RE: Hindi Antarvasna - काला इश्क़
update 65
पहला दिन
हॉस्पिटल से लौटते-लौटते शाम के 4 बज गए थे, अनु ने आते ही चाय बनानी शुरू कर दी और मैं उनसे बात करने लगा| जब से अनु आई थी वो बीएस घर में खाना ही बना रही थी, मुझे बड़ा बुरा लग रहा था की मेरी वजह से उन्हें ये तकलीफ उठानी पड़ रही है| मैंने सिक्योरिटी गार्ड को फ़ोन कर के कहा की वो कोई काम करने वाली भेज दे, अनु ने जब ये सुना तो वो बोली; "क्या जर्रूरत है? मैं कर रही हूँ ना सारा काम?"
"खाना बनाने तक तो ठीक है पर ये बर्तन धोना, झाड़ू-पोछा और कपडे धोना मुझे पसंद नहीं, ये काम कोई और कर लेगा| आप बस tasty-tasty खाना बनाओ!" मैंने हँसते हुए कहा|
"अच्छा मेरे हाथ का खाना इतना पसंद है? ठीक है तो फिर आज से एक रोटी एक्स्ट्रा खानी होगी!" अनु की बात सुन कर मैं अपनी ही बात में फँस गया था| मैं मुस्कुरा दिया और अपने कमरे में जा कर लेट गया| लेटे-लेटे मैं सोच रहा था की मुझे घर भी जाना है ताकि वहाँ जा कर मैं विदेश जाने का कारन बता कर शादी से अपनी जान बचा सकूँ! पर इस हालत में जाना, मतलब वो लोग मुझे कहीं जाने नहीं देंगे| दिन कम बचे थे और मुझे जल्द से जल्द ठीक होना था| रात को खाने के बाद अनु ने मुझे दवाई दी और मैं थोड़ा वॉक करने के बाद अपने कमरे में सोने जाने लगा| "वहाँ कहाँ जा रहे हो?" अनु ने पुछा, मैंने इशारे से उन्हें कहा की मैं सोने जा रहा हूँ| "नहीं....रात में तबियत खराब हुई तो?" अनु ने चिंता जताते हुए कहा|
"कुछ नहीं होगा? अगर तबियत खराब हुई तो मैं आपको उठा दूँगा|"
"तुम्हें क्या प्रॉब्लम है मेरे साथ इस कमरे में सोने में?" अनु ने अपनी कमर पर दोनों हाथ रखते हुए पुछा|
"यार! अच्छा नहीं लगता आप और मैं एक ही रूम में, एक ही बेड पर!"
"ओ हेल्लो मिस्टर! I'm single समझे! अपनी ये chivalry है न अपने पास रखो!" अनु ने मेरी टाँग खींचते हुए कहा|
"तभी तो दिक्कत है? आप सिंगल, मैं सिंगल फिर .... you know ... शादी हुई होती तो बात अलग होती!" मैंने भी अनु की टाँग खींची!
"अच्छा? चलो अभी करते हैं शादी?" अनु ने मेरा हाथ पकड़ा और बाहर जाने के लिए तैयार हो गईं| हम दोनों ने इस बात पर खूब जोर से ठहाका लगाया! 5 मिनट तक non-stop हँसने के बाद अनु बोली; "चलो सो जाओ!" उन्होंने जबरदस्ती मुझे अपने कमरे में सोने के लिए कहा| मैं भी मान गया और जा कर एक तरफ करवट ले कर लेट गया और अनु दूसरी तरफ करवट ले कर लेट गईं| दवाई का असर था तो मैं कुछ देर के लिए बड़े इत्मीनान से सोया पर असर ज्यादा देर तक नहीं रहा और 2 बजे मेरी आँख खुल गई और उसके बाद करवटें बदलते-बदलते सुबह हुई|
दूसरा दिन
सुबह अनु ने उठते ही देखा की मैं आँखें खोले छत को देख रहा हूँ; "Good Morning! सोये नहीं रात भर?"
