RE: Desi Porn Kahani नाइट क्लब
अब शायद आप लोगों को यह बताने की जरूरत नहीं है कि मेरे सारे पत्ते पिट चुके थे।
मेरी तमाम उम्मीदें, तमाम सपने कांच के उस खूबसूरत गिलास की तरह चकनाचूर हो गये- जिसे किसी ने बड़ी बेदर्दी के साथ फर्श पर पटक मारा हो।
मुझे गिरफ्तार कर लिया गया।
बृन्दा, डॉक्टर अय्यर और तिलक राजकोटिया- उन तीनों की हत्या के इल्जाम में मुझे कोर्ट ने फांसी की सजा सुनायी।
मैंने अपने हर अपराध को बे—हिचक कबूल किया।
यहां तक कि सिंगापुर में हुई सरदार करतार सिंह की हत्या को भी मैंने कबूला।
मैं अंदर से बुरी तरह टूट चुकी थी।
मुझे अपनी मौत की भी अब परवाह नहीं थी। आखिर मैंने जो किया- उसी का प्रतिफल तो मुझे मिल रहा था।
बहरहाल मेरी जिन्दगी की कहानी यहीं खत्म नहीं हो जाती।
मैं इस सम्पूर्ण अध्याय को इसी जगह खत्म हुआ समझ रही थी। लेकिन ऐसा समझना मेरी भारी भूल थी। अभी अध्याय खत्म नहीं हुआ था। बल्कि अभी एक ऐसा धमाका होना और बाकि था, जो अब तक का सबसे बड़ा धमाका था और जिसने सारे घटनाक्रम को एक बार फिर उलट—पलटकर रख दिया।
वह उस रंगमंच का सबसे बड़ा पर्दा था, जो उठा।
•••
वह जेल की एक बहुत सीलनयुक्त बदबूदार कोठरी थी- जिसके एक कोने में, मैं घुटने सिकोड़े बैठी थी और बस अपनी मौत की प्रतीक्षा कर रही थी।
मैं खुद को फांसी के लिए तैयार कर चुकी थी।
तभी ताला खुलने की आवाज हुई और फिर काल—कोठरी का बहुत मजबूत लोहे का दरवाजा घर्र—घर्र करता खुलता चला गया।
दरवाजे के खुलते ही बहुत हल्का—सा प्रकाश उस काल—कोठरी में चारों तरफ बिखर गया और एक हवलदार ने अंदर कदम रखा।
“खड़ी होओ।” हवलदार मेरे करीब आते ही थोड़े कर्कश लहजे में बोला।
मैंने अपनी गर्दन घुटनों के बीच में से धीरे—धीरे ऊपर उठाई।
“क्या बात है?”
“कोई तुमसे मिलने आया है?”
मैं चौंकी।
वह मेरे लिए बेहद हैरानी की बात थी।
भला अब मुझसे मिलने कौन आ सकता था?
कौन बचा था ऐसा आदमी?
“क... कौन आया है?” मैंने हवलदार से पूछा।
“मुझे उसका नाम नहीं मालूम।” हवलदार बोला— “मुलाकाती कक्ष में चलो- वहीं उसकी सूरत देख लेना। और थोड़ा जल्दी करो, मुलाकात के लिए ज्यादा समय नहीं है तुम्हारे पास।”
•••
‘मुलाकाती कक्ष’ में बीचों—बीच लोहे की एक लम्बी जाली लगी हुई थी। उस जाली में एक तरफ कैदी खड़ा होता था और दूसरी तरफ मुलाकाती!
मैं जब उस कक्ष में पहुंची और मैंने जाली के पास जिस चेहरे को देखा, उसे देखकर मेरी हैरानी की कोई सीमा न रही।
मुझसे मिलने बृन्दा आयी थी।
सबसे बड़ी बात ये है- बृन्दा के चेहरे पर उस समय घृणा के भी निशान नहीं थे। बल्कि वो मुस्कुरा रही थी- उसके होठों पर बड़ी निर्मल आभा थी। इस समय वह बीमार भी नहीं लग रही थी।
“त... तुम!”
“क्यों- हैरानी हो रही है!” बृन्दा बिल्कुल लोहे की जाली के करीब आकर खड़ी हो गयी—”कि मैं तुमसे मिलने आयी हूं?”
मैं चुप!
मेरी गर्दन उसके सामने अपराध बोध से झुक गयी।
आखिर मैं उसकी गुनाहगार थी।
मैंने उसकी हंसती—खेलती जिन्दगी में आग लगायी थी।
“तुम खुद को बुद्धिमान समझती हो शिनाया- लेकिन तुम मूर्ख हो, अव्वल दर्जे की मूर्ख!”
