RE: raj sharma story कामलीला
अब वह सामने बैठ कर उसकी योनि के भगोष्ठ और भगांकुर को मसलने सहलाने लगा। उत्तेजना से उसकी योनि की मांसपेशियां फैलने सिकुड़ने लगीं।
थोड़ी देर की ऊपरी छेड़छाड़ के बाद उसने दो उंगलियां योनि में गहरे तक उतार दीं और पहले धीरे-धीरे, बाद में तेज़-तेज़ अंदर बाहर करने लगा।
शीला की सिसकारियां कमरे में गूंजने लगीं, जल्दी ही वह चरम की तरफ पहुंचने लगी।
‘डालो।’ सीत्कारों के बीच उसके मुंह से निकला।
और वह उसकी जाँघों के बीच में बैठ गया।
शिश्नमुंड को थूक से गीला किया और छेद पर रख कर दबाव डाला तो मांसपेशियों को खिसकाता वह अंदर धंस गया।
मस्ती और मादकता से भरी एक ज़ोर की ‘आह’ उसके मुख से निकली।
चंदू ने उसकी जांघों के निचले हिस्से पर पकड़ बनाईं और उकड़ूं बैठे बैठे लिंग को अंदर बाहर करने लगा। शीला को ऐसा लगा जैसे उसके दिल दिमाग में एक अजीब किस्म का नशा छा रहा हो।
जैसे वो आसमान में उड़ने लगी हो।
थोड़ी देर बाद वह ज़ोर ज़ोर से धक्के लगाने लगा। बेड हिलने लगा और कमरे में ‘फच-फच’ की कर्णप्रिय ध्वनि गूंजने लगी।
वह ‘आह-आह’ के रूप में सीत्कारें भरती माहौल को और उत्तेजक कर रही थी।
फिर वह इस मुद्रा में थक गया तो पहले की तरह उसके ऊपर लद गया और उसके होंठ चूसते तेज़ तेज़ धक्के लगाने लगा।
उसके भारी वज़न के नीचे दब के यूँ ज़बरदस्त ढंग से आघातों को सहने में उसे अकूत आनन्द आ रहा था। वह जल्दी ही चरमोत्कर्ष पर पहुँच गई।
और चरमानन्द की प्राप्ति के समय उसकी नसों में एकदम खिंचाव आ गया, उसने चंदू की पीठ में नाखून तक गड़ा दिये और उसे पूरी ताक़त से भींच लिया।
उसे स्खलित होते महसूस करके चंदू रुक तो गया था लेकिन वह अभी स्खलित नहीं हुआ था और जैसे ही शीला थोड़ी शिथिल पड़ी उसने फिर धक्के लगाने शुरू कर दिये।
योनि की दीवारों से जारी हुआ रस और संकुचन फिर जल्दी ही चंदू को भी चरम पर ले आया और वह भी कुछ अंतिम ज़ोरदार धक्कों के साथ स्खलित हो गया।
स्खलन के उपरान्त वह उससे अलग होकर हाँफने लगा।
फिर उसी अवस्था में दोनों बेसुध हो गये।
सुबह आस पास के पूजा घरों की आवाज से शीला की आँख खुली थी और उसने चंदू को उठा के रुखसत किया था।
फिर यह लगभग रोज़ का ही सिलसिला हो गया।
देर रात वह आ धमकता था, अक्सर उसके साथ कोई न कोई होता था जो रानो के साथ लग जाता था। जबकि खुद को उसने शीला के लिये जैसे रिज़र्व कर लिया था।
सोनू ने आना बंद कर दिया था। चंदू ने ही बताया था कि उसने जो पैसे कहे थे वह दे दिये थे और रानो से उसे पता चला था कि अब वह अपने घर पे भी रानो को नहीं छूता था।
शायद चंदू ने इस विषय में भी धमकाया हो या उसने कोई और जुगाड़ ढूंढ लिया हो और अब उन बहनों में उसकी दिलचस्पी इसलिये भी न रही हो कि अब चंदू उनके साथ जुड़ चुका था।
यूँ रात के अँधेरे में रोज़ रोज़ इस तरह के लोगों का उनके घर पे आना भला राज़ कब तक रहता, धीरे-धीरे सब को पता चल ही गया था।
और अघोषित रूप से उन्हें वेश्या जैसा मान लिया गया था।
