Hindi Antarvasna - काला इश्क़
07-14-2020, 01:11 PM,
#99
RE: Hindi Antarvasna - काला इश्क़
"कब कहाँ सब खो गयी
जितनी भी थी परछाईयाँ
उठ गयी यारों की महफ़िल
हो गयी तन्हाईयाँ"

अब शर्म से लाल होने की बारी माँ की थी, माँ तो ताई जी के पीछे छुप गईं| इधर डैडी जी ने संकेत से गाना बदलवाया जिसे सुन सारे जोश में आ गए, आदमियों की एक टीम बन गई और औरतों की एक टीम|

'ऐ मेरी जोहराजबीं' ओये होये होये !!! क्या महफ़िल जमी छत पर की अंताक्षरी शुरू हो गई| मर्द गा रहे थे और औरतें शर्मा रहीं थी, सब को उनकी जवानी के दिन याद आ गए| इस सब का थोड़ा बहुत श्रेय शराब को भी जाता है जिस ने समां बाँधा था और सब मर्द थोड़ा झूम उठे थे| तभी अनु उठ के जाने लगी तो मैंने गाना शुरू किया; "आज जाने की जिद्द न करो!" मेरा गाना सुन वो वहीं ठहर गई, घूंघट के नीचे उसके गाल लाल हो गए थे और भाभी उसका हाथ पकड़ उसे अपने पास बिठा लिया| रात दस बजे तक महफ़िल चली और फिर सब धीरे-धीरे जाने लगे| आखिर बस परिवार के लोग रह गए, ताऊ जी ने मुझे अपने पास बुलाया और बोले; "बेटा दुबारा उदास मत होना!" मैंने सर हाँ में हिला कर उनकी बात मानी| आज एक बार रितिका को हार मिली थी....वो आई तो थी यहाँ मेरा बर्थडे और अनु के माँ बनने की ख़ुशी को नजर लगाने पर आज उसे एक बार मुँह की खानी पड़ी थी| उसकी लाख कोशिशों के बाद भी मेरा परिवार नहीं टूटा बल्कि ताऊ जी की वजह से वो एक साथ खड़ा रहा| रात को सारे मर्द छत पर सोये थे और तब ताऊ जी ने डैडी जी से साड़ी बात कही जिसे सुन वो बहुत हैरान हुए और मुझे डाँटा भी की मैंने उन्हें क्यों कुछ नहीं बताया, पर काम के चलते मुझे होश ही नहीं रहा था| अगली सुबह को मम्मी-डैडी अयोध्या चले गए, उन्हें वहाँ मंदिर में माथा टेकना था|

डैडी जी के जाने के बाद अनु मेरे पास आई और मुझसे बोली; "आपको लगता है की वो वाक़ई में wish करने आई थी?"

"वो यहाँ सिर्फ हमारी खुशियों को नजर लगाने आई थी! अपना रुपया-पैसा और ऐशों-आराम की झलक दिखाने आई थी! इतनी मुश्किल से ये परिवार सम्भल रहा था और वो ...." मेरे मुँह से गाली निकलने वाली थी सो मैंने खुद को रोक लिया और आगे बात पूरी नहीं की| खेर दिन बीतने लगे और हमदोनों बैंगलोर वापस नहीं गए| जाते भी कैसे? यहाँ कोई नहीं था जो घर संभाल सके और भाभी का ख्याल रख सके| "बेटा काम भी जर्रूरी होता है, तुम दोनों जाओ और काम सम्भालो हम सब हैं यहाँ!" ताऊ जी बोले पर अनु ने साफ़ मना कर दिया; "ताऊ जी, भाभी की देखभाल जर्रूरी है और मेरे न होने से यहाँ घर का काम कौन देखेगा? आखिर माँ, ताई जी और भाभी को ही काम करना पड़ेगा और ये मुझे कतई गवारा नहीं|" अनु बोली|

"ताऊ जी, अनु ठीक कह रही है| मैं वैसे भी लखनऊ में घर और ऑफिस की जगह देख रहा हूँ तो हम दोनों का ही यहाँ रहना जर्रूरी है|" मैंने कहा, ताऊ जी ने मेरी पीठ थपथपाई और बोले; "मुझे मेरे बच्चों पर नाज है!"

चूँकि अनु भी प्रेग्नेंट थी और उसे ही ज्यादा काम करना पड़ता था इसलिए मैंने घर के लिए एक वाशिंग मशीन ले ली, जिससे अनु का काम काफी कम हो गया|

