RE: Hindi Antarvasna Kahani - ये क्या हो रहा है?
[size=large][b][color=#004000]\r\n\r\nसरजू काका से विदा लेकर मैं सीधा अपने खेतो की ओर चल दिया, मुझे पहले ही काफी लेट हो चुकी थी इसलिए मैं अब और ज्यादा देर नही करना चाहता था इसलिए मैं तेज़ी से चलता हुआ आगे बढ़ने लगा, कुछ ही देर में मैं हमारे खेत में पहुंच गया, माँ और दीदी गन्ने के आस पास उगी झाडिया काटने में मशगुल थी, तभी माँ ने मुझे वहां आता देखा तो मेरी तरफ देखकर बोली\r\n\r\nसुधिया – बेटा, इतनी देर कहाँ लगा दी, कब से तेरी राह देख रहे है हम\r\n\r\nमैं – माँ, वो बस ऐसे ही नहाते नहाते देर हो गयी, और मैं थोडा धीरे धीरे भी चलता हूँ ना इसलिए\r\n\r\nसुधिया – चल अब ये बहाने बाज़ी छोड़ और आकर हमारी मदद कर,\r\n\r\nमैं – क्या करना है माँ मुझे\r\n\r\nसुधिया – ये जो गन्नो के आस पास घास फूस झाड़ियाँ सी उगी हैं, इन सब को आज ही साफ करना है, समझा\r\n\r\nमैं – ठीक है माँ\r\n\r\nऔर ये कहकर मैंने एक कुदाली उठाई और जिधर नीलू दीदी काम कर रही थी, उधर ही पास में घास काटने लगा, कुछ देर काम करते करते मैं और दीदी काफी अंदर तक आ चुके थे, माँ तो अब हमे दिखाई भी नही दे रही थी, मैं भी बस घास काटने में मशगुल था कि तभी नीलू दीदी मेरे पास ही आकर बैठ गयी,\r\n\r\nनीलू दीदी – क्यों रे, क्या बोल रहा था माँ को, इतना वक्त कहाँ लगा दिया\r\n\r\nमैं – दीदी वो बाथरूम में ही नहाने में ज्यादा टाइम लग गया\r\n\r\nनीलू दीदी – “क्यों ऐसा क्या कर रहा था बाथरूम में” नीलू दीदी ने मेरी तरह आँखे मटकाते हुए कहा\r\n\r\nमैं – कुछ नही दीदी, मैं तो वो बस नहा ही रहा था, और क्या करूंगा बाथरूम में\r\n\r\nनीलू दीदी – मुझे क्या पता तू क्या करता होगा अंदर,\r\n\r\nनीलू दीदी की बात सुनकर मैं थोडा सकपका गया, कि कहीं इन्होने मुझे अंदर मुठ मारते हुए तो नही देख लिया, वैसे भी बाथरूम का दरवाज़ा लकड़ी का है और उसमे काफी सारी दरारे भी हैं\r\n\r\nमैं – न...न....नही...तो दीदी मैं तो बस नहा ही रहा था अंदर\r\n\r\nनीलू दीदी – चल ठीक है... अब काम कर\r\n\r\nनीलू दीदी ये कहकर मेरे से बस 3-4 फूट आगे बैठकर ही घास काटने लगी, पर इस बार तो वो बैठकर नही बल्कि खड़ी होकर झुकने के बाद घास काट रही थी, आज दीदी ने घाघरा चोली पहनी हुई थी, जो थोड़ी फटी पुरानी सी थी\r\n\r\nनीलू दीदी झुक झुककर घास काट रही थी, तभी अचानक मेरी नज़र दीदी की मस्त उभरी हुई गांड पर जा टिकी, मुझ पर जैसे बिजली सी गिर पड़ी, एक तो इतनी मस्त फूली हुई गांड आँखों के सामने थी उपर से दीदी घास काटते काटते अपनी कमर और गांड को मस्ती से होले होले हिला भी रही