बदनामी तो मिलनी ही थी, सोनू के बारे में पता चलता तो भी यही होता। चंदू था तो किसी में हिम्मत नहीं थी कि कोई कुछ कहे।
किसी ने नहीं देखा कि बड़ी उम्र तक कुंवारी बैठी रहने वाली उन बहनों की मज़बूरी क्या थी… देखा तो बस यही कि उन्होंने वर्जनाओं को तोड़ा था, मर्यादाओं का उल्लंघन किया था।
और मर्दाने समाज के ठेकेदार पाते तो उन्हें कब का मोहल्ले से रुखसत कर चुके होते लेकिन चंदू नाम की दहशत से मजबूर थे।
इस सिलसिले का पता जब पूरे मोहल्ले को हो गया तो भला आकृति और बबलू को क्यों न होता।
रानो ने जैसे तैसे आकृति को तो समझा लिया था।
मगर बबलू के लिये समझना आसान नहीं था… यह बदनामी उसे इतना ज्यादा शर्मिंदा कर रही थी कि वह डिप्रेशन में रहने लगा था।
चंदू गुंडा था और वहीं रहने वाला था, वह लोगों को डरा सकता था लेकिन न किसी का दिल जीत सकता था और न समझा सकता था।
फिर घर में उसका आना जाना दिन में भी किसी वक़्त हो जाता था तो आकृति से भी उसका सामना हो जाता था और वह उसे भी मसलने से चूकता नहीं था।
आकृति शीला की तरह तगड़ी नहीं थी और रानो की तरह दुबली पतली भी नहीं थी।
चंदू के लिये भले वह ऐन उसके टाइप की नहीं थी मगर फिर भी उसके लिये आकृति में आकर्षण तो था ही।
और एक दिन वह भी आया जब रात चंदू नशे में बुरी तरह टुन्न अपने दो चेलों के साथ उनके घर आया तो इत्तेफ़ाक़ से आकृति नीचे आई थी और उसके हत्थे चढ़ गई।
अब नशे में उसे कहाँ होश रहता, उसने पहली बार आकृति को पकड़ कर उसके साथ कुछ करने की कोशिश की।
पहले तो दोनों बहनों ने उसे रोका, मगर जब चंदू पर कोई असर पड़ते न पाया तो शीला की सोच एकदम बदल गई।
चंदू की इस हरकत पर शीला की आत्मा तक तड़प उठी थी, आकृति को उसने बड़ी बहन के रूप में ही नहीं माँ के रूप में पाला था। उसकी पूरी ज़िम्मेदारी शीला पर ही थी।
उसे इस बात की ग्लानि भी हो रही थी कि जो सब हो रहा था वह उसी की वजह से शुरू हुआ था।
उसके दिमाग में आग सी भरने लगी थी।
तगड़ी तो थी ही, ताक़त भी थी… उसने इतने ज़ोर से झटका दिया कि उसे पकड़ने वाले को सम्भलने का मौका न मिला और वह दरवाज़े से जा टकराया।
वह लपक कर कमरे से निकल गई।
वह सीधी किचन में पहुंची और वहां मौजूद सबसे बड़े साइज़ का छुरा निकाल लिया।
उसे पकड़ने वाला संभल के उसके पीछे दौड़ा था मगर अब शीला चंडी के रूप में उसके आगे छुरा लिये खड़ी थी।
शीला ने उसकी तरफ छुरा लहराया और वह उसकी भंगिमाएं देख कर सहम कर दीवार से सट गया।
शीला लपकते हुए कमरे में पहुंची तो रानो को पकड़ने वाला उसकी तरफ लपका।
मगर शीला के चलाये छुरे से बचने की वजह से संभलने के चक्कर में वहीं गिर पड़ा, जबकि शीला चंदू के सर पर पहुंच कर छुरा तान कर खड़ी हो गई थी।
‘छोड़ उसे चंदू… वरना मार दूंगी… छोड़ उसे।’
चंदू एकदम नये बने हालात में हड़बड़ा कर सीधा हो गया था और उसकी पकड़ से छूटते ही आकृति बिस्तर से उतर कर शीला के पास आ गई थी।
‘पागल हो गई है क्या… जान से मार दूंगा।’
‘मर तो पहले ही चुकी हूँ मैं… आत्मा से, शरीर से भी मर जाऊँगी तो क्या फर्क पड़ेगा मगर मरने से पहले मैं भी तुझे मार डालूंगी।’
