मेरी समझ में कुछ नही आता कि मैं क्या करु? आप जैसा कहो मैं वैसा ही करने को तैयार हूँ."
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