अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
07-03-2020, 01:25 PM,
#46
RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
सुन्दरी को धीरज ही तो नही था. वो तो उस चिट्ठी को एक साँस में पढ़ डालती लेकिन बुरी किस्मत से पढ़ी लिखी नही थी. छोटू ने चिट्ठी को जोर जोर पढना शुरू किया, "मेरी आदरणीय प्यारी जिज्जी. तुम कैसी हो? हम लोग तो जैसे हैं वैसे हैं ही लेकिन तुम ठीक तरह से होंओगी. मुझे सपने में एक बार तुम दिखाई दी थी. तब तुमने मुझसे कहा कि मैं तुम्हारे लिए एक चिट्ठी लिखू लेकिन तब मैं लिखना नही जानता था.

आज में आठवीं मैं पढता हूँ और लिखना भी सीख गया हूँ. तुम मुझे पहचान पायीं या नही. बताओ मैं कौन हूँ? अरे पागल जिज्जी मैं संजू हूँ. तेरा छोटा भाई संजू, जिज्जी..”. ___

चिट्ठी के बीच में ही सुन्दरी ने छोटू को रोककर पूंछा, "कहाँ पर लिखा है संजू?” छोटू ने लिफाफे पर संजू लिखा हुआ दिखा दिया.

सुन्दरी ने सजल नेत्रों से उस संजू लिखे हुए शब्द को देखा और छोटू से बोली, "ये मेरा भाई है. छोटा वाला. बहुत होशियार लड़का है. छोटा था तभी भी बहुत होशियार था."

छोटू ने सुन्दरी के चेहरे को देखा. उसका चेहरा अपने भाई पर गर्व कर रहा था. लगता था जैसे उसके भाई ने चिट्ठी लिखकर कोई बहुत बड़ा काम कर दिया हो. ___ छोटू अभी सोच ही रहा था कि सुन्दरी ने उसे फिर से हिलाकर कहा, "अरे पढो छोटू. रुक कैसे गये?" छोटू ने बड़े आश्चर्य से सुन्दरी को देखा. मानो वो खुद ही शौक में रुक गया था लेकिन उसने सुन्दरी से विना कुछ कहे फिर से लिफाफा पढना शुरू कर दिया, "जिज्जी जब से तू गयी है तब से हम लोगों को तेरी बहुत याद आती है. ____ माँ भी तेरे जाने के बाद बहुत रोई और जिज्जी वो अपना भाई था न सबसे छोटा. जो मुझसे छोटा था. वो गर्मियों में मर गया. उसे कोई बीमारी हो गयी थी. माँ के पास पैसे नही थे. बस घर घर सोता सोता ही मर गया. जिज्जी मरने के बाद उसे बस्ती के लोगों ने गड्ढे में गाढ़ दिया था.

जिज्जी मुझे उसकी बहुत याद आती है. अब अपनी झोपडी में मैं और माँ ही रहते हैं लेकिन जिज्जी यहाँ इस बार धान की फसल भी ठीक से नही हुई. चावल बहुत मंहगा हो गया है. माँ अब चावलों में बहुत सारा पानी डालकर उन्हें पकाती है. मैं और माँ चावल कम खाते हैं उसका पानी ज्यादा पीते हैं. इससे दोनों समय का खाना आराम से हो पाता है. जिज्जी तू यहाँ अब दोबारा मत लौट कर आना. नही तो तू भी ऐसे ही भूखी रहा करेगी. माँ पहले से बहुत कमजोर हो गयी है. वो पहले मुझे पेट भर चावल खिलाती है और फिर खुद खाती है. कभी कभी न बचे तो भूखा ही सो जाती है. लेकिन जिज्जी अब मैं भी चालाक हो गया हूँ. मैं पहले पेट भरकर पानी पी लेता हूँ तब चावल खाने बैठता हूँ. इससे मुझसे ज्यादा चावल नहीं खाए जाते और माँ के लिए भी बहुत बच जाते हैं.

जिज्जी जिस दिन यहाँ सब ठीक हो जायेगा उस दिन मैं खुद तुझे बुलाने आऊंगा. तेरी कसम खाकर कहता हूँ, जिज्जी लोग कहते हैं कि नई सरकार यहाँ की बस्ती के लिए भर पेट खाना दिया करेगी. कोई भी आदमी भूखा नही रहा करेगा. तब तू यहाँ आ जाना लेकिन जिज्जी माँ को सरकार पर कतई भरोसा नही. वो कहती है कि कोई हरामी कुछ काम नही करता. लेकिन जिज्जी मुझे भरोसा है. हो सकता है इस बार खाना मिलना शुरू हो जाए और जिज्जी तेरे यहाँ तो बहुत बढिया बढिया खाना होता होगा.तू तो बहुत मोटी हो गयी होगी. मैं तुझे मोटी मोटी कहकर चिढाया करूँगा.
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RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत - by desiaks - 07-03-2020, 01:25 PM

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