दिन बीतने लगे और भाभी का नौवाँ महीना शुरू हो गया और अनु ने भाभी का बहुत ख्याल रखना शुरू कर दिया| भाभी का लगाव भी अनु से बहुत ज्यादा बढ़ गया था, दोनों साथ खाते और रात में अनु भाभी के पास ही सोती| ऑफिस का सारा काम मेरे ऊपर था और मैं रात-रात भर जाग कर सारा काम करने लगा था| खेती-किसानी का काम चन्दर भय ने संभाल लिया था और अब पैसे के तौर पर हालात सुधरने लगे थे| इधर दिवाली आ गई और घर की साफ़-सफाई मैंने और चन्दर भैया ने संभाली| दिवाली से 2 दिन पहले पिताजी ने घर में हवन करवाया ताकि घर में सुख-शान्ति बनी रहे| धन तेरस पर मैं माँ और ताई जी को बजार ले कर गया और उन्होंने शॉपिंग की| दिवाली के एक दिन पहले मम्मी-डैडी जी आये और वो भी बहुत तौह्फे लाये, ख़ास कर भाभी के लिए| आखिर दिवाली वाले दिन अच्छे से पूजा हुई, चूँकि शादी के बाद अनु की ये पहली दिवाली थी तो पूजा में हमें सबसे आगे बिठाया गया| पूजा के बाद सब ने अनु को उपहार में बहुत से जेवर दिए और उसे बहुत सारा आशीर्वाद मिला| अनु की आँखें उस पल नम हो गईं थीं, माँ ने उसे अपने पास बिठा कर खूब दुलार किया| दिवाली के 5 दिन बाद सुबह भाभी को लेबर पैन शुरू हो गया, मैं और अनु उन्हें ले कर तुरंत हॉस्पिटल भागे| हम समय से पहुँच गए थे और डॉक्टर ने प्राथमिक जाँच शुरू कर दी थी| इधर सभी घरवाले पहुँच गए थे, कुछ देर बाद नर्स ने हमें खुशखबरी दी; "मुबारक हो लड़का हुआ है!" ये खुशखबरी सुनते ही सब ख़ुशी से झूम उठे| ताऊ जी ने नर्स को 2,001/- दिए और सब भाभी से मिलने आये| मैं और अनु भाभी के पास खड़े थे और उनका हाल-चाल पूछ रहे थे| भाभी का दमकता हुआ चेहरा देख सब को ख़ुशी हो रही थी| सब ने बारी-बारी बच्चे को चूमा और आशीर्वाद दिया, बस हम दोनों ही बचे थे| पहले मैंने अनु को मौका दिया तो अनु ने जैसे ही बच्चे को गोद में उठाया वो रोने लगा| ये देख वो घबरा गई और तुरंत बच्चे को मेरी गोद में दे दिया| मैंने जैसे ही उसके मस्तक को चूमा वो चुप हो गया और उसके चेहरे पर मुस्कराहट की एक किरण झलकने लगी| "लो भाई, अब जब कभी मुन्ना रोयेगा तो उसे मानु को दे देना| उसकी गोद में जाते ही बच्चे चुप जाते हैं!" भाभी बोलीं| पता नहीं क्यों पर उस बच्चे को देख मुझे नेहा की याद आ गई और मेरी आंखें छल-छला गईं| जिस प्यार को मैं अंदर दबाये हुआ था वो बाहर आ ही गया, अनु ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर मुझे रोने से रोकना चाहा पर अब ये आँसूँ नहीं रुकने वाले थे| मैंने बच्चे को अनु को सौंपा और सबकी नजर बचा कर बाहर आ गया, बाहर एक बेंच थी जहाँ मैं सर झुका कर बैठ गया और रोने लगा| कुछ देर बाद अनु भी सब से नजर बचा कर आई और मुझे बाहर ढूँढने लगी| मैं उसे सर झुका कर रोता हुआ दिखा तो वो मेरी बगल में बैठ गई, मेरे कंधे पर हाथ रख कर बोली; "प्लीज मत रोइये....मैं जानती हूँ आपकी जान नेहा में बस्ती है...पर हालत ऐसे हैं की....." अनु आगे बोलते-बोलते रुक गई|

"हालातों से तो मैं लड़ सकता हूँ पर उसकी नामुराद माँ का क्या करूँ? कमबख्त ....क्या बिगाड़ा था मैंने उसका? सब कुछ उसी ने किया ना? मैंने तो नहीं कहा था की मुझे प्यार कर! खुद मेरी जिंदगी में आई और सारी दुनिया उजाड़ दी! नहीं भूल सकता मैं नेहा को...she is my first born! कभी-कभी तो इतना दिल जलता है की मन करता है की उसे (रितिका को) बद्दुआ दे दूँ! पर फिर इस डर से रुक जाता हूँ की एक बार उसे बद्दुआ दी थी तो उसका पूरा घर उजड़ गया था, इस बार अगर उसे कुछ हो गया तो नेहा का क्या होगा?!" मैंने रोते हुए कहा| "जानती हूँ मैं कभी नेहा की कमी पूरी नहीं कर सकती पर शायद आपको अपनी औलाद दे कर उस दर्द को कुछ कम कर पाऊँ!" अनु मेरी आँखों में देखते हुए बोली और मेरे आँसूँ पोछे| "थैंक यू!" मैंने कहा और मुँह धो कर मैं अनु को अपने साथ अंदर ले आया| जब सब ने पुछा तो मैंने कह दिया की एक कॉल करना था| शाम तक भाभी को डिस्चार्ज मिल गया, बाकी घर वाले पहले ही घर आ चुके थे| मैं, चन्दर भैया, भाभी और अनु गाडी से घर पहुँचे, जहाँ पहले से ही पूजा की तैयारी हो चुकी थी| पूरे विधि-विधान से भाभी और मुन्ना ने घर में प्रवेश किया| शुरू के पंद्रह दिनों में जो रस्में निभाईं जाती हैं वो सब निभाईं गई| नामकरण हुआ तो मुन्ना का नाम किशोर रखा गया| जब वो रोता तो पूरे घर में उसे चुप कराने वाला कोई नहीं था| तब भाभी मुझे आवाज दे कर बुलाती और कहती; "लो सम्भालो अपने भतीजे को, जान खा जाता है मेरी| आखिर ऐसी कौन सा जादू है की तुम्हारी गोद में जाते ही चुप हो जाता है?" भाभी ने पुछा तो अनु पीछे से बोली; "भाभी जादू नहीं...ये तो प्यार है इनका!" ये सुनते ही भाभी ने अनु को छेड़ते हुए बोला; "कितना प्यार है वो तो दिख ही रहा है?!" अनु शर्म से लाल हो गई|
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