RE: Desi Porn Kahani नाइट क्लब
तिलक राजकोटिया अब इस बात को बिल्कुल भूल चुका था कि उसने कहीं जाना भी है।
इस समय उसका सारा ध्यान डॉक्टर अय्यर की तरफ था।
उसके माथे पर पसीने की ढेर सारी बूंदें चुहचुहा आयीं, जिसे उसने रूमाल से साफ किया।
यही हाल मेरा था।
मेरा तो पूरा शरीर पसीने में लथपथ था।
और मैं तो उस घाघ डॉक्टर से अपने पसीनों को छुपाने का भी प्रयास नहीं कर रही थी। आखिर मैं जानती थी, चूहा—बिल्ली का यह खेल खेलने से अब कोई फायदा नहीं है।
डॉक्टर अय्यर हमारी ‘योजना’ के बारे में सब कुछ जान चुका है।
सब कुछ!
तिलक राजकोटिया कुर्सी छोड़कर खड़ा हो गया। उसने सिगरेट सुलगा ली। फिर वो बेचैनीपूर्वक इधर—से—उधर टहलने लगा।
मैं आज उसे दूसरी मर्तबा सिगरेट पीते देख रही थी।
“क्या सोच रहे हैं ऐन्ना?” डॉक्टर अय्यर मुस्कराया।
“कुछ नहीं।”
“कुछ तो?”
“मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूं डॉक्टर!”
“क्या?”
“देखो।” तिलक राजकोटिया टहलते—टहलते ठिठका और उसने सिगरेट का एक छोटा—सा कश लगाया—”मेरी बात ध्यान से सुनो। जहां तक मैं समझता हूं, अभी यह पूरी तरह साबित नहीं हुआ है कि बृन्दा की हत्या ही हुई है और वह स्वाभाविक मौत नहीं मरी। इसके अलावा अभी यह भी हण्ड्रेड परसेन्ट साबित नहीं हुआ है कि बृन्दा के आमाशय से जिन टेबलेट के सूक्ष्म कण बरामद हुए, वह ‘डायनिल’ और ‘नींद’ की टेबलेट ही थी। पैथोलोजी लैब की रिपोर्ट आने के बाद ही कहीं कुछ साबित हो पाएगा कि असली मामला क्या है।”
“तुम कहना क्या चाहते हो?”
“मैं तुमसे सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं।”
“क्या?”
डॉक्टर अय्यर गौर से तिलक राजकोटिया की सूरत देखने लगा।
और!
मेरी निगाह भी उसी की तरफ थी।
मैं नहीं जानती थी, तिलक क्या कहने जा रहा है।
“मैं चाहता हूं डॉक्टर- जब तक पैथोलोजी लैब की रिपोर्ट न आ जाए और जब तक यह पूरी तरह साबित न हो जाए कि बृन्दा की वास्तव में ही हत्या की गयी है, तब तक यह मामला ज्यादा उछलना नहीं चाहिए।”
“क्यों?”
“क्योंकि मैं ऐसा चाहता हूं।” तिलक की आवाज दृढ़ हो उठी—”जरो सोचो, अगर यह मामला पहले—से—पहले ही उछल गया और बाद में कहीं जाकर यह साबित हुआ कि बृन्दा की हत्या नहीं हुई थी, वह स्वाभाविक मौत मरी थी, तब तो तुम्हारी अच्छी—खासी छीछालेदारी हो जाएगी।”
डॉक्टर अय्यर के होठों पर पुनः हल्की—सी मुस्कान तैरी।
वह धीरे—धीरे स्वीकृति में गर्दन हिलाने लगा।
“मेरी आपको काफी फिक्र है तिलक साहब!”
“तुम कुछ भी समझ सकते हो।”
“ठीक है ऐन्ना!” डॉक्टर अय्यर बोला—”जब तक पैथोलोजी लैब की रिपोर्ट नहीं आ जाती, तब तक मैं पुलिस के पास नहीं जाऊंगा। तब तक यह मामला बिल्कुल नहीं उछलेगा।”
“थैंक्यू- थैंक्यू वैरी मच! मेरे एक सवाल का जवाब और दो।”
“पूछो।”
“तुम्हारे अलावा यह बात और कौन—कौन जानता है?”
