Hindi Antarvasna - काला इश्क़
07-14-2020, 01:11 PM,
#97
RE: Hindi Antarvasna - काला इश्क़
"रितिका जी, अभी तो बस दो ही महीने हुए हैं!" वकील मुस्कुराता हुआ बोला|

"वो सब मुझे नहीं पता, मुझे ये प्रॉपर्टी किसी भी हालत में 10 अगस्त से पहले अपने नाम पर चाहिए!" रितिका ने अपना फरमान सुनाते हुए कहा|

"इतनी जल्दी? देखिये कोर्ट-कचेहरी में थोड़ा टाइम तो लगता है!" वकील हैरान होते हुए बोला|

"आप कह रहे थे न की कुछ खर्चा होगा? कितना लगेगा?" रितिका ने अपनी बेसब्री दिखाते हुए कहा|

"जी...वो...यही कुछ 5 लाख!" वकील हकलाते हुए बोला|

"मैं 10 लाख दूँगी! पर काम मेरे मुताबिक करवाओ!" रितिका की बात सुन वकील हैरान हो गया और उसने अपने जुगाड़ लगाने शुरू कर दिए| विपक्ष के वकील को उसने लाख रुपये पकड़ाए और 5 लाख में उसने जज को सेट किया जिसने विपक्ष का क्लेम ख़ारिज कर दिया| जुलाई के महीने में ही कोर्ट ने फैसला रितिका के पक्ष में दे दिया वो भी बिना रितिका के कोर्ट जाए| जैसे ही ये खबर वकील ने रितिका को दी वो फूली न समाई! प्रॉपर्टी ट्रांसफर के कुछ कागजों पर साइन करने के लिए वकील ने रितिका को स्कूल बुलाया| उन कागजों में वकील ने मंत्री की जमीन का एक टुकड़ा जिसकी कीमत करीब 20 लाख थी वो रितिका से अपनी फीस के रूप में माँगी| रितिका ने मिनट नहीं लगाया उसकी बात मानने में और सारे पेपर पढ़ कर आईं कर दिए| "29 जुलाई तक सारी प्रॉपर्टी आपके नाम हो जाएगी|" वकील ने पेन का ढक्कन बंद करते हुए मुस्कुरा कर कहा|

"थैंक यू वकील साहब! आप वो हवेली खुलवा दीजिये और उसकी साफ़-सफाई करवा दीजिये! वहां एक काँटा नाम की औरत काम करती थी उसे मेरा नाम बोल दीजियेगा वो सब काम संभाल लेगी और उसके पति को कहियेगा की 19 अगस्त को मुझे लेने यहाँ आये वो भी Mercedes ले कर!" रितिका ने कमीनी हँसी हँसते हुए कहा| वकील समझ गया की रितिका 19 को ही घर लौटेगी इसलिए उसने रितिका के कहे अनुसार साफ़-सफाई करवा दी और काँटा और उसके पति को नौकरी पर रख लिया| इधर घर लौटते ही रितिका की ख़ुशी छुपाये नहीं छुप रही थी, पर उसकी ख़ुशी को ग्रहण लगने वाला था| रात को ताऊ जी ने बताया की रितिका की दूसरी शादी के लिए एक रिश्ता आया है| ये सुनते ही रितिका को बहुत गुस्सा आया, उसका मन तो किया की वो अभी ताऊ जी का खून कर दे पर उसने खुद को काबू किया और रोनी सी सूरत बना कर बोली; "दादाजी....प्लीज...ऐसा मत कीजिये!.... मैं इस परिवार को छोड़ कर नहीं जाऊँगी! मुझे इस घर से अलग मत कीजिये! आप सब ही मेरे लिए सब कुछ हो!" रितिका रोते हुए बोली, ताई जी ने माँ बन कर उसे सम्भाला और उसे पुचकारने लगीं ताकि वो चुप हो जाए| "बेटी तेरी उम्र अभी बहुत कम है! इतनी बड़ी उम्र तो कैसे काटेगी?" ताऊ जी ने प्यार से रितिका को समझाना चाहा पर वो नहीं मानी और अपना तुरुख का इक्का फेंक दिया; "आप मेरी चिंता मत कीजिये, नेहा जो है मेरे पास? मैं उसी के सहारे जिंदगी काट लूँगी, फिर आप सब भी तो हैं!" ताऊ जी शांत हो गए और रितिका की बात फिलहाल के लिए मान गए| इधर रितिका की खुशियों पर लगा ग्रहण छट गया और उसकी वही कमीनी हँसी लौट आई| "बहुत जल्दी तेरी गर्दन मेरे हाथ में होगी!" रितिका रात को सोते समय बुदबुदाई! उसका मतलब मेरी गर्दन से था! बदले का प्लान सेट था और अब बस उसे मेरे आने का इंतजार था| वो जानती थी की मैं नेहा के जन्मदिन पर जर्रूर आऊँगा और ठीक इसी समय वो अपना वार मुझ पर करेगी|

