RE: Hindi Antarvasna - काला इश्क़
"नहीं....ऐसे ही रहो....वरना मुझे सर्दी लग जायेगी!" अनु ने भोलेपन से कहा| उसकी बात सुन मैं मुस्कुरा दिया और ऐसे ही लेटा रहा| घडी में सुबह के 2 बजने को आये थे और हम दोनों की आँखें ही बंद थीं| हम दोनों आज अपना सब कुछ एक दूसरे को दे चुके थे और सुकून से सो रहे थे! सुबह पाँच बजे अनु की आँख खुल गई और उसने मेरी गर्दन पर अपनी गुड मॉर्निंग वाली बाईट दी! उसके ऐसा करने से मैं जाग गया; "ममम...क्या हुआ?" मैंने कुनमुनाते हुए कहा|
"आप हटो मुझे नीचे जाना है!" अनु ने कहा| पर मैंने अनु को और कस कर अपने से चिपका लिया और कुनमुनाते हुए ना कहा| "डार्लिंग! आज मेरी पहली रसोई है, प्लीज जाने दो!" अनु ने विनती करते हुए कहा|
"अभी सुबह के पाँच बजे हैं, इतनी सुबह क्या रसोई बनाओगे?" मैंने बिना आँख खोले कहा|
"भाभी ने कहा था की पाँच बजे वो आएँगी...देखो वो आने वाली होंगी!" अनु ने फिर से विनती की, पर मैं कुछ कहता उससे पहले ही दरवाजे पर दस्तक हो गई| मैं फ़ौरन उठ बैठा और अनु को कंबल दिया ताकि वो खुद को ढक ले और मैंने फ़ौरन पजामा पहना और दरवाजा खोला| ऊपर मैंने कुछ नहीं पहना था और जैसे ही ठंडी हवा का झोंका मेरी छाती पर पड़ा मैं काँप गया और अपने दोनों हाथों से खुद को ढकने की कोशिश करने लगा| इधर भाभी मुझे ऐसे कांपते हुए देख हँस पड़ी और कमरे में दाखिल हो गईं और मैंने फ़ौरन एक शॉल लपेट ली| "तुम दोनों का हो गया की अभी बाकी है?" भाभी हम दोनों को छेड़ते हुए बोलीं| अनु तो शर्म के मारे कंबल में घुस गई और मैं शर्म से लाल होगया पर फिर भी भाभी की मस्ती का जवाब देते हुए बोला; "कहाँ हो गया? अभी तो शुरू हुआ था....हमेशा गलत टाइम पर आते हो!" भाभी ने एकदम से मेरा कान पकड़ लिया; "अच्छा? मैं गलत टाइम पर आती हूँ? पूरी रात दोनों क्या साँप-सीढ़ी खेल रहे थे?" भाभी हँसते हुए बोली| इतने में अनु कंबल के अंदर से बोली; "भाभी आप चलो मैं बस अभी आई!"