थी, मेरे गले का पानी सुख सा गया ये नज़ारा देखकर, पर मन में थोडा डर था कि कहीं दीदी ने अचानक पीछे मुडकर देख लिया तो,\r\n\r\nमैं बस अभी अपनी नज़रे फेरने ही वाला था कि तभी अचानक मुझ पर जैसे एक और गाज गिर पड़ी, नीलू दीदी का घाघरा पीछे एक घास के डंठल में फस गया पर दीदी का ध्यान इस ओर नही गया, और वो बिना जाने ही थोड़ी सी आगे हो गयी, पर पीछे से घाघरा डंठल में फंसे होने की वजह से थोडा सा उपर उठ गया, और उसी पल मुझे नीलू दीदी की गोरी गोरी मलाई जैसी जांघे नज़र आ गयी,\r\n\r\nमैं तो अपने होश ही खो बैठा ये नज़ारा देखकर, नीलू दीदी की मांसल जांघे और उपर से उनकी काली पेंटी की हलकी सी झलक मेरी आँखों में कैद हो चुकी थी, उसकी मोटी सी मांसल गदरायी गांड पर उस छोटी सी पैंटी को देखकर मेरी सांसे ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे रह गयी, मेरा चेहरा गरम होने लगा, मुझे अपने लंड में तनाव महसूस होने लगा, और जल्द ही मेरे लंड विकराल रूप ले लिया जिससे मेरी पेंट में उभार बन गया था ,\r\n\r\nपता नही क्यूँ पर नीलू दीदी अब वहीं खड़ी खड़ी घास काट रही थी, जबकि पीछे से उनका घाघरा आधे से ज्यादा उठा हुआ था, मैं तो दीदी की मस्त मांसल भरी हुई जांघो को ही घूरे जा रहा था, पर तभी अचानक दीदी पीछे मुड गयी,\r\n\r\nमेरी तो जैसे साँस ही रुक गयी, मैंने तुरंत अपना सर दूसरी तरफ घुमा लिया,\r\n\r\n“दीदी ने मुझे देख लिया, दीदी ने मुझे पक्का देख लिया, अब क्या होगा,,,,,, अगर उन्होंने माँ को बता दिया तो, कहीं बापूजी को ये बात पता चली तो मुझे घर से ही ना निकाल दे” मेरे मन में बहुत सारे विचार आ रहे थे और डर के मारे मेरी हालत खराब हो चुकी थी,\r\n\r\nमैंने हिम्मत करके दोबारा दीदी की ओर देखा, और अचानक मेरी नज़रे दीदी की नजरो से टकरा गई, दीदी अजीब तरीके से मुझे देख रही थी, पर कुछ ही देर में उन्होंने अपना ध्यान हटाया और अपना घाघरा उस डंठल से निकाल कर आगे बढ़ गयी, मुझे समझ नही आ रहा था कि दीदी ने मुझे देख लिया या नही,\r\n\r\nमैं बस अभी सोच ही रहा था कि तभी दीदी ने अचानक दोबारा पीछे मुडकर देखा और इस बार उनकी नजर मेरी पेंट में बने तम्बू पर चली गई, मैंने जब उनकी नजरो का पीछा किया तो मैं झट से अपने तम्बू को छुपाने की कोशिश करने लगा, मुझे ऐसा करता देख दीदी के चेहरे पर मुस्कान आ गयी\r\n\r\nमैं – वो...वो...मुझे....माफ़ कर देना दीदी..... वो मैंने जान बुझकर नही किया, आप माँ को मत बताना\r\n\r\nनीलू दीदी – चल ठीक है नही बताती पर अपने उस पर थोड़ी लगाम रखा कर...