इधर इन सब बातों से बेखबर मैं और अनु अपनी नई जिंदगी अच्छे से जी रहे थे| दिन, हफ्ते, महीने गुजरे और अगस्त आ गया, अनु ने अपनी टीम यानी अक्कू, पंडित जी और अपनी दोस्त के कान खींचने शुरू कर दिए| "अगर इस बार तुम में से किसी ने भी हमारे जाने के बाद मज़े किये और काम नहीं किया तो तुम सब की खैर नहीं! मुझे डेली अपडेट चाहिए की तुम लोगों ने कितना काम किया है? कोई भी काम अगर पेंडिंग हुआ तो तुम सबकी प्रमोशन खतरे में पद जायेगी!" अनु ने सब को चेतावनी देते हुए कहा| प्रमोशन के लालच में तीनों काम करने के लिए तैयार हो गए| इधर मेरी टीम में ज्वाइन हुए दोनों मेरी उम्र के थे और मुझे उन्हें ज्यादा कुछ नहीं कहना पड़ा क्योंकि वो काम की seriousness समझते थे| हमारा प्रोजेक्ट step by step था इसलिए मेरा उनके काम पर नजर रखना बहुत आसान था| स्टाफ को अच्छे से काम समझा कर हम अगले दिन फ्लाइट से लखनऊ पहुँचे, एक दिन मम्मी-डैडी के पास रुके और फिर गाँव पहुँचे| हमने अपने आने की तारीख किसी को नहीं बताई थी, इसलिए ये सरप्राइज पा कर सब खुश हो ने वाले थे| घर आते ही सबसे पहले मैं अपनी माँ से मिला और फिर अपनी लाड़ली को ढूंढते हुए रितिका के कमरे में जा पहुँचा जहाँ भाभी और रितिका नेहा को तैयार कर रहे थे| मुझे वहां देखते ही भाभी खुश हो गईं, नेहा ने मुझे देख अपने हाथ-पाँव मारने शुरू कर दिए| मैंने उसे फ़ौरन उठा का र अपने सीने से लगा लिया और आँखें बंद किये उस पल को जीने लगा| इतने महीनों से जल रही एक बाप के सीने की आग आज शांत हुई! “I missed you so much my lil angel!!!!” मैंने नेहा को अपने सेने से लगाए हुए कहा, आँसू की कुछ बूँदें छलक कर नेहा के कपड़ों पर गिरीं तो भाभी ने मेरे कंधे पर हाथ रख मुझे नहीं रोने को कहा| उधर रितिका के चेहरे पर आज अलग ही मुस्कान थी, ऐसा लगा मानो उसे इस बाप-बेटी के मिलन से बहुत ख़ुशी हुई हो! पर मैं नहीं जानता था की ये वो मुस्कान थी जो किसी शिकारी के चेहरे पर तब आती है जब वो अपने शिकार को जाल में फँसते हुए देखता है| इधर पीछे से अनु भी भागती हुई ऊपर आ गई| पहले उसने भाभी को गले लगाया और फिर आस भरी नजरों से मुझे देखने लगी ताकि मैं उसे नेहा को दे दूँ| मैंने नेहा को उसे दिया तो उसने फ़ौरन उसे अपने सीने से लगा लिया और उसके माथे पर पप्पियों की झड़ी लगा दी| रितिका को ये दृश्य जरा भी नहीं भाया और वो नीचे चली गई|

