RE: Romance एक एहसास
बस फिर क्या था राधिका भी तो यही चाहती थी… अंगूरी शराब के दौर चले और प्रदीप ने मस्त होकर प्याले पर प्याले खाली कर दिए| कुछ देर बाद मस्ती की कैफियत पैदा हुर्इ| अब प्रदीप का अपनी बातों पर व हरकतों पर अख्तियार न रहा| वह नशे में बड़बड़ाने लगा तुम नहीं जानती राधिका मैंने इस प्यार के लिए कैसी-कैसी परिशानियां उठाई| लड़कियां मेरी शक्ल से नफरत करती हैं… म्म्म्म्मैं सीमा को पसंद करता था और उसके एक इशारे पर अपना यह सिर उसके पैरों पर रख सकता था, सारी सम्पत्ति उसके चरणों पर अर्पित कर सकता था| मगर मेरी बदनसीबी देखो मुझे इन्हीं हाथों से उसका कत्ल करना पड़ा|
प्रदीप ने खुद ही सारे राज राधिका के सामने खोलकर रख दिये और चित लेट गया|
राधिका ने प्रदीप की यह सब बातें एक spy camera pen की सहायता से रिकार्ड कर ली|
प्रदीप कई घण्टे तक बेसुध पडा रहा| वह चौंककर होश में आया| मस्तिष्क में सैंकड़ों विचार चकरा गये| चेहरे पर हवाइयां उड़ गई| उसने उठना चाहा लेकिन उसके हाथ-पैर मजबूत बंधे हुए थे| उसने भौंचक्क होकर ईधर-उधर देखा|
रोहन व राधिका उसके पीछे खड़े थे| प्रदीप को माहौल समझते देर न लगी| उसका नशा फुर्र हो गया| वह राधिका को देखकर गुस्से से बोला - क्या तुम मेरे साथ दग़ा करोगी|
राधिका ने जवाब दिया - हाँ कुत्ते, इन्सान थोड़ा खोकर बहुत कुछ सीखता है| तुमने इज्जत और आबरू सब कुछ खोकर भी कुछ न सीखा| तुम मर्द थे| तुम्हारी दुश्मनी किशन से थी| तुम्हें उसके मुक़ाबले में अपनी ताकत का जौहर दिखाना था| स्त्री को तो हर धर्म में निर्दोष समझा गया है| लेकिन तुमने एक कमजोर लड़की पर दग़ा का वार किया, अब तुम्हारी जिन्दगी एक लड़की की मुट्ठी में है| मैं एक लहमे में तुम्हें मसल सकती हूँ मगर तुम ऐसी मौत के हक़दारएक मर्द के लिए ग़ैरत की मौत बेग़ैरत जिन्दगी से अच्छी है|
“आक… थू…” राधिका ने प्रदीप के मंुह पर थूक दिया|
रोहन ने भी अपने दर्द भरे दिल से प्रदीप को दुतकारा… साले हरामी … जब कोइ मर्द जिसे भगवान ने बहादुरी और हौसला दिया हो… एक कमजोर और बेबस लड़की के साथ फरेब करे तो उसे मर्द कहलाने तक का हक़ नहीदग़ा और फरेब जैसे हथियार औरतों के लिए होते हैं क्योंकि वे कमजोर होती है|
अपने को अपमानित महसूस कर प्रदीप ने रोहन को ललकारा- धोखे से मेरे हाथ बांधकर तू कौन सी मर्दानगी दिखा रहा है अगर एक बाप की औलाद है तो एक बार मेरे हाथ खोल, फिर देखते हैं मर्द कौन है|
“अबे कुत्ते की औलाद, राजपूत खानदान में पैदा हो जाने से कोइ सूरमा नहींं हो जाता और न ही नाम के पीछे ‘सिंह’ की दुम लगा देने से किसी में बहादुरी आती है ” प्रदीप के हाथ खोलते हुए रोहन ने कहा|
दोनोंं के बीच घमासान छिड़ गया| कुछ देर के दांव पेंच के पश्चात् रोहन ने प्रदीप को उठाकर पटक दिया और सीने पर सवार होकर पीटने लगा| इस वक्त रोहन बहुत खूखंर लग रहा था| फिर उठकर रोहन ने प्रदीप की गर्दन पकड़कर जोर से धक्का दिया| प्रदीप दो-तीन कदम पर औंधे मुह गिरा| उसकी आंखों के सामने अंधेरी आने लगी| उसके कपड़े तार–तार हो गए थे| होंठों से खून निकल कर ठुड़्ड़ी तक बह आया था|
रोहन अभी भी फाड़ खाने वाली नजरों से प्रदीप को घूर रहा था|
एकाएक प्रदीप के चेहरे पर चमक उभर आयी क्योंकिं उसके गैंग के लोगों का एक दल आ पहूंचा| पासा पलट गया था| राधिका ने सहमी हुई आंखों और धड़कते हुए दिल से उनकी ओर देखा मगर अगले ही पल रोहन का साथ देने के लिए कुलदीप भी आ पहुंचा| जिसे देखकर राधिका के चेहरे पर फिर वही आत्मविश्वास लौट आया|
“रोहन… छोड़ना नहीं सालों को…'' का जयकारा बोलकर कुलदीप भी रोहन के साथ प्रदीप के दल से भिड़ गया| कुलदीप व रोहन दोनों ही फिल्मों के नायकों की तरह खलनायक दल पर भारी पड़ रहे थे कि अब सुनील भी मोहल्ले के कुछ लोगों के साथ आ पहुंचा| सभी ने कन्धे पर लाठी रखी थी| जिसे देखकर प्रदीप और उसके दोस्त घबरा गये|
