RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
भाग-१
राणाजी कमरे में लेटे थे लेकिन दिमाग में कुछ ऐसा विचार आया कि झट से उठ कर बैठ गये. खड़े कर कमरे से बाहर आये और माला को आवाज दी. माला बगल के कमरे में लेटी हुई मानिक के दोपहर में आने के बारे में सोच रही थी. राणाजी की आवाज सुन तुरंत उठ बाहर आ गयी. राणाजी बाहर खड़े दिखाई दे गये. वो माला को देखते ही बोले, “माला तुमसे कुछ बात करनी है. मेरे साथ आओ."
इतना कह राणाजी अपने कमरे में घुस गये. माला भी उनके साथ साथ कमरे में चली गयी. राणाजी अंदर पहुंच पलंग पर बैठ गये और माला को अपने सामने पलंग पर बैठने के लिए इशारा कर दिया. माला भी विना हीलहुज्जत के राणाजी के सामने पलंग पर बैठ गयी.
राणाजी को बात कहने में बहुत सकुच हो रही थी जिसे माला भी महसूस कर रही थी. राणाजी बोले, “माला मैं तुमसे बहुत जरूरी बात कहने जा रहा हूँ. बहुत ध्यान और शांति से सुनना. थोड़ी देर पहले जो आदमी मुझे बुलाने आया था वो मुझे पंचायत के लिए बुलाकर ले गया था. पंचायत में हमारे बारे मैं ही बात हुई थी. उन लोगों ने फैसला दिया है कि मैं तुम्हें अपने घर से बाहर निकाल दूं. नही तो पंचायत वाले मुझे भी इस गाँव से बाहर कर देंगे लेकिन मुझे किसी का ज्यादा डर नही है. बस मैं तुम्हारे बारे में सोच रहा हूँ. मैंने तुम्हारे लिए लिए कुछ सोचा है."
इतना कह राणाजी रुक गये. अपनी सांसे थामी और फिर बोल पड़े, “अच्छाये मानिक से कैसे बात हो पाएगी. क्या आज मानिक आयेगा तुम्हारे पास?"
माला का तो गला ही सूख गया. उसे लगा जैसे वो सपना देख रही है. सोचती थी राणाजी को मानिक से क्या काम? बोली, "ये क्या कह रहे हैं आप? उससे आपको क्या कहना है?"
राणाजी गंभीरता से बोले, “पहले तुम मुझे बताओ तो सही? आज मानिक आएगा या नही?"
माला ने हैरत में हो सर हाँ में हिलाया और बोली, “दोपहर को आएगा.”
राणाजी ने घड़ी की तरफ देखा और बोले, "लेकिन दोपहर तो हो चुकी है.”
माला ने एक झटके से कहा, "दोपहर हो गयी. फिर तो..." इतना कह माला झट से बाहर निकली चली गयी. राणाजी उसे देखते थे रह गये,
माला ने बाहर निकल कर देखा, मानिक सडक के किनारे खड़े पेड़ों की टेक लिए खड़ा था. शायद उसे इतनी देर से माला का ही इन्तजार था. माला उन्हीं पांव लौट कर राणाजी के पास कमरे में पहुंची और हडबडा कर बोली, "वो..मानिक...बाहर है."
राणाजी ने विना कुछ सोझे समझे कह दिया, “उसे अंदर बुला लो फटाफट."
माला को लगा जैसे राणाजी ने ये बात बोली ही नही है.
उसने फिर से पूंछा, “क्या कह रहे थे आप?"
राणाजी माला का डर बहुत अच्छी तरह से जानते थे.
वेधीरे धीरे शब्दों को बोलते हुए बोले, “तुम जल्दी से मानिक को अंदर बुला लाओ.”
माला का मन काँप रहा था लेकिन फिर भी बाहर गयी और मानिक की तरफ देख अपने पास आने का इशारा कर दिया. ____
मानिक भी तेज कदमों से उसकी तरफ बढ़ चला. मानिक के अपने पास आते ही वो उससे बोली, “तुम्हें 'वो बुला रहे हैं. कुछ बात करनी है."
मानिक के पैर वहीं के वहीं जम गये. बोला, “अरे पागल हो गयी हो. मरवाओगी क्या मुझे?"
माला ने अधीरता से उसे समझाया, “ऐसा कुछ भी नही है. तुम चलो तो सही.”
आज मानिक को माला पर भरोसा नही हो रहा था. उसे लग रहा था कि ये राणाजी की कोई चाल है. अभी मानिक कुछ कहता उससे पहले ही राणाजी बाहर निकल आये.
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