ताऊ जी, पिता जी, चन्दर भैया और ताई जी बाहर गए थे इसलिए उनके आने तक हम सब नीचे ही बैठे रहे| माँ ने मुझे अपने पास बिठा लिया और मुझसे बहुत से सवाल पूछती रहीं, इधर अनु नेहा को अपनी छाती से लगाए हुए उसे दुलार करने लगी| उसने नेहा से बातें करना शुरू कर दिया था और उसकी ख़ुशी से निकली आवाजों का अपने मन-मुताबिक अर्थ निकालना शुरू कर दिया था| मैं ये देख कर बहुत खुश था और उन बातों में शामिल होना चाहता था पर मेरी माँ को भी उनके बेटे का प्यार चाहिए था| इसलिए मैं माँ की गोद में सर रख कर लेट गया और माँ ने मेरे बालों को सहलाते हुए बातें शुरू कर दी| "बहु (भाभी) आज मानु की पसंद का खाना बनाना|" माँ ने कहा तो भाभी रसोई जाने को उठीं, अनु ने एक दम से उनका हाथ पकड़ कर उन्हें रोक लिया| "आप बैठो यहाँ, आज से खाना मैं बनाऊँगी!" ये कहते हुए अनु उठी| "अरे तू अभी आई है, थोड़ा आराम कर ले कल से तू रसोई संभाल लिओ!" भाभी बोलीं पर मैं उठ कर बैठा और अपनी पत्नी की तरफदारी करते हुए बोला; "आज खाना मैं और अनु बनाएंगे और माँ आप चलो मैं आपको चॉपर दिखाता हूँ!" ये कहते हुए हम सारे रसोई में पहुँच गए| मैंने भाभी और माँ को चॉपर दिखाया और वो कैसे काम करता है ये बताया तो वो ये देख कर बहुत खुश हुए| मैं और अनु हाथ-मुँह धोकर खाना बनाने घुस गए| नेहा के लिए मैं एक baby carry bag लाया था जिसे मैंने पहन लिया और नेहा को उसमें आराम से बिठा दिया| अब मैं एक कंगारू जैसा लग रहा था जिसके baby pouch में बच्चा बैठा हो! मैं और अनु खाना बना रहे थे और नेहा के साथ खेल भी रहे थे| गैस के आगे खड़े होने का काम अनु करती, और चोप्पिंग का काम मैं करता| सब्जियों को देख नेहा उन्हें पकड़ने की कोशिश करती और मैं जानबूझ कर दूर हो जाता ताकि वो उन्हें पकड़ न पाए| हमें इस तरह से खाना बनाते हुए देख माँ और भाभी हँस रही थीं| खाना बनने के 15 मिनट बाद ही सब आ गए और हम दोनों को देख कर बहुत खुश हुए| "बेटा तूने बताया क्यों नहीं की तुम दोनों आ रहे हो? हम लेने आ आ जाते!" ताऊ जी बोले तो अनु मेरी तरफ देखने लगी; "ताऊ जी आप सब को सरप्राइज देना चाहते थे!" मैंने कहा और फिर हमने सबके पाँव छुए और आशीर्वाद लिया| मेरी गोद में नेहा को देखते ही पिताजी बोले; "आते ही अपनी लाड़ली के साथ खलने लग गया?!"

"पिताजी मिली प्याली-प्याली बेटी को मैंने बहुत याद किया!" मैंने तुतलाते हुए नेहा की तरफ देखते हुए बोला, नेहा ये सुनते ही हँसने लगी| बीते कुछ महीनों में सबसे ज्यादा वीडियो कॉल अनु ने नेहा को देखने के लिए की थी, मैं चूँकि बिजी होता था तो 15 दिन में कहीं मुझे मौका मिल पाता था वीडियो कॉल में नेहा को देखने का| "सच्ची पिताजी हम दोनों ने नेहा को बहुत याद किया, मैं तो फिर भी काम में लगा रहता था पर अनु तो हर दूसरे-तीसरे दिन भाभी को वीडियो कॉल किया करती थी|" मैंने कहा तो माँ बोली; "अब बहु भी खुशखबरी सुना दे तो उसका भी अकेलापन दूर हो जाए!" माँ की बात सुन हम दोनों शर्म से लाल हो गए थे| भाभी ने जैसे तैसे बात संभाली और बोलीं; "पिताजी खाना तैयार है!" सब खाने के लिए बैठ गए और जब मैंने और अनु ने सब को खाना परोसा तो सब हैरान हो गए| "पिताजी खाना आज दोनों मियाँ-बीवी ने मिल कर बनाया है!" भाभी हँसते हुए बोली| ये सुनकर सब खुश हुए और सब ने बड़े चाव से खाना खाया| खाने के बाद हमारे लाये हुए तौह्फे हमने सब को दिए| सब के लिए कुछ न कुछ था, यहाँ तक की हम दोनों रितिका के लिए भी एक साडी लाये थे जिसे उसने सब के सामने नकली हँसी हँसते हुए ले लिया| पर सबसे ज्यादा तौह्फे नेहा के लिए थे, 10 ड्रेसेस के सेट जिसमें से एक ख़ास कर उसके जन्मदिन के लिए था| उसके खलेने के लिए खिलोने, फीडिंग बोतल, छोटी-छोटी bangles और भी बहुत सी चीजें| मैं नेहा को गोद में ले कर उसे उसके गिफ्ट्स दिखा रहा था और नेहा बस हँसती जा रही थी!

