RE: Hindi Antarvasna Kahani - ये क्या हो रहा है?
मुझे उस गाँव में रहते हुए करीब 1 साल का वक्त बीत चूका था, मैं अपनी पुरानी जिंदगी लगभग भूल ही चूका था, और अपनी इस नयी जिंदगी को ही पूरी तरह अपना चूका था, मैं यहाँ बहुत ही ज्यादा खुश था, बापूजी और माँ मुझे बहुत प्यार करते थे, नीलू दीदी भी मुझे पसंद करती थी, पर कभी कभी मुझे लगता कि शायद वो मुझे थोड़ी अजीब नजरो से देखती है, मैं अपनी इस नई ज़िन्दगी में पूरी तरह रम गया था,
मुझे रामू ताउजी के परिवार के बारे में भी सब पता चल गया था, सरला ताई, राजू भैया और चंदा दीदी भी मुझसे बहुत प्यार से बाते करते थे, पर रामू ताउजी मुझसे थोड़े खफा खफा से रहते थे, मैंने महसूस किया कि वो बापूजी से भी सीधे मुंह बात नही करते, ऐसा क्यूँ था, ये तो मैं नही जानता, पर हाँ ताउजी के अलावा सभी लोग मुझसे प्यार करते थे, और इसीलिए मैं अक्सर उनके घर जाया करता था, राजू भैया से मेरी बहुत जमती थी,
कभी कभी मैं माँ और नीलू दीदी के साथ खेत में भी जाया करता, मुझे खेती बाड़ी के बारे में कुछ भी नही पता था, माँ और दीदी ने मुझे कुछ ही महीने में पूरा किसान बना दिया, मुझे खेती का पूरा ज्ञान हो चूका था, पर फिर भी ना जाने क्यूँ मेरा मन खेती बाड़ी में कम ही लगता था, और ये बात माँ बापूजी भी जानते थे, इसलिए वो मुझे खेत जाने के लिए कभी भी मजबूर नही करते थे, जब मेरी इच्छा होती तभी मैं खेत जाता, वरना अपने दोस्तों के साथ गुली डंडा खेलने निकल जाता,
वैसे तो मेरे 1 साल में काफी दोस्त बन चुके थे, पर उनमे से मेरा सबसे खास दोस्त चमकू था, वैसे तो उसका नाम मोहन था, पर सारे गाँव में वो चमकू के नाम से ही मशहुर था, उमर में मुझे कोई एक आध साल बड़ा होगा, वैसे तो गाँव के बाकि लडको की तरह वो भी गाली गलोच वाली भाषा का ही इस्तेमाल करता था, पर फिर भी दिल का बड़ा अच्छा था, अक्सर हम शाम को गुली डंडा खेलने जाते थे.......
ऐसे ही एक दिन मैं चमकू और बाकि दोस्तों के साथ गुली डंडा खेल रहा था, की तभी गुली उछलकर मेरी तरफ आई, मुझे गुल्ली का कैच पकड़ना था, पर मेरे हाथो से गुल्ली छुट गयी, चमकू जो मेरी टीम में था, उसने जोर से चिल्लाकर मुझे गाली दी
चमकू – ओ तेरी बहन दी साले, गुल्ली नही पकड़ी जाती तो खेलता क्यूँ है, तेरी वजह से मैं दो आने हार गया
मैं - यार क्या करूँ…..छुट गया अपने आप….
