RE: raj sharma story कामलीला
एक बार एक परिवार ने उसके खिलाफ छेड़खानी की शिकायत दर्ज कराई थी लेकिन अंजाम यह हुआ था कि पुलिस तो उसका क्या कुछ बिगाड़ती, चंदू ने उस लड़की सुनयना के घर घुस के उसके साथ गलत कर दिया था और कोई कुछ नहीं कर पाया था।
उसकी दहशत ऐसी थी कि उसके खिलाफ बोलने के लिये कोई नहीं खड़ा होता था… हर किसी को सिर्फ बर्दाश्त ही करना होता था।
आज वह पहली बार उसकी फब्ती का शिकार नहीं हुई थी, पहले भी कई बार हो चुकी थी पर आज उसने हद ही कर दी थी।
आज जब अपनी गली में घुसी थी तो जाने कहां से वह भूत की तरह पीछे आ गया था और एकदम उसके नितम्बों के बीच सीधे उंगली घुसाते हुए बोला था- और गुठली, अभी तक चूत वैसी ही सीलपैक्ड रखे है या चुदवाना शुरू कर दिया है?
वह बचपन से ही ‘गुठली’ कहता था, क्यों कहता था उसे पता नहीं… उसकी मोटी उंगली उसने अपने गुदाद्वार में घुसती महसूस की थी और उसके शब्दों ने जैसे उसकी कानों की लवों को सुलगा दिया था।
उसे इतना तेज़ गुस्सा आया कि जी किया, बस उस पर पिल पड़े… पर जानती थी कि यह संभव नहीं था, साथ ही ज़िल्लत और घबराहट से उसका पसीना छूट गया था।
उसने खुद को एकदम आगे उचकाते हुए चंदू की उंगली से बचाया और दौड़ने के अंदाज़ में घर की तरफ चली। उसे लगा था चंदू पीछे आएगा पर वह पीछे नहीं आया।
हां उसकी आवाज़ ज़रूर आई- अभी हम जिन्दा हैं, कोई जुगाड़ न बना हो तो बताना।
वह घर पहुंची थी तो उसका मूड बहुत ख़राब था।
ऐसी हरकतें कई बार उसने रानो के साथ भी की थी और आकृति के साथ तो कई बार ब्रेस्ट पंचिंग की थी, जिसके बाद वह हमेशा रोते हुए घर लौटी थी।
पर न चंदू के खिलाफ वह पहले कुछ कर पाए थे और न अब हो पाने वाला था… सिवा उससे नफरत करने और कोसने के।
रानो के पूछने पर उसने जनानी गालियां देते हुए बात बताई और दोनों ही उसे कोसने लगीं।
तब रानो ने उसे एक और मनहूस खबर सुनाई कि आज चाचे को शायद ठंड सता रही होगी कि किचन में तापने पहुंच गया और सीधा हाथ जला बैठा था।
यह वाकई उनके लिए बुरी खबर थी क्योंकि उसका बायां हाथ बेहद कमज़ोर था और अपने सारे काम वह दाएं हाथ से ही करता था और वह भी अब कुछ दिन के लिए बेकार हो गया था।
रानो ने बताया कि अभी उसे अपने हाथों से खाना खिलाया है।
लैट्रीन की दिक्कत नहीं थी क्योंकि उसके लिए अटैच्ड बाथरूम था, जहां सेल्फ सर्विस वाला कमोड था, पर खिलाना, कपड़े उतारना पहनाना अब उन्हें करना पड़ेगा।
हालांकि यह उनके लिए बड़ी चिंता का विषय था लेकिन फ़िलहाल आज का काम हो गया था तो सबके खाने के बाद रानो भी ऊपर ही चली गई थी।
टीवी उन्ही लोगों के कमरे में था जहां पहले वे बहनें सोती थीं।
घर करीब चार हज़ार स्क़्वायर फिट में बना था लेकिन गलियारे के एंट्रेंस के बाद एक साइड किचन, उलटे हाथ की तरफ दो कमरे, उनके आगे बरामदा और उसके बाद बड़ा सा दलान।
जिसके अंत में एक और बरामदा जिसमें कभी जब घर में बाबा ने गाय पाल रखी थी तो उसे बांधते थे, उसी साइड सबके लिए कॉमन लैट्रीन बाथरूम और उसी की छत पर दो कमरे बने थे जिसकी सीढियां आँगन से गई थीं।
एक कमरे में बबलू अकेला रहता था और दूसरे में वे तीनों बहनें… नीचे एक अटैच्ड बाथरूम वाला कमरा चाचा के लिये रिज़र्व था और दूसरे में पहले माँ-बाबा और बाद में बाबा और बाबा के जाने के बाद वह रहती थी।
वहां चाचा की ही वजह से किसी को रहने की ज़रूरत हमेशा रहती थी। अब चूंकि वही सब ज़िम्मेदारियों को ओढ़े थी तो उसे ही वहां रहना था।
सबसे अंत में रानो के जाने के बाद उसने कपड़े बदले और लेट गई।
चंदू की उंगलियों की सख्त चुभन उसे अब भी अपने नितंबों की दरार में महसूस हो रही थी और चंदू से शदीद नफरत के बावजूद भी ये चुभन उसे टीस रही थी।