रात को सोने के समय मैं नेहा को अपने साथ ऊपर कमरे में ले आया| रसोई के सारे काम निपटा कर अनु भी ऊपर आ गई| मैं नेहा को गोद में ले कर उससे बात करने में लगा हुआ था, अनु कुछ देर चौखट पर खड़ी बाप-बेटी का प्यार देखती रही और फिर बोली; "I'm really sorry! मैंने आपको बहुत गलत समझा! मुझे लगा था की ऑफिस के काम में आप नेहा को भूल गए!" अनु ने सर झुकाये हुए कहा| "बेबी (अनु) भूल नहीं गया था...बस अपने प्यार को दबा कर रख रहा था| घरवायलों से तुमने वादा किया था न की तुम मेरा ख्याल रखोगी? फिर तुम्हें गलत कैसे साबित होने देता?!" मैंने अनु को उस दिन की बात याद दिलाई जब उसने अमेरिका जाते समय माँ से वादा किया था| "आपको अपनी feelings इस तरह दबानी नहीं चाहिए! It could hurt you mentally!" अनु चिंता जताते हुए बोली|

"बेबी आप जो थे मेरे पास मेरा ख्याल रखने के लिए!" मैंने मुस्कुराते हुए कहा, बात को खत्म करने के लिए अनु को अपने पास बुलाया| अनु दरवाजा बंद कर के आई और हम तीनों आज महीनों बाद एक साथ गले लगे| फिर अनु ने नेहा को मेरी गोद से ले लिया और उसे चूमते हुए लेट गई| वो पूरी रात हमने जागते हुए नेहा को प्यार करके गुजारी, इतने महीनों का सारा प्यार नेहा पर उड़ेल दिया गया| नेहा को सोता हुआ देख कर हम दोनों ठंडी आहें भर रहे थे!

इस तरह से दिन कब निकले और नेहा का जन्मदिन कब आया पता ही नहीं चला| 18 अगस्त की सुबह को सब तय हुआ की कल हम केक काटेंगे और नेहा का जन्मदिन धूम-धाम से मनाएंगे| ताऊ जी ने चन्दर भैया और मेरी ड्यूटी लगाई की हम दोनों सारे इंतजाम करें और इधर उन्होंने सारे गाँव में दावत का ऐलान कर दिया| मुझे और चन्दर भैया को कुछ करना ही नहीं पड़ा क्योंकि संकेत को एक कॉल किया और उसने सारा इंतजाम करवा दिया| टेंट वाला आया और पंडाल बाँधने लगा, हलवाई बर्तन वगेरा सब घर छोड़ गए और कल शाम को आने की बात कह गए| संकेत ने बड़े-बड़े स्पीकर लगवा दिए और गानों की playlist मेरे पास थी! केक का आर्डर देने मैं, संकेत और चन्दर भैया निकले और शाम तक सब तैयारियाँ हो गईं थी| रात को खाने के बाद मैं, अनु और नेहा अपने कमरे थे और बेसब्री से 12 बजने का इंतजार कर रहे थे| हम दोनों ही नेहा को जगाये हुए थे और उसके साथ खेल रहे थे, कभी दोनों उससे बात करने लगते तो कभी उसे गुद-गुदी करते| टिक...टिक...टिक.. कर घडी ने आखिर 12 बजा ही दिए| 12 बजते ही अनु ने नेहा को गोद में ले लिया और बोली; मेरी राजकुमारी!! आपको जन्मदिन बहुत-बहुत मुबारक हो! आप को मेरी भी उम्र लगे, जल्दी-जल्दी बड़े हो जाओ और बोलना शुरू करो! मुझे आपके मुँह से पहले पापा सुनना है और फिर मेरे लिए मम्मी!" अनु ने नेहा के दोनों गाल चूमे और फिर उसे मेरी गोद में दिया; "मेला बेटा बड़ा हो गया!....बड़ा हो गया!.....awww ले...ले... 1 साल का होगया मेरा बच्चा! हैप्पी बर्थडे मेले बच्चे...आपको दुनियाभर की खुशियाँ मिले....और आप जल्दी-जल्दी बड़े हो जाओ! I love you my lil angel! God Bless You!!!" मैंने नेहा को चूमते हुए कहा और वो भी मेरे इस तरह तुतला कर बोलने से हँस पड़ी| उस रात को नेहा के सोने तक अनु और मैं उसके साथ खेलते रहे और अनगिनत photo खींचते रहे, कभी उसे चूमते हुए तो कभी उसके सामने मुँह बनाते हुए!