उसके शब्द सच्चे थे।
और उसकी दृढ़ता को चंदू भी महसूस कर सकता था। उसका नशा टूट चुका था और अब वह कसमसाता हुआ आग्नेय नेत्रों से शीला को ही घूर रहा था।
‘रानो, तू आकृति को कमरे में ले जा और अगर कोई ऊपर आये तो इसी वक़्त पुलिस को फोन कर के बुला लेना, जा यहाँ से।’
रानो ने देर नहीं की और उसने आकृति की सलवार उठाते हुए आकृति को सम्भाला और कमरे से बाहर निकल गई।
‘तूने ठीक नहीं किया गुठली!’ चंदू गुर्राता हुआ बोला।
‘सही गलत तुझे नहीं दिखेगा चंदू… क्योंकि तेरी नज़र में औरत न बेटी है न बहन, बस चोदने लायक माल है। तुझे हम दो बहनें मिली तो हुई हैं, जो करना है कर, मगर उसे बख्श दे। अपने साथ मैं कोई भी अत्याचार सह लूंगी पर आकृति के साथ नहीं।’
चंदू ने उठ कर उसके हाथ से छुरा छीन लिया। उसका काम हो चुका था, इसलिये उसने भी विरोध नहीं किया, उसका लक्ष्य आकृति को बचाना भर था।
चंदू ने उसे इतने ज़ोर का थप्पड़ मारा कि वह फर्श पर फैल गई।
थप्पड़ की चोट उसके शरीर पर ही लगी थी मगर वह खुश थी कि आज उसकी आत्मा पर चोट लगने से बच गई थी।
‘आज तुझे सजा तो दूंगा मैं!’ चंदू एक-एक शब्द चबाता हुआ बोला- दिमाग ठीक हो जायेगा तेरा!
‘ध्यान रखना चंदू, बीवी नहीं हूँ जो सबकुछ सह जाऊं। उसी हद तक सह सकती हूँ जहां तक मेरा ज़मीर गवारा करे।’
यह उसकी तरफ से धमकी थी जिससे चंदू तिलमिला कर रह गया। उसने शीला के नितंबों पर एक ठोकर जड़ दी।
‘चलो बे… इसकी गांड मारो। आज अपन पूरी रात इसकी पीछे से बजायेंगे। यही इसकी सजा है।’
उसे पता था कि जो सिलसिला चल रहा था उसमे कभी न कभी यह नौबत तो आनी ही थी इसलिये उसने खुद को मानसिक रूप से तैयार रखा हुआ था।
इतनी सजा तो वह बर्दाश्त कर ही सकती थी।
उसे उठा कर बिस्तर पर पटक दिया गया और कपड़े फाड़ कर उसके जिस्म से अलग कर दिये गये।
चंदू और उसके साथियों ने भी अपने कपड़े उतार फेंके। एक के बाद एक तीनों ने उसके मुंह में लिंग डाल के चुसाया ताकि वे उत्तेजित अवस्था में आ सकें।
फिर उसे इस पोजीशन में लाया गया कि उसके गुदा के छेद को सामने लाया जा सके। तीनो में जिसका लिंग सबसे कम साइज़ का था उसे पहला मौका मिला।
उन्होंने कोई लुब्रीकेंट नहीं इस्तेमाल किया सिवा थूक लार के और इस वजह से उसे तेज़ दर्द का अहसास हुआ।
जितनी देर में लिंग ने उसके गुदाद्वार में अपना रास्ता बनाया वह दर्द से तड़पती रही और जब थोड़ा आराम से अंदर बाहर होने लगा तो उसे थोड़ी राहत मिली।
उसे लगा था जब एक स्खलित हो जायेगा तो दूसरा डालेगा जिससे वीर्य के रूप में स्वाभाविक लुब्रिकेंट मिल जायेगा और उसे कम तकलीफ होगी।
लेकिन ऐसा हुआ नहीं और उन्होंने स्खलित होने से पहले ही उसके साथ मैथुन किया और इसी तरह कम लुब्रिकेंट के बावजूद जबरन लिंग घुसाया जिससे उसे दर्द दिया जा सके।
बहरहाल वह रात उसके लिये क़यामत की तरह गुज़री और सुबह हुई तो उसे न सिर्फ शौच में बुरी तरह तकलीफ हुई बल्कि चलने में भी परेशानी हुई।
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