RE: Hindi Antarvasna Kahani - ये क्या हो रहा है?
घाघरे के उठते ही मेरे सामने ठीक वैसी ही जांघे थी जिनकी कल्पना कर मैं मुठ मारा करता था, एकदम चिकनी और मांसल, जिन पर हलके हलके दांत गडा कर काटते हुए जीभ से चाटा जाये तो ऐसा अनोखा मजा आएगा की बयान नहीं किया जा सकता,\r\n\r\nदीदी की जांघे मांसल होने के साथ सख्त और गठी हुई थी उनमे कही से भी थुलथुलापन नहीं था, इस समय दीदी की जांघे केले के पेड़ के चिकने तने की समान दिख रही थी, मेरे मुंह में पानी आ गया था, लण्ड के सुपाड़े पर भी पानी आ गया था, सुपाड़े को लकड़ी के पट्टे पर हल्का सा सटा कर मैंने उससे पानी को पोछ दिया और पैंटी में कसे हुई दीदी के चुत्तरों को ध्यान से देखने लगा, दीदी का हाथ इस समय अपनी कमर के पास था और उन्होंने अपने अंगूठे को पैंटी के इलास्टिक में फसा रखा था, मैं दम साधे इस बात का इन्तेज़ार कर रहा था की कब दीदी अपनी पैंटी को निचे की तरफ सरकाती है, दीदी ने अपनी पैंटी को निचे सरकाना शुरू किया पर उसी के साथ ही घाघरा भी निचे की तरफ सरकता चला गया, ये सब इतनी तेजी से हुआ की दीदी के चुत्तर देखने की हसरत दिल में ही रह गई, दीदी ने अपनी पैंटी निचे सरकाई और उसी साथ घाघरा भी निचे आ कर उनके चुत्तरों और जांघो को ढकता चला गया,\r\n\r\nदीदी अपनी पैंटी उतार उसको ध्यान से देखने लगी, पता नहीं क्या देख रही थी, छोटी सी पैंटी थी, पता नहीं कैसे उसमे दीदी के इतने बड़े चुत्तर समाते है, मगर शायद यह प्रश्न करने का हक मुझे नहीं था क्योंकी अभी एक क्षण पहले मेरी आँखों के सामने ये छोटी सी पैंटी दीदी के विशाल और मांसल चुत्तरों पर अटकी हुई थी, कुछ देर तक उसको देखने के बाद वो फिर से निचे बैठ गई और अपनी पैंटी साफ़ करने लगी, फिर थोड़ी देर बाद ऊपर उठी और अपने घाघरा के नाड़े को खोल दिया, मैंने दिल थाम कर इस नज़ारे का इन्तेज़ार कर रहा था, कब दीदी अपने घाघरा को खोलेंगी और अब वो क्षण आ गया था, लौड़े को एक झटका लगा और दीदी के घाघरा खोलने का स्वागत एक बार ऊपर-निचे होकर किया, मैंने लण्ड को अपने हाथ से पकड दिलासा दिया, नाड़ा खोल दीदी ने आराम से अपने घाघरा को निचे की तरफ धकेला, घाघरा सरकता हुआ धीरे-धीरे पहले उसके तरबूजे जैसे चुत्तरो से निचे उतरा फिर जांघो और पैर से सरक निचे गिर गया,\r\n\r\nदीदी वैसे ही खड़ी रही, इस क्षण मुझे लग रहा था जैसे मेरा लण्ड पानी फेंक देगा, मुझे समझ में नहीं आ रहा था मैं क्या करू, मैंने आज तक ऐसा नज़ारा कभी नहीं देखा, मेरा 9 इंच लम्बा लोडा अब बुरी तरह फुंकार रहा था, लंड की नसे फटने को तैयार पड़ी थी,क्या खतरनाक जानलेवा था, उफ़ अब दीदी पूरी तरह से नंगी हो गई थी, हालाँकि मुझे केवल उनके पिछले भाग का नज़ारा मिल रहा