Sex kahani द मैजिक मिरर (Tell Of Tilism)
07-17-2020, 10:29 AM,
#9
RE: Sex kahani द मैजिक मिरर (Tell Of Tilism)
अपडेट - 9

राज नीचे झुक कर अपनी नूनजी को देखता है तो सच में शर्मिंदा होकर रोने वाला मुह बना लेता है।

कालू: राज के कंधों पर हाथ रखते हुए। तू हमारा दोस्त है भाई तू टेंशन मत ले। कपड़े पहन और चल मेरे साथ।

राज और बाकी सब की कालू के साथ साथ कपड़े पहन लेते है। और कालू के पीछे पीछे चल देते है।

कालू बाकी सब को एक झोपड़े के पीछे की तरफ ले जाता है। छोटू देख कर समझ जाता है कि वो कहाँ छोटू ही क्यों श्याम और मंगल भी जान जाते है कि कालू उन्हें कहा लेकर आया है लेकिन राज ज़रा देर से समझता है।

अब आगे.....

राज: ये क्या ये तो नाना जी का....

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कालू: इशशशशश धीरे बोल चुप चाप चल

कालू पीछे से एक खिड़की से राज और बाकी सब को उसके नाना जी की झोपड़ी में अंदर ले जाता है।

कालू: यहां पर एक दवा है जो तेरी नुनी को एक असली लण्ड बना सकती है। तुम्हारे नाना ने वो दवा कई लोगो को दी थी। हमने भी वो यहां से चुरा कर ले ली थी जिसके बाद तुम्हारे नाना इस जगह को ताला लगा कर रखने लगे थे।

राज वह चारों तरफ मज़ार घूमता है तो उसे वह इस कमरे में चारों तरंग अजीब सी बोतलों में बंद दवाईयां नज़र आती है।

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कालू थोड़ी बहुत देर की हेरा फेरी के बाद एक बोतल निकाल कर लेता है।

कालू: राज इस मे से 2 गोली ले लो।

अगले सात दिन तक असर मालूम पड़ जायेगा।

राज: कीच देर सोचता हज और फिर 2 गोली निकल कर ले लेता है।

कालू वापस वो बोतल छिपा कर रख देता है।

इसके बाद सभी चुप चाप बाहर निकल जाते है।

कालू ये लो ये चाबी इस खिड़की की है। आज से तुम अपने दादाजी की इस झोपडी के मालिक। इतना कह कर कालू, श्याम और मंगल के साथ वह से चल जाता है।

छोटू: अरे बाप रे मैं तो भूल ही गया था अम्मा बुला रही होंगी। तुमसे शाम को मिलता हुन राज भाई।

राज: छोटू को टाटा बाय बाय कहकर वही खड़ा रह जाता है।
राज के मुह मैं अभी तक वो गोलिया थी। राज को।वो खट्टी और मीठी लग रही थी तो राज उन्हें चूसता रहता है। राज को बहुत स्वाद आ रहा था।

तभी राज वहां से एक झाड़ू उठा कर अपने नाना की झोपड़ी की सफाई करने लगता है। लेकिन राज वो गोलिया चूस कर इतना खो जाता है कि उसे और खाने का मन करने लगता है।

राज थोड़ी मसक्कत के बाद वो दवा की बोतल ढूंढ लेता है। राज उसमें से कुछ 2-3 गोलियां निकाल कर अपनी हथेली पर रख लेता है। उन गोलियों को हाथ में रख कर राज सोचता है कि है तो ये दवा लेकिन इनका कोई साइड इफ़ेक्ट तो नही होगा ना। मम्मी बोलती है ज्यादा दवा लेने से हमारी बॉडी की इम्युनिटी खत्म हो जाती है और हम दवाओं पर डिपेंड हो जातें है।

इतना सोचने के बाद राज एक नज़र उन गोलियों पर डालता है फिर सोचने लगता है लेकिन इनका टेस्ट बहुत अच्छा है। और वैसे भी ये तो आयुर्वेदिक है ना तो इनका साइड इफ़ेक्ट नही होगा। और अगर हो भी गया तो कितना एफ्फेक्ट होगा।

