RE: raj sharma story कामलीला
हलक से एक बिलबिलाती हुई चीख निकली थी और तड़प कर पैर सीधे करके उसे धकेलने की कोशिश की थी लेकिन सोनू ने घुटनों पर ऐसे सख्ती से हाथ जमाये थे कि सफल न हो सकी।
दिमाग में अँधेरा भर गया… सांय-सांय होने लगी।
दर्द की तेज़ लहर के बीच मैंने महसूस किया कि सोनू ने फिर धक्का मारा था और मुझे ऐसा लगा कि उसका लिंग रुकेगा ही नहीं और मुझे अंदर तक फाड़ डालेगा।
उसके गड़ने की, बच्चेदानी से टकराने की अनुभूति हुई।
‘ओऊं… आह… निकाsssss..लाल… लो….’ फंसी फंसी आवाज़ के साथ दर्द से छटपटाते मैं बस इतना कह पाई, जबकि सोनू ने वापस लिंग को योनि के मुंह तक खींचा था और फिर अगले धक्के में अंदर घुसा दिया था।
बर्दाश्त की इन्तहा हो गई। दर्द को सहन करने की कोशिश में मैंने अपनी पूरी शक्ति लगा दी… इस हद तक कि दिमाग में अँधेरा भर गया और मैं संज्ञाशून्य हो गई।
मुझे अहसास था कि मैं उस वक़्त बेहोश ही हो गई थी और होश तब आया था जब बाहर दरवाज़ा पीटने के साथ रंजना की आवाज़ सुनी थी ‘दरवाज़ा खोल पगले… सोनू… सोनू… खोल…’
सोनू भी शायद किसी हद तक डर गया था मेरी हालत देख के, उसने खुद को ढकने का भी ख्याल नहीं किया और दरवाज़ा खोल दिया। रंजना लपक कर मेरे पास आई थी और मुझे संभालने लगी थी।
‘हाय राम… ज़रा भी तमीज नहीं… दोनों के दोनों अनाड़ी हो। कुछ सीखा ही नहीं अब तक!’ वह मेरे सर को सहलाती डांटने के अंदाज़ में बोली थी।
सोनू पास ही खड़ा मूर्खों की तरह देख रहा था।
‘ऐसे करते हैं किसी कुंवारी लड़की के साथ?’ उसने सोनू को देख डपटते हुए कहा- एकदम जंगली की तरह घुसा दिया। अरे बंद कर ये बम्बू… मुझे दिखा रहा है… शर्म नहीं आती।’
उसके डपटने पर सोनू को अपने नंगेपन का ख्याल आया और उसने वही पड़ा मेरा दुपट्टा उठा कर कमर से लपेटते हुए रंजना को घूर कर पूछा- तुम्हें कैसे पता कैसे करते हैं?
‘मुझे सब पता है… समझे, जल्दी से थोड़ा पानी गुनगुना करके ला और अपने बम्बू को देख, उस पर खून लगा है, उसे भी साफ़ कर लेना। जा जल्दी।’
‘खून!’ मैंने भी सहमते हुए नीचे देखा, जहाँ अभी भी तेज़ पीड़ा की लहरें उठ रही थीं, वहीं जांघों के पास थोड़ा खून लगा था और थोड़ा नीचे चादर पर भी लग गया था।
‘कुछ नहीं, झिल्ली फटी है तेरी… कोई नहीं यार, कभी न कभी तो फटनी ही थी। थोड़ा ध्यान हटा दर्द की तरफ से, पहली बार में सबको झेलना पड़ता है। इसके पर ही सुख का समंदर है समझ।’
‘तुझे सेक्स के बारे में ये सब कैसे पता… कभी किया तो नहीं।’
‘किया है मेरी जान, बस कभी बताया नहीं।’
‘क्यों?’ मुझे सख्त हैरानी हुई कि हम दोनों के बीच कोई ऐसी भी बात थी जो उसने मुझसे छिपाई थी।
‘क्योंकि मैं अकेली नंगी थी और तूने कपड़े पहने हुए थे। समझ… अपना नंगापन छुपाने की ज़रूरत तब तक रहती है जब तक सामने वाले के कपड़े न उतर जायें, एक बार वह भी नंगा हुआ न तो छुपाने की ज़रूरत नहीं।’
