RE: raj sharma story कामलीला
और फिर उसे ऐसा लगा जैसे कुछ निकलने वाला हो।
उसके दिमाग में सनसनाहट इतनी ज्यादा हो गई कि खुद पर कोई नियंत्रण ही न रहा… नसों में इतनी तेज़ खिंचाव पैदा हुआ कि वह एकदम कमान की तरह तन गई और होंठों से एक तेज़ ‘आह’ छूट गई।
उसे ऐसा लगा था जैसे उसकी योनि में मौजूद मांसपेशियों ने उसके अंतर में भरी ऊर्जा एकदम बाहर फेंक दी हो… वह बह चली हो… दिमाग सुन्न हो गया।
कुछ सेकेण्ड लगे संभलने में और दिमाग ठिकाने पर आया तो हड़बड़ा कर उठ बैठी।
चाचा को देखा जो अजीब सी नज़रों से उसकी बालों से ढकी योनि को देख रहा था… शायद समझने की कोशिश कर रहा था कि जैसे उस जगह पर उसके लिंग के रूप में एक अवयव निकला है, शीला के क्यों नहीं निकला।
उसने चाचा की तरफ पीठ करके अपनी टांगें फैलाई और नीचे देखने लगी… क्या निकला था… पेशाब था या कुछ और… उस वक़्त नाइटी का जो हिस्सा उसकी योनि के नीचे था वह थोड़ा सा भीगा हुआ था लेकिन वह उसे सूंघ कर भी यह तय न कर पाई कि वह क्या था?
बहरहाल आज पहली बार उसे जिस आनन्द की प्राप्ति हुई थी… उसे पहले कभी भी उसने नहीं महसूस किया था, स्वप्नदोष के समय सपने में जो भी मज़ा मिला हो, उसे चैतन्य अवस्था में याद करना सम्भव नहीं।
उसने एक भरपूर अंगड़ाई ली, उठी और सफाई में लग गई।
सफाई करके अपने कमरे में पहुंची तो उसे उस रोज़ ऐसी नींद आई कि सुबह भी जल्दी उठने को न हुआ।
सालों बाद उसने वह दिन ख़ुशी और संतुष्टि के साथ गुज़ारा…
शाम को चंदू की वजह से फिर मूड ख़राब हुआ… आज उसने आकृति को अकेले में पकड़ कर उसके वक्षों का ऐसा मर्दन किया था कि वह रोते हुए घर आई थी।
शर्म भी नहीं आती कमीने को… आकृति उससे आधी उम्र की थी, मगर उस कमीने की नियत का कोई ठिकाना नहीं था।
रात को बिस्तर के हवाले होते वक़्त उसके दिमाग से चंदू निकल गया और फिर शरीर की दबी कुचली इच्छाएं सर उठा कर उस पर हावी हो गईं।
वह बहुत देर चाचा की ‘ईया’ का इंतज़ार करती रही लेकिन चाचा ने पुकार न लगाई… वैसे भी उसे रोज़ यह हाजत नहीं होती थी तो उसने खुद ही यह करने का फैसला किया।
कमरे को बन्द करके और अंधेरा करके आज उसने अपने पूरे कपड़े उतार दिए।
तेल का प्रबंध उसने पहले ही कर रखा था… अपने दोनों हाथ तेल में नहला कर पहले वह अपने वक्षों को धीरे-धीरे सहलाने-दबाने लगी… चुचुकों को चुटकियों में पकड़ कर खींचने मसलने लगी।
धीरे-धीरे पारा चढ़ने लगा और वक्षों से पैदा होती उत्तेजना की लहरें योनि में उतरने लगीं।
जब उसे अपनी योनि में गीलापन महसूस हुआ तो उसने एक हाथ वहां पहुंचा लिया और उसे सहलाने रगड़ने लगी… कल के अनुभव से पता था कि मेन पॉइंट कहां था तो आज उसी पे ज्यादा फोकस कर रही थी।
कभी इस हाथ से कभी उस हाथ से और दूसरा हाथ वक्षों का मर्दन करता रहता।
करते-करते चरमोत्कर्ष की घड़ी आ पहुंची और हाथों में तेज़ी लाते हुए उसने खुद को उस बिंदु तक पहुंचा ही लिया जहां स्खलन का शिखर मौजूद था।
फिर सुकून के साथ बिना कपड़ों के ही सो गई।
अगले दो दिन यही सिलसिला चला।
और चौथे दिन रात को चाचा ने पुकार लगाई।
उसे ऐसा लगा जैसे उसके रोम-रोम में चिंगारियां छूट पड़ी हों… वह ऐसे खुश हो गई जैसे कोई मनमांगी मुराद मिल गई हो।
वह जितनी जल्द हो सकता था चाचा के कमरे में पहुंच गई और चाचा को भी उसे देख कर तसल्ली पड़ गई… उसका बाहर निकला लिंग जैसे उसी की प्रतीक्षा में था।
चाचे को किनारे सरकाते हुए वह उसके पास बैठ गई और हाथों में तेल लेकर एक हाथ से चाचा का लिंग मसलना शुरू किया और दूसरे हाथ से अपनी योनि।
जब आधा सफर तय हो चुका तो उसके ज़हन के किसी कोने ने सवाल किया कि ज़रूरी क्या था… चाचा का वीर्यपात या उसके लिंग को हाथ से रगड़ने की क्रिया?
उसके ज़हन ने ही इसका जवाब भी दिया कि ज़रूरी वीर्यपात था तो उसके लिए एक ही तरह की क्रिया की अनिवायर्ता क्यों? कोई दूसरा तरीका भी तो हो सकता था…
कोई दूसरा तरीका क्या?
वह सोचने लग गई… वीर्यपात का कारण घर्षण था जो उसके हाथ से मिलता था… अगर यह घर्षण किसी और तरीके से दिया जाये तो… किस तरीके से?
दिमाग ने ही एक तरीका सुझाया।
उसने चाचा को खींच के बीच में किया और अपने दोनों पैर उसके इधर-उधर रखते हुए उस पर ऐसे बैठी कि चाचा का लिंग उसके पेट पे लिटा दिया और उसकी जड़ की तरफ अपनी योनि टिका दी।
अपनी उंगलियों से योनि के दोनों होंठ ऐसे फैला दिये कि चाचा का लिंग अंदर की चिकनाहट और गर्माहट को महसूस कर सके और खुद उसकी योनि चाचा के गर्म और तेल से सने लिंग को महसूस कर सके।
फिर अपने नितंबों पर ज़ोर देते हुए आगे की तरफ वहां तक सरकी जहां तक चाचा के लिंग का बड़े आलू जैसा शिश्नमुंड था… और फिर वापस होते जड़ तक।
यहां इस बात का खास ध्यान उसने रखा था कि उसके बदन का बोझ उसके घुटनों पर ही रहे न कि चाचा के पेट पर जाए।
और चाचा आँखें खोले जिज्ञासा से देख रहा था कि वह क्या कर रही है… सामने से उसे शीला की योनि के ऊपर मौजूद काले घने बाल ही दिख रहे होंगे।
और योनि भी दिख जाती तो उसे क्या फर्क पड़ना था, उसे कोई समझ ही नहीं थी… पर वह अपने लिंग पर फिसलती खुली योनि के गर्माहट भरे घर्षण को साफ़ महसूस कर सकता था।
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