था, फिर भी मेरी हालत ख़राब करने के लिए इतना ही काफी था, गोरी चिकनी पीठ जिस पर हाथ डालो तो सीधा फिसल का चुत्तर पर ही रुकेंगी, पीठ के ऊपर काला तिल, दिल कर रहा था आगे बढ़ कर उसे चूम लू, रीढ़ की हड्डियों की लाइन पर अपने तपते होंठ रख कर चूमता चला जाऊ, पीठ पीठ इतनी चिकनी और दूध की धुली लग रही थी की नज़र टिकाना भी मुश्किल लग रहा था, तभी तो मेरी नज़र फिसलती हुई दीदी के चुत्तरो पर आ कर टिक गई, ओह, मैंने आज तक ऐसा नहीं देखा था, गोरी चिकनी चुत्तर, गुदाज और मांसल, मांसल चुत्तरों के मांस को हाथ में पकड दबाने के लिए मेरे हाथ मचलने लगे,\r\n\r\nदीदी के चुत्तर एकदम गोरे और काफी विशाल थे, , पतली कमर के ठीक निचे मोटे मांसल चुत्तर थे, उन दो मोटे मोटे चुत्तरों के बीच ऊपर से निचे तक एक मोटी लकीर सी बनी हुई थी, ये लकीर बता रही थी की जब दीदी के दोनों चुत्तरों को अलग किया जायेगा तब उनकी गांड देखने को मिल सकती है या फिर यदि दीदी कमर के पास से निचे की तरफ झुकती है तो चुत्तरों के फैलने के कारण गांड के सौंदर्य का अनुभव किया जा सकता है,\r\n\r\nतभी मैंने देखा की दीदी अपने दोनों हाथो को अपनी जांघो के पास ले गई फिर अपनी जांघो को थोड़ा सा फैलाया और अपनी गर्दन निचे झुका कर अपनी जांघो के बीच देखने लगी शायद वो अपनी चूत देख रही थी, मुझे लगा की शायद दीदी की चूत के ऊपर भी उसकी कान्खो की तरह से बालों का घना जंगल होगा और जरुर वो उसे ही देख रही होंगी, मेरा अनुमान सही था और दीदी ने अपने हाथ को बढा कर रैक पर से फिर वही मुल्तानी मिट्टी वाली कटोरी उतार ली और अपने हाथो से अपने जांघो के बीच मुल्तानी मिट्टी लगाने लगी,\r\n\r\nपीछे से दीदी को मुल्तानी मिट्टी लगाते हुए देख कर ऐसा लग रहा था जैसे वो मुठ मार रही है, मुल्तानी मिट्टी लगाने के बाद वो फिर से निचे बैठ गई और अपने घाघरा और पैंटी को साफ़ करने लगी, मैंने अपने लौड़े को आश्वासन दिया कि घबराओ नहीं कपडे साफ़ होने के बाद और भी कुछ देखने को मिल सकता है, ज्यादा नहीं तो फिर से दीदी के नंगे चुत्तर, पीठ और जांघो को देख कर पानी गिरा लेंगे,\r\n\r\nकरीब पांच-सात मिनट के बाद वो फिर से खड़ी हो गई, लौड़े में फिर से जान आ गई, दीदी इस समय अपनी कमर पर हाथ रख कर खड़ी थी, फिर उसने अपने चुत्तर को खुजाया और सहलाया, फिर अपने दोनों हाथों को बारी बारी से उठा कर अपनी कान्खो को देखा और फिर अपने जांघो के बीच झाँकने के बाद फर्श पर परे हुए कपड़ो को उठाया, यही वो क्षण था जिसका मैं काफी देर से इन्तेज़ार कर रहा था कि फर्श पर पड़े हुए कपड़ो को उठाने के लिए दीदी निचे झुके और उनके चुत्तर लकड़ी के पट्टो के बीच बने दरार के सामने आ गए,\r\n\r\nनिचे झुकने के कारण उनके दोनों