RE: Thriller Sex Kahani - आख़िरी सबूत
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अंदर ही अंदर कुछ कुतर रहा था? या एक भयावह अकड़न? कहीं न पहुंचने वाली एक हरकत?
कुछ-कुछ वैसा। वो मोटे तौर पर ऐसा ही लगा था। जहां तक वो कुछ भी महसूस कर सकती थी।
वक़्त जिसका अस्तित्व अभी भी उसके अपने बदन की धुंधलाती लयों और जरूरतों के लिए था। इस जानलेवा अंधकार में दिन और रात अब बेमानी हो गए थे; समय खंडों में बंट गया थाः वो सोती और जागती, जगी रहती और सो जाती। ये बता पाना मुमकिन नहीं था कि क्या कितनी देर हुआ; बाहर हो सकता था दिन हो, या शायद रात हो... शायद वो आठ घंटे सो गई थी, या महज बीस मिनट ही हुए थे? भूख-प्यास महज किसी चीज के ऐसे धुंधले संकेत रह गए थे जिसकी उसे फिक्र नहीं थी, मगर फिर भी वो ब्रेड और फलों के उस बर्तन में से खा लेती थी जिसे वो जब-तब भरता रहता था। पानी की बोतल से पानी पी लेती थी।
हाथ-पांव बंधे होने से उसकी गतिशीलता बहुत ज़्यादा सीमित थी, और केवल कमरे में ही नहीं; कबंलों के अंदर भी वो सिकुड़ी सी, लगभग भ्रूणावस्था में लेटी रहती थी। बस वो तभी उठती थी जब उसे बाल्टी का इस्तेमाल करना होता था...रेंगते हुए उतरकर और टटोलते हुए बढ़कर। बाल्टी से उठती दुर्गंध ने पहले तो उसे परेशान किया, लेकिन जल्दी ही उसका ध्यान उससे हट गया था। मिट्टी की तेज गंध ही एकमात्र ऐसी चीज थी जिसकी ओर से वो लगातार सजग थी, वो चीज जो आंख खुलने के साथ ही उसे महसूस होती थी, जो हर समय उसकी चेतना में रहती थी... मिट्टी ।
बाधा तंबाकू की उस खुशगवार गंध से केवल तब पड़ती थी, जब वो कुर्सी पर बैठता और उसे अपनी कहानी सुनाता था।
वो जबरदस्त डर जो पहलेपहल उसे महसूस हुआ था, अब खो गया था। वो लुप्त हो गया था और उसकी जगह कुछ और ने ले ली थीः सुस्ती और उदासीनता के घोर अहसास ने; हताशा नहीं, शायद, मगर एक लगातार गहराता अहसास कि वो किसी तरह की जड़ वस्तु बन गई है, एक ऐसा अस्तित्व जो धीरे-धीरे निष्क्रिय हो रहा है, और एक उदासीन, सुन्न काया... एक काया जो लगातार सभी अंदरूनी दबावों, विचारों और यादों से बेपरवाह होती जा रही थी। ऐसा मालूम होता था कि सबको जज़्ब कर लेने वाला अंधेरा उसके ऊपर भी तारी होता जा रहा है, धीरे-धीरे और बेरहमी से उसकी त्वचा के भीतर धंसता... मगर फिर भी उसे अहसास था कि ये उसके बचने का इकलौता मौका हो सकता है, पागल न होने का इकलौता मौका हो सकता है। बस वहां कबंलों के अंदर लेटे रहना, अपने शरीर की गर्माहट को ज़्यादा से ज़्यादा बनाए रखना। सपनों और कल्पनाओं को, बिना उन पर ज़्यादा ध्यान दिए, उनकी मनमर्जी से आते-जाते रहने देना... जागे हुए होने पर भी, और सोए हुए होने पर भी।
और किसी चीज की उम्मीद न करना। इस बात की कल्पना करने या सोचने की कोशिश न करना कि अंतिम नतीजा क्या हो सकता है। बस वहां लेटे रहना। बस उसका इंतजार करना कि वो वापस आए और अपनी कहानी जारी रखे।
हेन्ज एगर्स और अर्न्स्ट सिमेल के बारे में।