"ये कौन बोला?" भाभी ने अनु की तरफ देखते हुए जानबूझ कर बोला| अनु चूँकि कंबल के अंदर मुँह घुसाए हुए थी इसलिए वो भाभी को नहीं देख सकती थी|
भाभी हँसती हुईं नीचे चली गईं, मैंने दरवाजा फिर से बंद किया और अनु के साथ कंबल में घुस गया| इधर अनु उठने को हुई तो मैंने उसका हाथ पकड़ कर रोक लिया| "कहाँ जा रहे हो? मुझे ठण्ड लग रही है!" मैंने बात बनाते हुए कहा|
"तो ये कंबल ओढो, मैं नीचे जा रही हूँ!" अनु ने फिर उठना चाहा|
"यार ये सही है? रात को जब आपको ठंड लग रही थी तब तो मैं आपके साथ लेटा हुआ था और अभी जो मुझे ठंड लग रही है तो आप उठ के जा रहे हो!" मैंने अनु से प्यार भरी शिकायत की जिसे सुन कर अनु को मुझ पर प्यार आने लगा| वो फिर से मेरे पास लेट गई और मुझे कास कर अपने सीने से लगा लियाऔर बोली; "आपको पता है, मैंने कभी सपने में भी ऐसी कल्पना नहीं की थी की मुझे आप मिलोगे और इतना प्यार करोगे! अब मुझे बस जिंदगी से आखरी चीज़ चाहिए!" ये कहते हुए अनु खामोश हो गई| उस चीज़ की कल्पना मात्र से ही अनु का दिल जोरों से धड़कने लगा था और मैं उसकी धड़कन साफ़ सुन पा रहा था| पता नहीं क्यों पर अनु की ये धड़कन मुझे अच्छी लग रही थी,अनु ने धीरे से खुद को मेरी पकड़ से छुड़ाया पर इस हलचल से मैं उठ कर बैठ गया| अनु ने कंबल हटाया और रात से ले कर अभी तक पहली बार अपनी नीचे की हालत देखि और हैरान रह गई| चादर पर एक लाल रंग का घेरा बन चूका था और उसके ऊपर हम दोनों के 'काम' रस का घोल पड़ा था जो गद्दा सोंख चूका था! अनु ये देख कर शर्मा गई और अपने दोनों हाथों से अपने चेहरे को ढक लिया| मैंने अनु को एक हैंड टॉवल उठा कर दिया ताकि वो अपनी नीचे की हालत कुछ साफ़ कर ले और मैं दूसरी तरफ मुँह कर के बैठ गया ताकि उसे शर्म ना आये| "आप को उधर मुँह कर के बैठने की कोई जर्रूरत नहीं है!" अनु मुस्कुराते हुए बोली और खुद को साफ़ करने लगी| मैं भी मुस्कुराने लगा पर अनु की तरफ देखा नहीं, मैं उठ कर खड़ा हुआ और अलमारी से अपने लिए कपडे निकालने लगा| इधर अनु ने भी अपने कपडे निकाले और ऊपर एक निघ्त्य डाल कर नीचे नहाने चली गई| घर में आज सिर्फ औरतें ही मौजूद थीं, बाकी सारे मर्द आज बाहर पड़ोसियों के यहाँ सोये थे, रितिका वाले कमरे में भी कोई नहीं सोया था| नीचे सब का नहाना-धोना चल रहा था और मैं नीचे नहीं जा सकता था| कुछ देर बाद भाभी नेहा को ले कर ऊपर आ गईं| मैंने भाभी को सख्त हिदायत दी थी की वो नेहा को अपने साथ रखें क्योंकि मुझे रितिका पर जरा भी भरोसा नहीं था| अपनी खुंदक निकालने के लिए वो नेहा को कुछ भी कर सकती थी| भाभी जब नेहा को ऊपर ले कर आईं तो वो रो रही थी; "संभाल अपनी गुड़िया को सुबह से केँ-केँ लगा रखी है इसने!" भाभी नेहा को मेरी गोद में देते हुए बोली| मैंने नेहा को गोद में लिया और उसे अपने सीने से लगाया| नेहा ने ने एकदम से रोना बंद कर दिया, ये देख कर भाभी हैरान हो गईं और मुस्कुराते हुए चली गईं| इधर मैं नेहा को गोद में लिए कमरे में घूमने लगा, फिर मेरा मन किया की मैं नेहा के साथ खेलती०खेलते अनु को छेड़ूँ| अब नीचे तो जा नहीं सकता था इसलिए मैंने एक आईडिया निकाला| मैंने नेहा को ऐसे पकड़ा की उसका मुँह मेरी तरफ था और गाना गाने लगा;