"दो बजे के बाद नींद नहीं आई, इसलिए जागता रहा|" मैंने उठ के बैठते हुए कहा| तभी अनु की नजर मेरे काँपते हुए हाथों पर पड़ी और उनकी चिंता झलकने लगी| मैं धीरे-धीरे उठा क्योंकि मुझे लग रहा था की कहीं चक्कर आ गया तो! फ्रेश हो कर मैं बालकनी में कुर्सी पर बैठ गया और अनु चाय बना कर ले आई| "अच्छा therapist के पास कब जाना है?" अनु ने पुछा| ये सुनते ही मेरी आंखें चौड़ी हो गईं, मैं जानता था की थेरेपिस्ट के पास जाने के बाद मुझे उसे सब बातें बतानी होंगी और ये सब बताना मेरे लिए आसान नहीं था| "प्लीज...मुझे थेरेपिस्ट के पास नहीं जाना!" मैंने मिन्नत करते हुए कहा| "पर क्यों?" अनु ने चिंता जताते हुए कहा|
"प्लीज...मैं नहीं जाऊँगा.... तुम जो कहोगी वो करूँगा पर वहाँ नहीं जाऊँगा|" मैं किसी भी हालत में ये सच किसी के सामने नहीं आने देना चाहता था क्योंकि ये सुन कर डॉक्टर और अनु दोनों ही मेरे बारे में गलत सोचते और मैं खुद को गलत साबित होने नहीं देना चाहता था| अब मुझमें इतनी ताक़त नहीं थी की मैं किसी को अपनी सफाई दूँ पर उनकी सोच मुझे जर्रूर चुभती!
"ठीक है...मैं एक बार डॉक्टर से बात करती हूँ!"
नाश्ता बनाने का समय हुआ तो अनु ने एक पतला सा परांठा बनाया, जैसे ही उन्होंने मुझे परोस कर दिया मैंने तुरंत उसके दो टुकड़े किये और आधा टुकड़ा उठा लिया| पर अनु को मुझे डराने का स्वर्णिम मौका मिल चूका था, उन्होंने आँखें तर्रेर कर कहा; "थेरेपिस्ट के जाना है?" ये सुनते ही मैं डरने का नाटक करते हुए ना में सर हिलाने लगा| "तो फिर ये पूरा खाओ!" मैंने डरे सहमे से बच्चे की तरह वो बचा हुआ टुकड़ा उठा लिया, मेरा बचपना देख उन्हें बहुत हँसी आई| उनके चेहरे की हँसी मेरे दिल को छू गई, ऐसा लगा जैसे बरसों बाद उन्हें हँसता हुआ देख रहा हूँ| नाश्ते के बाद गार्ड एक काम करने वाली को ले आया और अनु ने चौधरी बनते हुए उससे सारी बात की और उसे आज से ही काम पर रख लिया| उसने काम शुरू कर दिया था और मुझे अचानक से दीदी और मुन्ना की याद आ गई| मैं एक पल के लिए खमोश हो गया और मुन्ना को याद करने लगा| उस नन्हे से बच्चे ने मुझे दो दिन में ही बहुत सी खुशियाँ दे दी थीं, पता नहीं वोकहान होगा और किस हाल में होगा? अनु ने जब मुझे गुमसुम देखा तो वो मेरे बगल में बैठ गईं और मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए बोलीं; "क्या हुआ?" उनका इतना प्यार से बोलना था की मैंने उन्हें मुन्ना और दीदी के बारे में सब बता दिया| वो मेरा दुख समझ गईं और मुझे संत्वना देने लगी.... खेर दोपहर हुई और फिर वही उनका मुझे थेरेपिस्ट के नाम से डराना जारी रहा| शाम को उन्होंने बताया की डॉक्टर बोल रहा है की मुझे थेरेपिस्ट के पास जाना पड़ेगा| पर मेरे जिद्द करने पर वो कुछ सोचने लगीं और बोलीं की हफ्ते भर के लिए वो जो-जो कहें मुझे करना होगा, मेरे लिए तो थेरेपिस्ट के बजाए यही सही था| मैं तुरंत मान गया पर मुझे नहीं पता था की वो मुझसे क्या करवाने वाली हैं!
रात हुई और खाना खाने के बाद अनु ने मुझे अपने पास जमीन पर बैठने को कहा| वो मेरे पीछे कुर्सी ले कर बैठीं और मेरे दिल की अच्छे से मालिश की ताकि मुझे अच्छे से नींद आये| "बाल बड़े रखने हैं तो ठीक से बाँधा भी करो!" ये कहते हुए अनु ने मेरे बालों का bun बनाया|
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