\r\n\r\nये बोलकर नीलू दीदी हंसने लगी पर मेरी तो जैसे सिट्टी पिट्टी गूम हो गयी ये सोचकर कि दीदी मुझे अपने लंड पर कण्ट्रोल करने को बोल रही है, पर दीदी को हँसता देख मैं भी झूठी हंसी हंस दिया\r\nउसके बाद हम वापस काम में मशगुल हो गये, और शाम तक हम तीनो ने मिलकर सारी घास काट ली,\r\n\r\nसुधिया – समीर बेटा,\r\n\r\nमैं – हाँ माँ,\r\n\r\nसुधिया – तू और तेरी बहन दोनों सीधे घर चले जाना, मैं जरा सरला के घर होकर आउंगी, तो आने में जरा देर हो जायेगी\r\n\r\nमैं – ठीक है माँ,\r\n\r\nसुधिया – और नीलू तू आज खाना बनाकर रख लेना,\r\n\r\nनीलू दीदी – जैसा आप कहे माँ\r\n\r\nमाँ से विदा लेकर मैं और नीलू दीदी वापस घर की तरफ चल पड़े, रस्ते में नीलू दीदी मेरे मजे ले रही थी\r\n\r\nनीलू – हाँ तो समीर, जरा बताना तो तू मुझसे माफ़ी क्यों मांग रहा था खेत में\r\n\r\nमैं – “वो..वो.... दीदी... आपको पता है, आप मुझे तंग करने के लिए पूछ रही हो” मुझे समझ नही आ रहा था कि दीदी मुझसे ऐसे सवाल क्यों पूछ रही है, पर जो भी हो मुझे तो डर सता रहा था कि दीदी कहीं माँ को ये बात ना बता दे\r\n\r\nनीलू – अरे नही, सच्ची मुझे नही पता, बता ना\r\n\r\nमैं – नही दीदी, आप नाराज़ हो जाओगी मुझसे\r\n\r\nनीलू – अरे मैं तुझसे कभी नाराज़ हुई क्या आज तक, जो आज हो जाउंगी,\r\n\r\nमैं – ठीक है दीदी, अगर आप वादा करो कि आप मुझसे नाराज़ नही होगी, तो मैं बता देता हूँ\r\n\r\nनीलू – हाँ बाबा मैं वादा करती हूँ कि तुझसे नाराज़ नही होउंगी, अब बता\r\n\r\nमैं – वो दीदी, मैं वो ..आपकी.....वो आप आगे थी ना.... इसलिए अचानक.. पर मैंने जानबुझकर नही,,,,,,\r\n\r\nनीलू – अरे क्या बोल रहा है साफ साफ बोल ना\r\n\r\nमैं – वो दीदी आप मेरे आगे थी ना, और झुक कर घास काट रही थी तो मेरी नज़र अपने आप चली गयी, मैंने जानबुझकर नही देखा पक्का\r\n\r\nनीलू – क्या देख लिया तूने\r\n\r\nमैं – वो दीदी आपका घाघरा थोडा उपर को खिसक गया था ना, इसलिए मुझे आपकी जंघे दिख गयी थी, पर मैंने जानबुझकर नही देखा, आप माँ को मत बताना\r\nनीलू दीदी – चल ठीक है नही बताउंगी, पर पहले तू मेरे सवाल का सही सही जवाब देगा\r\n\r\nमैं – “ठीक है दीदी” मेरी तो वैसे ही डर के मारे हालत टाइट थी तो और मैं कर भी क्या सकता था\r\n\r\nनीलू दीदी – अच्छा तो बता, तुझे मेरी जांघे कैसी लगी???\r\n\r\nनीलू दीदी ने तो जैसे अपने सवाल से मेरे उपर बम फोड़ दिया, अब मैं भला कैसे उन्हें बताता कि मुझे तो लगा कि वही घोड़ी बना के अपना लंड दीदी की पनियाई चूत में पेल दूँ, पर उनके सामने मैं कैसे अपने मन की बात बोल देता\r\n\r\nमैं – क....क्या...