RE: Hindi Antarvasna Kahani - ये क्या हो रहा है?
पुरे रस्ते हरिया चाचा मुझे अपने परिवार के बारे में बताते रहे... मैं उन सबके बारे में सुनकर बड़ा ही नर्वस फील कर रहा था....
“कहीं उन लोगो ने मुझे वहाँ रहने से मना कर दिया तो..कहीं मैं उन्हें पसंद नही आया तो.... मैं ऐसे में कहाँ जाऊंगा...क्या करूँगा” ये सब सोच सोच कर मैं परेशान हुए जा रहा था... शायद हरिया चाचा ने भी मेरी परेशानी महसूस कर ली....
हरिया – चिंता मत करो समीर बेटा .... सुधिया और नीलू को तुम जरुर पसंद आओगे....
हरिया चाचा की बात सुनकर मैं थोडा सा अच्छा महसूस करने लगा....
पुरे रस्ते चाचा ने मुझे अपने परिवार और गाँव के बारे में काफी कुछ बता दिया......
और आखिर कार वो वक्त भी आ गया जब हम करमपुर की सरहद में दाखिल हो चुके थे...शाम का वक्त हो चला था... पल पल मेरे दिलो की धडकन और भी तेज़ होती जा रही थी...... गाँव बहुत ही छोटा सा था...सभी घर टूटे फूटे नज़र आ रहे थे.... मुझे थोडा सा अजीब महसूस हो रहा था... शायद नयी जगह की वजह से
और फिर वो वक्त आया जब हरिया चाचा के मुंह से निकला “समीर बेटा, उतरो.. अपना घर आ गया है”
मैं बैलगाड़ी से निचे उतरा.... सामने एक कच्चे ढांचे का टुटा फूटा सा मकान दिखाई दे रहा था... घर के पास ही एक छोटा सा बाड़ा था.. जिसमे हरिया चाचा अपनी बैल बांध रहे थे... वहा घास फूस और पथरों की मदद से एक छोटा सा कमरा भी बना था... शायद घर का फालतू सामान रखने के लिए...
मैं अभी घर को निहार ही रहा था कि हरिया चाचा बैल को बांधकर मेरे पास आ गये
हरिया – क्या हुआ समीर बेटा, घर पसंद नही आया क्या......
समीर – नही ऐसी कोई बात नही.... वो तो बस नयी जगह है न इसलिए
हरिया – चलो अंदर चलो... तुम्हारी चाची को तुम जरुर पसंद आओगे...
हरिया चाचा मुझे अंदर ले आये.......... जैसे ही हम अंदर पहुंचे मुझे घर के एक कोने में एक कच्चे टूटे फूटे चूल्हे पर रोटी बनाती एक लडकी दिखी, मुझे समझते देर ना लगी कि शायद ये नीलू है.. हरिया चाचा की बेटी...
नीलू ने जैसे ही अपने पिता को देखा.... वो उठकर खड़ी हो गयी.. और भागकर हरिया चाचा के गले लग गयी....
नीलू – इस बार आने में बहुत दिन लगा दिए बापूजी ...... माँ और मैं बहुत परेशान हो गये थे
हरिया – हाँ बेटा , काम ही कुछ ऐसा आ गया था....
मैंने आज पहली बार नीलू को देखा.... उसका बदन बिलकुल गोरा और दुधिया था, और दिखने में वो बहुत ही ज्यादा खूबसूरत थी, तीखे नैन नक्श, दमकता गोरा चिट्टा चेहरा और गुलाबी रसीले होंठ, छोटे छोटे अमरूद जैसी सुंदर सुंदर चुचियाँ, पतली गोरी कमर, उभरी हुई गांड, भरी मांसल जाँघे और उसके कच्चे यौवन की मादक खुशबू जो किसी भी मर्द का मन बहका सके , मैंने जब उसे इतने करीब से देखा तो देखता ही रह गया..... वो दिखने में किसी अप्सरा से कम नही लग रही थी....
तभी मैंने महसूस किया कि नीलू भी मुझे घूरकर देख रही है........ मैंने तुरंत अपनी नज़रे निचे कर ली और थोडा सकपका गया
नीलू – बापूजी... ये लड़का कौन है.....
हरिया – बेटा.... इसके बारे में मैं तुझे बाद में बताऊंगा पर पहले ये बता कि तेरी माँ कहाँ है... मुझे तुम दोनों से कुछ जरूरी बात करनी है...
नीलू – माँ तो अभी अपनी पड़ोसन है ना रजनी मोसी, उनके पास गयी है... कुछ देर में आती ही होंगी
हरिया – अच्छा तो तू एक काम कर .... हमारे खाने का भी इन्तेजाम कर ...तब तक हम दोनों हाथ मुंह धोकर थोडा आराम करते है..
नीलू – जी ठीक है बापूजी...
ये कहकर नीलू ने दोबारा एक बार भरपूर नज़र से मुझे देखा और जाकर खाने की तैयारियो में लग गयी... हरिया चाचा ने मुझे उनका एक छोटा सा जो टुटा फुटा बाथरूम था, उसका रास्ता दिखा दिया.. मैंने भी जल्दी ही अपने हाथ मुंह धो लिया, हरिया चाचा मुझे एक कमरे में ले आये... कुल मिलाकर दो ही तो कमरे थे.... शायद एक में हरिया चाचा और उनकी बीवी रहती होंगी और दुसरे में उनकी बेटी.... मैं हरिया चाचा के साथ उनके रूम में आ गया... हरिया चाचा ने मुझे कुछ देर आराम करने को कहा ... मैंने भी सफ़र की थकान की वजह से थोडा आराम करना ही बेहतर समझा...
