raj sharma story कामलीला
07-17-2020, 11:56 AM,
#14
RE: raj sharma story कामलीला
तब तक कुछ भूख भी लग आई थी तो हमने वहीं ऊपर रेस्टॉरेंट से पिज़्ज़ा खाये और इसके बाद उसकी मर्ज़ी के मुताबिक मैं उसे बड़े इमामबाड़े ले आया जहाँ काफी देर इधर उधर घूमते, बकैती करते वक़्त गुज़ारा और फिर सामान, चप्पल देखने वाले को पकड़ा कर बाउली और भुलभुलइयाँ की तरफ चले आये।
वहाँ कई कम रोशनी वाले कोनों में ऐसे जोड़े दिखे जो लिपटे चिपटे चूमाचाटी में मस्त थे और जिन्हे देख कर उसकी आरजुएँ भी सर उठाने लगीं थीं।
अतएव वह मुझे एक दर में खींच लाई।
‘देखो, मैं नहीं चाहती कि मैं सबकुछ अपने मुंह से कहूं। मैं चाहती हूँ कि तुम खुद से समझो कि मेरी उम्र की लड़की की क्या इच्छाएँ होती हैं। तुम्हें जो लगे करो… मेरी सिर्फ एक शर्त है कि मेरी वर्जिनिटी नहीं डिस्ट्रॉय होनी चाहिए वर्ना पूरी उम्र पछताऊँगी कि मैंने ऐसा कदम क्यों उठाया। इसके सिवा तुम्हें सबकुछ करने की इज़ाज़त है।’
उसने मेरी आँखों में देखते हुए कहा।
अब अंधे को क्या चाहिये… दो आँखें ही न!
मैंने खड़े खड़े उसे पीछे की दीवार से सटाते हुए अपनी बाँहों में बाहर लिया।
वह काँप सी गई।
ज़ाहिर है कि किसी मर्द के इतने पास आने का उसके लिए यह पहला मौका था।
मैं उसकी आँखें में झांकते हुए अपना चेहरा उसके चेहरे के इतनी पास ले आया कि हमारी साँसें एक दूसरे से टकराने लगीं।
‘इस बार मत धकेलना, चाहे जितनी भी बेचैनी हो।’
उसने कोई जवाब नहीं दिया, बस मेरी आँखों में देखती रही।
मैंने अपने होंठ उसके होंठो के इतने पास ले आया कि वह उनकी गर्मी महसूस कर सके।
कुछ देर वह उनकी गर्मी बर्दाश्त करती मेरी आँखों में देखती रही। मैं उसकी भारी हो गईं साँसें अपने होंठों पर महसूस करता रहा, फिर जब लगा कि उसके होंठ अपने पहले बोसे के लिए तैयार हो चुके थे तो मैंने उसके होंठों से अपने होंठ जोड़ दिए।
उन्होंने वाकयी गर्मजोशी से मेरे होंठों का स्वागत किया, एक गहरी थरथराहट उसके जिस्म से गुज़री थी जिसे बखूबी मैंने जिस्म पर महसूस किया था और जैसे किसी नशे के अतिरेक से उसकी आँखें मुँद गईं थीं।
मैं उसके निचले होंठ को चूसने लगा और कुछ देर की झिझक, शर्म और हिचकिचाहट के बाद उसने भी मेरे ऊपरी होंठ को चूसना शुरू किया।
जब मैंने उसके ऊपरी होंठ पर अपनी पकड़ बनाई तो उसने मेरे निचले होंठ पर पकड़ बना ली और होंठों के इस ज़बरदस्त मर्दन के बीच ही मैंने उसके होंठों को चीरते हुए अपनी ज़ुबान उसके मुंह में घुसा दी।
उसने उसका भी बहिष्कार न किया और उसे चूसने लगी, कुछ देर बाद उसने अपने जीभ मेरे मुंह में दी जिसे मैं चूसने लगा।
इस बीच मेरे दोनों हाथ लगातार उसके दोनों मखमली नितम्बों को सधे हुए हाथों से दबाते सहलाते रहे थे।
हालाँकि यह सिलसिला ज्यादा लम्बा न चल पाया क्योंकि कुछ पर्यटक उधर आ निकले थे तो हम अलग हो गए और वह आँखें चुराती अपनी अस्त व्यस्त हो चुकी साँसों को दुरुस्त करने लगी।
‘चलो अब यहाँ से चलते हैं।’ उसने अपने नक़ाब को दुरुस्त करते हुए कहा और चेहरे को वापस कवर कर लिया।
हम वहाँ से बाहर निकल आये… इमामबाड़ा छोड़ कर हम बुद्धा पार्क पहुंचे और वहीं बोटिंग करते हुए बतियाने लगे।
‘दादा जी पूछेंगे नहीं कि आज इतनी देर क्यों हो गई?’
