RE: Desi Sex Kahani वेवफा थी वो
#3
एक बार फिर , तालियों की गड़गड़ाहट से हाल गूँज उठा, और साथ ही मैं भी अपनी यादों के सफ़र से वापस आ गया ….मीटिंग ख़तम हो चुकी थी ……सभी लोग अपनी अपनी जगह पर खड़े हो गये थे….सबसे पहले मिस्टर.चौधरी को हाल से बाहर निकलना था …वो हाल के बीच में से होते हुए पीछे की तरफ चल दिए , और उनके पीछे पीछे मैं और कुछ और लोग भी …सभी लोग खड़े होकर उनका अभिवादन कर रहे थे , साथ ही सभी लोग जो हमारे पास में थे , मुझे मुबारकबाद भी दिए जा रहे थे ….मुझे याद नही कि इस से पहले मैने पहले कभी इतने सारे लोगो से एक दिन में , एक जगह पर हाथ मिलाया हो ……….
हम लोग हाल से बाहर निकल गये ….मिस्टर.चौधरी की गाड़ी BMW बिल्कुल हाल के बाहर उनका वेट कर रही थी …वो गाड़ी की तरफ बढ़े और फिर पीछे मूड कर मेरे से बोले … “ राजीव …तुम मेरे साथ घर चलना चाहोगे ? “
“ सॉरी सर ….इफ़ यू डॉन’ट माइंड , मैं अभी अपने फ्लॅट पर जाना चाहता हूँ …कल सुबह आपसे ऑफीस में मिलता हूँ “
“ इट्स ओके ……….ऐज यू लाइक …..” कह कर वो मुस्कुराए और अपनी गाड़ी में बैठ गये …………साथ ही उनके 2 बॉडी गार्ड्स भी
………फिर गाड़ी आगे बढ़ गयी ….
उनकी गाड़ी वहाँ से हट-ते ही मेरी गाड़ी , होंडा सिटी …..उसकी जगह पर आकर रुकी …ड्राइवर ने उतर कर दरवाज़ा खोला ..मैं गाड़ी में
बैठ गया और गाड़ी आगे को बढ़ गयी……..
गाड़ी में बैठ-ते ही मैं सीट पर पीछे को टेक लगा कर बैठ गया …….गाड़ी बहुत तेज़ स्पीड से आगे की तरफ बढ़ती जा रही थी ……….शहर के बीच में से होती हुई ….दोनो तरफ ऊँची ऊँची बिल्डिंग्स थी…जिनकी रोशनी में पूरा शहर मानो नहाया हुआ था …………बाहर देखते देखते मैं फिर से अतीत में वापस चला गया ………..
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सरदार जी के होटेल की एक और ख़ास बात थी ……. जैसा कि और रेस्टोरेंट्स में भी होता है , ज़्यादा रश केवल सुबह, दो-पहर और रात को होता था…….बाकी समय मैं और बाकी के कुछ और लोग यहाँ-वहाँ टाइम पास करते थे….. सरदार जी के होटेल के बगल में ही एक एलेक्ट्रॉनिक्स की शॉप थी ……जहाँ कम्यूटर्स और मोबाइल रिपेर का काम होता था….आज की तरह , उस समय मोबाइल्स कोई कामन चीज़ नही थी , और इतने सस्ते मोबाइल्स भी उस समय अवेलबल नही थे …….इसलिए बहुत कम , और बहुत ख़ास ग्राहक ही वहाँ आते थे
……….. दुकान का मालिक एक लड़का था , कोई 24-25 साल की उमर का , उसका नाम तो मुझे याद नही , पर सब लोग प्यार से उसको हॅपी कह कर बुलाते थे …और मेरी उस से अच्छि बनती थी ……..मैं अपना ज़्यादा-तर खाली टाइम उसके पास ही बैठ कर काट-ता था ………और धीरे धीरे मेरा इंटेरेस्ट उसके काम में बढ़ने लगा ………उसको देख देख कर ही मुझे मोबाइल्स और कंप्यूटर्स के बारे में काफ़ी कुछ समझ में आने लगा था …………. दिन बीत-ते जा रहे थे ……………सुबह से शाम तक होटेल की नौकरी , बीच बीच में हॅपी के पास
बैठ कर टाइम पास और फिर रात को स्कूल की पढ़ाई ……..फिर एक दिन अचानक ऐसा कुछ हुआ जिस ने मेरी तकदीर बदल कर रख दी ……….. दोपहर का टाइम था ………मैं हॅपी की दुकान पर बैठ हुआ था और वो अपना काम कर रहा था ………….अचानक एक आदमी , शानदार सूट पहने हुए , हॅपी की दुकान पर आ पहुँचा , उसके साथ साथ 2 और भी आदमी थे , शायद उसके बॉडी गार्ड्स थे …………मुझे
बाद में मालूम पड़ा कि उस आदमी का नाम मिस्टर. विजय चौधरी था………
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