“कोई भी नहीं जानता। सिर्फ एक मेरा बहुत खास आदमी है ऐन्ना- जिसे मैंने जानबूझकर इस मामले में अपना राजदार बनाया है। इतना ही नहीं- मैं इस वक्त यहां भी आया हूं, तो उसे इस बात की भी जानकारी है कि मैं यहां हूं।”
“क्यों- तुमने उसे अपना राजदार क्यों बनाया?”
डॉक्टर अय्यर हंसा।
“आप भी कभी—कभी बिल्कुल बच्चों जैसी बात करते हैं तिलक साहब!”
“इसमें बच्चों जैसी क्या बात है?”
“दरअसल जब कोई समझदार आदमी भूखे भेड़ियों की गुफा में हाथ डालता है, तो वह अपनी सुरक्षा के तमाम इंतजाम करके रखता है। मेरा मानना है, जो आदमी अपने फायदे के लिए एक खून कर सकते हैं, उनके लिए दूसरा खून कर देना भी कोई बड़ी बात नहीं।”
मैं सन्न रह गयी।
सचमुच वो मद्रासी बहुत चालाक था।
बहुत ज्यादा शातिर!
“एक बात मैं आप लोगों को और बता दूं।” डॉक्टर अय्यर बोला।
“क्या?”
“अगर मैं एक घण्टे के अंदर—अंदर पैंथ हाउस से बाहर न निकला, तो मेरा जो राजदार है, वो पुलिस के पास पहुंच जाएगा। वो पुलिस के सामने पहुंचकर बृन्दा की मौत का सारा भांडा फोड़ देगा।”
“ओह!”
“मुझे अब चलना चाहिए।” फिर डॉक्टर अय्यर अपनी रिस्टवाच देखता हुआ बोला—”मुझे यहां आये हुए पचास मिनट हो चुके हैं। अगर कहीं मुझे ज्यादा देर हो गयी, तो गड़बड़ हो जाएगी।”
डॉक्टर अय्यर अपनी कुर्सी छोड़कर खड़ा हो गया।
फिर दरवाजे की तरफ बढ़ते—बढ़ते वो एकाएक ठिठका।
उसके ठिठकने का अंदाज ऐसा था, मानों एकाएक उसे कुछ याद आया हो।
“ऐन्ना- मुझे आपसे कहना तो नहीं चाहिए।” वह तिलक राजकोटिया की तरफ देखता हुआ बोला—”लेकिन एकाएक जरूरत ऐसी आन पड़ी है कि मुझे बहुत मजबूरी में आपसे कहना पड़ रहा है।”
“क्या कहना चाहते हो?”
“दरअसल मैंने कोई साल भर पहले एक पजेरों कार किश्तों पर ली थी।” डॉक्टर अय्यर बोला—”आज ही मैंने उस कार की किश्त फाइनेंस कंपनी में जमा करनी है, जबकि किश्त देने को मेरे पास बिल्कुल भी रुपये नहीं हैं। अगर आप मुझे किश्त के रुपये उधार दे दें, तो आपकी बहुत—बहुत मेहरबानी होगी।”
हम दोनों के दिल—दिमाग पर भीषण बिजली गड़गड़ाकर गिरी। वह हमें साफ—साफ ब्लैकमेल कर रहा था।
“आप लोग इत्मीनान रखें।” फिर वो जल्दी से बोला—”जैसे ही मेरे पास रुपयों का इंतजाम होगा, मैं सबसे पहले आपकी रकम लौटाऊंगा।”
“कितनी किश्त देनी है।”
“सिर्फ तीन लाख!” उस दुष्ट ने खींसे—सी निपौरी—”आपके लिये बिल्कुल भी ज्यादा नहीं है ऐन्ना, बस हाथों का मैल है। दरअसल पिछली किश्तें भी नहीं गयी थीं।”
“ठीक है- तुम रुको, मैं अभी तीन लाख रुपये लाकर देता हूं।”
“और जरा जल्दी लेकर आना। एक घण्टा पूरा होने से पहले मैंने पैथ हाउस से बाहर भी निकलना है।”
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