RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
राणाजी माला की बात को समझ सकते थे. उनका एक मन होता था कि गुल्लन और उसकी पत्नी को बुला माला को समझवा दें लेकिन अगर माला फिर से यही कर बैठी तो क्या करेंगे? बोले, “अच्छा तुम मुझे थोडा सोचने का मौका दो और तुम खुद भी सोचो. शायद तुम्हें कुछ हल मिल जाए और हो सकता है तो कुछ ऐसा सोचो जिससे इस घर की लाज बच जाए. लेकिन आज से तुम अपना बिस्तर बगल के कमरे में लगा लो. मैं तब तक तुम्हारे साथ नहीं सोना चाहता जब तक तुम्हारा मन मुझसे न मिले. तुम आज से इसके बगल वाले कमरे में सो जाया करो.”
इतना कह राणाजी बाहर निकल कर चले गये. माला हतप्रभ हो उस देवता पुरुष को देखती रह गयी. उसने ख्यालों तक में ये नही सोचा था कि राणाजी इतनी आसानी से इस बात को पचा जायेंगे. शायद उसके खुद के माँ बाप भी होते तो इतनी आसानी से उसे नही छोड़ देते. उसको बुरी तरह पीटा जाता. घर में बंद कर दिया जाता लेकिन राणाजी ने ऐसा कुछ भी नही किया था. क्या कहे वो इस महापुरुष को? सोच सोच कर माला का दिमाग फटा जाता था.
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