RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
बल्ली मुस्कुराते हुए बोला, “अब इतना भी मुझसे प्यार न कर मेरी जान, नही तो मैं पागल हो जाऊंगा. मैंने मन्नत मांगी थी इसलिए में वाहन में नही बैठ सकता. मुझे घर तक पैदल ही जाना होगा. ऐसा कर तू बैठ जा और गाँव से पहले पड़ने वाले मेन चौराहे पर उतर जाना. चल तू केवल बैठ जा. मैं कंडक्टर को सब समझा दूंगा. वो तुझे ठीक जगह पर उतार देगा.”
काली ने न चाहते हुए हाँ में सर हिला दिया. मन में सोचती थी कि अगर उसका वश चलता तो कभी इस तरह बल्ली से अलग हो न जाती..
बल्ली ने रोड पर आ रही एक जीप रुकवा ली. इस जीप में सिर्फ कावड़ियों का ही जमावड़ा था. बल्ली ने कंडेक्टर से कहा कि वो इस औरत यानि काली को सज्जनपुर के चौराहे पर उतार दे. कंडेकटर ने हां कह दिया. काली की आँखें दुखी हिरनी जैसी हो गयी. उसने बल्ली को बड़ी हसरत से देखा. बल्ली के दिल में भी हूक सी उठ गयी. काली की आँखें नम हो गयी जिन्हें बल्ली ने देख लिया था. बल्ली के कंधे पर भोलेनाथ को चढाये जाने के लिए गंगाजल वाली कावड रखी थी और दिल में काली बसी थी. जीप आगे को बढ़ चली. काली ने चलती बार बल्ली को दिल भर के देखा और बल्ली ने भी दिल भर के अपनी काली को देखा. दोनों थोड़ी देर और देखते रहते तो हिल्की भर भर के रो पड़ते. जीप बल्ली से दूर निकली चली गयी.
बल्ली फिर तेज कदमो से चल पड़ा. मानो वो जीप से पहले अपने गाँव के चौराहे पर पहुंच जाएगा और वहां पहुंच अपनी काली की अगवानी करेगा. दिल में अपने से दूर जा रही काली को फिर से मिलने की घोर आशा थी. बल्ली को रोजाना बीस किलोमीटर चलने की आदत थी. वो तो वैसे ही एक दिन में अस्सी किलोमीटर चल सकता था. रोज़ लोगों से मांगता था लेकिन आज भगवान से मांग रहा था.
कुछ ही घंटो बाद बल्ली सज्जनपुरकेचौराहे परजा पहुंचा. मन में काली से मिलने की अपार खुशी थी. आँखों ने गिरगिट की तरह इधर उधर अपनी काली की काली आँखों को देखना शुरू कर दिया. यहाँ सब बल्ली के गाँव और आसपास के गाँव के लोग थे लेकिन बल्ली को उनसे कोई सरोकार न था.
वो भाग भाग कर सिर्फ अपनी काली को ढूंढ रहा था. बल्ली के गाँव के लोगों ने उससे कावड ले ली. जिससे वो थोडा आराम कर सके लेकिन उसे आराम कहाँ था? दिल तो धडाधड धडक रहा था. डर भी लगता था कि कभी बाहर न जाने वाली काली किस तरह यहाँ तक पहुंचेगी. वैसे कंडेक्टर ज्यादातर लोगों को उसके सही ठिकाने पर पहुंचा
लेकिन काली अभी तक क्यों नही पहुंची थी?
बल्ली ने बहुत से लोगों से काली के बारे में पूंछा लेकिन ज्यादातर लोगों ने मना कर दिया. कुछ मसखरे लोग कहते थे कि भौजी के विना बल्ली की ये हालत हुई जा रही है. ऐसा लगता है कि भौजी बल्ली को छोड़कर किसी और के साथ भाग गयी हो. बल्ली को ये मजाक कतई पसंद नही आ रहा था.
उसे सिर्फ हाँ या ना में जबाब सुनना था. हँसी तो चेहरे पर आ ही नही रही थी. होंठों पर सूख कर पपड़ी पड़ गयी थी. अस्सी किलोमीटर चलने के बाद इतनी परेशानी सहना किसी के लिए भी इतना आसन नही होता है. लेकिन बल्ली को सिर्फ काली चाहिए थी जो इस वक्त उसे कही नही मिल रही थी.
बल्ली ने रोड पर जा इधर उधर भी देखा लेकिन न तो कोई जीप आ रही थी और न ही काली का कोई अता पता ही था. बल्ली की आँखों में आंसू आने शुरू हो गये. लोगों ने उसे बहुत समझाया. कहा कि हो सकता है काली जीप में बैठी चली गयी हो. हो सकता है कंडेक्टर को उसे यहाँ उतरने का ध्यान ही न रहा हो. अगर ऐसा हुआ है तो कल तक वो लोग काली को यहाँ छोड़ जायेंगा. तू घर चल भोलेनाथ को गंगाजल चढ़ा सब ठीक हो जायेगा.
लोगों ने लाख समझाया लेकिन बल्ली एक भी बात को मानने के लिए तैयार न था. रात से सुबह होने को आ रही थी लेकिन बल्ली सज्जनपुर के चौराहे से टस से मस नही हुआ. गाँव के लोग बल्ली की कावड लेकर चले गये. बल्ली सज्जनपुर के चौराहे पर ही बैठा रह गया.
पिछली वाली पत्नी होती तो बल्ली इतना परेशान न होता लेकिन इस वाली बीबी से उसे सच्चा इश्क हो गया था.
वो बिहारिन बल्ली की जिंदजान बन गयी थी. बल्ली सज्जनपुर के चौराहे पर पड़ा पड़ा पछाड़े खाता था. रोंना तो उसका बंद ही नही होता था. ___ गाँव के लोग बड़ी मुश्किल से बल्ली को चौराहे से पकड़ गाँव लेकर आये लेकिन बल्ली की हालत पागलों जैसी हो गयी थी. वो रोते हुए सिर्फ काली का नाम ही लेता था. गाँव के लोगों ने पुलिस में भी इस बात की खबर कर दी. बल्ली तो फिर से उस रास्ते पर पैदल भागकर जाना चाहता था.
उसे लगता था कि काली जरुर उस रास्ते पर ही कहीं खड़ी होगी लेकिन लोगों ने जैसे तैसे बल्ली को रोका. बोलते थे चल एक गयी तो क्या एक और ले आना. लेकिन बल्ली को तो सिर्फ काली ही चाहिए थी. दूसरी कोई नही. चाहे वो मुफ्त में ही क्यों न मिल रही हो?
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