राज अपनी पूरी बच्चा बुद्धि लगाने के बाद वो तीनों गोलिया अपने मुह मैं डाल लेता है। करीब 5 मिनट बाद गोलिया पानी बनकर राज के शरीर में घुस जाती है।

अब राज को प्यास लगती लगने लगती है कि वही दवाओं की बोतल के पास एक और छोटी बोतल में नीले रंग का पानी रखा नज़र आता ही जिस पर लिखा था ड्रिंक मी..

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राज बिना सोचे समझे उसे एक झटके में पी जाता है। आखिर उसे प्यास भी तो बहुत तेज लगी थी।उस पानी को पीते ही राज को अजीब सा लगता है उसका स्वाद भी किसी सोडा वाटर की तरह था।

राज अपने नाना जी के कमरे की सफाई करने की सोच नही रह था लेकिन वह एक मोटी परत धूल की थी जिस कारण से राज ने सोचा क्यों ना इस धूल को हटा दिया जाए। तो राज अपने नाना जी के कमरे की सफाई करने लगा।

पूरे कमरे की सफाई के बाद जैसे ही राज उस खिड़की के पास झाड़ू लगाने लगा तो वह धूल की परत और जगह से कुछ ज्यादा थी । राज ने बहुत झाड़ू लगायी लेकिन वो धूल बहुत गहरी थी। तो राज ने उस धूल की परत को खोदने का निश्चय किया।

आस पास नज़र दौड़ाई तो उसे वहां एक फावड़े जैसा कुछ नज़र आया जो उसी कमरे के एक कोने में कुछ कपड़ों के पीछे छिपा पड़ा था। राज ने उस फावड़े से वह की धूल खोदी तो वहां आंगन नही बल्कि मिट्टी थी। राज ने जैसे ही उस मिट्टी में हाथ चलाये तो उसके हाथ एक बक्से से टकराये। वह पर एक लकड़ी का बक्शा गड़ा हुआ था।
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राज खुदाई करके उस बक़्शे को निकाल लेता है और थोड़ी जोर जबरदस्ती से उस बक्शे को तोड़ देता है। बक्शे के टूट ते ही उसमें से एक और छोटा सा बक्शा निकलता है।

राज थोड़ी जोर मसक्कत करके उस लकड़ी के बॉक्स को निकाल लेता है। राज उस बॉक्स को निकाल कर के कमरे में पड़ी एक आधी खाली टेबल पर रखते हुए उसकी मिट्टी साफ कर रहा था। जैसे जैसे उस बक़्शे से मिट्टी साफ होती है वैसे वैसे राज की उस बक़्शे के अंदर क्या होगा ये जानने की इच्छा और भी प्रबल हो जाती है।

जब राज अच्छे से बक़्शे की मिट्टी साफ कर लेता है तो उसे चाबी के खांचे बने हुए नहीं दिखते। राज उस बक़्शे को लेकर खिड़की के पास ले जाता है । जहां पर सूरज ढल रहा था और हल्की लाल रंग की रोशनी जैसे किस जलती आग के पास से आती है ठीक वैसी ही रोशनी उस खिड़की से आ रही थी। राज उस बक़्शे को चारों और से घुमा कर देखता है कि शायद कहीं से इसे खोलने का कोई तरीका मिल जाये। कोई चाबी का खाँचा या पापा के सूटकेस जैसा पासवर्ड लगाने वाला हो।

राज था तो बच्चा ही वो कहाँ से दिमाग लगाए की इस बक़्शे मैं अगर चाबी का खाँचा मिल भी गया तो उसके पास कोनसी चाबी पड़ी है जिस से वो इसे खोल लेगा। एयर अगर पासवर्ड वाला भी मिल जाये तो उसे कोनसे पासवर्ड मिल जाएंगे सारे पासवर्ड लगा कर देखने में तो उसकी ज़िन्दगी गुज़र जाएगी।