मतलब......” मैं बड़ी मुश्किल से बोल पाया\r\n\r\nनीलू दीदी – अरे भोंदू, मेरा मतलब है कि तुझे कैसी लगी मेरी जांघे, अच्छी, ख़राब बहुत खराब???\r\n\r\nमैं – अ...अच्छी,,,,,,,\r\n\r\nनीलू – सिर्फ अच्छी...???\r\n\r\nमैं – नही...ब...बहुत..अच्छी...\r\n\r\nनीलू दीदी – अच्छा जी, तभी अपने उसको भरी दोपहर में खड़ा किये बैठे थे, हा हा हा.............\r\n\r\nमैं तो नीलू दीदी की इस बात से पूरी तरह सकपका गया,,, अब बोलता भी तो क्या बोलता भला... पर मेरी समझ में ये नही आ रहा था कि आज नीलू दीदी को हुआ क्या है, पर जो भी हुआ हो आज नीलू दीदी की गरमा गर्म बातें सुनकर मेरा लोडा पेंट में हल्का हल्का सर उठाने लगा था,\r\n\r\nइसी तरह दीदी मुझे रस्ते भर परेशान करती रही, जब भी मैं खेत जाता था वापस आकर नहाता जरुर था, और यहीं नियम दीदी का भी था, इसलिए मैंने दीदी से कहा\r\n\r\nमैं – दीदी, वो मैं नहाने जा रहा हूँ” और ये बोलकर मैं खड़ा हुआ और बाथरूम की तरफ चल दिया...\r\n\r\nनीलू दीदी – रुक.........आज तू नही मैं नहाऊगी पहले.... तू थोड़ी देर इंतज़ार कर\r\n\r\nमुझे उनकी बात सुनकर बड़ी ही हैरानी हुई, क्यूंकि हमेशा सबसे पहले मैं ही नहाता था, और दीदी तो सबसे लास्ट में नहाती थी खेत से आने के बाद, पर आज अचानक दीदी ने नहाने का क्यूँ बोला.... मेरी समझ में बिलकुल नही आ रहा था, पर अब उनको मना भी कैसे करता\r\n\r\nमैं – ठीक है दीदी, पहले आप नहा लो... मैं बाहर ही बैठ जाता हूँ...\r\n\r\nनीलू दीदी – ठीक है..\r\n\r\nये बोलकर दीदी हमारे कमरे में अंदर गई, शायद कपड़े लेने गई थी, और जल्दी ही अपने हाथ मे कुछ कपड़े और तोलिया लिए बाहर आ गई, अभी वो बाथरूम की तरफ जा ही रही थी कि तभी अचानक मेरी नज़र उनके हाथो में रखे कपड़ो पर गयी और मुझे जैसे कोई 440 वोल्ट का झटका सा लग गया हो,\r\n\r\nदीदी के कपड़ो के बिच एक छोटा सा लाल कपड़ा भी था, शायद उनकी पेंटी थी, पर जैसे ही मेरी नजर उस पर गिरी मुझे याद आ गया कि उस रात मैंने जिस लाल कपड़े से अपने लंड को साफ किया था, कहि ये वो ही तो लाल कपड़ा नही, तभी तो अगले दिन दीदी मेरी तरफ अजीब नजरो से देख रही थी, मेरी आँखों के सामने जैसे चक्कर से आने लगे, मुझे समझ नही आ रहा था कि मेरे साथ ही ऐसा क्यूँ हो रहा था,\r\n\r\n“पर अगर दीदी मुझसे नाराज़ होती तो मुझसे ऐसी बाते नही करती, आखिर दीदी चाहती क्या है” मेरी समझ में कुछ नही आ रहा था,\r\n\r\nतभी अचानक दीदी ने जोर से बाथरूम का दरवाज़ा बंद कर लिया, मैं भी आंगन में बैठा सोच रहा था कि थोड़ी देर बाद मुझे अंदर से पानी गिरने की आवाज़ सी आने लगी,\r\n\r\nपानी की आवाज़ ने जैसे मेरे अंदर के शैतान को फिर से जिन्दा कर दिया,\r\n\r\n“दीदी अंदर