साथ छोड़ूँगा ना तेरे पीछे आऊँगा
छीन लूँगा या खुदा से माँग लाउँगा
तेरे नाल तक़दीरां लिखवाउंगा
मैं तेरा बन जाऊँगा
मैं तेरा बन जाऊँगा
सोंह तेरी मैं क़सम यही खाऊँगा
कित्ते वादेया नू मैं निभाऊँगा
तुझे हर वारी अपना बनाऊँगा
मैं तेरा बन जाऊँगा
मैं तेरा बन जाऊँगा"
मेरी आवाज इतनी ऊँची थी की नीचे सब औरतें ये गाना सुन पा रही थीं और भाभी ने अनु को मेरे बदले छेड़ना शुरू कर दिया| अनु का शर्म से बुरा हाल था, उसके गाल सुर्ख लाल हो चुके थे, वो उठी और जा कर माँ के पास बैठ गई और उनके कंधे में अपना मुँह रख कर छुपा लिया| माँ भी हँसने लगी और वहाँ जो भी कोई था वो मेरा पागलपन सुन हँसने लगा|
"तेरे लिए मैं जहाँ से टकराऊँगा
सब कुछ खोके तुझको ही पाउँगा
दिल बन के दिल धडकाऊँगा"
मैं ऊपर गाना जाता जा रहा था और नेहा की नाक से अपनी नाक रगड़ रहा था| नेहा भी बहुत खुश थी और हँस रही थी, अपने नन्हे-नन्हे हाथों से मेरी बड़ी नाक पकड़ने की कोशिश कर रही थी| जैसे ही मैंने गाना बंद किया माँ नीचे बोलीं; "ओ दिल वाले....नीचे आ तेरा दिल मैं धड़काऊँ!" माँ की आवाज सुन मैं फ़ौरन नीचे आया, माँ के पैर छुए और उन्होंने मेरे कान पकड़ लिए| "बहु को छेड़ता है? रुक तुझे में सीधा करती हूँ!" ये कहते हुए माँ ने मेरे गाल पर एक प्यार भरी चुटकी खींची और मैं हँसने लगा!
"देखत हो कितना बेसरम है ई लड़कवा! तोहार बहु तो सब के पैर छू कर आशीर्वाद ले लिहिस है और ये अभी तक केहू का नमस्ते तक ना किहिस है!" मौसी बोली| मैंने फिर एक-एक कर सबके पैर छुए और वापस ऊपर आ कर नेहा के साथ खेलने लगा| जब सब का नहाना हो गया तब मैं नहाने घुसा| गाना गुनगुनाते हुए मैं नहाया और कुरता-पजामा पहन कर तैयार हुआ| नेहा को भी मैंने ही नहलाया पर ये सब किसी को पसंद नहीं आया और उन्होंने मुझे टोका; "ओ मानु तू काहे इस सब कर रहा है?" मौसी बोलीं और उन्होंने रितिका को डाँट लगाते हुए कहा; "तू का हुआन खड़ी-खड़ी देखत है, ई काम खुद ना कर सकत है?"
"क्यों मौसी मैं क्यों नहीं कर सकता? आदमी हूँ इसलिए?" मैंने उनकी तरफ घूमते हुए कहा|
"इस घर में सबसे ज्यादा मानु प्यार करता है नेहा से! उसके इलावा वो किसी से नहीं सम्भलती!" ताई जी बोलीं|
"दीदी ईका (मेरा) बच्ची से इतनी माया बढ़ाना ठीक नाहीं!" मौसी बोलीं|
"क्यों? एक बिन बाप की बच्ची को अगर बाप का प्यार मानु से मिलता है तो क्या बुरा है?" ताई जी बोलीं और उन्होंने आगे मौसी को कुछ कहने का मौका ही नहीं दिया| पर ताई जी के ये बात मेरे दिल को लग गई! नेहा मेरी बेटी थी और सब इस सच से अनविज्ञ थे और यही सोचते थे की मेरा उससे मोह एक तरह की दया है! मैं नेहा को ले कर चुपचाप ऊपर आ गया और उसे कपडे पहनाने लगा| जहाँ कुछ देर पहले मेरे दिल में इतनी खुशियाँ थी वहीँ मौसी की बात सुन कर मेरे दिल में दर्द पैदा हो चूका था| नेहा को कपडे पहना कर मैं उसे अपनी छाती से लगा कर कमरे की खिड़की के सामने बैठ गया और नेहा की पीठ सहलाने लगा| कुछ देर में नेहा सो गई और मैं सोच में डूब गया| मुझे कुछ न कुछ कर के नेहा को अपनाना था, उसे अपना नाम देना था!
