RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
भाग -6
सुन्दरी भागी भागी कौशल्यादेवी के घर आ पहुंची. पुरानी सी साड़ी जो पैरों से काफी ऊँची थी और मैली भी बहुत थी. मुंह पर अपार ख़ुशी और आँखें ख़ुशी से भीगी हुईं थी. आते ही कौशल्यादेवी से लिपट गयी. उनकी समझ में कुछ न आया. उन्होंने जैसे तैसे सुन्दरी को अपने से अलग किया और बोली, “अरे सुन्दरी क्या हआ? ऐसे क्यों भागे फिर रही हो? कुछ बता भी दो.”
सुन्दरी की सांसे फूली हुई थीं. मुंह ख़ुशी से भरा हुआ लेकिन बात करने लायक नही था. फिर बोलती क्या?
सुन्दरी ने अपने ब्लाउज में हाथ डाला और एक लिफाफा निकाल कौशल्यादेवी की तरफ बढ़ा लिया लेकिन बोली अब भी नही. सुन्दरी को खुशी थी या वो रोने की कगार पर थी. उसे देखकर कोई बता ही नही सकता था कि आखिर वो करने क्या जा रही है. वोरोएगी या हँसेगी? कौशल्यादेवी ने लिफाफे को देखा तो उन्हें मालूम पड़ा कि किसी की चिट्ठी है. बोली, “सुन्दरी इस चिट्ठी की वजह से इतनी वावली हुई जा रही हो या और कोई बात है?"
सुन्दरी ने जल्दी से हाँ में सर हिलाया और हकलाती सी बोली, "मेरे...गाँव..घर से." इतना कह सुन्दरी ने फिर से अपनी छाती थाम ली. सुन्दरी को शादी हो यहाँ आये दस साल से ऊपर हो गये थे लेकिन आज तक उसके घरवालों ने एक बार भी उसकी खबर न ली थी. परन्तु आज जब यह चिट्ठी उसके घर से आई तो उसकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा. ख़ुशी के मारे मर जाने को दिल करने लगा. लगा कि आज जीवन की सारी मुरादें पूरी हो गयी फिर और ज्यादा जी कर क्या फायदा. छोटे लोग बेचारे छोटी सी ख़ुशी से खुश हो जाते हैं और अमीर बड़ा आदमी तो दुनिया की दौलत पा कर भी रोया चेहरा लिए घूमता है.
सुन्दरी की ख़ुशी अब काबू में आ गयी थी लेकिन चिट्ठी में क्या लिखा है ये जानने की अधीरता बलबती होती जा रही थी. वो कौशल्यादेवी से बोली, "जीजी पढ़कर बताओ न क्या लिखा है? हमारी तो जान ही निकली जा रही है."
कौशल्यादेवी बेचारी कैसे पढ़ पाती उस चिट्ठी में लिखाई ही अलबेली थी. लगता था किसी छोटे बच्चे ने लिखी है. ऊपर से पांचवी से भी कम पढ़ी लिखी कौशल्यादेवी. लेकिन इसका भी हल निकाला गया. मोहल्ले में हिंदी का प्रकांड पंडित कौशल्यादेवी का लड़का छोटू भी तो था. कौशल्यादेवी ने जोरदार आवाज से छोटू को पुकारा. उन्हें डर था कि अगर सुन्दरी को जल्दी से यह चिट्ठी न पढ़कर सुनाई गयी तो उसे दिल का दौरा भी पड़ सकता है. छोटू तो पूरा छोटू था. माँ की आवाज कानों में पड़ी तो भागा चला आया. कौशल्यादेवी ने उसके आते ही कहा, "ले बेटा ये सुन्दरी को ये चिट्ठी पढ़कर सुना दे.” छोटू ने लिफाफा अपने हाथ में लिया और उसे गौर से देखा. किसी बच्चे के हाथ की लिखाई. चीटियों की टांगो की तरह अक्षर. आधी हिंदी और आधी भोजपुरी मिक्स. लेकिन उसमे जो लिखा था वो गजब का था. लिखाई वेशक अच्छी न थी लेकिन लिखने वाला कोई गजब का आदमी था.
छोटू अभी लिफाफे को देख ही रहा था कि सुन्दरी ने उसे झकझोर कर कहा, “अरे छोटू थोडा जोर से पढो. मुझे तो सुनाई ही नही देता और थोडा जल्दी जल्दी पढो क्योंकि मुझे इस चिट्ठी को दो तीन बार सुनना है." ___
छोटू ने तो चिट्ठी पढना शुरू ही नहीं की थी फिर सुन्दरी ये क्यों कहने लगी कि थोडा जोर जोर से पढो. क्या सचमुच वो ख़ुशी से वावली हो गयी थी? छोटू उससे बोला, “अरे चाची अभी पढना शुरू करता हूँ थोडा धीरज रखो."
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