फिर हुई सुबह एक ऐसी सुबह जो सब के लिए एक अलग रूप ले कर आई थी| जहाँ एक तरफ मैं और अनु खुश थे क्योंकि आज हमारी बेटी नेहा का जन्मदिन था, ताऊ जी-ताई जी खुश थे की उनके घर में आई खुशियाँ आज दो गुनी होने जा रही है, माँ-पिताजी खुश थे की उनका बहु-बेटा उनके पास हैं और बहुत खुश हैं, चन्दर भैया- भाभी खुश थे की उनकी जिंदगी में एक नया मेहमान आने वाला है और आज उनकी पोती का जन्मदिन है तो दूसरी तरफ जलन, बदले और सब को दुःख पहुँचाने वाली रितिका इसलिए खुश थी की आज वो इस घर रुपी घोंसले के चीथड़े-चीथड़े करने वाली है! वो घरोंदा जो उसे आज तक सर छुपाने की जगह दिए हुआ था आज उसी घरोंदे को वो अपने बदले की आग से जलाने वाली थी|

मैं और अनु नेहा को साथ लिए हुए नीचे आये और सब का आशीर्वाद लिया और नेहा को भी सबका आशीर्वाद दिलवाया| नहा-धो कर हम तीनों पहले मंदिर गए और वहाँ नेहा के लिए प्रार्थना की| हमने भगवान से अपने लिए कुछ नहीं माँगा, ना ही ये माँगा की वो नेहा को हमारी गोद में डाल दे क्योंकि हम दोनों ही इस बात से सम्झौता कर चुके थे की ये कभी नहीं होगा, आज तो हमने उसके लिए खुशियाँ माँगी...ढेर सारी खुशियाँ ...हमारे हिस्से की भी खुशियाँ नेहा को देने को कहा| प्रार्थना कर हम तीनों ख़ुशी-ख़ुशी घर लौटे और रास्ते में नेहा के लिए रखी पार्टी की बात कर रहे थे| सारे लोह आंगन में बैठे थे की रितिका ऊपर से उत्तरी और उसके हाथों में कपड़ों से भरा एक बैग था| उसे देख सब के सब खामोश हो गए, "ये बैग?" ताई जी ने पुछा|

"मैं अपने ससुर जी की जायदाद का केस जीत गई हूँ!" रितिका ने मुस्कुराते हुए कहा और उसकी ये मुस्कराहट देख मेरा दिल धक्क़ सा रह गया और मैं समझ गया की आगे क्या होने वाला है| "आप सब की चोरी मैंने केस फाइल किया था और कुछ दिन पहले ही सारी जमीन-जायदाद मेरे नाम हो गई!" रितिका ने पीछे मुड़ने का इशारा किया तो हम सब ने पीछे पलट कर देखा, वहाँ वही वकील जो उस दिन आया था हाथ में एक फाइल ले कर खड़ा था| "वकील साहब जरा सब को कागज तो दिखाइए!" रितिका ने वकील को फाइल की तरफ इशारा करते हुए कहा और वो भी किसी कठपुतली की तरह नाचते हुए फाइल ताऊ जी की तरफ बढ़ा दी और वपस हाथ बाँधे खड़ा हो गया| ताऊ जी ने वो फाइल मेरी तरफ बढ़ा दी, चूँकि मेरी गोद में नेहा थी तो मैंने अनु से वो फाइल देखने को कहा| सबसे ऊपर उसमें कोर्ट का आर्डर था जिसमें लिखा था की रितिका मंत्री जी की बहु उनकी सारी जायदाद की कानूनी मालिक है| अनु ने ये पढ़ते ही ताऊ जी की तरफ देखते हुए हाँ में गर्दन हिला दी| "हरामजादी! तूने....तेरी हिम्मत कैसे हुई?" ताऊ जी का गुस्सा आसमान पर चढ़ गया था और वो लघभग रितिका को मारने को आगे बढे की पिताजी ने उन्हें रोक लिया| "तुझे पता है न उस दौलत की वजह से ही मंत्री का खून हुआ? और तू उसी के लालच में पड़ गई?" पिताजी ने कहा|

