RE: Hindi Antarvasna Kahani - ये क्या हो रहा है?
हरिया ने मुझे तुरंत अपनी गोद में उठाया और अपनी बैलगाड़ी में लेटा दिया.... मैं अभी भी बेहोशी की हालत में पड़ा था... हरिया ने अपनी बैलगाड़ी की रफ्तार जितनी हो सकती थी बढ़ा दी, जल्द ही हम पास के एक गाँव में पहुंच गये, हरिया ने सडक किनारे आग ताप रहे कुछ लोगो से उस गाँव के वेदजी का पता पूछा और फटा फट गाड़ी को उस तरफ मोड़ दिया, जल्दी ही बैलगाड़ी उस गाँव के वेदजी के यहाँ पहुंच चुकी थी....
हरिया अंदर जाकर वेदजी को बाहर बुला लाया, वेदजी ने जब मेरी हालत देखी तो वो भी एक बार को भोच्क्के रह गये, हरिया और वेद्जी मिलकर मुझे उठाते हुए अंदर ले गये, वेदजी और उनकी पत्नी ने जल्द ही मेरा उपचार शुरू कर दिया..... मेरे सर पर गंभीर चोट लगी थी, और जिस्म पर यहाँ वहाँ चोट के निशान थे,
लगभग 2 दिन बाद जाकर मुझे होश आया..... आँखे खोलते ही मेरे जिस्म में दर्द की एक तेज़ लहर दोड गयी... और मुंह से दर्दभरी आह निकल गयी.... मेरी आह इतनी तेज़ थी कि उसे सुनकर बाहर से हरिया और वेदजी भी भागकर अंदर आ गये.... उन्होंने मुझे होश में देखा तो उनके चेहरे पर भी थोड़ी मुस्कान आ गयी.... पर मेरी हालत यहाँ बहुत ख़राब थी... पुरे शरीर में दर्द की लहरे उठ रही थी... मैंने बड़ी मुश्किल से अपनी आँखे खोली.... तो सामने दो आदमी खड़े दिखाई दिए.... मैं उन्हें नही जानता था..... और जानता भी कैसे मैंने अपनी ज़िन्दगी में पहली बार उन्हें देखा था...........
अब मैंने थोड़ी हिम्मत करके बैठने की कोशिश की पर मेरे शरीर में शायद अभी इतनी ताकत नही थी कि मैं खुद से उठकर बैठ जाऊ.... तभी वेदजी आगे बढकर मुझे सहारा देने लगे....... हरिया ने भी उनकी मदद की... और किसी तरह मैं बैठ गया.... मैं उन दोनों की तरफ हैरानी से देखे जा रहा था....
वेदजी – बेटा, अब कैसी तबियत है तुम्हारी....
मैं – ठीक....है...पर आप लोग कौन है.... मैं यहाँ कैसे आया....ये कोंनसी जगह है.....
हरिया – बेटा, मैं तुम्हे यहाँ लेकर आया हूँ... तुम्हारी गाड़ी का हादसा हो गया था... और तुम मुझे वहां बेहोश मिले... तुम्हे बहुत ज्यादा चोट लगी थी... इसलिए मैं तुम्हे यहाँ उठाकर अपनी बैलगाड़ी में ले आया.... वैसे बेटा तुम्हारा नाम क्या है... तुम कहाँ के रहने वाले हो.. तुम्हारी गाड़ी का हादसा कैसे हुआ......
मैं – जी....जी...मेरा नाम.....?????????? मेरा नाम......मेरा नाम क्या है..... मुझे कुछ याद क्यूँ नही आ रहा..... मेरा नाम ???????????
और अचानक मेरे सर में दर्द की एक तेज़ लहर दौड़ गयी और मैं फिर से बेहोश हो गया.......
हरिया और वेदजी ने मिलकर मुझे दोबारा लेटाया और खुद वहाँ से बाहर आ गये
हरिया – क्या लगता है वेदजी... क्या हुआ है इस बच्चे को.....
वेदजी – देखो हरिया.. मैं पक्के तोर पर तो नही कह सकता पर मुझे लगता है कि शायद सर पर चोट लगने की वजह से इस लडके की यादाश्त चली गयी है.. देखा नही कैसे अपने नाम को याद करने की कोशिश कर रहा था.....वैसे इसके कपड़ो और चेहरे को देखने से लगता है ये किसी रईस खानदान का लड़का है....
हरिया – लग तो मुझे भी यही रहा है वेदजी.. पर अब क्या किया जाये... मुझे लगा था कि जैसे ही इसे होश आएगा.. मैं उससे उसका पता पूछकर घर छोड़ आऊंगा... पर इसे तो अपना नाम तक याद नही है.... क्या आप इसे यहाँ रखकर इसका इलाज कर सकते है... मैं ठीक होते ही इसे यहाँ से ले जाऊंगा...