वह बात कहकर एकाएक इतनी जोर से खिलखिलाकर हंसी बृन्दा, जैसे किसी चुडै़ल ने शमशान घाट में भयानक अट्ठाहस लगाया हो।
मैंने झटके से अपनी गर्दन ऊपर उठाई।
उस समय बृन्दा साक्षात् चण्डालिनी नजर आ रही थी।
“शिनाया डार्लिंग!” वो खिलखिलाकर हंसते हुए ही बोली—”मालूम है- एक बार मैंने ‘नाइट क्लब’ में तुमसे क्या कहा था? मैंने कहा था कि मैं जिंदगी में एक—न—एक बार तुमसे जीतकर जरूर दिखाऊंगी और मेरी वो जीत ऐसी होगी कि तुम चारों खाने चित्त् जा पड़ोगी। मेरी वो जीत ये है- ये!” उसने लोहे की जाली को बुरी तरह से ठकठकाया—”आज यह जो तुम चारों खाने चित्त् जाकर पड़ी हो, यह सब मेरे कारण हुआ है।”
मेरे दिमाग में अनार छूट पड़े।
“य... यह तुम क्या कह रही हो बृन्दा?”
“यह बृन्दा का मायाजाल है!” वो फिर ठठाकर हंसी—”और जो मायाजाल को इतनी आसानी से समझ जाए, वो मायाजाल नहीं होता डार्लिंग!”
“अ... आखिर क्या कहना चाहती हो तुम?”
“दरअसल पैथ हाउस में इंस्पेक्टर के सामने जो कहानी मैंने तुम्हें सुनायी!” बृन्दा बोली—”वो असली कहानी नहीं थी। असली कहानी सुनोगी- तो तुम्हारे पैरों के नीचे से जमीन खिसक जाएगी। आसमान तुम्हारे ऊपर टूटकर गिरेगा।”
“क... क्या है असली कहानी?” मेरी आवाज कंपकंपाई।
मैं अब बृन्दा को इस प्रकार देखने लगी, जैसे मेरे सामने कोई जादूगरनी खड़ी हो।
“दरअसल कॉलगर्ल की उस नारकीय जिन्दगी को तिलांजलि देने के लिए जिस तरह तुम ढेर सारी दौलत हासिल करना चाहती थीं, उसी तरह मैं भी ढेर सारी दौलत हासिल करना चाहती थी। इसीलिए मैंने तिलक राजकोटिया को अपने प्रेमपाश में बांधकर उससे शादी की। लेकिन तभी एक गड़बड़ हो गयी।”
“कैसी गड़बड़?”
मेरी उत्कण्ठा बढ़ती जा रही थी।
“शादी के कुछ महीने बाद ही मुझे पता चला।” बृन्दा बोली—”कि तिलक राजकोटिया दीवालियेपन के कगार पर खड़ा व्यक्ति है और उसके पास दौलत के नाम पर कुछ नहीं है। यह बात पता चलते ही मानो मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गयी। आखिर मेरी सारी मेहनत पर पानी फिर गया था। तभी मेरे हाथ बीमे के वह डाक्यूमेण्ट लगे, जिनसे मुझे यह जानकारी हुई कि तिलक ने पचास करोड़ का बीमा कराया हुआ है। मेरी आंखों में उम्मीद की चमक जागी और उसी पल मेरे दिमाग ने एक बहुत भयानक षड्यंत्र को जन्म दे डाला।”
“कैसा षड्यंत्र?”
“षड्यंत्र- बीमे की रकम के लिए तिलक को मार डालना।” बृन्दा ने दांत किटकिटाये—”उसकी हत्या करना।”
“न... नहीं।”
मैं कांप उठी।
“यह सच है शिनाया डार्लिंग।” बृन्दा बोली—”अलबत्ता यह बात जुदा है कि मैंने तिलक राजकोटिया को अपने हाथों से मार डालने की बात नहीं सोची। बल्कि मैंने पहले इस पूरे प्रकरण पर गम्भीरता से विचार किया। तभी मुझे तुम्हारा ख्याल आया- तुम न सिर्फ जासूसी उपन्यास पढ़ती थीं बल्कि पहले से ही उल्टे—सीधे हथकण्डों में भी माहिर थीं। मुझे महसूस हुआ- तुम तिलक को ज्यादा—आसानी से ठिकाने लगा सकती हो। बस मैंने फौरन तुम्हें ‘बलि का बकरा’ बनाने का फैसला कर लिया और फिर तुम्हें फांसने के लिए एक बहुत खूबसूरत फंदा भी तैयार कर डाला।”
“कैसा खूबसूरत फंदा?”