नहा रही है, शायद कपडे भी उतार दिए होंगे, चल चलकर देखते है” मेरे दिमाग में एक आवाज़ गूंजी\r\n\r\n“नही नही, पागल हो गया है क्या, अगर दीदी ने देख लिया तो शामत आ जानी है, वैसे ही आज दोपहर को तू पकड़ा गया था” एक और आवाज़ मेरे दिमाग में गूंजी\r\n\r\n“पर दीदी ने तुझ पर गुस्सा तो नही किया ना, तो डरता क्यूँ है, देखते है अंदर, शायद दीदी का गोरा बदन देखने को मिल जाये...” फिर से आवाज़ गूंजी\r\n\r\n“पर....” अब शायद मेरी हवास मुझ पर हावी हो चुकी थी, मैं चुपके से खड़ा हुआ, और दबे पाँव जाकर बाथरूम के दरवाजे के पास छुप कर खड़ा हो गया और अंदर झाँकने की कोशिश करने लगा\r\n\r\nमैं बहुत आराम से उठ कर लकड़ी के पट्टो पर कान लगा कर ध्यान से सुन ने लगा, केवल चुड़ियो के खन-खनाने और गुन-गुनाने की आवाज़ सुनाई दे रही थी, फिर पानी गिरने की आवाज़ सुनाई दी, मेरे अन्दर के शैतान ने मुझे एक आवाज़ दी, लकड़ी के पट्टो को ध्यान से देख, मैंने अपने अन्दर के शैतान की आवाज़ को अनसुना करने की कोशिश की, मगर शैतान हावी हो गया था, दीदी जैसी एक खूबसूरत लडकी लकड़ी के पट्टो के उस पार नहाने जा रही थी, मेरा गला सुख गया और मेरे पैर कांपने लगे, अचानक ही पजामा एकदम से आगे की ओर उभर गया, दिमाग का काम अब लण्ड कर रहा था, मेरी आँखें लकड़ी के पट्टो के बीच ऊपर से निचे की तरफ घुमने लगी और अचानक मेरी मन की मुराद जैसे पूरी हो गई, हमारे टूटे फूटे दरवाजे के बिच मुझे एक अच्छी खासी दरार मिल गयी जिससे मैं अंदर का नज़ारा बिलकुल साफ साफ देख सकता था, मैंने लकड़ी के पट्टो के बिच की उस दरार पर अपनी ऑंखें जमा दी,\r\n\r\nदीदी की पीठ लकड़ी की दिवार की तरफ थी, वो घाघरा और चोली में दूसरी तरफ मुंह किये खड़ी थी, फिर दीदी ने अपने कंधो पर रखे तौलिये को अपना एक हाथ बढा कर बगल वाली खूंटी पर टांग दिया, फिर अपने हाथों को पीछे ले जा कर अपने खुले रेशमी बालो को समेट कर जुड़ा बना दिया, फिर दीदी ने बाथरूम के कोने में गड़े एक छोटे से पत्थर पर रखी कटोरी उठाई, उस कटोरी में हम लोग मुल्तानी मिटटी भिगो कर रखा करते थे, चूँकि उस समय साबुन वैगरह तो होती नही थी इसलिए अगर चेहरा या बदन साफ करना हो तो कभी कभी मुल्तानी मिटटी का ही इस्तेमाल कर लिया करते थे, और मुल्तानी मिटटी तो बालो के लिए भी अच्छी होती है,\r\n\r\nदीदी ने वो कटोरी से थोड़ी सी मुल्तानी मिट्टी निकाली और अपने चेहरे पर उसे रगड़ने लगी, पीछे से मुझे उनका चेहरा दिखाई नहीं दे रहा था मगर ऐसा लग रहा था की वो मुल्तानी मिट्टी निकाल कर अपने चेहरे पर ही लगा रही है, लकड़ी के पट्टो के बिच की दरार से मुझे उनके सर से चुत्तरों के