RE: Desi Porn Kahani नाइट क्लब
मुझे थप्पड़ मारने के बाद तिलक राजकोटिया तभी पैंथ हाउस छोड़कर चला गया था। फिर रात को वह नशे में बुरी तरह धुत्त होकर वापस लौटा। गार्ड उसे पकड़कर ऊपर तक लाया था।
शयनकक्ष के सामने पहुंचकर वो ठिठका।
“ब... बस तुम वापस जाओ।” नशे के कारण तिलक की जबान बुरी तरह लड़खड़ा रही थी।
“मैं आपको कमरे के अंदर तक छोड़ देता हूं साहब जी!”
“मैंने कहा न।” तिलक थोड़ी सख्ती के साथ बोला—”तुम वापस जाओ।”
“ठ... ठीक है साहब जी!”
गार्ड उसे वहीं दरवाजे पर छोड़कर चला गया।
तिलक के कदम लड़खड़ाये।
उसने आज बहुत ज्यादा पी हुई थी।
उसके कदम दोबारा लड़खड़ाये, तो उसने दरवाजे की चौखट पकड़ ली और अंदर मेरी तरफ देखा।
मैं उस समय बिस्तर पर लेटी थी।
तिलक के बाल बिखरे हुए थे। कोट कंधे पर पड़ा था। टाई की नॉट खुली हुई थी और शर्ट आधी से ज्यादा बेल्ट से बाहर झूल रही थी। तिलक की ऐसी अस्त—व्यस्त हालत मैंने इससे पहले कभी नहीं देखी थी।
मैंने उसकी तरफ से गर्दन फेर ली।
“क्यों आये हो तुम यहां?”
तिलक कुछ न बोला।
शायद उसने मेरी बात सुनी ही नहीं थी।
मुझे उसके लड़खड़ाते कदमों की आवाज सुनाई पड़ी।
वह धीरे—धीरे मेरी तरफ बढ़ रहा था।
जबकि उस क्षण मुझे उस आदमी से नफरत हो रही थी, उसकी शक्ल से नफरत हो रही थी।
वह मेरे बैड के नजदीक आकर खड़ा हो गया।
इतना नजदीक कि मुझे उसकी उपस्थिति का आभास अच्छी तरह मिलने लगा।
“म... मैं जानता हूं शिनाया!” वह लड़खड़ाये स्वर में ही बोला—”मैंने तुम्हारे थप्पड़ मारा, इसीलिए तुम मुझसे नाराज हो- सख्त नाराज।”
मैं खामोश लेटी रही।
मेरे अंदर गुस्से का ज्वालामुखी खौल रहा था।
“मुझसे सचमुच गलती हुई है।” तिलक बोला—”दरअसल इन दिनों मेरा दिमाग ठिकाने पर नहीं है शिनाया! मैं जानता हूं- म... मैं क्या कर रहा हूं। तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूं- मैं पूरी तरह बर्बाद हो चुका हूं। मेरे पास अब कुछ भी मेरा अपना नहीं है।”
मैं चौंकी।
वह एक नई बात मुझे सुनने को मिल रही थी।
“य... यह पैंथ हाउस!” तिलक राजकोटिया लड़खड़ाये स्वर में बोला—”यह तमाम शानो—शौकत, बार, ऑफिस, आज कुछ भी मेरे पास नहीं बचा है। म... मैं पूरी तरह सड़क पर आ चुका हूं। स्थिति ये है कि मैं अब उस दिन के बारे में सोच—सोचकर डरने लगा हूं, जिस दिन मेरे सामने रोटियों तक की समस्या आ जाएगी।”
मेरी गर्दन एकदम झटके के साथ तिलक राजकोटिया की तरफ घूमी।
मुझे मानों अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ।
तिलक जैसा फिल्दी रिच और सड़क पर?
कंगाली की हालत में?
नहीं- नहीं, ऐसा नहीं हो सकता।
“यह तुम क्या कह रहे हो?” मेरे होठों से खुद—ब—खुद निकला।
“य... यह सच है शिनाया!”