‘कहाँ देर हो गई? तीन चार बजे तक ही तो वापसी होती है। मैंने कह भी दिया है कि मेरे पेपर होने वाले हैं तो मैं हफ्ते भर थोड़ी एक्स्ट्रा पढ़ाई करुँगी जिसके चलते मैं 6-7 बजे तक वापस आऊँगी।
तुम भी हफ्ते भर की छुट्टी ले लो, अब अगले सोमवार ही जाना। तब तक मुझे वह दुनिया दिखाओ जो मुझे किसी और तरीके से नहीं दिखनी थी।’
‘ओ के मैडम!’
वहाँ हम पांच बजे तक रुके जिसके बाद मैंने उसे आईटी पर छोड़ दिया जहाँ से वो टैम्पो पकड़ के चली गई।
मैं अपने ऑफिस पहुँच गया।
ज़बरदस्ती 8 बजे तक रुका और मैनेजर से हफ्ते भर की छुट्टी की गुहार लगाई, जिसके एवज में कई ताने तो मिले पर छुट्टी भी मिल गई और 9 बजे तक मैं वापस घर पहुँच कर ऊपर अपने पोर्शन में बंद हो गया।
दस बजे गौसिया के पास पहुँचने का वादा था।
तब तक वह भी अपने सब काम निपटा कर ऊपर अपने पोर्शन में लॉक्ड हो चुकी होनी थी।
और ठीक वक़्त पर मैं अँधेरे का फायदा उठाते हुए उसके पास पहुँच गया।
ऐसा लगता था जैसे वह भी इन हालात का फायदा उठाने के लिए खुद को मानसिक रूप से पूरी तरह तैयार कर चुकी थी, यह उसके कपड़ों से ज़ाहिर हो रहा था, उसने साटन की एक स्पैगेटी पहन रखी था जिसके ऊपरी सिरे से दोनो बूब्स को आधा देखा जा सकता था और नीचे जहाँ तक उसकी लम्बाई थी, सिर्फ पैंटी पहन रखी थी जिससे उसकी मखमली भरी भरी टाँगें पूरी तरह अनावृत थीं।
‘यह कब लिया?’
‘पहले कभी लिया था। बंद कमरे में कभी कभार पहन कर अपनी वर्चुअल आज़ादी को एन्जॉय कर लेती थी! बैठो यहाँ।’
‘नीचे से किसी के आने का तो कोई चांस नहीं?’ मैं बेड पर उसके पास ही बैठते हुए बोला।
‘नीचे जीने पर ही दरवाज़ा लॉक है। वैसे भी दोनों दादा दादी घुटनों के दर्द के शिकार हैं… ऊपर पिछले दो साल में तो नहीं चढ़े।’
‘हम्म… तो अब क्या करने का इरादा है?’
