RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
भाग -7
सुबह हो चुकी थी. आज माला राणाजी के पास नही सोयी थी. उसने राणाजी के कहने पर अपने रहने का प्रबंध उनके बगल वाले कमरे में कर लिया था. चूंकि गर्मी में छत पर सोते थे लेकिन राणाजी की चारपाई अलग थी और माला की चारपाई अलग. सुबह माला के जगने से पहले ही राणाजी जागकर नीचे आये चले आये. माला बाद में जागी और जागते ही सबसे पहले उसकी नजर राणाजी की चारपाई पर गयी. राणाजी उसको पूरी छत पर कहीं भी दिखाई न दिए लेकिन सामने की छत पर मानिक अधलेटा चारपाई पर बैठा उसे देखे जा रहा था.
माला ने छत के चारों तरफ देखा. कुछ लोग अभी भी अपनी अपनी छतों पर खड़े. बैठे और लेटे हुए थे लेकिन माला आज से पहले किसी भी तरफ नही देखती थी. परन्तु माला को अब ज्यादा डर भी नही था. उसने मुस्कुराकर मानिक को देखा.
मानिक को अचरज हो रहा था कि कल जब राणाजी ने उन दोनों को देख लिया तो माला आज फिर उसकी तरफ देख क्यों मुस्कुरा रही है? क्योंकि राणाजी ने जरुर उससे कुछ न कुछ कहा होगा. माला ने इशारा कर मानिक को पूंछा, "कैसे हो मानिक?" मानिक ने इशारे में माला से कहा, “ठीक हूँ लेकिन कल क्या हुआ? क्या राणाजी ने कुछ कहा?" ___
माला ने इशारे में मानिक को बताया, “ज्यादा कुछ नही हुआ लेकिन राणाजी को पता पड़ गया है.”
मानिक का दिल धडक उठा. उसकी समझ में ये न आ रहा था कि जब राणाजी को पता पड गया तो उन्होंने कुछ कहा क्यों नही.
माला ने उसको हैरत में देखा तो इशारे से बोली, “आज दोपहर में आना तब बात करेंगे." मानिक ने हां में सर तो हिला दिया लेकिन आश्चर्य कम नही हुआ था.
माला यह इशारा करते हुए नीचे चली गयी. मानिक अधलेटा पड़ा हुआ उसे देखता रह गया. गाँव में यह पहली बार था कि किसी लडके लडकी का चक्कर चल रहा था लेकिन किसी भी गाँव वाले ने इस बात पर कोई आपत्ति नही की थी और खुद राणाजी ने भी बड़ी धीरता से काम लिया था. मानिक अपनी सोच में उलझा जा रहा था. उसे खुद नही लगता था कि उसके और माला के प्यार की डगर इतनी आसान होगी.
माला रसोई में चाय बना चुकी मेहरी से चाय ले राणाजी के कमरे में जा पहुंची. राणाजी अपनी आँखों पर हाथ रखे लेटे हुए थे. माला के कमरे में पहुंचने की आहट सुन आँखों से हाथ हटाकर देखा और उठ कर बैठ गये. माला राणाजी के सामने खुद को बहुत शर्मिंदा पा रही थी लेकिन उसे जब तक इस घर में रहना था तब तक राणाजी से सामना करना ही था. माला ने चाय का कप राणाजी की तरफ बढ़ाया और धीरे से बोली, “चाय पी लीजिये."
राणाजी ने माला के हाथ से चाय का प्याला ले लिया लेकिन बोले कुछ नही. साथ ही माला से कोई बात भी नही की. माला चाय देने के बाद भी कमरे से बाहर न गयी. उसे राणाजी का इस तरह चुप चुप रहना अखर रहा था. उसके मन में सवाल भी बहुत थे लेकिन पूछने की हिम्मत नही होती थी. राणाजी ने माला को अभी तक कमरे में खड़े देखा तो खुद ही पूछ बैठे, “माला कुछ कहना है क्या तुम्हें?”
माला तो मानो इसी सवाल का इन्तजार कर रही थी. मुंह से बरबस ही निकल गया, "हाँ..मैं.."
राणाजी ने गम्भीर स्वर में उससे पूंछा, “हाँ कहो क्या कहना चाहती हो?"
माला का गला भर्राया हुआ सा था लेकिन बोली, "क्या आप मुझसे गुस्सा हैं? मैं जानती हूँ मुझसे गलती हुई है लेकिन मैंने ये सब जानबूझ कर नही किया. मुझे पता ही नही चला ये सब कब हो गया?"
राणाजी ने माला के चेहरे को गौर से देखा. उसके चेहरे पर पश्चाताप कम लेकिन मासूमियत ज्यादा थी. नादान लडकी की गलती तो थी लेकिन राणाजी ने उसे इतनी गम्भीरता से नही लिया था. उन्हें तो खुद से ज्यादा शिकायतें थीं न कि माला या किसी और से.
राणाजी ने माला के सवाल का जबाब देते हुए कहा, “माला अब जो हुआ सो भूल जाओ. सिर्फ आगे की सोचो. तुम्हारा जीवन अभी बहुत लम्बा है. मैंने बहुत कुछ देख लिया लेकिन तुम्हारी अभी शुरुआत है. जो भी करो उसे बहुत सोच समझकर करो. क्योंकि एकबार की गलती बहुत भारी पड़ सकती है. अब देखो मैंने आज से बीस साल पहले एक गलती की थी उसकी सजा मैं बीस साल से भुगत रहा हूँ. मेरा सारा परिवार तहस नहस हो गया. मेरा जीवन शून्य हो गया लेकिन अब भी जब तक जीऊंगा तब तक मुझे ये सजा भुगतनी पड़ेगी. हमारे जीवन की एक छोटी सी गलती हमें पूरी जिन्दगी का गम दे जाती है. इसका जीता जागता उदाहरण मैं खुद हूँ.”
माला बड़े ध्यान से राणाजी की बात सुन रही थी. लगता था जैसे उसके पिता बैठे उसे ये बात समझा रहे हों. सच में राणाजी की बात उसे बहुत अच्छी लग रही थी. अभी माला कुछ कहती उससे पहले ही द्वार से किसी ने राणाजी को आवाज दी. चाय का कप राणाजी ने अभी तक मुंह से भी न लगाया था. आवाज को सुनते ही उठ खड़े हुए और बाहर निकल गये. बाहर द्वार पर पड़ोस के गाँव के मुखिया का आदमी खड़ा था. राणाजी को देखते ही उसने दुआ सलाम की और बोला, "राणाजी आपको मुखिया जी ने आपके इसी गाँव की बैठक पर बुलाया है. कुछ जरूरी काम है तो आप इसी वक्त चलिए."
राणाजी के दिमाग में कई सवाल कौंध गये लेकिन उन्होंने उस आदमी से कहा, "अच्छा तुम रुको मैं अभी आता हूँ.” इतना कह राणाजी फिर से अपने कमरे में गये. माला वहां अभी भी खड़ी थी. राणाजी ने अपना सफेद रंग का चमचमाता कुरता पहना. गले में गमछा डाला और माला से बोले, "अच्छा माला में थोड़ी देर के लिए कहीं जा रहा हूँ, चाय भी लौट कर ही पीऊंगा. इतना कह राणाजी कमरे से बाहर निकल द्वार पर आये और उस आदमी के साथ चले गये.
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