अनु समझ गई थी की मुझे कितना बुरा लगा है और कुछ देर बाद वो ऊपर आ गई और मुझे गुम-शूम खिड़की की तरफ मुँह कर के बैठा देख उसे भी बुरा लगा| वो मेरे पीछे खड़ी हो गई और मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए बोली; "We’ll figure out a way!” मैंने बस हाँ में सर हिलाया पर दिमाग मेरा अब भी रास्ता ढूँढने में लगा था| पर अनु मुझे हँसाना-बुलाना जानती थी; "Now cheer up! मुझे नीचे रसोई के लिए बुलाया है और मुझे बहुत डर लग रहा है!" ये एक दम से उठ खड़ा हुआ और बोला; "चलो आज हम दोनों खाना बनाते हैं!" ये बात भाभी ने बाहर से सुन ली और बोलीं; "खाना तो बहुरानी ही बनाएगी, तुम जा कर मर्दों में बैठो!" भाभी की बात सुन हम दोनों मुस्कुरा दिए| अनु इधर खाना बनाने में लगी और मैं बाहर निकल के पिताजी के पास बैठ गया| कुछ देर बाद सबको खाना खाने के लिए बुलाया गया, खाने में अनु ने लौकी के कोफ्ते और गोभी के सब्जी बनाई थी, साथ में रायता और गरमा-गर्म रोटियॉँ| घर के सारे लोग एक साथ बैठ गए सिर्फ भाभी, अनु और रितिका रह गए थे| अनु ने आज एक गहरे नीले रंग की साडी पहनी थी और सर पर थोड़ा घूंघट कर रखा था| ताऊ जी ने जैसे ही पहला कौर खाया उन्होंने फ़ौरन अपनी जेब में हाथ डाला और फ़ौरन कुछ पैसे निकाले| अनु को अपने पास बुलाया और उसे 5001/- देते हुए बोले; "बहु ये ले, आज तेरे हाथ की पहली रसोई थी और माँ अन्नपूर्णा का हाथ है तुझ पर, मैंने इतना स्वाद खाना कभी नहीं खाया!" उनके बाद पिताजी ने भी अनु को 5001/- दिए और बहुत आशीर्वाद भी दिया| मौसा जी ने भी अनु को 1001/- दिए, अब बारी आई ताई जी की, उन्होंने अनु को सोने के कंगन दिए और आशीर्वाद दिया| माँ का नंबर आया तो उन्होंने अनु को एक बाजूबंद दिया जो उन्हें उनकी माँ यानी मेरी नानी ने दिया था| अनु की आँखें इतना प्यार पा कर नम हो गईं थी| तब माँ ने उसके सर पर हाथ फेरा और उसके मस्तक को चूमते हुए बोली; "बेटी बस...रोना नहीं!" भाभी ने माहौल को हल्का करने के लिए बात शुरू की; "पिताजी आपको पता है मानु भैया कह रहे थे की वो भी रसोई में मदद करेंगे!" ये सुन कर सारे हँस पड़े और अनु भी मुस्कुरा दी|
"कल तू सब के लिए खाना बनायेगा!" ताऊ जी ने मुझसे कहा पर तभी भाभी बोलीं; "पर कल तू बहु चली जाएगी?!" ये सुनते ही मैं खाते हुए रुक गया और हैरानी से भाभी को देखने लगा| मेरी ये हरकत सबने देखि और भाभी को मेरी टांग खींचने का फिर मौका मिल गया| " क्या? शादी के अगले दिन बहु अपने घर जाती है!" भाभी ने मुझे रस्म याद दिलाई| पर बेटे के दिल का दर्द सिर्फ माँ ही समझती है; "बेटा बहु कुछ दिन बाद वापस आ जाएगी|" माँ की बात सुन कर मुझे तसल्ली नहीं हुई क्योंकि उन्होंने ये नहीं बताया था की