‘मैंने कभी कभार नेट पे ‘उसे’ देखा है या फिर बच्चों के… मुझे दिखाओ कैसा होता है?’ कहते हुए उसने ऐसे होंठों पर ज़ुबान फेरी थी जैसे अंदर तक मुँह सूख गया हो।
मैंने देर नहीं लगाई… अपनी लोअर पहुँचों में पहुंचा दी और एकदम से अंडरवियर नीचे कर दी।
अभी यहाँ आने से पहले ही, ऐसे ही किसी संभावित क्षण की अपेक्षा में मैंने छोटे भाई की शेविंग कर डाली थी पर अभी चूँकि माहौल बना भी नहीं था इसलिए सुप्त अवस्था में ही था।
‘यह…?!? यह तो बहुत छोटा है।’ वह हैरानी से उसे नज़दीक से देखने लगी- और इतना बेजान सा क्यों है?’
‘अरे आम हालत में सैनिक ऐसे ही रहता है। जब जंग लड़ने की नौबत आती है तभी तो मूड में आता है।’
उसकी निगाहों की तपिश ने छोटू को सचेत कर दिया और उसमें जान आने लगी, लिंग की त्वचा में पड़ी झुर्रियाँ फैलने लगीं और वह सीधा होने लगा, फिर देखते देखते पूरी तरह तन कर सैल्यूट करने लगा।
वह उसकी हर हरकत को गौर से देखने लगी।
‘हर चीज़ तीन स्वरूप में होती है- लार्ज, मीडियम और स्माल… यह क्या हैसियत रखता है?’
‘अलग अलग कन्टिनेंट्स में मर्दों के अलग अलग साइज़ होते हैं। इंटरनेशनल परिपेक्ष्य में देखोगी तो यह स्माल है और एशियाई रीज़न में देखोगी तो मीडियम।’
‘मतलब मेरे शौहर का इससे बड़ा हो सकता है।’
‘हाँ क्यों नहीं। इससे बड़ा भी और मोटा भी।’
‘तो वह उसमें अंदर घुसता कैसे है? मैंने कई बार शीशे में अपनी वेजाइना का छेद देखने की कोशिश की जो दिखता तक नहीं और उसमेंइतना भी आखिर कैसे घुसेगा। इससे बड़ा तो बाद की बात है।’
‘अब वर्जिनिटी का मसला न होता तो घुसा के बता देता।’
‘वर्जिनिटी का मसला न होता तो मैं यह सवाल क्यों पूछती बाबू! एक छोटे से छेद में जब ऐसी मोटी चीज़ घुसती होगी तो बेइंतहा दर्द होता होगा न?’
‘यह कुदरत का नियम है कि जब छोटी जगह में बड़ी चीज़ जगह बनाएगी तो खिंचाव दर्द पैदा ही करेगा लेकिन यह छेद ऐसी फ्लेक्सिब्लिटी रखते हैं कि एक बार में ही उस बड़ी चीज़ के लायक जगह बना लेते हैं। हाँ एण्टर करने के वक़्त दर्द ज़रूर होगा, इसे कम किया जा सकता है लेकिन बचा नहीं जा सकता।’
‘यह बार बार ठुनक क्यों रहा है?’
‘यह भी बच्चा है, मचल रहा है, अपनी जोड़ीदार की डिमांड कर रहा है। इसे छोड़ो, मैं समझा लूँगा।
तुमने देख लिया– अब मुझे देखने दो।’
‘क्या?’