‘कब किया? किसके साथ?’ मुझे अपनी हालत से ज्यादा दिलचस्पी उसका सच जानने में थी।
‘बाद में फुरसत से बताऊँगी, अभी इतना समझ कि पिछले साल जब गांव गई थी तो वहीँ मामा के जो लड़के हैं अवि भैया… उन्होंने ही मेरे साथ किया था।
पहली बार ज़बरदस्ती, मेरी मर्ज़ी के खिलाफ, दूसरी बार मौके का फायदा उठा कर मुझे डरा कर और तीसरी बार मुझे खुद अच्छा लगा और चौथी बार मैंने खुद से कह कर कराया।
यह ऐसा ही मज़ा है और मैं तो तरसी हुई थी और न आगे भविष्य में कोई उम्मीद दिख रही थी, जो मौका मिला उसे न भुनाती तो और क्या करती।
वह शादी शुदा हैं, उनके बच्चे हैं… उन्होंने वचन लिया था कि जब तक उनसे हो सकेगा मेरी इस ज़रूरत को पूरा करते रहेंगे पर मैं कभी किसी को यह बात न बताऊं।
अभी भी जब कभी वह आते हैं, हम में सेक्स होता है… पहले तुझे बताती तो अपनी मज़बूरी समझा न पाती पर अब तू खुद समझ सकती है तो छुपाने की ज़रूरत नहीं।’
तब तक सोनू पानी ले आया था, जिससे कपड़े को भिगा कर रंजना मेरी योनि को अच्छे से साफ़ करने लगी थी और सोनू सामने ही खड़ा देख रहा था।
अपने नंगेपन और योनि को उन दोनों के बीच साफ़ कराने में मुझे खासी शर्म आ रही थी।
‘सोनू तुम बाहर जाओ, मैं अभी बुलाती हूं।’ मेरी बेचैनी और शर्म को समझते हुए रंजना ने सोनू से कहा और वह मुंह बनाता बाहर चला गया।
‘सुन, अवि भैया इस मामले में बेहद तजुर्बेकार थे और उन्होंने ऐसे किया था कि मुझे कोई खास तकलीफ नहीं हुई थी… तुझे बताऊं तो उस पगले को समझा पायेगी।’
‘नहीं… यह सब मेरे बस का नहीं, उसे ही समझाओ। मुझसे नहीं होगा।’
‘यार समझ मेरी जान, कुछ भी है, कितना भी खुलापन है हम दोनों के बीच मगर भाई है। कैसे मैं उससे समझाऊं कि क्या क्या करना है। कितनी बेशरम हो जाऊं।’
‘तो रहने दे आज… फिर कभी करेंगे, समझ लेगा किसी से कि कैसे करते हैं।’ मेरा दिमाग अजीब सा हो रहा था और मैं फैसला नहीं कर पा रही थी कि मैं रुकूँ, या चली जाऊं।
‘अच्छा चल तेरे लिए मैं बेशर्म ही हो जाती हूँ, जो हिम्मत तूने आज की है उसे पूरे तौर पर कर… जो शुरू हुआ है उसे अधूरा मत छोड़।’ वह पानी, कपड़ा समेटती उठ खड़ी हुई।
उसके जाने के बाद मैंने खुद को बिस्तर की चादर से ढक लिया और अगले तूफ़ान के आने की प्रतीक्षा करने लगी… योनि से सम्बंधित मांसपेशियां दर्द से ऐंठ रही थीं वह अलग।
पांच मिनट बाद वह आया और मेरे पास बैठ गया- सॉरी दीदी, शायद मैं ही अनाड़ी हूँ, आप तो लड़की हो, मुझे ही सही से हैंडल करना चाहिए था।
‘तो अब कैसे हैंडल करोगे?’ मैंने मुस्कराते हुए कहा।
तो उसने मुझे फिर दबोच लिया और मेरे ऊपर लदते हुए मेरे होंठों से अपने होंठ टिका दिये।
उसकी कमर पर बंधी लुंगी भी खुल गई थी और मेरे शरीर पर मौजूद चादर भी हट गई थी।
एक दूसरे के नग्न शरीरों के घर्षण से फिर चिंगारियाँ उड़ने लगीं।
