RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
भाग -12
सुबह हो गयी थी. संतराम सुबह जल्दी से उठ तैयार हो गया. सुन्दरी तो रात में ही अपने गाँव जाने तैयारी कर सोयी थी और सुबह उठते ही फिर से तैयारियां करने लगी. लेकिन जब संतराम के घर में कुछ था ही नही तो सुन्दरी तैयारी किस बात की कर रही थी?
सुन्दरी के पास आज से दस साल पहले तक के कुछ सामान रखे थे. एकाध साड़ी भी तभी की रखी थी. लोगो द्वारा जो भी सामान या कपड़ा मिलता था सुन्दरी उसे सहेज कर रख लेती थी. उसने संतराम के साथ बिताये इतने सालों में सिर्फ एक या दो साड़ियों का ही उपयोग किया था. बाकी जो साड़ियाँ थी सब ज्यों के त्यों रखी रही.
कुछ माचिस की डब्बी भी उसके पास सम्हाल कर रखी हुईं थीं जिन्हें वो भूत के डर से अपने पास हमेशा रखे रहती थी. आज भी माचिस अपने साथ रख ले जा रही थी. दीवाली के दीये से बनाया काजल भी उसने अपने साथ रख लिया था. जिसे वो अपने साथ अपने छोटे भाई के लिए रख ले जाना चाहती थी.
पूरा गाँव घरों से बाहर निकल गली. नुक्कड़ और छज्जों पर आ खडा हुआ. गाँव का हर शख्स सुन्दरी की विदाई होते देखना चाहता था. गाँव की महिलाएं तो खासी उत्साहित थीं. लेकिन पुरुषों और बच्चों में भी कम उत्साह नही था.
सुन्दरी से सबसे ज्यादा मसखरी पुरुष और बच्चे ही करते थे. थोडी देर में ही सुन्दरी एक ठीकठाक सी साडी पहने संतराम के साथ घर से निकल आई.ठीक ठाक सी इसलिए क्योकि आज से पहले कभी किसी ने उसे इतनी साफ़ साड़ी पहने हुए नहीं देखा था. संतराम ने घर से ताला लगाया और सुन्दरी के पीछे पीछे चलने लगा.
गाँव के हर आदमी के दिल में हूँक उठ रही थी. सुन्दरी को गाँव से हमेशा के लिए जाते देख सब लोगों की आँखें नम थीं. परन्तु सुन्दरी आज बहुत खुश थी. चेहरा और दिन से अलग सा तेज लिये हुए था. सुन्दरी ने गाँव के इतने लोगों को अपनी विदाई करते देखा तो फूली न समाई. वेशक लोग उसे पागल समझते थे लेकिन पागल आदमी भी प्यार से अच्छा हो सकता है. सुन्दरी ने गाँव की हर औरत के बारी बारी से पैर छुए. सबसे आशीर्वाद ले अपने रास्ते को चल दी.
सारे गाँव के लोग भावुक हो आंसू बहा उठे लेकिन सुन्दरी रत्ती भर भी दुखी नही हुई. उसका मन तो आज सालों बाद अपने घर जाने की खुशी में झूम रहा था. वो अपनी माँ और भाई बहिनों के पास जा रही थी. अपने गाँव अपने घर जा रही थी. फिर दुखी क्यों होती? दुखी हो उसके दुश्मन.
आज तो गाँव के मसखरे लोग भी रोने की कगार पर थे. उन्हें नही मालूम था कि आज से वे किस के दरवाजे पर अपने पैर पटपटा कर मजा लेंगे? कौन उनके ऊपर चिमटा, फूंकनी, बेलन और करछली फेंक कर मरेगा? कौन उन्हें माँ बहिन की गालियाँ सुनाएगा? छोटू भी सुन्दरी को जाते हुए देख अपने मन में ग्लानी अनुभव कर रहा था. सोचता था न मैं सुन्दरी का चूल्हा और चिमनी फुड़वाता और न सुन्दरी यहाँ से जाती.
लेकिन सुन्दरी का भी तो मन ये बात भूल गया था कि उसकी माँ ने उसे दोबारा बापिस न आने के लिए कहा था. भाई ने भी चिट्ठी लिख उसे वहां आने से इनकार किया था लेकिन सुन्दरी ने इन सब बातों को दरकिनार कर दिया. वो ये नही जानना चाहती थी कि वहां जाकर क्या खाएगी? कैसे उस अथाह गरीबी में जियेगी?
माँ ने उसे घर में ज्यादा दिन न रखा तो? तो क्या होगा? कही और उसकी माँ ने फिर किसी से उसकी शादी कर दी तो? फिर किसी संतराम जैसे आदमी के हाथ पैसे लेकर बेच दिया गया तो? तब क्या होगा? वो तो फिर किसी के घर जा इसी हालत में हो जाएगी. सुन्दरी संतराम के साथ गाँव के लोगों की आँखों से ओझल हो चुकी थी. सब लोग नम आँखों से अपने अपने घरों में घुस गये. वैसे भी लोग किसी बात को ज्यादा देर तक ध्यान नही रखते.
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