थोड़ा निचे तक का भाग दिखाई पड़ रहा था, मुल्तानी मिट्टी लगाने के बाद दीदी ने अपने घाघरे को घुटनों के पास से पकड कर थोड़ा सा ऊपर उठाया और फिर थोड़ा तिरछा हो कर निचे बैठ गई, इस समय मुझे केवल उनका पीठ और सर नज़र आ रहा थे, पर अचानक से सिटी जैसी आवाज़ सुनाई दी, दीदी इस समय शायद वही बाथरूम के कोने में पेशाब कर रही थी, मेरे बदन में सिहरन सी दौड गई, मैं कुछ देख तो सकता नहीं था मगर मेरे दिमाग ने बहुत सारी कल्पनाये कर डाली, पेशाब करने की आवाज़ सुन कर मेरे कुंवारे लण्ड ने झटका खाया, मगर अफ़सोस कुछ देख नहीं सकता था,\r\n\r\nफिर थोड़ी देर में वो उठ कर खड़ी हो गई और अपने हाथो को कुहनी के पास से मोड कर अपनी छाती के पास कुछ करने लगी, मुझे लगा जैसे वो अपनि चोली खोल रही है, मैं दम साधे ये सब देख रहा था, मेरा लण्ड इतने में ही एक दम खड़ा हो चूका था, दीदी ने अपना चोली खोल कर अपने कंधो से धीरे से निचे की तरफ सरकाते हुए उतार दिया, उनकी गोरी चिकनी पीठ मेरी आँखों के सामने थी, पीठ पर कंधो से ठीक थोड़ा सा निचे एक काले रंग का तिल था और उससे थोड़ा निचे उनकी काली ब्रा का फीता बंधा हुआ था, इतनी सुन्दर पीठ मैंने आज तक नही देखी थी, वैसे तो मैंने दीदी की पीठ कई बार देखि थी मगर ये आज पहली बार था जब उनकी पूरी पीठ नंगी मेरी सामने थी,\r\n\r\nकेवल एक ब्रा का स्ट्रैप बंधा हुआ था, गोरी पीठ पर काली ब्रा का स्ट्रैप पीठ को और भी ज्यादा सुन्दर बना रहा था, मैंने सोचा की शायद दीदी अब अपनी ब्रा खोलेंगी मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया, अपने दोनों हाथो को बारी-बारी से उठा कर वो अपनी कांख को देखने लगी, एक हाथ को उठा कर दुसरे हाथ से अपनी कांख को छू कर शायद अपने कांख के बालो की लम्बाई का अंदाज लगा रही थी, दीदी अब साइड पोज़ में खड़ी थी,\r\n\r\nमैं सोच रहा था काश वो पूरा मेरी तरफ घूम जाती मगर ऐसा नहीं हुआ, उनकी दाहिनी साइड मुझे पूरी तरह से नज़र आ रही थी, उनका दाहिना हाथ और पैर, पेट और ब्रा में कैद एक चूची, उनका चेहरा भी अब साइड से नज़र आ रहा था, उन्होंने अपने पुरे चेहरे पर मुल्तानी मिटटी लगा ली थी,\r\n\r\nअब दीदी ने दोबारा कटोरी में से मुल्तानी मिटटी अपने बाये हाथ में ली और अपने दाहिने हाथ को ऊपर उठा लिया , दीदी की नंगी गोरी मांसल बांह अपने आप में उत्तेजना का शबब थी और अब तो हाथ ऊपर उठ जाने के कारण दीदी की कांख भी दिखाई दे रही थी, कांख के साथ दीदी की ब्रा में कैद दाहिनी चूची भी दिख रही थी, ब्रा ने पूरी चूची को अपने अन्दर कैद किया हुआ था इसलिए मुझे कुछ खास नहीं दिखा, मगर उनकी कांख कर पूरा नज़ारा मुझे मिल