लेकिन फिर भी राज काफी कोशिश कर रहा था। अचानक राज को बक़्शे के ऊपर बने चित्र चमकते हुए नज़र आते है। राज उन्हें देखने के लिए जैसे ही खिड़की को पीठ देकर बक़्शे को देखता है उसे कुछ नज़र नही आता।

राज सोचता है शायद ये उसकी आँखों का भृम होगा। वैसे भी वो सिर्फ जादू की कहानियां पसंद करता है तो शायद उस वजह से उसे चारों और जादू ही नज़र आ रहा है । या फिर शायद ऐसा होने की वो इच्छा रखता है। राज मुस्कुराते हुए फिर से खिड़की की और मुड़ता है जैसे ही राज खिड़की की और घूमता है। सूरज की लाल रोशनी उस बक़्शे पर बने अजीब से चित्र के केंद्र पर पड़ती है।

सूरज की किरण के उस चित्र के केंद्र पर पड़ते ही वो चित्र चमकने लगते है। कोई तीस चालीस सेकंड ही गुजरे थे को वो चित्र इधर उधर हिलने लगते है और बक़्शे के बीच मे जगह छोड़ते हुए एक नाली जैसे कलाकृति बना लेते है। एयर वो कलाकृति जहां पर समाप्त होती है वहां पर एक चाबी जैसा खाँचा बना हुआ था।

राज जैसे ही बक़्शे को हवा में उठा कर उस चाबी के खांचे को देखने की कोशिश करता है राज जोर से चीख पड़ता है।
दरअसल राज की उंगलियां जहां बक़्शे के साइड में उन चित्रों पर थी उन चित्रों मैं एक तलवार का स निशान बना हुआ था जिसे राज देख नहीं पाया । वो उन चित्रों। ने मिलकर ऐसी तलवार बनाई थी। जिस से राज की बाएं हाथ की चारों उंगलियों पर हल्का सा कट लग जाता है।

कट लगने के बाद राज की उंगली से निकले खून की दो-तीन बून्द उन चित्रों से होते हुए वो नालीनुमा बानी हुई आकृति में चली जाती है जहाँ से वो चाबी के खांचे की और जाने लगती है।

राज ने सोचा अंदर कुछ सामान होगा वो खून लगने से हो सकता है खराब हो जाये। उसने बक़्शे को तुरंत सीधा करके रख दिया।

अब तो राज की हालत बिल्कुल पतली हो गयी थी। क्यों कि एक तो बक़्शे पर बने वो चित्र बिना सूरज की रोशनी के भी चमक रहे थे दूसरा उसकी खून की बूंदे वो नीचे गिरने की बजाय सीधे खड़े बक़्शे मैं ऊपर की और बढ़ रही थी और सीधी चाबी जैसे बने खांचे की और जा रही थी।

राज अंदर से बहुत डर रहा था। सोच रहा था कहीं कुछ गलत तो नही कर दिया। ये ज़रूर दादाजी का ही कुछ सामान होगा। सब लोग बोलते है कि दादाजी बहुत बड़े जादूगर थे।

राज अभी ये सोच ही रह था कि खून की बूंद चाबी के खांचे मैं समा जाती है। खांचे मैं जैसे ही खून की बूंद जाती हैबक्शे खुद बा खुद खुलने लगता है। वो नाली जैसी बानी आकृति दोनों एक दूसरे से विपरीत दिशा में अलग हो रही थी।

जैसे ही बक़्शे खुलता है राज को वहां पर सिवा एक कागज के टुकड़े के कुछ भी नहीं दिखता । राज जैसे ही उस काग़ज़ के टुकड़े को अपने दाहिने हाथ से उठा कर खोलता है तो चोंक जाता है। ये कागज़ का टुकड़ा पुराने ज़माने के नक्शे की तरह दिख रहा था लेकिन ये तो बिल्कुल खाली है। और उस नक्शे के पास में एक दिशा सूचक यंत्र मेरा मतलब एक कंपास भी रखा हुआ था।