चमकू – क्यों साले, गुल्ली पकड़ते टेम हाथ कांप रहे थे क्या, जरुर साला कल मुठ मारा होगा, तभी हाथ कांप रहे है तेरे, या कोई फुद्दी में हाथ घुसा रखा था साले
मैं ये शब्द पहली बार सुन रहा था इसलिए मुझे बड़ा ही अजीब सा लगा, मैंने उस टाइम तो कुछ नही कहा पर जब मैं और चमकू वापस घर की तरफ आ रहे थे तब मैंने उससे पूछा
मैं – चमकू, यार ये फुद्दी और मुठ क्या होता है
चमकू - (हंसते हुए) अरे क्या नवाब साहिब, आप को फुद्दी और मुठ मारने का भी नही पता
मैं – नही यार मुझे सच में नही पता
चमकू – अब फुद्दी तो मैं तुझे नही दिखा सकता, पर हाँ मुठ मारना जरुर सिखा सकता हूँ, बोल सीखेगा
मैं – हाँ क्यों नही सिखा ना
चमकू ने एक बार मेरी तरह मुस्कुरा कर देखा और एक कोने में ले जाकर चारो तरफ देखते हुए अपनी निक्कर की ज़िप खोल दी, और उसमे से अपना 3 इंच का सुस्ताया सा लंड बाहर निकाल लिया,
और अपने हाथ से अपने लंड को पकड़ कर मुझे दिखाते हुए बोला – देख समीर, इसे लंड कहते है,
चमकू – पर ये तो नुन्नी है ना,
चमकू – अरे नुन्नी तो बच्चो की होती है बहनचोद, मर्दों का लंड होता है,
मैं हैरत भरी नजरो से कभी उसे और कभी उसके लंड को देखता
चमकू – अब देख ध्यान से, अब मैं तुझे मुठ मारना सिखाता हूँ
चमकू ने अपने हाथ में थोडा सा थूक लगाया और अपने लंड पर मलने लगा, धीरे धीरे उसका लंड खड़ा होने लगा और देखते ही देखते वो ३ इंच से बढकर 5 इंच के करीब हो गया, चमकू अपने हाथ को अपने लंड पर कसकर लंड की चमड़ी को आगे पीछे कर रहा था, मैं बड़े ही ध्यान से उसे देख रहा था, कुछ ही पल में चमकू के लंड से सफेद से पानी धार निकलने लगी, ये देखकर मुझे बड़ा ही अजीब सा लगा, क्यूंकि मुझे तो लगा था कि नुन्नी से सिर्फ और सिर्फ मूत ही निकलता है, पर आज पहली बार नुन्नी से कुछ सफेद सफेद सा निकलते देखा,
चमकू के चेहरे पर अजीब सी ख़ुशी के भाव छलक रहे थे,
मैं – चमकू, ये तेरी नुन्नी... मेरा मतलब तेरे लंड से अभी अभी क्या निकला, वो सफेद सफेद
चमकू – इसे वीर्य कहते है, और जब ये वीर्य किसी लडकी की फुद्दी में जाता है ना तो उससे बच्चा पैदा होता है, समझा
मैं चमकू की बाते ऐसे सुन रहा था मानो वो कोई अमृत ज्ञान बाँट रहा हो,
उस दिन और कुछ खास नही हुआ और मैं अपने घर आ गया, थोड़ी देर बाद माँ दीदी भी घर आ गये, बापूजी किसी सवारी को लेकर भोपाल गये हुए थे, इसलिए उन्हें आने में कम से कम 4-5 दिन और लगने थे,
सुधिया – आज क्या किया पूरे दिन मेरे लल्ला ने
मैं - कुछ खास नही किया माँ, बस दोस्तों के साथ ही घूम रहा था
सुधिया – आजकल तू अपने दोस्तों के साथ बहुत घुमने लगा है, खेत में आ जाया कर कभी कभी
मैं – ठीक है माँ, मैं कल चलूँगा आप दोनों के साथ
सुधिया – चल ठीक है, अब मैं खाना बना लेती हूँ, फिर आराम से सो जाना, कल खेत में भी चलना है तुझे
मैं – ठीक है माँ
कुछ ही देर में माँ और नीलू दीदी ने मिलकर खाना बना लिया, जल्दी ही हम तीनो ने मिलकर खाना खाया और फिर सोने के लिए चले गये
मैं और नीलू दीदी एक ही कमरे में सोते थे, चूँकि घर में एक ही चारपाई थी जो माँ बापू के कमरे में थी, इसलिए मैं और नीलू दीदी जमीन पर ही गद्दा बिछाकर सोया करते थे,
उस रात भी मैं खाना खाकर कमरे में आ गया और निक्कर बनियान पहनकर सो गया, चूँकि गर्मियों के दिन थे इसलिए अक्सर मैं निक्कर बनियान में ही सो जाया करता था,