ये कुछ दिन कितने होते हैं? खाना खाने के बाद सबसे बातें होने लगीं इसलिए हम दोनों को अकेले में बात करने का समय नहीं मिला| शाम को भी लोगों का आना-जाना लगा रहा और इसी बीच संकेत भी मिलने आया| वो मेरी शादी में नहीं आ पाया था क्योंकि कुछ emergency कारणों से उसे बाहर जाना पड़ा था और उसकी गैरहाजरी में उसका परिवार जर्रूर आया था| मैंने उसका इंट्रो अनु से करवाया तो उसने हाथ जोड़ कर अनु से नमस्ते कहा और फिर अपने ना आ पाने की माफ़ी भी माँगी| रात को खाना अनु ने ही बनाया और खाने के बाद भाभी ने उसे जानबूझ कर उसे अपने साथ बिठा लिया| इधर चन्दर भैया मुझे अपने साथ खींच कर छत पर ले आये जहाँ मेरे बाकी कजिन बैठे थे और वहाँ बातें शुरू हो गईं| भाभी वाले कमरे में मेरे मौसा जी के दो लड़कों की पत्नियाँ बैठी थीं और उन्हीं के साथ रितिका भी बैठी थी| भाभी जबरदस्ती अनु को पकड़ कर वहीँ ले आई| अब रितिका उठ कर भी नहीं जा सकती इसलिए नजरे झुका कर बैठी रही| "तो अनुराधा जी! बताइये पहली रात कैसी गुजरी? कहीं देवर जी ने आपको तंग तो नहीं किया?" भाभी ने कहा और सारे हँसने लगे| पहले तो अनु ने सोचा की बात हँस कर ताल दे फिर उसे रितिका की शक्ल दिखी और उसने सोचा की क्यों न हिसाब बराबर किया जाए| अनु ने अपना हाथ भाभी के कंधे पर रखा और अपना सर उसी हाथ पर रखते हुए बोली; "हाय भाभी! आपके देवर जी ने तो मेरी जान ही निकाल दी थी! निचोड़ कर रख दिया था मुझे!" अनु की बात सुन सारे शर्मा गए और भाभी अनु को प्यार से डांटते हुए बोली; "चुप बेशर्म!" उनका इशारा रितिका की तरफ था की उसके सामने अनु ये क्या कह रही है| "अरे तो इसमें क्या शर्म की बात? इसने भी तो कभी न कभी किया होगा!" अनु ने बात घुमा के कही पर वो सीधा रितिका को जा कर लगी| अनु का तातपर्य था की उसने भी तो मेरे (मानु के) साथ सेक्स किया है| रितिका को अचानक ही वो रंगीन दिन याद आ गए और उसके दिल के साथ-साथ नीचे वाले छेद में भी हलचल मच गई| "पर भाभी एक बात तो है, 'वो' आपकी हर बात मानते हैं!" अनु बोली|
"क्या मतलब?" भाभी बोली|
"कल रात आप ने कहा था ना की मेरी देवरानी का ख्याल रखना, तो उन्होंने रात भर बड़ा ख्याल रखा मेरा!" अनु बोली और फिर शर्मा गई| ये सुन कर रितिका अंदर ही अंदर जल-भून कर राख हो गई और सर झुकाये बैठी रही|
"हाँ-हाँ वो सब मैंने आज तुम-दोनों का बिस्तर देख कर समझ गई थी! वैसे सच-सच बता तूने कल रात से पहले कभी......?" भाभी ने बात अधूरी छोड़ दी पर अनु उनकी बात का मतलब समझ गई|
"नहीं भाभी....कल रात पहली बार था.....इसीलिए तो इतनी घबराई हुई थी| पर सच्ची 'उन्होंने' मेरा बड़ा ख्याल रखा और बड़े प्यार से....." अनु ने भी शर्माते हुए कहा और बात अधूरी छोड़ दी|
