RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
भाग -10
सुबह के नौ दस बज रहे थे. संतराम मजदूरी करने सुबह आठ बजे ही चला गया था और जाते समय सुन्दरी से उसकी जमकर लड़ाई हुई थी. सुन्दरी उसे कहती थी कि सुबह एक पाव(ढाई सौ ग्राम) दूध ले लिया करे. जिससे घर में एकाध बार चाय बन जाये लेकिन संतराम एक भी पाई खर्च करना नही चाहता था. सुन्दरी अन्य पड़ोसियों की तरह सुबह चाय पीना चाहती थी जो संतराम को कतई गंवारा नही था. सुन्दरी इस लड़ाई के बाद रूठ कर कमरे में बैठ गयी और संतराम अपने काम पर चला गया.
लेकिन उसके जाने के बाद जाने के बाद सुन्दरी को अपने अँधेरे कमरे में भूत दिखाई देने लगे. तरह तरह की आवाजें आने लगी. वो डरकर कमरे से बाहर निकल आई. पहले तो घर में जोर जोर से खूब चिल्लाई. रोई लेकिन किसी ने उसकी बातों पर गौर नही किया.
हां एकाध गाँव का मसखरा उसके घर के बाहर जमीन पर अपने पैर पटपटा कर जरुर चला गया. सुन्दरी ने उसे खूब गलियां सुनाईं, क्योंकि वो इन बातों से बहुत चिढ जाती थी लेकिन लोगों को इसमें बहुत मजा आता था. ऊपर से आज सुन्दरी वैसे ही वावली हो रही थी. वो अपने घर से निकल सीधी कौशल्यादेवी के घर की तरफ चल दी. अभी उनके दरवाजे पर ही पहुंची थी कि उनका लड़का छोटू लडकों के साथ बैठा दिखाई दे गया. सुन्दरी ने छोटू से सारी बात कह डाली. वैसे छोटू समझदार सा लगता था लेकिन था तो छोटी उम्र का लड़का ही. दोस्तों संग सुन्दरी के साथ उसके घर चल दिया. बच्चों में भूत को लेकर डर भी था और जिज्ञासा भी. बच्चों ने भूत का नाम तो बहुत सुना था लेकिन कभी उससे भेंटा न हुआ था.
छोटू बच्चो की मंडली ले सुन्दरी के घर पहुंच गया. छोटू सुन्दरी के घर को देख बोला, “चाची किधर है भूत?" सुन्दरी ने अंदर कमरे की तरफ इशारा कर दिया. छोटू ने वही पड़ा हुआ एक डंडा उठाया और डरते हुए कमरे की तरफ बढ़ गया. एकाध बहादुर लड़का भी छोटू के पीछे पीछे हो लिया. कमरे में घनाकार अँधेरा था. छोटू ने सुन्दरी से कह कर दीया जलवाया और साथ ही एक टार्च भी ले ली. सब तरह से देखने के बाद भी कमरे में भूत नाम की कोई चीज न मिली.
छोटू ने सुन्दरी को समझाते हुए कहा, “चाची यहाँ कोई भूत भूत नही है. तुम आराम से रहो." लेकिन सुन्दरी मानने को तैयार न थी. अब वो कमरे की जगह चूल्हे और उसकी चिमनी में भूत बताने लगी. ये चिमनी संतराम ने बहुत मेहनत से बनाई थी. गाँव के बाहर बने तालाब से चिकनी मिटटी लाया था और कई दिनों की छुट्टी कर ये चूल्हा और चिमनी बनाई थी. जबकि संतराम बीमार होने पर भी मजदूरी पर जाने से छुट्टी नहीं करता था.
बच्चों ने छोटू को थोडा फुसलाया कि वो सुन्दरी से उसका चूल्हा और चिमनी तुड़वा दे. छोटू भी बच्चों के रंग में रंग गया. उसने सुन्दरी से कहा, "चाची इसमें सच में भूत है तुम ये डंडा लो और एव चिमनी और चूल्हा तोड़ डालो."
सुन्दरी ने छोटू के हाथ से डंडा लिया और भूत पर गुस्सा निकालने लिए चूल्हे और चिमनी में डंडा बजाना शुरू कर दिया. थोड़ी ही देर में चूल्हा और चिमनी कुटी हुई मिटटी की तरह हो गये लेकिन सुन्दरी फिर भी गुस्से में उसमे डंडा बजाती रही.
जब डंडा बजाना बंद हुई तो उसे घर की अन्य चीजों में भी भूत नजर आने लगा. फिर विना किसी के कहे उसने वो चीज भी तोडनी शुरू कर दी और कुछ ही देर में घर की हालत उल्टी सीधी कर डाली. बच्चे खूब खुश हो हो कर नाचे और सुन्दरी को घर की अन्य चीजों में भूत होना बताते रहे. सुन्दरी भी पागलों की तरह घर की चीजों को तोडती रही.
सब कुछ शांत होने के बाद सुन्दरी आराम से बैठ गयी. शाम को संतराम थक हार कर मजदूरी से घर लौटा. वो आकर बैठा ही था कि उसने घर की हालत देखी तो सन्न रह गया. थके बदन होने के कारण दिमाग भी खराब था. साथ ही मेहनत से बनाई हुई चिमनी और चूल्हा तो पूरी तरह मिटटी के ढेर में तब्दील हो चुका था. उसे देख संतराम गुस्से से पागल हो उठा. उसने सुन्दरी पर भडकते हुए पूंछा, "क्यों री सुंदरिया, ये चूल्हा और चिमनी किसने तोड़ी और ये घर का ये सब हाल किसने किया?"
सुन्दरी फूले हुए मुंह से बोली, “इसमें भूत था इसलिए मैने ही तोड़ दिया.” संतराम का दिमाग सनक गया. सुबह वो सुन्दरी से लड कर गया था. उसकी आग अभी ठंडी भी नही हुई थी कि ये नया ववाल और आ खड़ा हुआ. संतराम गुस्से से फुफकारता हुआ उठा और वही डंडा उठा लिया जिससे सुन्दरी ने सब तोड़ फोड़ दिया था.
संतराम डंडा ले सुन्दरी को पीटने फैल पड़ा. उसने सुन्दरी को बुरी तरह पीटना शुरू कर दिया. डंडा बहुत तेज लग रहा था. सुन्दरी कीचीखें आधेगाँव को सुनाई देने लगी. थोड़ी ही देर में आसपास के घरों से औरतें सुन्दरी की चीख सुन संतराम के घर जा पहुंची और बड़ी मुश्किल से सुन्दरी को संतराम से छुड़ाया.
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