चुत्तर अपने आप अलग हो गए और उनके बीच की मोटी लकीर अब दीदी की गहरी गांड में बदल गई, दोनों चुत्तर बहुत ज्यादा अलग नहीं हुए थे मगर फिर भी इतने अलग तो हो चुके थे की उनके बीच की गहरी खाई नज़र आने लगी थी, देखने से ऐसा लग रहा था जैसे किसी बड़े खरबूजे को बीच से काट कर थोड़ा सा अलग करके दो खम्भों के ऊपर टिका कर रख दिया गया है, दीदी वैसे ही झुके हुए बाल्टी में कपड़ो को डाल कर खंगाल रही थी और बाहर निकाल कर उनका पानी निचोड़ रही थी, ताकत लगाने के कारण दीदी के चुत्तर और फ़ैल गए और गोरी चुत्तरों के बीच की गहरी भूरे रंग की गांड की खाई पूरी तरह से नज़र आने लगी, दीदी की गांड की खाई एक दम चिकनी थी, गांड के छेद के आस-पास भी बाल उग जाते है मगर दीदी के मामले में ऐसा नहीं था उसकी गांड मलाई के जैसी चिकनी लग रही थी, झुकने के कारण चुत्तरों के सबसे निचले भाग से जांघो के बीच से दीदी की चूत के बाल भी नजर आ रहे थे, उनके ऊपर लगा हुआ सफ़ेद मुल्तानी मिट्टी भी नज़र आ रहा था, चुत्तरो की खाई में काफी निचे जाकर जहाँ चूत के बाल थे उनसे थोड़ा सा ऊपर दीदी की गांड का सिकुडा हुआ भूरे रंग का छेद था, जो किसी फूल की तरह नज़र आ रहा था,\r\n\r\nदीदी के एक दो बार हिलने पर वो छेद हल्का सा हिला और एक दो बार थोड़ा सा फुला-पिचका, ऐसा क्यों हुआ मेरी समझ में नहीं आया मगर इस समय मेरा दिल कर रहा था कि मैं अपनी ऊँगली को दीदी की गांड की खाई में रख कर धीरे-धीरे चलाऊ और उसके भूरे रंग के फूलते पिचकते छेद पर अपनी ऊँगली रख हल्के-हल्के दबाब दाल कर गांड के छेद की मालिश करू, उफ़ कितना मजा आएगा अगर एक हाथ से चुत्तर को मसलते हुए दुसरे हाथ की ऊँगली को गांड के छेद पर डाल कर हल्के-हल्के कभी थोड़ा सा अन्दर कभी थोड़ा सा बाहर कर चलाया जाये ,\r\nपूरी ऊँगली दीदी की गांड में डालने से उन्हें दर्द हो सकता था इसलिए पूरी ऊँगली की जगह आधी ऊँगली या फिर उस से भी कम डाल कर धीरे धीरे गोल-गोल घुमाते हुए अन्दर-बाहर करते हुए गांड के छेद की ऊँगली से हल्के-हल्के मालिश करने में बहुत मजा आएगा, इस कल्पना से ही मेरा पूरा बदन सिहर गया,\r\n\r\nदीदी की गांड इस समय इतनी खूबसूरत लग रही थी कि दिल कर रहा थी अपने मुंह को उसके चुत्तरों के बीच घुसा दूँ और उसके इस भूरे रंग के सिकुडे हुए गांड के छेद को अपने मुंह में भर कर उसके ऊपर अपनी जीभ चलाते हुए उसके अन्दर अपनी जीभ डाल दूँ, उसके चुत्तरो को दांत से हल्के हल्के काट कर खाऊ और पूरी गांड की खाई में जीभ चलाते हुए उसकी गांड चाटू, पर शायद ऐसा संभव नहीं था,\r\n\r\nमैं इतना उत्तेजित हो चूका था कि लण्ड किसी भी समय पानी फेंक सकता था, लौड़ा अपनी पूरी औकात पर आ चूका था और अब दर्द करने लगा था, मैंने अपने टटो