‘अपना यह मक्खन मलाई जिस्म।’
‘खुद ही देख लो।’
मतलब साफ़ था कि खुद करो जो करना हो।
मैंने लोअर फर्श पे छोड़ा और पैर समेत कर पूरी तरह बैड पे आ गया, उसे भी बीच में कर लिया और उसके दोनों हाथ पकड़ कर ऊपर उठा दिए।
बगलों में रेशमी से बाल थे और वे किसी डिओ से महक रहीं थी।
मैंने बाकायदा उन्हें सूंघते हुए चूमा और उसके जिस्म में पैदा हुई थरथराहट को अपने होंठों पर महसूस किया।
फिर थोड़ा पीछे हट कर उसकी स्पैगेटी को किनारों से पकड़ कर ऊपर उठाते हुए सर से बाहर निकाल दिया।
उभरे हुए निप्पल पहले से पता दे रहे थे कि अंदर ब्रा नहीं थी और अब वे आवरण रहित, अपने पूरे सौंदर्य के साथ, पूरे आकार में मेरे सामने बेपर्दा थे।
दो बेहद खूबसूरत, गुदाज दूध से गोरे बेदाग़ मम्मे जिनके केंद्र में दो इंच का हल्का गुलाबी भूरा हिस्सा उन छोटी छोटी चोटियों को सुरक्षित किये था जो मेरी नज़रों की आंच से उभर रही थीं… तन रही थीं।
अंदाजतन वे 34 साइज़ के थे और वज़न के कारण नीचे गिर से रहे थे।
उसके गालों पर शर्म की गहरी लालिमा फैली हुई थी और उसने आँखें भींच ली थीं।
मैंने उसे कन्धों से थामते हुए लिटा लिया।
फिर अपने होंठों का एक स्पर्श उसके एक स्तन की तनी हुई चोटी पे दिया।
उसके जिस्म में फिर कंपकंपी पैदा हुई और उसने ‘सी’ करते हुए होंठ भींच लिए।
वैसा ही स्पर्श मैंने दूसरी चोटी पे दिया।
उसने हाथों की मुट्ठियों में चादर दबोच ली और पैरों की एड़ियां गद्दे में धंसा दीं।
मैं उसे चूमते हुए नीचे हुआ और उसके सपाट पेट के बीच हल्के उभरे और गहरे नाभि के गड्ढे पे रुका, जहाँ मैंने जीभ की नोक से हल्का सा स्पर्श दिया और उत्तेजना से वह कमान सी तन गई, पेट ऊपर उठ गया।
मैंने सीधे होते उसकी पैंटी में उँगलियाँ फसाईं और उसे नीचे करते एड़ियों से बाहर निकाल दिया।
उसने फिर भी मुझे नहीं रोका, बस वैसे ही आँखे बंद किये धीरे धीरे हांफती रहीं।
उदर की ढलान पर घने काले रेशमी बालों का बड़ा सा झुरमुट उस गुदाज़ मखमली योनि को ढके हुए था जो बंद कंडीशन में बस ऐसी लग रही थी जैसे पावरोटी पर एक चीरा लगा कर उसे बंद कर दिया गया हो।

अपनी सहूलियत के हिसाब से मैंने उसके घुटने मोड़ कर दोनों जांघों को यूँ फैला दिया कि वो बंद पड़ी गहरे रंग की लकीर खुल गई।
वह बस ख़ामोशी से होंठ भींचे थरथराती रही।
मैंने उस ज्वालामुखी के दहाने को दोनों अंगूठे लगाकर फैलाया।
एकदम सुर्ख सा अंदरूनी भाग मेरे सामने नुमाया हो गया।
छोटा सा सुर्ख रंग का भगांकुर… छोटी छोटी सी गहरे रंग की कलिकाएँ, नीचे हल्के गुलाबी रंग का वह भाग जो अभी अक्षत था, अछूता था, अनयूज़्ड था।
जहाँ योनिमार्ग इतना संकरा और आपस में ऐसे सटा हुआ था कि वहाँ गौर से देखने पर ही पता चलता था कि कोई छेद भी है, जो इस बात का सबूत था कि उसमें अभी लिंग तो क्या सींक भी न गई होगी।
लेकिन योनि असली नकली नहीं जानती… उसके लिए इतना काफी था कि कोई मर्द उसे उकसा रहा था, उत्तेजित कर रहा था और वो कामरस छोड़ रही थी।
उसके उस लगभग अदृश्य से छिद्र से निकलता पानी नीचे बहता उसके गुदाद्वार को गीला करते नीचे चादर तक पहुँच रहा था।
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RE: raj sharma story कामलीला - by desiaks - 07-17-2020, 11:56 AM

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