"आप सब को तो मेरी चिंता है नहीं, तो मैंने अगर अपने बारे में सोचा तो क्या गुनाह किया? मेरी भी बेटी है, कल को उसकी पढ़ाई का खर्चा होगा, शादी-बियाह का खर्चा होगा वो कौन करेगा? अब आपके पास उतनी जमीन-जायदाद तो रही नहीं जितनी हुआ करती थी, सब तो आपने इस....मनु की शादी में लगा दी!" रितिका बोली और उसकी बात सुन सब का पारा चढ़ गया|

"चुप कर जा कुतिया!" भाभी बोलीं|

"किस हक़ से मुझे चुप होने को कह रही हो? मैं तुम्हारी बेटी थोड़े ही हूँ? तुमने तो मुझे नौकरानी की तरह पाल-पोस कर बड़ा किया अब मेरी बेटी को भी नौकरानी बनाना चाहती हो?" रितिका भाभी पर चिल्लाते हुए बोली ये सुनते ही चन्दर भैया ने रितिका की सुताई करने को लट्ठ उठाया; "मुझे छूने की कोशिश भी मत करना, तुम्हें सिर्फ नाम से पापा कहती हूँ! बेटी का प्यार तो तुमने मुझे कभी दिया ही नहीं! मुझे अगर छुआ भी ना तो पुलिस केस कर दूँगी!" रितिका ने उन्हें चेतावनी देते हुए कहा पर भैया का गुस्सा उसकी धमकी सुन और बढ़ गया| मैंने और भाभी ने उन्हें शांत करने के लिए उन्हें रोक लिया| भाभी उनके सामने खड़ी हो गईं और मैंने पीछे से अपने एक हाथ को उनकी छाती से थाम लिया|

"तो इतने दिन तू बस ड्राम कर रही थी!" ताई जी बोलीं|

"हाँ!!! आज नेहा का जन्मदिन है और सब के सब यहाँ हैं जिन्होंने कभी न कभी मेरा दिल दुखाया है और तुम सब लोगों से बदला लेने का यही सही समय था| जब से बड़ी हुई हमेशा मैंने सब के ताने सुने, कोई पढ़ने नहीं देता था सब मुझसे ही काम करवाते थे! थोड़ी बड़ी हुई तो मुझे लगा ये (मेरी तरफ ऊँगली करते हुए) शायद मुझे समझेगा पर इसके अपने नियम-कानून थे! Not to mention you’re the one who cursed me! I haven’t forgotten that… हमेशा इस घर के नियम-कानून से बाँधे रखा...पर अब नहीं! अब मेरे पास पैसा है और मैं अपनी जिंदगी वैसे ही जीऊँगी जैसे मैं चाहती हूँ!” रितिका ने अपने इरादे सब के सामने जाहिर किये पर ये तो बस एक झलक भर थी|

"तुझे क्या लगता है की अपने बचपन का रोना रो कर तू सब को चुप करा सकती है? भले ही किसी ने तुझे बचपन से प्यार नहीं दिया पर जिसने किया उसे तूने क्या दिया याद है ना? तुझे सिर्फ मुझसे नफरत है तो बाकियों पर ये अत्याचार क्यों कर रही है? इतनी मुश्किल से इस घर में खुशियाँ आई हैं और तू उनमें आग लगाने पर तुली है!" मैंने गुस्से में कहा| "तेरी माँ के मरने के बाद मैंने ही तुझे संभाला था, तुझे तो याद भी नहीं होगा! बेटी तुझे किस बात की कमी है इस घर में?" माँ ने कहा|

"याद है....आपके सुपुत्र ने ही बताया था और इसीलिए आपसे मुझे उतनी शिकायत नहीं जितनी इन सब से है! मेरा दम घुटता है यहाँ!" रितिका अकड़ कर बोली|

