RE: Thriller Sex Kahani - आख़िरी सबूत
वो अपनी मूंछे उमेठता अपनी डेस्क के पीछे बैठा था। स्लिम, काले सूट में, बाल पीछे को काढ़े हुए वो और कुछ की बजाय अंत्येष्टि निर्देशक का ध्यान ज्यादा दिला रहा था। और वान वीटरेन को वो बिल्कुल ऐसा ही याद था; पंद्रह साल में उसकी उम्र जैसे एक या दो महीने ही बढ़ी थी। ऐसा कोई चिह्न नजर नहीं आ रहा था कि हफ्ते भर पहले ही उसका ऑपरेशन हुआ हो।
एक हल्की, कुछ तीखी सी मुस्कुराहट से उसने अपने मेहमान का स्वागत किया और कुर्सी पर बैठने का संकेत किया जो उसकी एकदम साफ-सुथरी मेज के ठीक सामने रखी हुई थी।
"तो ये सारा चक्कर साला है क्या?"
वान वीटरेन को याद आया कि ये शख्स गालियां उगले बगैर मुंह न खोल पाने के लिए मशहूर था। उसने अपनी हथेलियों का रुख छत की तरफ किया और शर्मिदा दिखने की कोशिश की।
"माफी चाहूंगा," उसने कहा। "मुझे उस सामग्री को एक नजर देखने दें जिसे देखने मैं आया हूं... ये बहुत नाजुक मामला है।"
"बिल्कुल है साला!" उसने डेस्क की एक दराज खोली और एक ब्राउन फोल्डर निकाला।
"ये लीजिए। शौक से देखिए साली को!"
वान वीटरेन ने फोल्डर लिया और पल भर को सोच में पड़ गया कि क्या उसे वहीं के वहीं पढ़ ले, आगंतुक की कुर्सी पर बैठे हुए ही, लेकिन जब उसने काले सूट वाले व्यक्ति को देखा तो समझ गया कि मामला निबट चुका है। खत्म! उसे ये भी याद आया कि उसका मेजबान कभी फालतू की तफ्सीलों-बातचीत और इसी तरह की चीजों--में नहीं पड़ता है। वो खड़ा हो गया, हाथ मिलाया और दफ्तर से निकल गया।
इस सारी मुलाकात में दो मिनट से भी कम लगे थे।
वो लोग जो ये दावा करते हैं कि मैं बदमिजाज हूं, उन्हें इस खुशमिजाज आदमी से मिलना चाहिए, वान वीटरेन ने तेजी से सीढ़ियां उतरते हुए सोचा।
उसने सड़क पार की और अपनी कार खोली, फिर पिछली सीट से ब्रीफकेस उठाया और फोल्डर उसमें रख दिया। उसने आसपास देखा। कुछ पचास गज दूर, सड़क के नुक्कड़ पर, एक कैफे का बोर्ड सा दिखाई दिया।
बिल्कुल सही, उसने सोचा, और उस तरफ चल दिया।
जब तक वेट्रेस चली नहीं गई, वो इंतजार करता रहा और फिर उसने मेज पर अपने सामने फोल्डर खोला। उसने कुछ पन्ने पलटे और सिर हिलाया। कुछ पन्ने पीछे से पलटे और फिर से सिर हिलाया।
एक सिगरेट सुलगाई और पहले पन्ने से पढ़ना शुरू किया।
उसे बहुत देर तक नहीं पढ़ना पड़ा। पांचवें पन्ने तक ही पुष्टि हो गई थी; शायद ये एकदम वैसा नहीं था जैसी कि उसे उम्मीद थी, लेकिन भाड़ में जाए साला, पुष्टि तो थी ही। उसने कागज वापस फोल्डर में रख दिए और उसे बंद कर दिया।
उफ, दिमाग घूम गया है, उसने सोचा।
लेकिन मकसद, बेशक, दूर-दूर तक साफ नहीं था। आखिर इस सबसे बाकी दोनों का क्या वास्ता था? आखिर...?
आह, ये भी आखिरकार साफ हो जाएगा, बेशक ।
उसने अपनी घड़ी देखी। एक बजा था।
बृहस्पतिवार, 30 सितंबर। पुलिस चीफ बॉजेन का दफ्तर में बस एक और दिन बचा था। और अचानक, केस हल होने जा रहा था।
जैसा उसे शुरू से ही संदेह था, ये कठिन रुटीन तफ्तीश का परिणाम तो कतई नहीं था। जैसा उसने सोचा था, हल कमोबेश अकस्मात ही उसके हाथ लगा था। ये थोड़ा अजीब सा तो लगा था, उसे मानना पड़ा था; लगभग अनुचित, मगर फिर, ये पहली बार तो नहीं था जब इस तरह का कुछ हुआ था। वो ये सब पहले भी देख चुका था, और बहुत पहले ही ये समझ चुका था कि अगर कोई व्यवसाय है जिसमें योग्यता को अपना उपयुक्त प्रतिफल कभी नहीं मिलता है तो वो पुलिस अफसर का व्यवसाय है।
इंसाफ उन पुलिसवालों के लिए एक विशेष वरीयता रखता है जो कमरतोड़ मेहनत करने की जगह मौज करते और सोचते हैं, जैसा राइनहार्ट ने एक बार कहा था।
लेकिन जो बात उसे सबसे ज़्यादा खटकी थी वो ये कि भविष्य में वो इस केस के बारे में कितनी अनिच्छा से सोचना चाहेगा। बेशक उसका अपना योगदान कतई गर्व करने लायक नहीं था। बल्कि इसका उलट ही था। कुछ ऐसा जिसके नीचे रेखा खींचना और तुरंत भूल जाना था ।
दूसरे शब्दों में, हमेशा की तरह कतई नहीं था।
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