“सारा ड्रामा डॉक्टर अय्यर के साथ मिलकर रचा।” बृन्दा बोली—”डॉक्टर अय्यर क्लब के जमाने से ही मेरा पक्का मुरीद था। दूसरे शब्दों में वो मेरा फैन, मेरा एडमायरर, मेरी स्टेडी कस्ट्यूमर था। जो अमूमन किसी रण्डी के दस—पांच होते ही होते हैं। वो मेरे एक इशारे पर कुछ भी करने को तैयार रहता था। उसके साथ मिलकर ही मैंने बीमार पड़ने का नाटक रचा और डॉक्टर अय्यर ने ही मुझे ‘मेलीगनेंट ब्लड डिसक्रेसिया’ जैसी भयंकर बीमारी घोषित की।”
“यानि तुम ये कहना चाहती हो,” मैं हतप्रभ् लहजे में बोली—”कि तुम पेशेण्ट नहीं थीं?”
“बिल्कुल भी नहीं। मेलीगनेट ब्लड डिसक्रेसिया तो अपने आप में बहुत बड़ी बीमारी है, जबकि मुझे तो नजला—बुखार भी नहीं था। मैं एकदम तन्दरुस्त थी। चाक—चौबंद थी और जो कुछ पैंथ हाउस में मेरी बीमारी को लेकर हो रहा था- वह नाटक के सिवा कुछ नहीं था।”
“बड़ी आश्चर्यजनक बात बता रही हो।” मैं बोली—”और तुम्हारी आंखों में जो काले—काले गड्डे पड़ गये थे, तुम्हारा शरीर जो पतला—दुबला हो गया था, वह सब क्या था?”
“आंखों में गड्ढे डालने या शरीर को पतला—दुबला करना कौन—सी बड़ी बात है!” बृन्दा रहस्योद्घाटन पर रहस्योद्घाटन करती चली गयी—”मैंने कम खाना—पीना शुरू कर दिया, तो थोड़े बहुत दिन में ही मेरी हालत बीमारों जैसी अपने आप हो गयी। अब तुम्हारे दिमाग में अगला सवाल यह उमड़ रहा होगा कि इस सारे ड्रामें से मुझे फायदा क्या था? तो उसका जवाब भी देती हूं- दरअसल तुम्हें किसी तरह पैंथ हाउस में बुलाना मेरा उद्देश्य था। बीमारी के बाद ही मैंने तिलक राजकोटिया से कहकर अखबार में ‘लेडी केअरटेकर’ का विज्ञापन निकलवाया। वह विज्ञापन सिर्फ तुम्हारे लिये था। इतना ही नहीं—तुमने जब पहली बार अखबार में छपा वह विज्ञापन देखा, वह भी मेरी ही प्लानिंग थी। वो डॉक्टर अय्यर जैसा ही मेरा एक मुरीद था, मेरा एक कस्ट्यूमर था, जो उस रात तुम्हें अपने घर ले गया था और तुमने वहां वो विज्ञापन देखा। सब कुछ पहले से फिक्स था। उसके बाद जैसा मैं चाहती थी, वैसा ही हुआ। मैं यह बात अच्छी तरह जानती थी कि उस विज्ञापन को पढ़कर तुम्हारे मन में कैसा लालच पैदा होगा? तुम फौरन तिलक की बीवी बनने का सपना देखने लगोगी। वैसा सपना तुमने देखा भी। अलबत्ता एक जगह मुझे अपनी सारी योजना जरूर फेल होती नजर आयी।”
“किस जगह?”
“जब तुमने पैंथ हाउस में आकर मुझे देखा और मुझसे ये कहा कि बिल्ली भी दो घर छोड़कर शिकार करती है, इसीलिए अब मैं कोई गलत काम नहीं करूंगी और पूरे तन—मन से तुम्हारी सेवा करूंगी। तुम्हारी इस बात को सुनकर मुझे जबरदस्त झटका लगा। मुझे लगा- मेरी सारी योजना फेल हो गयी है। बहरहाल मैंने संतोष की सांस तब ली- जब तुम तिलक राजकोटिया के साथ प्यार का खेल, खेलने लगीं।”
वह एक अद्भुत रहस्य मेरे सामने उजागर हो रहा था।
मैं चकित थी।
बृन्दा ऐसा खेल भी खेलेगी, मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी।