"तो निकल जा यहाँ से! और आज के बाद दुबारा कभी अपनी शक्ल मत दिखाइओ!" चन्दर भैया ने लट्ठ जमीन पर फेंकते हुए कहा| "मेरे ही खून में कमी थी....या फिर ये तेरी असली माँ का गंदा खून है जो अपना रंग दिखा रहा है!" भैया ने कहा और रितिका से मुँह मोड लिया! रितिका चल कर मेरे पास आई जबरदस्ती नेहा को खींचने लगी| नेहा ने मेरी कमीज अपने दोनों हाथों से पकड़ राखी थी, रितिका ने अपने हाथों से उसकी पकड़ छुड़ाई| इधर नेहा को खुद से दूर जाते हुए देख मेरी आँखों से आँसू बहने लगे, अनु का भी यही हाल था और वो लगभग रितिका से मूक जुबान में मिन्नत करने लगी| पर रितिका पर इसका रत्तीभर फर्क नहीं पड़ा, नेहा ने रोना शुरू कर दिया था और रितिका उसी को डाँटते हुए घर से निकल गई| बाहर उसकी शानदार काले रंग की Mercedes खड़ी थी जिसमें बैठ वो अपने हवेली चली गई और इधर सारा घर भिखर गया|

पिताजी और ताऊ जी आंगन में पड़ी चारपाई पर सर झुका कर बैठ गए, माँ और ताई जी रसोई की दहलीज पर बैठ गए, भाभी और चन्दर बरामदे में पड़ी चारपाई पर बैठ गए और मैं और अनु स्तब्ध खड़े रहे! जो कुछ अभी हुआ उससे हम दोनों के सारे सपने चूर-चूर हो गए थे| माँ ने हम दोनों को 2-3 आवाजें मारी पर हमारे कानों में जैसे वो आवाज ही नहीं गई| आखिर भाभी ने उठ कर हमारे कन्धों पर हाथ रखा तब जा कर हमें होश आया| अनु ने मेरी तरफ देखा तो मेरी आँखें आंसुओं की धारा बहा रही थी| वो कस कर मुझसे लिपट गई और जोर-जोर से रोने लगी! भाभी ने उसके कंधे पर हाथ रख कर उसे शांत करवाना चाहा पर वो चुप नहीं हुई| वो रो रही थी पर मैं तो रो भी नहीं पा रहा था, दिल में आग जो लगी हुई थी! आज तीसरी बार मैंने नेहा को खोया था और ये दर्द दिल में आग बन कर सुलग उठा था| मैंने अनु को खुद से अलग किया और तेजी से दरवाजे की तरफ बढ़ा तो अनु ने एकदम से मेरा हाथ पकड़ कर मुझे रोक लिया| वो जानती थी की मैं रितिका की जान ले कर रहूँगा; "प्लीज....अभी आपकी जर्रूरत… यहाँ इस घर को है!" अनु ने रोते हुए कहा और कस कर मेरा हाथ थामे रही| उसकी बात सही थी, पहले मुझे अपने परिवार को संभालना था उसके बाद मैं रितिका की हेकड़ी ठिकाने लगाने वाला था| मैंने हाँ में सर हिला कर उसकी बात मान ली और वापस आंगन में आ गया|

मैं ताऊ जी के सामनेघुटने मोड़ कर बैठ गया और उनसे पूछने लगा; "ताऊ जी...आप ने मेरी शादी में कितने पैसे खर्चा किये?....बोलिये?"