को अपने हाथो से सहलाते हुए सुपाड़े को दो उँगलियों के बीच दबा कर अपने आप को नार्मल करने की कोशिश की,\r\n\r\nअंदर अब सारे कपड़े पानी में खंगाले जा चुके थे, दीदी सीधी खड़ी हो गई और अपने दोनों हाथो को उठा कर उसने एक अंगडाई ली और अपनी कमर को सीधा किया फिर दाहिनी तरफ घूम गई, मेरी किस्मत शायद आज बहुत अच्छी थी, दाहिनी तरफ घूमते ही उसकी दाहिनी चूची जो कि अब नंगी थी मेरी लालची आँखों के सामने आ गई, उफ़ अभी अगर मैं अपने लण्ड को केवल अपने हाथ से छू भर देता तो भी मेरा पानी निकल जाता, चूची का एक ही साइड दिख रहा था, दीदी की चूची एक दम सीना तान के खड़ी थी, चोली के ऊपर से देखने पर मुझे लगता तो था की उनकी चूचियां सख्त होंगी मगर इतनी कड़ी होंगी इसका अंदाज़ा नही था, दीदी को शायद ब्रा की कोई जरुरत ही नहीं थी, उनकी चुचियों की कठोरता इतनी मस्त जो थी,\r\n\r\nचूची एकदम दूध के जैसी गोरे रंग की थी, चूची का आकार ऐसा था जैसे किसी मध्यम आकार के कटोरे को उलट कर दीदी की छाती से चिपका दिया गया हो और फिर उसके ऊपर किशमिश के एक बड़े से दाने को डाल दिया गया हो, मध्यम आकार के कटोरे से मेरा मतलब है की अगर दीदी की चूची को मुट्ठी में पकड़ा जाये तो उसका आधा भाग मुट्ठी से बाहर ही रहेगा, चूची का रंग चूँकि हद से ज्यादा गोरा था इसलिए हरी हरी नसे उस पर साफ़ दिखाई दे रही थी, जो की चूची की सुन्दरता को और बढा रही थी, निप्पलों का रंग गुलाबी था, पर हल्का भूरापन लिए हुए था, बहुत ज्यादा बड़ा तो नहीं था मगर एक दम छोटा भी नहीं था, किशमिश से बड़ा और अंगूर से थोड़ा सा छोटा, मतलब मुंह में जाने के बाद अंगूर और किशमिश दोनों का मजा देने वाला, दोनों होंठो के बीच दबा कर हल्के-हल्के दबा-दबा कर दांत से काटते हुए अगर चूसा जाये तो बिना चोदे झड जाने की पूरी सम्भावना थी\r\n\r\nफिर दीदी ने दाहिनी तरफ घूम कर अपने दाहिने हाथ को उठा कर देखा फिर बाएं हाथ को उठा कर देखा, फिर अपनी गर्दन को झुका कर अपनी जांघो के बीच देखा, फिर वापस मेरी तरफ पीठ करके घूम गई और खंगाले हुए कपडो को वही पास बनी एक खूंटी पर टांग दिया और फिर दूसरी बाल्टी में पानी भरने लगी, मैं समझ गया कि दीदी अब शायद नहाना शुरू करेंगी, मैंने पूरी सावधानी के साथ अपनी आँखों को लकड़ी के पट्टो के दरार में लगा दिया, मग में पानी भर कर दीदी थोड़ा सा झुक गई और पानी से पहले अपने बाएं हाथ फिर दाहिनी हाथ के कान्खो को धोया, पीछे से मुझे कुछ दिखाई नहीं पर रहा था मगर, दीदी ने पानी से अच्छी तरह से धोने के बाद कान्खो को अपने हाथो से छू कर देखा,\r\n\r\nअब उन्होंने अपना ध्यान अपनी जांघो के बीच लगा दिया, दाहिने हाथ से पानी डालते हुए अपने बाएं हाथ को अपनी जांघो बीच ले जाकर धोने