“लेकिन...।”
“इसमें मेरी कोई गलती नहीं।” तिलक ने अपना कोट वहीं बिस्तर पर डाल दिया और एक कुर्सी पर बैठकर धमाके पर धमाके करता चला गया—”सब कुछ किस्मत की बदौलत हुआ- क... किस्मत ने मेरे साथ बड़ा भारी मजाक किया।”
“कैसा मजाक?”
मैं मानो कुछ क्षण के लिए थप्पड़ वाली बात बिल्कुल भूल चुकी थी।
“दरअसल मुझे एक के बाद एक कारोबार में बहुत भारी—भारी नुकसान उठाने पड़े।” तिलक राजकोटिया बोला—”म... मेरे तीन काफी बड़े—बड़े हाउसिंग प्रोजेक्ट थे, जो फ्लॉप हो गये। उन तीनों प्रोजेक्टों में मुझे करोड़ों रुपयों का नुकसान उठाना पड़ा। म... मेरी बुरी हालत हो गयी। अपने कारोबार को उभारने के लिए मैंने लोगों से बड़े पैमाने पर कर्जा लिया। अपना होटल, पैंथ हाउस, जो कुछ भी मेरे पास था- मैंने वह सब गिरवी रख डाला। यहां तक कि मैं सावंत भाई जैसे बड़े गैंगस्टर से भी सौ करोड़ रुपये का कर्ज लेने में नहीं हिचकिचाया।”
मेरे दिमाग में भी अब आश्चर्य के अनार छूटने लगे।
“सौ करोड़ का कर्ज!”
“हां।”
“सावंत भाई के पास तुमने क्या गिरवी रखा?” मैं बोल उठी।
“क,कुछ नहीं।” तिलक ने एक और रहस्योद्घाटन किया—”उस समय सावन्त भाई के और मेरे काफी अच्छे सम्बन्ध थे- इ... इसलिए सावन्त भाई ने बिना कुछ रखे ही मुझे वह कर्जा दे दिया। वैसे भी सावंत भाई जैसा आदमी कर्जा देते समय कभी कुछ गिरवी नहीं रखता। क्योंकि उसे मालूम है- जिस तरह वो कर्जा देना जानता है, उसी तरह अपना कर्जा सूद समेत किसी के हलक से वापस निकालना भी जानता है। बहरहाल मैंने बाजार से वह भारी—भरकम कर्जा उठाकर अपने दो काफी बड़े प्रोजेक्ट और शुरू किये, जिनसे मुझे शत—प्रतिशत मुनाफे की उम्मीद थी। ल... लेकिन किस्मत की मार देखो, मेरे वह दोनों प्रोजेक्ट भी फ्लॉप हो गये। मुझे उनमें भी भारी नुकसान उठाना पड़ा। उसके बाद मेरी कमर टूट गयी। आज स्थिति ये है, मेरे पास कुछ नहीं बचा है। यह पैंथ हाउस और होटल भी दूसरे साहूकारों के पास गिरवी पड़ा है, जिनसे मैंने पचास करोड़ का कर्जा लिया था। जिन साहूकारों के पास यह होटल और पैंथ हाउस गिरवी है, उन्हें अपने पैसे की कुछ चिंता नहीं है। अपने पैसे की असल चिंता सावंत भाई को है।”
“क्यों? सावंत भाई को अपने पैसे की चिंता क्यों है?”
“क... क्योंकि सावंत भाई अब इस बात को अच्छी तरह जान गया है,” तिलक बोला—”कि मेरे पास उसका कर्जा चुकाने को कुछ नहीं बचा है। वह अगर मेरे साथ जबरदस्ती भी करेगा, तब भी मैं उसका कर्जा कहां से चुकाऊंगा? और उसके सामने सबसे बड़ी प्रॉब्लम ये है कि उसके पास गिरवी भी कुछ नहीं रखा हुआ।”
“ओह!”
स्थिति वाकई जटिल थी।
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