करीब 1 घंटे आराम के बाद अचानक मेरी आँख खुल गयी.... मुझे बाहर कुछ आवाज़े सुनाइ दे रही थी.. शायद हरिया चाचा की बीवी वापस आ चुकी थी.. और चाचा उन्हें मेरे बारे में बता रहे थे.. मुझे जो सुन रहा था मैं आप लोगो को भी बता देता हूँ
हरिया चाचा – देखो सुधिया.... वैसे भी भगवान ने हमें बेटा नही दिया.. कल को जब नीलू शादी करके दूजे घर चली जाएगी तब ये ही हमारे काम आएगा
सुधिया – पर इसका मतलब ये तो नही कि आप किसी भी ऐरे गैरे को यहाँ लाकर रख लेंगे... भले ही ये अपनी यादाश्त खो चूका है पर क्या पता ये पहले क्या था. हो सकता है कि कोई चोर रहा हो...
हरिया – कैसी बाते करती हो ... इसकी गाड़ी का हादसा हुआ था.. जब इसके पास गाड़ी है तो ये चोर कैसे हो सकता है
सुधिया – पर फिर भी ना जाने मेरा मन क्यूँ नही मान रहा...
हरिया – अच्छा एक काम करते है... कुछ दिन इसे यहाँ रहने देते है.. उसके बाद आगे देखा जायेगा.. पर जब तक ये यहाँ है इसके साथ थोडा अच्छे से पेश आना
सुधिय – ठीक है... कुछ दिनों की बात है तो मैं आप जैसा कहेंगे वैसे ही करूंगी... वैसे पहले मैं उसे देख तो लूँ
हरिया – हाँ ठीक है ... वैसे भी अब खाना खाने का वक्त हो गया तो तुम अंदर जाकर उसे खाना दे आओ और मिल भी आओ...
फिर मुझे बर्तनों की थोड़ी आवाज़ सुनाइ दी.. और जल्द ही सुधिया एक थाली में मेरे लिए खाना लेकर आ गयी, लालटेन की रौशनी में मुझे सुधिया साफ साफ दिखाई दे रही थी....
सुधिया - कैसे हो बेटा ……अब दर्द तो नही हो रहा…..
मैं - नही ….अब ठीक हूँ….
मैंने अपने मासूम से चेहरे से सुधिया की ओर देखते हुए कहा….और फिर अपनी नज़रे नीचे कर ली………सुधिया मुझे एक टक देखे जा रही थी…जिसकी वजह से मैं थोड़ा नर्वस फील कर रहा था…और अपनी हाथों की उंगलयों को आपस मे दबा रहा था..
सुधिया – अच्छा ये लो खाना खा लो... वैसे भी सुबह से भूखे होगे तुम
मैंने थाली लेने के लिए जैसे ही हाथ थोडा सा आगे बढाया मेरे हाथ में अचानक तेज़ दर्द हो उठा......... सुधिया ने जल्दी से थाली को साइड में रखा और मेरे पास आकर बैठ गयी.........
सुधिया – क्या हुआ बेटा, अभी भी दर्द हो रहा है क्या.......
मैं – जी थोडा थोडा... मैंने बड़ी ही मासूम सी शक्ल बनाते हुए कहा
सुधिया – लाओ मैं तुम्हे अपने हाथों से खाना खिला दूँ...
फिर सुधिया मुझे अपने हाथों से खाना खिलाने लगी.... इस बिच सुधिया लगातार मुझे ही देखे जा रही थी... शायद मेरे मासूम गोरे और सुंदर चेहरे को देखकर सुधिया के मन में ममता जाग उठी....
इधर हरिया और नीलू भी कमरे में आ गये और सुधिया को मुझे खाना खिलते हुए देखने लगे
सुधिया को इतने प्यार से खाना खिलाते देख मेरी आँखों में आंसू आ गये
सुधिया –क्या हुआ बेटा, तुम्हारी आँखों में आंसू क्यों???
मैं – जी, मुझे अपनी माँ की याद आ गयी... शायद मेरी भी कोई माँ होंगी.. या नही .. मुझे तो ये भी याद नही....
मेरी बात सुनकर सुधिया का दिल पसीज गया.... उसने झट से मुझे अपने गले लगा लिया...... और बोली
सुधिया – तुम चिंता मत करो बेटा, आज से मैं तुम्हारी माँ हूँ, और यही तुम्हारा परिवार है
ये सुनकर मेरे साथ साथ हरिया और नीलू भी बड़े खुश हुए
उस दिन मैं बड़ा खुश था..... मुझे एक नया परिवार मिल गया था.... अगले ही दिन सुधिया ने पुरे गाँव में ये खबर फैला दी कि उन्होंने मुझे गोद ले लिया है....
धीरे धीरे समय गुजरता गया... मेरे जख्म पूरी तरीके से भर चुके थे.... मैं भी अपनी पिछली जिन्दगी को पूरी तरह से भूल चूका था या यूँ कहे कि भूली हुई जिन्दगी के बारे में अब सोचना ही बंद कर दिया था.. धीरे धीरे मैं गाँव के लोगो से भी घुलने मिलने लगा... मेरे कुछ दोस्त भी बन चुके थे... अब मैं सुधिया को माँ और हरिया को बापूजी कहकर बुलाता था.... वो दोनों भी मुझे बहुत प्यार करते थे.......
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