लगी, हाथों को धीरे धीरे चलाते हुए जांघो के बीच के बालों को धो रही थी, मैं सोच रहा था की काश इस समय वो मेरी तरफ घूम कर ये सब कर रही होती तो कितना मजा आता, झांटों के साफ़ होने के बाद कितनी चिकनी लग रही होगी दीदी की चुत, ये सोच कर ही मेरे बदन में झन-झनाहट होने लगी, पानी से अपने जन्घो के बीच साफ़ कर लेने के बाद दीदी ने अब नहाना शुरू कर दिया,\r\n\r\nमुझे लगा था शायद दीदी अपने बालो को कतरनी(कैंची) से काटेगी तभी उन्हें मुल्तानी मिटटी लगाकर साफ किया होगा, पर मेरा सोचना गलत था, क्यूंकि अब तो दीदी ने नहाना शुरू कर दिया था, शायद वो सिर्फ अपने बालो को साफ करना ही चाहती थी,\r\n\r\nइधर दीदी ने अपने कंधो के ऊपर पानी डालते हुए पुरे बदन को भीगा दिया, बालों के जुड़े को खोल कर उनको गीला करने लगी, दीदी का बदन भीग जाने के बाद और भी खूबसूरत और मदमस्त लगने लगा था, बदन पर पानी पड़ते ही एक चमक सी आ गई थी दीदी के बदन में, दीदी खूब अच्छे से अपने बालों को साफ़ कर रही थी, बालो और गर्दन के पास से मुल्तानी मिटटी से मिला हुआ मटमैला पानी उनकी गर्दन से बहता हुआ उनकी पीठ पर छुकर निचे की तरफ गिरता हुआ कमर के बाद सीधा दोनों चुत्तरों के बीच यानी की उनके गांड की मस्त दरार में घुस रहा था, पर एक बार गांड की दरार में घुसने के बाद वो कहाँ गायब हो जा रहा था ये मुझे नहीं दिख रहा था,\r\n\r\nबालों को अच्छे से धोने के बाद दीदी ने बालों को लपेट कर एक गोला सा बना कर गर्दन के पास छोड़ दिया और फिर अपने कंधो पर पानी डाल कर अपने बदन को फिर से गीला कर लिया, गर्दन और पीठ पर लगा हुआ मटमैला पानी भी अब धुल गया था, फिर उन्होंने एक छोटा सा कपड़ा लिया, और उस से अपने पुरे बदन को हल्के-हल्के रगडने लगी, पहले अपने हाथो को रगडा, फिर अपनी छाती को फिर अपनी पीठ को, और फिर वो निचे बैठ गई, निचे बैठने पर मुझे केवल गर्दन और उसके निचे का कुछ हिस्सा दिख रहा था, पर ऐसा लग रहा था जैसे वो निचे बैठ कर अपने पैरों को फैला कर पूरी तरह से रगड कर साफ़ कर रही थी क्योंकि उनका शरीर हिल रहा था, शायद वो अपनी चूत साफ कर रही थी,\r\n\r\nथोडी देर बाद वो खड़ी हो गई, अब वो अपनी जांघो को रगड रगड कर साफ़ कर रही थी और फिर अपने आप को थोड़ा झुका कर अपनी दोनों जांघो को फैलाया और फिर उस कपड़े को दोनों जांघो के बीच ले जाकर जांघो के अंदरूनी भाग और रान को रगडने लगी, पीछे से देखने पर लग रहा था जैसे वो अपनी चूत को रगड कर साफ़ कर रही थी\r\n\r\nथोड़ी देर बाद थोड़ा वो अपने चुत्तरों को रगडने लगी, मेरी हालत तो अब तक बहुत ही बुरी हो चुकी थी, मेरे माथे पर पसीने की बुँदे भी उभर आई थी, मैं बहुत ज्यादा गरम हो चूका था, मन तो कर रहा था कि बस अंदर जाऊ और दीदी को वहीं घोड़ी बनाकर अपना लोडा उनकी चूत में घुसा दूँ.... मेरे हाथों में खुजली होने लगी थी और दिल कर रहा था की थल-थलाते हुए चुत्तरों को पकड़ कर मसलते हुए खूब हिलाउ... .