इस बार उसने अपने हाथों से मुझे सहलाते, दबाते मेरे होंठों को चूमने के बाद मेरी गर्दन, कंधों को चूमना शुरू कर दिया था और मेरे उरोजों तक आ पहुंचा था।
उसने जिस तरह मेरे निप्पलों के आसपास जीभ फिराई और फिर अंत में चूचुकों को मुंह में लेकर चुभलाया, मैं उत्तेजना से ऐंठ गई, योनि का दर्द जैसे दिमाग से ही निकल गया।
एक हाथ से एक वक्ष को दबाता, भींचता और दूसरे को मुंह से चूसता, चुभलाता… मेरे मुंह से मस्ती में डूबी आहें निकलने लगी थीं।
मैंने दोनों हाथों से उसका सर थाम लिया था।
जब वह अच्छे से दोनों स्तनों का मर्दन कर चुका तो सीने को बीच से चूमते हुए नीचे सरकने लगा और नाभि पर रुक गया।
उसकी जीभ गोल होकर नाभि के गड्ढे में फिरने लगी और एक मादकता भरी गुदगुदाहट मेरी समस्त नसों में दौड़ने लगी।
पर वह वहाँ भी ज्यादा देर न रुका और नीचे सरकते मेरी योनि तक पहुंच गया।
पहले उसने वहाँ कई चुम्मियाँ लीं जहाँ योनि के बाल फैले थे, फिर दोनों टांगें फैला दीं और खुद चौपाये की तरह झुकते हुए अपना मुंह मेरी योनि तक ले आया।
अब उसकी जीभ योनि के किनारों से छेड़छाड़ करने लगी।
मैं कुहनियों के बल उठकर अधलेटी अवस्था में उसे देखने लगी… मुझे ताज्जुब हो रहा था कि वह ऐसा भी कर सकता है।
जी तो कर रहा था कि उसे रोक दूं लेकिन जिस तरह का सुख हासिल हो रहा था, वह मेरी कल्पना से भी परे था इसलिए लालच ने मुझे रोकने न दिया और वह वैसे ही पूरी योनि को चाटता रहा।
जल्दी ही मेरी यौन-उत्तेजना मुझे पर इस तरह हावी हो गई कि अभी दर्द से मसकती योनि अब वह मज़ा दे रही थी जो मुझे स्वर्ग की सैर कराये दे रही थी।
मैं खुद को अधलेटी अवस्था में और न रख पाई और लेट गई।
मेरी कामुक सीत्कारें अब कमरे की हदें तोड़ कर बाहर तक जाने लगी थीं।
जब उसने सुनिश्चित कर लिया कि मेरी योनि पूरी तरह तप चुकी है और मैं उसके लिंग को सहन कर सकती हूँ तो वह उठ कर मेरी जांघों के बीच में बैठ गया।
मैंने आँखें बंद कर ली थीं लेकिन महसूस कर सकती थी कि उसने अपने लिंग को, फिर मेरी योनि को फैला कर बीच छेद पर उसे टिकाया हुआ है और मेरे घुटनों पर फिर पहले जैसी पकड़ बना ली है।
मैंने भी आगे मिलने वाले सुख की कल्पना से खुद में सहने की ताक़त पैदा की और आघात के लिए तैयार हो गई।
उसने थोड़ा ज़ोर लगाया तो अभी ही खुल चुके छेद में उसका अग्रभाग मुझे तेज़ पीड़ा का अहसास कराते हुए अंदर धंस गया।
मैंने होंठ भींच लिये।
इस बार उसने आगे बढ़ने की बजाय खुद को वहीं रोक लिया और अपने हाथ से मेरी योनि के ऊपरी सिरे को जहाँ भगांकुर होता है, उसे सहलाने लगा।
यह योनि का सबसे संवेदनशील हिस्सा होता है… मैंने उस हिस्से में पैदा होने वाली हलचल पर ध्यान लगाया तो आश्चर्यजनक रूप से दर्द में कमी महसूस होने लगी।
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