"मैंने जो भी किया वो सब से पूछ कर अपनी ख़ुशी से किया! ये हमारे घर की आखरी शादी थी....अगली शादी देख सकूँ इतनी मेरी उम्र नहीं! और तू भी उसकी बातों पर ध्यान मत दे!" ताऊ जी बोले| फिर उन्होंने चन्दर भय से कहा की वो सब को मना कर दें आज की पार्टी के लिए! इतना कह कर ताऊ जी उठ कर जाने लगे तो मैं उनके गले लग गया| "बेटा......!!!" वो बस इतना कह पाए और फिर अपनी आँखों में आँसू लिए अपने कमरे में चले गए| पिताजी ने मुझे अपने पास बैठने को कहा, उधर अनु और भाभी माँ-ताई जी के पास बैठ गईं| "बेटा.....हम सब ने ये सोचा भी नहीं था.... इस परिवार को फिर से बिखरने मत दिओ!" पिताजी रोते हुए बोले| मैंने उनके आँसू पोछे और उनसे घर के असली हालात जाने| रितिका की शादी में मेरी शादी से भी दुगना खर्च हुआ था और इसके चलते घर के हालात डगमगा गए थे| ताऊ जी और पिताजी ने जैसे-तैसे हालात संभाले ही थे की रितिका के साथ वो काण्ड हुआ, फिर चन्दर भैया का नशा मुक्ति केंद्र जाना और पोलिस की पहरेदारी, इस सब के चलते हालात खराब होने लगे| ले दे कर अब हमारे पास जमीन के दो बड़े टुकड़े बचे थे जिनसे आराम से गुजर-बसर हो रही है| ऐसा नहीं था की हालात बहुत पतले थे पर अब हालत वो नहीं थे जो 2 साल पहले हुआ करते थे| मुझे ये सब जानकार बहुत धक्का लगा था पर मैं इसे जताना नहीं चाहता था| कुछ देर बाद जब चन्दर भैया वापस आये तो मैं उन्हें ले कर ताऊजी के कमरे में गया| ताऊ जी दिवार से सर लगाए जमीन पर बैठे थे, मैं और चन्दर भैया उनके सामने बैठ गए; "ताऊ जी आप चिंता क्यों करते हैं? आपके दोनों बेटे आपके सामने बैठे हैं, हम दोनों मिल कर घर संभाल सकते हैं और देखना इस बार फिर से खुशियाँ वापस आएँगी!" मैंने ताऊ जी को उम्मीद बंधाते हुए कहा, उन्होंने मुझे और चन्दर भैया को अपने गले लगने को बुलाया| हमें अपने सीने से लगाए वो बोले; "बच्चों अब तुम दोनों का ही सहारा है! संभाल लो इस घर की कश्ती को!" ताऊ जी से मिल कर मैं और भैया वापस आये तो मैंने उन्हें भाभी का ख़ास ख्याल रखने को कहा क्योंकि वो 6 महीना प्रेग्नेंट थीं| मैं माँ और ताई जी के पास आया और उनके बीच में बैठ गया, दोनों ने अपना सर मेरे दोनों कन्धों पर रख दिया| "माँ, ताई जी आपका बेटा है ना यहाँ तो फि आपको कोई चिंता करने की कोई जर्रूरत नहीं|" मैंने कहा तो दोनों रो पड़ीं, तभी अनु आ गई और उसने माँ को संभाला और मैंने ताई जी को| कुछ देर बाद अनु को मैं वहीँ छोड़ कर भाभी के पास आया| चन्दर भैया भाभी के पास सर झुका कर बैठे थे; "क्या भैया मैंने आपको यहाँ भाभी का ख्याल रखने को भेजा और आप हो की सर झुका कर बैठे हो?! अच्छा भाभी ये बताओ, आप चाय पीओगे?" मैंने कमरे में कैद शान्ति को भंग करते हुए कहा, भाभी ने मुझे इशारे से अपने पास बुलाया और अपने पास बिठाया| "तूने दुःख छुपाना कहाँ से सीखा?" भाभी ने भीगी आँखों से पुछा| "जब लगने लगा की मेरे रोने से मेरे परिवार को कितना दुःख होता है तो ये आँसूँ अपने आप सूख गए!" मैंने कहा और सब के लिए चाय बनाने लगा| चाय बना कर मैने सब को दी, दोपहर में किसी ने कुछ नहीं खाया और मैं बस एक कमरे से दूसरे कमरे में आता-जाता रहा ताकि थोड़ी चहल-पहला रहे और घर वाले ज्यादा दुखी न हों| संकेत ने भी जब फ़ोन किया तो मैंने उसे सब बता दिया|

रात हुई और अनु ने सब के लिए खाना बनाया पर किसी का मन नहीं था, मैंने एक-एक कर सबको उनके कमरों से बाहर निकाला और एक साथ बिठा कर सब को खाना खिलाया| जैसे-तैसे सब ने चुप-चाप खाना खाया, और सब सोने चले गए| मैं और अनु साथ ही ऊपर आये और उस सूने कमरे को देख दोनों भावुक हो गए, अनु मेरे कंधे पर सर रख कर रोने लगी| पर मेरी आँखों में अब आँसू नहीं बचे थे, मुझे इस वक़्त मजबूत बनना होगा यही सोच कर मैंने अपने होंठ सी लिए| अनु को बड़ी मुश्किल से चुप करा कर लिटाया और मैं भी उसकी तरफ करवट ले कर लेट गया| अनु मेरे नजदीक आई और अपना सर मेरे सीने में छुपा कर सोने की कोशिश करने लगी| आज उसे भी वही दर्द हो रहा था जो मुझे 'मुन्ना' के चले जाने के बाद हुआ था| कुछ देर बाद अनु सो गई, पर मैं सोचता रहा....
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RE: Hindi Antarvasna - काला इश्क़ - by desiaks - 07-14-2020, 01:11 PM

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