रहा था,\r\n\r\nदीदी की कांख में काले-काले बालों का गुच्छा सा उगा हुआ था, शायद दीदी ने काफी दिनों से अपने कांख के बाल नहीं बनाये थे, वैसे तो मुझे औरतो के चिकने कांख ही अच्छे लगते है पर आज पाता नहीं क्या बात थी मुझे दीदी के बालों वाले कांख भी बहुत सेक्सी लग रहे थे, मैं सोच रहा था इतने सारे बाल होने के कारण दीदी की कांख में बहुत सारा पसीना आता होगा और उसकी गंध भी उन्ही बालों में कैद हो कर रह जाती होगी, दीदी के पसीने से भीगे बदन को कई बार मैंने रसोई में देखा था, उस समय उनके बदन से आती गंध बहुत कामोउत्तेजक होती थी और मुझे उनके बदन की गंध को सूंघना बहुत अच्छा लगता था,\r\n\r\nये सब सोचते सोचते मेरा मन किया की काश मैं उसकी कांख में एक बार अपने मुंह को ले जा पाता और अपनी जीभ से एक बार उसको चाटता, यही सोचते सोचते ना जाने कब मेरा हाथ मेरे पजामे (पेंट) के अंदर चला गया ,मैंने अपने लण्ड पर हाथ फेरा तो देखा की सुपाड़े पर हल्का सा गीलापन आ गया है, तभी दीदी ने अपने बाएं हाथ की मुल्तानी मिट्टी को अपनी दाहिने हाथ की कांख में लगा दिया और फिर अपने वैसे ही अपनी बाई कांख में भी दाहिने हाथ से मुल्तानी मिट्टी लगा दिया, शायद दीदी को अपने कान्खो में बाल पसंद नहीं थे,\r\n\r\nकान्खो में मुल्तानी मिट्टी लगा लेने के बाद दीदी फिर से मेरी तरफ पीठ करके घूम गई और अपने हाथ को पीछे ले जाकर अपनी ब्रा का स्ट्रैप खोल दिया और अपने कंधो से सरका कर बहार निकाल फर्श पर डाल दिया और जल्दी से निचे बैठ गई, अब मुझे केवल उनका सर और थोड़ा सा गर्दन के निचे का भाग नज़र आ रहा था, मुझे अपनी किस्मत पर बहुत गुस्सा आया, काश दीदी सामने घूम कर ब्रा खोलती या फिर जब वो साइड से घूमी हुई थी तभी अपनी ब्रा खोल देती मगर ऐसा नहीं हुआ था और अब वो निचे बैठ कर शायद अपनी चोली और ब्रा और दुसरे कपड़े साफ़ कर रही थी,\r\n\r\nपहले तो मैंने पहले सोचा कि अब खड़े रहने से कोई फायदा नही, मगर फिर सोचा की नहाएगी तो खड़ी तो होगी ही, ऐसे कैसे नहा लेगी, इसलिए चुप-चाप यही खड़े रहने में ही रहने में भलाई है, मेरा धैर्य रंग लाया, थोड़ी देर बाद दीदी उठ कर खड़ी हो गई और उसने घाघरे को घुटनों के पास से पकड़ कर जांघो तक ऊपर उठा दिया, मेरा कलेजा एक दम धक् से रह गया, दीदी ने अपना घाघरा पीछे से पूरा ऊपर उठा दिया था, और घाघरे को उठाकर अपनी चुचियो पर अटका लिया था, इस समय उनकी जांघे पीछे से पूरी तरह से नंगी हो गई थी, मुझे औरतो और लड़कियों की जांघे सबसे ज्यादा पसंद आती है, मोटी और गदराई जांघे जो की शारीरिक अनुपात में हो,
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