“फिर तिलक राजकोटिया ने और तुमने मिलकर मेरी हत्या की योजना बनायी।” बृन्दा बोली—”सच बात तो ये है कि हत्या की वह योजना बनाने के लिए भी मैंने तुम दोनों को प्रेरित किया। जरा सोचो- अगर डॉक्टर अय्यर तुमसे यह न कहता कि मेरी तबीयत में अब सुधार होने लगा है- तो क्या तुम मेरी हत्या के बारे में सोचती भी? हर्गिज नहीं! लेकिन अपनी हत्या कराना भी मेरी योजना का एक हिस्सा था, इसीलिए मैंने अपनी तबीयत में सुधार होने वाली बात प्रचारित की। जल्द ही तुमने ‘डायनिल’ और ‘स्लिपिंग पिल्स’ से मेरी हत्या करने का प्लान बना डाला। तुम्हारा प्लान वाकई शानदार था- मैंने और डॉक्टर अय्यर तक ने तुम्हारे प्लान की तारीफ की। मैं छुपकर तुम्हारी और तिलक की हर बात सुनती थी- इसलिए जब तुमने यह प्लान बनाया, तभी मुझे इसके बारे में पता चल गया। तुम्हारी जानकारी के लिए एक बात और बता दूं, जब—जब तुम मुझे ‘डायनिल’ खिलाने का प्रोग्राम बनाती थीं, तब—तब मैं चीनी भारी मात्रा में पहले ही खा लेती थी। डॉक्टर ने पहले ही बता रखा था कि ‘डायनिल’ टेबलेट की काट सिर्फ शुगर है। अगर शुगर पहले ही भारी मात्रा में खा ली जाए, तो ‘डायनिल’ टेबलेट का इंसानी शरीर पर कोई खतरनाक रिएक्शन नहीं होगा। यहां तक कि ‘डायनिल’ खाने के बाद मेरी जो तबीयत खराब होती थी, वह भी मेरा ड्रामा था। और जिस दिन तुमने मुझे बीस ‘डायनिल’ खिलाई, उस दिन तो मैंने बहुत भारी मात्रा में चीनी का सेवन किया था।”
“यानि उन डायनिल टेबलेट्स का भी तुम्हारे ऊपर कोई असर नहीं हुआ था?” मैं भौंचक्के स्वर में बोली।
“यस!”
“और स्लिपिंग पिल्स- स्लिपिंग पिल्स के असर से कैसे बचीं तुम?”
“स्वीट हार्ट!” बृन्दा के होठों से बड़ी शातिराना मुस्कुराहट दौड़ी—”मैं स्लिपिंग पिल्स के असर से बची नहीं बल्कि बेहोश हो गयी। यह उन स्लिपिंग पिल्स का ही असर था—जो तुम सबने मुझे मरा हुआ समझा।”
“ओह!” मेरे नेत्र सिकुड़ गये—”अब तुम्हारी कुछ—कुछ चालें मेरी समझ आ रही हैं। ‘मेडिकल रिसर्च सोसायटी’ को शवदान देने की बात भी तुम्हारी योजना का ही एक अंग थी। क्योंकि अगर तुम्हारा अंतिम क्रियाकर्म हो जाता- तुम्हारा शव अग्नि की भेंट चढ़ जाता, तो तुम वास्तव में ही मर जातीं- इसलिए तुमने वह चाल चलकर अपने आपको बचाया। इतना ही नहीं- ‘मेडीकल रिसर्च सोसायटी’ के नाम पर खुद डॉक्टर अय्यर तुम्हारे शव को पैंथ हाउस से निकालकर ले गया।”
“एब्सोल्यूटली करैक्ट!” बृन्दा प्रफुल्लित अंदाज में बोली—”सब कुछ इसी तरह हुआ। फिर मेरा अगला शिकार डॉक्टर अय्यर था।”
“डॉक्टर अय्यर!” मैं चौंकी—”लेकिन डॉक्टर अय्यर तो तुम्हारा मुरीद था- तुम्हारा एडमायररर था?”
“वह सब बातें अपनी जगह ठीक हैं। लेकिन डॉक्टर अय्यर मेरी पूरी योजना से वाकिफ था और वह कभी भी मेरे लिए खतरा बन सकता था। इसीलिए उसको रास्ते से हटाना जरूरी था। डॉक्टर अय्यर को रास्ते से हटाने के लिए ही मैंने उसे ब्लैकमेलिंग जैसे काम के लिए प्रेरित किया और यह कहकर प्रेरित किया कि अगर तुम तिलक तथा शिनाया को ब्लैकमेल करोंगे, तो इससे तुम दोनों के बीच आतंक फैलेगा और ऐसी परिस्थिति में तुम यानि शिनाया बौखलाहट में तिलक को आनन—फानन ठिकाने लगाने की बात सोचोगी। उस वक्त उस बेवकूफ मद्रासी डॉक्टर के दिमाग में यह बात नहीं आयी कि तिलक राजकोटिया से पहले तुम उसके मर्डर की बात सोच सकती थीं। जैसाकि तुमने सोचा भी और तिलक के साथ मिलकर डॉक्टर अय्यर की हत्या कर दी। बहरहाल डॉक्टर अय्यर की हत्या करके तुमने मेरे ही एक काम को अंजाम दिया। मेरे ही एक कांटे को रास्ते से हटाया।”
•••
|