RE: Thriller Sex Kahani - आख़िरी सबूत
"ओके, हम ऐसा करेंगे," उसने सिगरेट के टोटे को बालकनी के फर्श पर रखे पानी के गिलास में डालते हुए कहा। "अगर ये काम कर गया, तो काम हो जाएगा... मुंस्टर!"
"अरर, हां," मुंस्टर ने कहा।
"तुम कल की छुट्टी ले लो और सिन और बच्चों के साथ अपना दिन गुजारो।"
"क्या?" मुंस्टर ने कहा। मगर क्यों...?"
"ये आदेश है," वान वीटरेन ने कहा। "मगर ये देख लेना कि शाम को तुम पहुंच में रहो। मेरे ख्याल से तब मुझे तुमसे बात करने की जरूरत होगी।"
"आप क्या करने वाले हैं?"
"मैं एक छोटा सा सफर करने जा रहा हूं," वान वीटरेन ने कहा।
"कहां के लिए?"
"देखेंगे।"
लो फिर शुरू हो गए, मुंस्टर ने सोचा। उसने अपने दांत पीसे और विनम्रता के उसूल को परे धकेल दिया। ये यहां बैठे कमीनापन कर रहे हैं और फिर से रहस्यमय बन रहे हैं, मानो वो किसी किताब या फिल्म में जासूस हों! ये वाकई घटियापन है। मुझे समझ नहीं आता कि मुझसे क्यों ये उम्मीद की जाती है कि मैं इस साले--
"मेरी अपनी वजहें हैं," वान वीटरेन ने कहा, मानो उसने मुंस्टर के मन की बात पढ़ ली हो। "बात बस ये है कि मेरे मन में एक विचार है, और ये ऐसा नहीं है जिसे छत से चिल्ला-चिल्लाकर कहा जाए। वास्तव में, अगर मैं गलत हूं तो अच्छा यही होगा कि कोई इसके बारे में जाने भी नहीं।"
मुंस्टर खड़ा हो गया।
"ओके," उसने कहा। "कल परिवार के साथ दिन भर की छुट्टी। ये पक्का रखूगा कि शाम को मैं घर पर रहूं--और कुछ?"
"मेरे ख्याल से तो नहीं," वान वीटरेन ने कहा। "हां, शायद तुम मुझे शुभकामनाएं दे सकते हो। मुझे शायद उनकी जरूरत पड़े।"
"शिकार के लिए शुभकामनाएं," मुंस्टर ने कहा और वान वीटरेन को उसकी किस्मत के सहारे छोड़ गया।
कुछ देर वो शहर को तकते हुए आरामकुर्सी में बैठा रहा। उसने एक और सिगरेट पी और चाहा कि अपने मुंह के अरुचिकर स्वाद को धो डालने के लिए उसके पास कुछ होता।
एक बार ये केस खत्म हो जाए. उसने सोचा, फिर मैं इसकी याद भी नहीं दिलाया जाना चाहूंगा। कभी नहीं।
फिर वो मेज पर बैठ गया और उसने दो फोन किए।
उसने दो सवाल किए और उसे कमोबेश वो जवाब मिल गए थे जो वो तलाश रहा था।
"मैं दोपहर तक वहां पहुंच जाऊंगा," उसने कहा। "नहीं, मैं बता नहीं सकता ये किस बारे में है। अगर मैं गलत निकला तो बहुत बवाल हो जाएगा।"
फिर वो नहाया और सोने चला गया। बस ग्यारह ही बजे थे, लेकिन अगले दिन जितनी जल्दी वो निकल पड़ेगा, उतना ही अच्छा होगा।
कल मैं जान जाऊंगा, उसने सोचा। मैं घर जा सकूंगा।
लेकिन इससे पहले कि वो सो पाता, बियाटे मोएर्क के ख्याल उसके दिमाग में उमड़ते चले आए, और भोर होने के करीब जाकर कहीं वो सो पाया।
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"बुराई," उसने कहना शुरू किया और अब उसकी आवाज गहरा गई थी, सघन हवा में मुश्किल से ही सुनी जा सकती थी, "ऐसी अवधारणा है जिससे हम बच नहीं सकते, एकमात्र हकीकत । किसी नौजवान के लिए ये समझना मुश्किल हो सकता है, लेकिन हममें से उन लोगों के लिए जो इसे समझ चुके हैं. ये लगातार साफ होता जाता है। हम जिस बात के लिए निश्चित हो सकते हैं, जिस पर पूरी तरह से भरोसा कर सकते हैं, वो बुराई है। ये हमें कभी निराश नहीं करती। अच्छा... अच्छाई तो बस रंगमंच का सैट है, एक पृष्ठभूमि जिसके सामने शैतान नाटक खेलते हैं। और कुछ भी नहीं... कुछ नहीं।"
वो खांसा। उसने एक और सिगरेट जलाई, एक चमकता बिंदु अंधेरे में थराथराने लगा।
"जब अंततः हम अंतर्दृष्टि पाते हैं तो ये सब कुछ के बावजूद अपने साथ एक खास स्तर का सुकून लाती है। मुश्किल काम तो बस खुद को सभी पुरानी उम्मीदों, सभी भ्रमों और उन हवाई किलों से निजात दिलाना है जिन्हें इंसान शुरू में बना लेता है। हमारे मामले में उसका नाम ब्रिगिट था, और जब वो दस साल की थी तो उसने वादा किया था कि कभी मुझे दुख नहीं पहुंचाएगी। ये वही समय था जब वो रेत में भागती हुई आई थी; वो मई के अंत का बहुत तेज हवा वाला दिन था। जिम्सवेज पर। वो मेरी बांहों में समा गई थी और इतना जोर से मेरे गले से लगी थी कि मुझे याद है बाद में मेरी गर्दन के पिछले हिस्से में दर्द हो गया था। अपनी जिंदगी
भर हम एक-दूसरे को प्यार करेंगे और एक-दूसरे के साथ कभी भी कोई बेवकूफी नहीं करेंगे--उसके यही शब्द थे। कोई बेवकूफी.
.. एक-दूसरे के साथ कभी भी कोई बेवकूफी नहीं करेंगे... दस साल की बच्ची, सुनहरी चोटियों वाली। वो हमारी इकलौती बच्ची थी, और कुछ लोग कहते थे कि उन्होंने इतना खुशमिजाज बच्चा कभी नहीं देखा। जैसे वो हंसती थी वैसे कोई नहीं हंसता था--नींद में हंसते हुए वो तो कभी-कभी खुद तक को जगा देती थी--उम्मीदें पालने के लिए हमें कौन इल्जाम दे सकता है?"
वो फिर खखारा।
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