जाने क्यों उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसके नितंबों के बीच मौजूद वह छेद, जहां तक चंदू की उंगली पहुंची थी, उस स्पर्श को फिर से मांग रहा हो।
जैसे उस पर खुद उसका अख्तियार न हो, जैसे वह खुद उससे अलग कोई वजूद हो। शरीर में पैदा होती ऊर्जा कभी गुस्से में ढल जाती तो कभी बेचैनी में।
तभी चाचा की कराह ने उसकी तन्द्रा तोड़ दी।
उसे लगा जैसे चाचा किसी तकलीफ में हो… उसने ध्यान देकर सुना तो चाचा की एक कराह और सुनाई दी।
उसकी बेचैनी बढ़ गई।
वह बिस्तर से उठ गई, कमरे की लाइट जलाने की ज़रूरत नहीं महसूस की और ऐसे ही निकल कर पड़ोस के चाचा वाले कमरे में पहुँच गई।
चाचा के कमरे में हमेशा एक नाईट बल्ब जला करता था ताकि वह अंधेरे में कहीं डर न जाए या गिर गिरा न पड़े।
दरवाज़ा खुला ही रहता था।
और रोशनी में वह देख सकती थी कि चाचा ने पजामा घुटनों तक खिसकाया हुआ था और अपने बड़े से लिंग को पकड़े हुए था जो पूरी तरह उत्तेजित अवस्था में था।
उसका हाथ जला हुआ था और इस अवस्था में नहीं था कि वह उससे हस्तमैथुन कर सके पर शारीरिक इच्छा के आगे कमज़ोर पड़ के वही कर रहा था और यही उसकी तकलीफ का कारण था।
तभी चाचा के मुंह से एक कराह और निकली और वह असमंजस में पड़ गई कि ऐसी स्थिति में वह क्या करे।
उसने जल्दी से चाचा के पास पहुंच कर उसका हाथ लिंग से हटाया और कंधे तक ऊपर कर दिया। उसके हाथ में लगी क्रीम उसके लिंग में पुंछ गई थी। शीला ने उसके सरहाने रखी क्रीम फिर उठाई और उसके हाथ में लगा दी।
फिर उसके लिंग की तरफ ध्यान दिया तो पाया कि अब चाचा अपने उलटे हाथ से उसे रगड़ रहा था।
पर उस हाथ में इतनी जान ही नहीं थी… जल्द ही थक कर झूल गया और वह बेबसी से शीला को देखने लगा।
शीला ने उसकी आँखों में देखा तो लगा जैसे उनमें पानी आ गया हो और वह एकदम झुरझुरी लेकर रह गई… क्या करे वह अब?
उसे झिझकते देख चाचा ने फिर अपना हाथ नीचे ले जाना चाहा तो शीला ने उसे पकड़ लिया।
चाचा उसे छुड़ाने के लिए मचलने लगा।
अंततः उसे यही समझ में आया कि चाचा कोई सामान्य इंसान तो था नहीं जो स्थिति को समझ सकता। अगर उसे हस्तमैथुन की इच्छा थी तो बिना किए शायद न रह पाये और करने की हालत में खुद था नहीं।
एक ही विकल्प था कि उसके लिए अब शीला इस कार्य को अंजाम दे।
हलाकि यह उसके लिए अब तक गन्दा, घिनौना और ऐसा काम था जो उसके स्त्रीसुलभ आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने वाला था लेकिन इधर जब से उसने चाचा के लिंग को खुद साफ़ करना शुरू किया था उसकी मनोदशा बदलने लगी थी।
अब शायद उसमें ऐसे किसी भी कार्य के लिये विरोध की भावना बेहद क्षीण पड़ चुकी थी। उसने कुछ पल खुद को इस स्थिति के लिए मानसिक रूप से तैयार किया और फिर कांपते झिझकते हाथ से उसे थाम लिया।
बेहद गर्म लिंग… उसके कल्पना ने एक तपते हुए लोहे की गर्म रॉड से उसकी तुलना की।
लिंग पर उभरी मोटी-मोटी नसों में अजीब सा गुदगुदापन था।
वह अपना हाथ इतना ऊपर ले गई जहां लिंग के अग्रभाग को छू सके।
एक रबर के टमाटर जैसा महसूस हुआ।
जब वह उसके मुरझाये हुए लिंग को स्खलन के पश्चात् साफ़ करती थी तब ऐसा नहीं होता था पर अभी था और गर्म भी तब नहीं होता था जैसे अभी था।
फिर इतना नीचे ले गई कि हथेली लिंग की जड़ में लटकते बड़े से अंडकोषों से स्पर्श हुई… वे भी जैसे फूल पिचक रहे थे।
पर उसके हाथ ने बेहद धीमे अंदाज़ में क्रिया की थी जिससे चाचा को वह घर्षण नहीं मिला जो चाहिए था और उसने खुद कमर उचका उचका कर लिंग खुद से ही ऊपर नीचे किया तो शीला समझ सकी कि उसे कैसे करना था।
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