पर ये सम्भव नही था, इसलिए मैं बस चुप चाप खड़ा अंदर का नजारा देखे जा रहा था,\r\n\r\nकपडे से अपने बदन को रगड़ने के बाद, वापस कपडा रख दिया और मग से पानी लेकर कंधो पर डालते हुए नहाने लगी, मात्र कपडे से सफाई करने के बाद ही दीदी का पूरा बदन चम-चमाने लगा था, पानी से अपने पुरे बदन को धोने के बाद दीदी ने अपने बालों का गोला खोला और एक बार फिर से कमर के पास से निचे झुक गई और उनके चुत्तर फिर से लकड़ी के पट्टो के बीच बने दरार के सामने आ गए, इस बार उनके गोरे चम-चमाते चुत्तरों के बीच की चमचमाती खाई के आलावा मुझे एक और चीज़ के दिखने को मिल रही थी, गांड के सिकुडे हुई छेद से करीब चार अंगुल भर की दूरी पर निचे की तरफ एक लम्बी लकीर सी नज़र आ रही थी, पहले ये लकीर इसलिए नहीं नज़र आ रही थी क्योंकि यहाँ पर झान्ट के बाल थे, मुल्तानी मिट्टी ने जब झांटो की सफाई कर दी तो चूत की लकीर स्पष्ट दिखने लगी, इस बात का अहसास होते ही कि मैं अपनी दीदी की चूत देख रहा हूँ, मुझे लगा जैसे मेरा कलेजा मुंह को आ जायेगा और फिर से मेरा गला सुख गया और पैर कांपने लगे, इस बार शायद मेरे लण्ड से दो बूँद टपक कर निचे गिर भी गई पर मैंने इस तरफ कोई ध्यान नहीं दिया, लण्ड भी मारे उत्तेजना के काँप रहा था,\r\n\r\nदीदी की दोनों मोटी जांघो के बीच ऊपर की तरफ चुत्तरों की खाई के ठीक निचे एक गुलाबी लकीर सी दिख रही थी, पट्टो के बीच से देखने से ऐसा लग रहा था जैसे सेब या पके हुए पपीते के आधे भाग को काट कर फिर से आपस में चिपका कर दोनों जांघो के बीच फिट कर दिया गया है, कमर या चुत्तरों के इधर-उधर होने पर दोनों फांकों में भी हरकत होती थी और ऐसा लगता जैसे कभी लकीर टेढी हो गई है कभी लकीर सीधी हो गई है, जैसे चूत के दोनों होंठ कभी मुस्कुरा रहे है कभी नाराज़ हो रहे है, दोनों होंठ आपस में एक दुसरे से एक दम सटे हुए दिख रहे थे,\r\n\r\nदोनों फांक एक दम गुलाबी और पावरोटी के जैसे फूले हुए थे, मेरे मन में आया कि काश मैं चूत की लकीर पर ऊपर से निचे तक अपनी ऊँगली चला और हलके से दोनों फांकों को अलग कर के देख पाता कि दोनों गुलाबी होंठो के बीच का अंदरूनी भाग कैसा है\r\n\r\nतभी अचानक दीदी दोबारा खड़ी हो गयी,मुझे लगा कि शायद उनका नहाना हो चूका है, पर तभी मैंने वो नज़ारा देखा जिसे देखकर मैं उत्तेजना के मारे बेहोश सा होने लगा,\r\n\r\nदीदी ने अपने कपड़ो के बिच से एक छोटी सी कैंची निकाल ली थी, इसका मतलब था कि दीदी अपनी कांख और चुत के बाल साफ करने वाली है, पर दीदी ने पहले