कुछ देर बाद नीलू दीदी भी आकर मेरे बाजु में लेट गयी,
रात के तकरीबन 12 बज रहे थे, मेरी आँखों से नींद कोषों दूर थी, क्यूंकि आज दिन में चमकू ने जो कुछ मुझे बताया उसके बाद से वो बाते मेरे दिमाग में ही घूम रही थी,
मैंने साइड में देखा तो नीलू दीदी मेरी तरफ पीठ करके लेटी हुई थी, इधर मुझसे अब बर्दास्त करना मुश्किल हुआ जा रहा था,
मैंने धीरे से उठकर नीलू दीदी की आँखों को देखा, ये निश्चित करने के लिए की वो सो रही है, नीलू दीदी की आँखे बंद दी, मैंने हलके से आवाज़ लगाई, पर नीलू दीदी का कोई जवाब नही आया, अब मैं बिलकुल निश्चित हो चूका था कि नीलू दीदी सो रही है
मैंने धीरे से अपनी निक्कर के बटन खोले और बड़ी ही सावधानी से अपनी निक्कर को निचे करने लगा, जल्द ही मेरी निक्कर मेरे घुटनों तक उतर चुकी थी, गर्मी की वजह से मैं अंदर कच्छा नही पहनता था, इसलिए निक्कर उतरते ही मेरा लंड पूरी तरह से नंगा हो चूका था,
मैंने अपने लंड की तरफ देखा, वो अभी मुरझाया हुआ सा था, या यूँ कहूँ कि इस एक साल में मैंने अपने लंड को हमेशा मुरझाया हुआ ही देखा है, मैंने अपने हाथ की अंगुलियों पर थोडा सा थूक लगाया और फिर कांपते हुए अपने हाथ को अपने लंड पर लगा दिया, थूक को लंड के सुपाडे पर अच्छी तरह मलने के बाद अचानक मुझे मेरे लंड में तनाव सा महसूस होने लगा, मैंने अपने लंड के चारो और मुट्ठी को कस लिया और फिर धीरे धीरे अपने लंड की चमड़ी को उपर निचे करने लगा
मुझे पता नही था पर ना जाने मुझे क्यूँ बहुत अच्छा महसूस हो रहा था, देखते ही देखते मेरे लंड का आकार बढ़ने लगा, और कुछ ही मिनटों में मेरा लंड पूरी तरह तनकर खड़ा था, मुझे ये तो पता नही था कि ये कितने इंच का था, पर देखने में चमकू के लंड से दोगुना लम्बा और लगभग ढाई गुना लग रहा था, एक बार तो मैं भी दर गया कि मेरा लंड इतना बड़ा कैसे है, कहीं मुझे कहीं कोई बीमारी तो नही,
पर फिर मैंने अपना ध्यान उस और से हटाया और दोबारा अपने लंड पर मुठ मारने लगा, मुझे सच में इतना अच्छा फील कभी नही हुआ था, मैं अब तेज़ी से अपने लंड की मुठ मारने लगा, अचानक मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मेरे लंड में से कुछ निकलने वाला है, मेरे हाथ की गति और भी तेज़ हो गयी, और तभी मेरे लंड से वीर्य की मोटी मोटी पिचकारियाँ निकलने लगी, एक आध पिचकारी तो हवा में बहुत दूर तक गयी, बाकि पिचकारियाँ वहीं बिस्तर पर गिरने लगी, मुझे इतना ज्यादा मजा अपनी पूरी जिंदगी में नही आया था, मेरे लंड से करीब आधे मिनट तक वीर्य निकलता रहा, मुझे बहुत ही ज्यादा मजा आ रहा था, मैंने अपने जीवन की पहली मुठ मारी थी, मेरी आँखों के सामने थोडा अँधेरा सा छा गया
जब पूरी तरह से मेरा वीर्य निकल चूका था, तो मेरे चेहरे पर पूर्ण संतुष्टि के भाव आ चुके थे, मैंने धीरे से अपने निक्कर को उपर किया, पर अभी काम बाकी था, क्यूंकि मेरे लंड से निकला पानी बिस्तर और जमीन पर गिरा था, मैंने धीरे से उठकर कोई कपडा ढूँढने लगा, तभी मेरे हाथ में कोई छोटा सा पतला लाल कपड़ा आ गया, मैंने वो कपड़ा उठाया और बड़ी ही सावधानी से सारा वीर्य साफ करने लगा,
जब सारा वीर्य साफ हो गया तो मैंने वो कपडा वापस वहीं रख दिया और आराम से सो गया
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