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राज उसे चारों और घूमाकर देखता है लेकिन कुछ नहीं दिखता। तभी हल्की सी हवा चलने लगती है। जिस से वो नक्शा मुद कर राज के हाथ पर चिपक जाता है राज उसे धेने हाथ से पकड़े पकड़े ही हटाने की कोशिश कर रहा था लेकिन सफल नही हो पाया। आखिर में हार मानकर बाएं हाथ से उस नक्शे को पकड़ा। जैसे ही राज ने बाएं हाथ से नक्शे को पकड़ा वो नक्शा राज की बाएं हाथ की उंगलियों से खून चूसने लगा। जिसे देख कर राज एक बार तो डर गया लेकिन अगले ही पल उसकी आंखें आश्चर्य से खुली की खुली रह गयी।

जैसे जैसे राज का खून वो नक्शा सोख रहा था वैसे वैसे उस खाली नक्शे पर चित्र उभर रहे थे। राज ने दर कर अपना हाथ वहां से हटा लिया। राज के हाथ हटाते ही कुछ ही वक़्त में राज के देखते ही देखते वो उभरे हुए सारे चित्र एक बार फिर से गायब हो गए।

तभी शाम होने तक राज के घर नही लौटने पारर नानी परेशान हो रही थी। नानी ने घर पर छोटू को बुला रखा था। छोटू रौ रहा था और नानी छोटू पर चिल्ला रहा था। राज नानी की आवाज सुन कर अपने नाना जी के कमरे में उस बक्शे को छिपा कर खिड़की बैंड कर देता है और बाहर उस खिड़की को ताला लगा कर भागता हुआ नानी के पास चला जाता है।

नानी: राज बेटा.... तू ठीक तो है ना? कहा था इतनी देर से? क्या कोई तुझे परेशान कर रहा था? बता बेटा वो कोई भी हो आज उसकी खेर नहीं। उसकी सारी पुश्तों को मिटा दूंगी मैं बात क्या हुआ था?

राज: नानी नानी क्या हुआ? आप इतना परेशान क्यों हो रही हो। वो क्या है ना नहाने के बाद में गांव की हरियाली देख कर उसी में खो गया था तो यही अपने घर के पीछे घूमने लग गया था। वो तो आपकी आवाज सुना तो दौड़ा दौड़ा चला आया। और फिर आपने ये भी नही बताया कि नाना जी के झोपड़े के पास मैं से नदी होकर गुजरती है। वरना इतनी दूर नहाने ही नही जाता। और आप यहां छोटू को रुला रही है। ले दे के यही तो एक दोस्त बना है मेरा उसे भी आप...

तभी नानी राज की बात को काट कर...

नानी: बस बस इतनी गलतियां निकालने की ज़रूरत नही है। और तू ने क्या कहा, घर के पीछे? कहीं तू नाना जी के झोपड़े मैं तो नही गया था?

राज: कैसी बात करती हो नानी वो झोपड़ा तो लॉक है।

नानी : मतलब तू जाने की कोशिश तो कर ही रहा था। है ना?

राज: नही वो तो मैं... हाँ तो मैं ये देख रहा था कि उसका ताला मजबूत तो है ना।

नानी राज के कान पकड़ते हुए

नानी: बदमाश चल अंदर तेरी आज खेर नही।

छोटू अपने घर चला गया, राज नानी के साथ घर में,

अब तो रोज नानी राज को दिन रात नई नई कहानीयां सुना देती थी।

लेकिन एक बात आज तक नानी को परेशान किये हुए थी कि मैंने राज को जब राज पहली बार कहानी के लिए बोला था तो उसे वही उस तिलिशमी आईने की कहानी क्यों सुनाई?

यूँही कहानियां सुनते सुनाते और राज की बदमाशियां झेलते हुए राज और नानी को पता ही नही चला कि गर्मी की छुट्टियां कब खत्म हो गयी।


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