Desi Porn Kahani नाइट क्लब
08-02-2020, 12:58 PM,
#64
RE: Desi Porn Kahani नाइट क्लब
11
एक और मर्डर प्लानिंग
दिन निकलते ही डॉक्टर अय्यर की हत्या के पत्ते फैलने शुरू हो गये।
एक और हत्या की योजना का ताना—बाना बुना जाने लगा।
तिलक ने सबसे पहले डॉक्टर अय्यर को लेंडलाइन से फ़ोन किया। मैंने उस ‘कॉन्फ्रेंस फोन’ का स्पीकर वाला बटन दबा दिया था, ताकि दोनों तरफ का वार्तालाप मैं आसानी के साथ सुन सकूं।
इसके अलावा तिलक राजकोटिया ने डॉक्टर अय्यर से क्या कहना है, यह सब मैं उसे समझा चुकी थी।
“हैलो!” दूसरी तरफ से आवाज आयी।
“कौन- डॉक्टर अय्यर?” तिलक बोला।
“यस आई एम स्पीकिंग।”
“मैं तिलक बोल रहा हूं डॉक्टर।”
“ओह!” डॉक्टर अय्यर हंसा।
उसकी हंसी में साफ—साफ व्यंग्य का पुट झलक रहा था।
लेकिन तिलक राजकोटिया और मैं उसकी उस हंसी से जरा भी विचलित न हुए।
उससे इस तरह की हरकत हमें पहले से ही अपेक्षित थी।
“ऐन्ना!” वह बोला—”आज इस डॉक्टर की याद कैसे आ गयी? आज सूरज पश्चिम से कैसे निकल आया?”
तिलक ने योजना के मुताबिक अपनी आवाज में भारी संजीदगी के भाव पैदा किए।
“डॉक्टर!” तिलक बोला—”मैं तुमसे बहुत जरूरी बात करना चाहता हूं।”
“तो फिर करो ऐन्ना- मना किसने किया है!”
“दरअसल मैं पिछली कई रातों से ढंग से सो नहीं पाया हूं डॉक्टर!”
“तो इसमें मैं क्या कर सकता हूं?” डॉक्टर अय्यर पुनः हंसा—”आपकी इस बेचैनी का मेरे पास कौन—सा इंलाज है?”
“इलाज तुम्हारे ही पास है।”
“क्या?”
“दरअसल नींद न आने की वजह तुम हो डॉक्टर... तुम!” तिलक राजकोटिया आंदोलित लहजे में बोला—”तुम्हारे खतरे की जो तलवार हर समय मेरे सिर पर लटकी रहती है- उसने मुझसे मेरा सकून छीन लिया है।”
“इसके लिए मुझे दोष मत दो।” डॉक्टर अय्यर बोला—”इसकी जड़ में तुम खुद हो। तुम्हारी अपनी करतूतें हैं। ऐन्ना, अगर तुमने बृन्दा का मर्डर न किया होता, तो जरा सोचो- मेरी क्या मजाल थी, जो मैं खतरे की तलवार तुम्हारे सिर पर लटकाता। तुम्हें ब्लैकमेल करता।”
“मैं कबूल करता हूं, मुझसे गलती हुई है।”
“गलती नहीं ऐन्ना- बहुत बड़ी गलती।”
मैं वह पूरा वार्तालाप ‘कांफ्रेंस फोन’ के स्पीकर पर सुन रही थी।
अभी तक एक—एक बात मेरी ‘योजना’ के अनुरूप हो रही थी।
“देखो डॉक्टर!” तिलक ने ‘असली चाल’ चली—”अभी तक जो हुआ... हुआ, लेकिन अब मैं चाहता हूँ कि इस मामले का हमेशा—हमेशा के लिए पटाक्षेप हो जाये। हमेशा—हमेशा के लिए यह झंझट खत्म हो।”
“कैसे?”