वेदजी – बात तो तुम्हारी नेक है .... पर मुझे माफ़ करना हरिया... मैं इसे अपने यहाँ नही रख सकता... घर की हालत तो तुम पहले से ही देख रहे हो... बड़ी मुश्किल से मेरा और मेरी पत्नी का गुज़ारा चल पता है... ऐसे में इसे यहाँ रखकर इलाज करना तो नामुमकिन है हमारे लिए
हरिया – ठीक है फिर वेदजी... मैं इसे अपने साथ ही ले जाता हूँ.... पर आप 6 -7 दिन और इसका इलाज कर दीजिये.... ताकि सफ़र के लायक होने पर मैं इसे यहाँ से ले जाऊ....
वेदजी – ठीक है हरिया... अगर बात 6-7 दिनों की है, तो मैं इसे यहाँ रख सकता हूँ...
हरिया – बहुत बहुत शुक्रिया वेदजी
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2-3 दिनों बाद ही वेदजी की जड़ी बूटियों ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया, लगभग तीसरे दिन मुझे होश आया.... पर इस बार मेरी हालत में थोडा सुधार था.. और दर्द में भी कमी थी... पर अब भी मुझे कुछ याद नही आ रहा था कि मैं कौन हूँ.. कहाँ रहता हूँ.. मेरे माँ बाप कौन है.... मैं यहाँ कैसे पहुंचा....
मेरी हालत हरिया से भी छिपी नही थी... इसलिए हरिया मेरे पास आकर बैठा और बोला
हरिया – देखो बेटा, तुम चिंता मत करो... सब ठीक हो जायेगा.... भगवन ने चाहा तो जल्द ही तुम्हारी यादाश्त वापस आ जाएगी....
मैं – आपने जो मेरे लिया किया उसके लिए मैं आपका एहसान मंद रहूँगा.... पर मुझे बिलकुल भी समझ नही आ रहा कि मैं अब क्या करूं.. कहाँ जाऊ...
हरिया – तुम इस बात की बिलकुल फ़िक्र नही करो.. जब तक तुम्हे तुम्हारी यादाश्त वापस नही आ जाती तब तक तुम मेरे साथ मेरे घर रहोगे.....
मैं – पर मैं कैसे... पहले ही मेरी वजह से आपको इतनी तकलीफ उठानी पडी गयी है.. मैं नही चाहता कि अब आपको और तकलीफ उठानी पड़े.....
हरिया – इसमें तकलीफ कैसे... तुम तो मेरे बेटे जैसे हो.... और वैसे भी एक इन्सान की मदद करना तो दुसरे इन्सान का फ़र्ज़ बनता ही है....
मैंने काफी कोशिश कि मना करने की पर हरिया की जिद के आगे मेरी ना चली.. आखिर में मुझे हारकर उसकी बात माननी ही पड़ी.... मेरी रजामंदी सुनकर हरिया काफी खुश हुआ......
हरिया भी दरअसल मुझमे अपना बेटा ढूंढ रहा था.. क्यूंकि उसके कोई बेटा नही था सिर्फ एक बेटी थी.... पर हरिया के इस मिलनसार व्यव्हार से मुझे बहुत अच्छा महसूस हुआ......
मैं – पर मैं आपको क्या बुलाऊ...... और आपका नाम क्या है...
हरिया – मेरा नाम हरिया है... मैं यहाँ से 1 दिन की दुरी पे बसे हुए छोटे से गाँव करमपुर में रहता हूँ... चूँकि तुम मेरे बेटे की उमर के ही हो इसलिए तुम चाहो तो मुझे चाचाजी बुला सकते हो.......
मैं – ठीक है चाचाजी..... पर आप मुझे क्या बुलायेगे???
हरिया – अगर मेरा कोई बेटा होता तो मैं उसका नाम समीर रखता..... इसलिए मैं आज से तुम्हे समीर ही बुलाऊंगा... क्यूँ ठीक है ना समीर बेटा ...
मैं – जी जैसा आप ठीक समझे......
लगभग 7 दिनों में मेरे शरीर के ज्यादातर घाव भर चुके थे..... और अब मैं हरिया चाचा के साथ उनके घर जाने के लिए बिलकुल तैयार था..... हमने वेदजी को उनकी सहायता के लिए बहुत बहुत धन्यवाद दिया और फिर हरिया चाचा की बैलगाड़ी में बैठकर करमपुर की ओर निकल गये.....
और यहीं से मेरे जीवन की एक नयी शुरुआत हुई.......................
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