RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
माला तो बहुत देर से बहुत कुछ कहना चाहती थी. सवालों पर सवालों ने उसके दिमाग पर सवालिया निशान लगा दिया था. बोली, “आप ये सब सोच समझ कर कर रहे हैं? मुझे तो आपके इस फैसले से बहुत डर सा लग रहा है. मैं यहाँ से जाना नहीं चाहती."
राणाजी ने माला की बात को बहुत शांति से सुना और बोले, "ठीक है मत जाओ लेकिन आज ये वादा कर दो कि आज के वाद सारी जिन्दगी तुम मेरे अलावा किसी और के बारे में सोचोगी भी नही. मानिक के बारे में भी. बताओ?"
माला सोच में पड़ गयी. मानिक को तो वो मर कर भी नही भुला सकती थी. चुप होकर बस राणाजी को देखती रह गयी. शर्त बहुत कठिन थी और दिल बड़ा नाजुक, न तो। माला हाँ कह सकती थी और न ही ना. लेकिन राणाजी अब भी अपने सवाल का जबाब पाने के लिए माला की तरफ देख रहे थे और माला. माला तो मौन थी. मानो उसके पास कोई जबाब ही न हो लेकिन राणाजी ने दुनिया देखी थी. उन्हें अपने सवाल का जबाब मिल गया था. माला मानिक के साथ जाना चाहती थी. राणाजी कमरे से निकल बाहर चले गये और माला उन्हें देखती रह गयी.*
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