सभी ने अपने ड़ंड़े संभाले मगर इसके पहले कि वे किसी पर हाथ चलायें प्रदीप के सब गुन्ड़े फुर्र हो गये| कोइ इधर से भागा, कोइ उधर से| भगदड़ मच गई| दस मिनट में वहां प्रदीप के गैंग का एक भी आदमी न रहा|
अब बस कुलदीप और प्रदीप के बीच मलयुद्ध छिड़ने वाला था| कुलदीप किसी भूखे शेर की तरह अपने शिकार प्रदीप की तरफ बढ़ गया| उसकी आखों में खून उतर आया था| कुलदीप के मुकाबले प्रदीप अधिक शक्तिशाली था मगर कुलदीप दिल का कच्चा न था और आज तो उसके सिर पर अपने भाई की दूर्दशा व खानदान की बेइज्जती का बदला लेने का जुनून सवार था| दोनों एक दूसरे को कुश्ती के दांव पेचों से पठकनिया देते रहे| आखिर कुलदीप का जोश प्रदीप की ताकत पर भारी पड़ा| उसके बाएं हाथ का एक घूंसा कुछ ऐसे भीषण ढ़ंग से प्रदीप के चेहरे पर पड़ा कि एक लम्बी ड़कार निकालता हुआ वह दूर जा गिरा| जीवन में शायद पहली बार प्रदीप ने इतनी बुरी मार खायी थी| कुलदीप के सामने आज उसका हर दांव निष्फल रहा| परिणाम यह निकला कि प्रदीप लहुलुहान होकर धम्म से जमीन पर गिर पड़ा|
प्रदीप को अर्ध मूर्छित अवस्था में ही अस्पताल ले जाकर नसबन्दी का सफल आप्रेशन कराया गया| जिसके लिए बाद में उसे एक हजार रूपये नकद तथा एक कम्बल इनाम भी मिला| इसके बाद उसका मुँह काला करके गधे पर बैठाकर पूरे इलाके में घुमाया व बाद में उसे पुलिस के हवाले कर दिया गया|
सभी लोग खुश थे|
किशन को होश आया उसने अपने चारों तरफ अंधेरा देखा| उसने पाया कि यह जगह उसके सोने का कमरा नहींं था| उसने एक बार माँ कहकर पुकारा किन्तु अंधेरे में कोइ उत्तर नहींं आया| उसे अपनी छाती में दर्द उठना व सांस का रूकना याद आया| वह उठ बैठा मगर उसने खड़ा होने में असमर्थता महसूस की और पलंग पर गिर पड़ा| उसने हांफते हुए पुकारा “माँ … मेरे पास आओ माँ… मुझे लगता है मैं मरने वाला हूँ ”| उसकी आँखों के सामने अंधेरा छा गया ऐसे जैसे किसी लिखे हुए कागज के ऊपर स्याही फैल गई हो| उस क्षण किशन की सारी स्मरणशक्ति व चेतना को भी उसके जीवन की किताब के अक्षरों में भेद करना असंभव हो गया| उस समय उसको यह भी याद नहींं रहा कि उसकी माँ ने उसे अपनी ममता भरी आवाज से उसको आखिरी बार बेटा कहकर पुकारा था, या यह उसको प्रेम की दवा की आखिरी पुड़िया मिली थी जो उसकी इस संसार से मॄत्यु की अनजानी यात्रा पर देखभाल करेगी|
किशन को बचपन से लेकर अब तक की खास बातें एक-एक करके याद आने लगी| एक पल में उसको स्कूल के दोस्त, खेल का मैदान व अपने चिर परिचित चेहरों की कतार दिखाई दी| उसे याद आया कैसे संजय की आत्महत्या के पश्चात् उसके परिवार का विनाश हो गया था| उसकी आँखों के सामने संजय के माता-पिता के बेबस चेहरे घूमने लगे| अब उसे आत्महत्या के परिणाम की भयावहता का अहसास होने लगा था| उसकी देह ठंड़ी हो रही थी| मुंह पर वह नीलापन आ रहा था जिसे देखकर कलेजा हिल जाता है और आँखों से आँसूं बहने लगते हैं|
किशन की आँखें ठहर गइ थी जिसे देखकर सोनिया देवी चीख पड़ी| किशन को मॄत घोषित करने से पहले ड़ाक्टरो ने उसे बचाने की अपनी अन्तिम कोशिश की… इस समय वहां मौजूद किसी भी शख्श को उसके बचने की आशा न थी मगर शायद मौत को धोखा देने में मजा आता है| वह उस वक्त कभी नहींं आती जब लोग उसकी राह देखते होते हैं| जब रोगी कुछ संभल जाता है, उठने बैठने लगता है, सबको विश्वास हो जाता है कि संकट टल गया, उस वक्त घात में बैठी हुइ मौत सिर पर आ जाती है| यही उसकी निष्ठुर लीला है| जैसे अब किसी को भी किशन के जीवित बचने की आशा न थी तो उसने किशन को अपना शिकार नहीं बनाया|
जी हाँ… यह संभव है कि कभी-कभी एक शरीर जो कि मॄत प्रतीत होता है| असल में जीवित होता है किन्तु सुषुप्तावस्था में या अचेतन होता है जो कुछ समय बाद फिर से जीवित हो सकता है| सच में किशन मरा नहींं था| किसी कारणवश वह भी मॄतप्राय: या अचेतन हो गया था किन्तु अब फिर से ठीक हो गया था| किशन को न जाने किसके आशीर्वाद या दुआ से वरदान स्वरूप विधाता ने उसका जीवन लौटा दिया था|
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