"पर इस मुई ने सबको बता दिया!" भाभी ने मौसा जी की सबसे छोटी बहु की तरफ इशारा करते हुए कहा| अब ये सुन कर तो अनु के कान लाल हो गए; "सबको?" अनु ने पुछा|
"अरे बुद्धू सबको मतलब माँ, चाची जी और मौसी जी को| हम तीनों ने तो साक्षात् रंगोली देखि थी!" भाभी ने अनु को चिढ़ाते हुए कहा| मतलब की घर की सब औरतों को चल गया था की अनु कुँवारी थी पर ताई जी और माँ के डर के मारे मौसी जी ने उससे कुछ नहीं पुछा था| वरना शादी होने के बाद भी अनु का कुंवारा होना मौसी जी के लिए अजीब बात थी! ये बात जिस शक़्स को बहुत जोर से लगी थी वो थी रितिका! कहाँ तो वो सोच रही थी की वो मानु को ताना देगी की उसे अनु के रूप में एक used माल मिला और कहाँ अनु एकदम कोरी निकली|
आखिर सब की बातें खत्म हुई और अनु ऊपर आई और मैं भी अभी कमरे के बाहर पहुँचा था की भाभी मुझे वहीँ मिल गई| "हो गई आपकी बातें? साड़ी बातें आप ही कर लो! मेरे लिए कुछ मत छोड़ना!" मैंने भाभी से शिकायत करते हुए कहा| ये सुन कर मेरी बाकी दो भाभियाँ भी हँसने लगीं अब तो अनु भी आ कर मेरे पीछे खड़ी हो गई थी; "वैसे भाभी वो कल रात वाले दूध में क्या डाला था?" मैंने कहा और सारे हँसने लगे|
"उसका असर तो अनुराधा ने बता दिया हमें और वो तुम्हारी रंगोली भी देखि थी हमने!" मेरी छोटी भाभी बोली और ये सुन कर अनु मेरे पीछे अपना सर छुपा कर मुस्कुराने लगी|
"भाभी वो दूध आज भी मिलेगा!" मैंने कहा और साड़ी औरतों ने मुझे प्यार भरे मुक्के मारने चालु कर दिए|
"दीदी सच्ची बेशर्म हो गया है ये तो!" बड़ी वाली भाभी बोलीं| भाभी दोनों को ले कर नीचे आ गईं, इधर मैं और अनु अंदर आ गए| "तो पहले ये बताओ की कब वापस आओगे?" मैंने सीधा ही सवाल दागा|
"शायद एक हफ्ता!" अनु ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया|
"एक हफ्ता क्या करोगे वहाँ?" मैंने बेसब्री से पुछा|
"नाते-रिश्तेदारों से मिलना होता है और...." अनु अभी कुछ बोलती उससे पहले ही मैंने उसकी कमर में हाथ डाल आकर उसे अपने पास खींच लिया और उसके होठों को चूम कर कहा; "दो दिन....बस इससे ज्यादा wait नहीं करूँगा!"
"क्या करोगे अगर मैं दो दिन बाद नहीं आई तो?" अनु अपनी ऊँगली को मेरे होठों पर रखते हुए बोली|
"फिर मैं आऊँगा अपनी दुल्हनिया को लेने!" मैंने कहा और अनु को गोद में उठा लिया और उसे बिस्तर पर लिटा दिया| मैं जानता था वो आज बहुत थकी हुई होगी इसलिए आज मैं बस उसे अपने से चिपका कर सोना चाहता था| मैं भी अनु की बगल में लेट गया, अनु ने मेरे बाएँ हाथ को अपना तकिया बनाया और मुझसे चिपक कर लेट गई| मैं अनु के सर को चूमता हुआ उसके बालों में उँगलियाँ फेरता रहा और कुछ देर बाद दोनों सो गए|
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