“उसका भी एक तरीका मैंने सोचा है।” तिलक बोला—”अगर तुम्हें ऐतराज न हो, तो मैं तुम्हें ब्लैकमेलिंग की एकमुश्त रकम देना चाहता हूं,ताकि तुम मुझे बार—बार आकर तंग न करो और फिर हमेशा के लिए इस बात को भूल जाओ कि बृन्दा की हत्या भी हुई थी।”
“मुझे भला क्या ऐतराज हो सकता है ऐन्ना!” डॉक्टर अय्यर प्रफुल्लित मुद्रा में बोला—”मेरे को तो बस रोकड़े से मतलब है। नगदऊ से मतलब है। बल्कि यह तो मेरे लिए और भी अच्छा है कि सारा रोकड़ा मुझे एकमुश्त मिल जाएगा।”
“यानि तुम ब्लैकमेलिंग की इस कहानी का पटाक्षेप करने के लिए तैयार हो?”
“बिल्कुल तैयार हूं ऐन्ना! बस मेरी दो शर्तें हैं।”
“क्या?”
“पहली शर्त- रोकड़े की रकम जरा भारी—भरकम हो, जो सारा काम एकमुश्त निपटाते हुए अच्छा लगे। दूसरी शर्त, सारा रोकड़ा हाथ—के—हाथ मिलना चाहिए।”
“दोनों ही शर्तें मुझे कबूल हैं।”
“फिर क्या बात है ऐन्ना! फिर तो आप मेरे को बस यह बताइए कि नगदऊ गिनने के वास्ते मुझे आपके पास कब आना होगा?”
तिलक ने अब मेरी तरफ देखा।
मैंने उसकी तरफ उंगली से कुछ इशारा किया और हथेली पर उंगली से ही कुछ अंक बनाए।
“ठीक है।” तिलक बोला—”तुम आज रात सही बारह बजे पैंथ हाउस में पहुंचो,तभी बैठकर बात करते हैं।”
“बारह बजे!”
डॉक्टर अय्यर सकपकाया।
“हां।”
“ऐन्ना- क्या बात है।” वो सशंकित स्वर में बोला—”इतनी रात को मुझे पैंथ हाउस में बुलाकर क्या करना है?”
“चिंता मत करो- बस बातें ही करनी हैं।”
“बारह बजे? आधी रात को??”
“दरअसल मैं नहीं चाहता,” तिलक ने सफाई दी—”कि तुम्हें पैंथ हाउस में ज्यादा लोग आते—जाते देखें, इसलिए मैंने अर्द्धरात्रि का समय चुना है, जोकि बहुत मुनासिब है। वैसे भी पिछले कुछेक दिनों में तुम्हारे काफी चक्कर पैंथ हाउस के लग चुके हैं। अगर तुम्हारे और ज्यादा चक्कर लगेंगे- तो लोगों को शक होगा कि पेंथ हाउस में कोई बीमार भी नहीं है, फिर भी डॉक्टर यहां इतना क्यों आता है।”
डॉक्टर अय्यर सोच में डूब गया।
मैं भांप गयी, वो सही—गलत परिस्थिति का आंकलन करने की कोशिश कर रहा है।
मैंने तुरन्त तिलक को फिर कुछ इशारा किया।
“देखो!” तिलक उसे ज्यादा सोचने की मोहलत दिये बिना बोला—”अगर तुम्हें कुछ शक हो रहा है, तो तुम दिन में भी किसी वक्त आ सकते हो। मैं तो तुम्हारी भलाई के लिए ही यह सब कह रहा हूं।”
“नहीं- नहीं, शक वाली कोई बात नहीं है।” डॉक्टर अय्यर बोला—”ठीक है ऐन्ना, मैं आज रात सही बारह बजे पैंथ हाउस पहुंच जाऊंगा।”
“और कोशिश करना कि ज्यादा लोगों की निगाह तुम्हारे ऊपर न पड़े।”
“मुरुगन की कृपा रही- तो ऐसा ही होगा।”
“गुड बॉय!”
“गुड बॉय!”
तिलक राजकोटिया ने रिसीवर रख दिया।
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