क्यूँ नही किया, हो सकता है कि शायद मुल्तानी मिटटी लगाने की वजह से बाल थोड़े मुलायम हो गये हों जिससे अब उन्हें काटने में आसानी हो,\r\n\r\nइधर दीदी अब धीरे धीरे अपने कान्खो के बाल काटने लगी थी, करीब 5 मिनट के अंदर ही उनकी कांख के बाल जैसे पूरी तरह से गायब हो चुके थे, और अब उनकी कांखे गोरी मस्त चिकनी नज़र आ रही थी,\r\nफिर दीदी दोबारा निचे बैठ गयी और शायद वो झुककर अपनी झांट के बाल काट रही थी, जब वो दोबारा खड़ी हुई तो उन्होंने कैंची को साइड में रख दिया, मुझे पता चल चूका था कि शायद दीदी ने अपने झांट के बाल भी काट लिए है, इधर अब दीदी दोबारा अपने बदन पर पानी गिराने लगी, और अब जल्दी जल्दी नहाने लगी,\r\n\r\nमुझे लगा कि अब और रुकना खतरे से खाली नही है इसलिए मैं झट से वहां से हट गया और आकर आंगन में बैठ गया, पर मेरा लंड बैठने को तैयार नही था, क्यूंकि वो तो अब भी पूरी तरह तनकर खड़ा था, मैंने आज पुरे दिन में दो दो जवान बदन देख लिए थे वो भी बिलकुल नंगे, एक तो सरजू काका की बेटी रानी और दूसरी मेरी अपनी नीलू दीदी को, मुझे बहुत ही ज्यादा उत्तेजना महसूस हो रही थी, पर जो नज़ारा मैं अभी अभी देख कर आया था, उसे देखकर मेरा मन गदगद हो चूका था, मैं अपनी किस्मत पर गर्व सा महसूस कर रहा था जो इतना शानदार बदन मुझे इतनी करीब से नंगा देखने को मिल चूका था,\r\n\r\nमैं अभी विचारो में खोया ही था कि दीदी बाथरूम से बाहर आ गयी, कपडे उन्होंने अंदर ही चेंज कर लिए थे, और गिले कपडे साथ में ले आई थी,\r\n\r\nनीलू दीदी – समीर, जा अब तू नहा ले\r\n\r\nमैं – ठीक है दीदी,\r\nनीलू दीदी –अच्छा सुन, सब्जी किसकी बनाऊ आज??\r\n\r\nमैं – जो भी आपको अच्छी लगे, वो ही बना दो....\r\n\r\nनीलू दीदी – चल ठीक है फिर तू जल्दी से नहा ले, मैं आज मस्त सी आलू की सब्जी बना देती हूँ...\r\n\r\nमैं – ठीक है दीदी\r\n\r\nदीदी के अंदर जाने के बाद मैं खड़ा हुआ, क्यूंकि अगर पहले खड़ा हो जाता तो मेरा लंड का उभार उन्हें साफ नज़र आ जाता,\r\n\r\nफिर मैं जल्दी से बाथरूम के अंदर चला गया और कुछ ही देर में मैं नहाने के बाद बाहर आ गया\r\n................................\r\n\r\nमैं तैयार होकर बस आंगन में बैठा ही था कि मुझे घर के बाहर थोड़ी हलचल सुनाई दी, नीलू दीदी जो कोने में बैठकर खाना बना रही थी, उन्होंने भी ये हलचल सुनी\r\n\r\nनीलू दीदी – समीर ,जरा जाकर देख तो कौन है बाहर\r\n\r\nमैं – जी दीदी\r\n\r\nमैं बाहर आ गया और बाहर आते ही मेरे चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान आ गयी, क्यूंकि बाहर बाड़े में बापूजी अपने बैलो को बाँध रहे थे,\r\n\r\n[/color][/b]
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