RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
माला तांगे में मानिक के साथ बैठी जा रही थी. मानिक ने उसका हाथ अपने हाथों में ले लिया था लेकिन माला को ये सब कतई आनंदित नही करता था. उसकी सोच तो उस समय की सूई पर जा अटकी थी जब वो ब्याह कर राणाजी के घर आई थी. सावित्रीदेवी ने कितने सम्मान से उसे घर में घुसाया था.
राणाजी भी कितना ख्याल रखते थे उसका? जब वो गर्भवती थी तब सावित्रीदेवी ने कितनी खातिर की थी उसकी? राणाजी तो मन चाही चीज देने की बात कहते थे. पूरा घर वावला हो गया था माला के लिए. जबकि इस तरह से खरीद कर लायी गयी लडकियों को घरों में रखैल बनाकर रखा जाता था. नौकरानियों की तरह काम करवाया जाता था. बच्चे पैदा करने की मशीन समझा जाता था. दिन भर ताने और गालियाँ मिलती थीं. उनको लोग अनपढ, गंवार और नीच बोलते थे लेकिन जब से माला राणाजी के घर आई थी तब से आज तक किसी ने उसे डांटा तक न था.
किसी ने तेज आवाज में दो अपशब्द तक न कहे थे उससे. बल्कि उसे घर की मालकिन की तरह सम्मान मिलता था. राणाजी और सावित्री देवी के कहने पर महरी उससे पूंछ कर मन का खाना बनाती थी. सावित्री देवी के गुजर जाने पर तो राणाजी ने उसको पूरा घर सौप दिया था. भला इतना भी कोई करता है किसी के लिए? जिस दिन राणाजी को उसका और मानिक का चक्कर होना पता पड़ा तो कुछ भी न कह सके. बल्कि दोनों को मिलाने की सोच ली. अन्य कोई होता तो पता नही इस की जगह क्या सिला देता. आज जब वो घर से मानिक के साथ चलने लगी तो नई साड़ियाँ साथ रख दी. खानदानी कीमती गहनों का पिटारा रख दिया.
साथ में रूपये भी दिए. माला को राणाजी के इस व्यवहार ने बिदुषी बना दिया था. आज जो कुछ भी वो सोच रही थी वो उसके आज से पहले की सोच का हिस्सा नही
था. आज तो पता नही उसका दिमाग कितना विकसित हो चुका था. माला हरएक क्षण बिखरती जा रही थी. उसे लगता था कि जल्द ही वो राणाजी के लिए सोचते सोचते जलकर राख हो जाएगी.
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