"नहीं," उसने कहा, और वो उसे सिगरेट के अपने नए पैकेट के सैलोफेन को फाड़ते सुन सकती थी। "मैं नहीं जानता कि जब वो आरलाक वापस आई तो सब खत्म हो चुका था या नहीं। या कि अभी भी कोई मौका था। बेशक, अब इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, बाद में, अनुमान लगाने की कोई तुक नहीं है... हालात वैसे बन गए थे जैसे वो बने, और बस यही बात है।"
उसने सिगरेट सुलगाई, और लाइटर की लौ ने मोएर्क को लगभग अंधा कर दिया था।
"वो वापस आ गई थी, और हम नहीं जानते थे कि उम्मीद करें या संदेह करें। बेशक, हमने दोनों किया; आप निरंतर हताशा की हालत में जीना जारी नहीं रख सकते, तब तक नहीं जब तक आप उस अंतिम बोध को न पा लें; लेकिन शायद ऐसा अभी भी मुमकिन नहीं है, तब भी नहीं था। जो भी हो, उसने घर पर हमारे साथ रहने से मना कर दिया। हमने डनिंजेन में उसके लिए एक फ्लैट ले दिया। मार्च के शुरू में वो उसमें चली गई; वो बस एक कमरा और किचन था, लेकिन काफी बड़ा था। हल्का और साफ-सुथरा, पांचवी मंजिल पर जिसकी बालकनी से समुद्र दिखता था। वो अभी भी रोगियों की सूची में थी और बस पार्ट टाइम ही काम कर सकती थी। नशे से मुक्त और थैरेपी में शामिल, तो ये ठीक होना चाहिए था... दोपहर में वो हैंकर्स पर काम करती थी। बाद में हमें पता लगा कि वो इसे संभाल ही नहीं पाई, लेकिन उस समय हमें कुछ पता नहीं था। हमने दखलंदाजी नहीं की; हम ये प्रभाव नहीं छोड़ना चाहते थे कि हम उस पर नजर रख रहे हैं। ये उसकी शर्तों पर होना था, हमारी नहीं, साले किसी सर्वज्ञानी टाइप के समाजसेवक ने आग्रह किया था। तो हम बैकग्राउंड में रहे, राह से दूर रहे... सब बेकार। खैर, उस बसंत वो वहां रही, और हमारा ख़्याल था कि वो मैनेज कर रही है, मगर उसकी आमदनी, वो पैसा जो उसके पास उन चीजों के लिए था जिनकी हमारा ख़्याल था कि अब उसे जरूरत नहीं थी, वो अर्न्स्ट सिमेल जैसे लोगों से आया। अर्न्स्ट सिमेल..." वो ठहरा और सिगरेट का गहरा कश लिया। वो उस सुलगते बिंदु को इधर से उधर जाते देखती रही और अचानक उसके अंदर भी सिगरेट पीने की हुड़क उठी। अगर वो मांगती तो शायद वो उसे एक सिगरेट दे देता, लेकिन उसकी हिम्मत नहीं हुई।
"अप्रैल के आखिर में एक शाम, मैं किसी वजह से उससे मिलने चला गया। जबसे वो वहां गई थी मैं बमुश्किल ही कभी वहां गया होऊंगा। याद नहीं मैं क्यों गया था; वैसे कोई खास वजह नहीं रही होगी, और वहां पहुंचने के साथ ही वो मेरे दिमाग से गायब हो गई थी..."
एक और ठहराव, और सिगरेट फिर भड़की। वो कुछेक बार खांसा। उसने दीवार से सिर टिका लिया और इंतजार करने लगी। इंतजार कर रही थी और जानती थी।
"मैंने घंटी बजाई। बजाहिर वो खराब थी, तो मैंने हैंडल घुमाया... वो लॉक्ड नहीं था, मैं अंदर चला गया। हॉल में घुसा और चारों तरफ देखा। बेडरूम का दरवाजा अधखुला था. मैंने शोर सुना और झांकने से खुद को रोक नहीं पाया। मैं उसे अपना पूरा पैसा वसूलते देख सकता था."
"सिमेल?" वो फुसफुसाई।
"हां।"
और खामोशी। उसने अपना गला साफ किया और फिर से कश लिया। सिगरेट के टोटे को फर्श पर फेंका और उसकी राख के शोलों को पांव से कुचल दिया।
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